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ख़्वाबगाह - 3

ख़्वाबगाह

उपन्यासिका

सूरज प्रकाश

तीन

उसके बाद से विनय के तीस चालीस फोन और इतने ही मैसेज रोज आते हैं। मिलने के लिए न वह आया है और न मैं ही खुद उसके पास जाने की हिम्मत जुटा पायी हूं। उसका फोन मैंने एक बार भी नहीं उठाया है। गलती उसकी है। वह भी छोटी-मोटी नहीं, बिना बात के बतंगड़ बना देना औेर मेरे ही घर पर आ कर नौकरानी के सामने मुझे दो थप्पड़ मार देना। अब भी सोचती हूं तो मेरी रूह कांप जाती है। विनय आखिर ऐसा कर कैसे गया।

इस घटना के बाद से उस पर से मेरा सारा विश्वास धरा का धरा रह गया था। उस दिन मुझे थप्पड़ मारने और बड़ बड़ करते हुए मेरा कीमती मोबाइल दीवार पर दे मारने के बाद वह बिना पानी पिए ही चला गया था। बहुत देर तक तो मुझे देर तक समझ में नहीं आया कि हो क्या गया है। आखिर ऐसा क्या गुनाह कर दिया था मैंने। बेशक मेरे जीवन का कुछ भी उसे छुपा हुआ नहीं है फिर भी कुछ तो मेरा निजी होगा या होना चाहिए जिस पर सिर्फ मेरा अधिकार हो। उससे अटूट प्रेम करने का यह मतलब तो नहीं कि मैं उसके अलावा किसी से बात नहीं कर सकती। व्हाट्सएप पर, फेसबुक पर सभी तो अजनबी नहीं होते। घर परिवार के लोग भी तो हो सकते हैं। फोन पर हम दुनिया भर से बात ही तो नहीं करते। मां, बहन, भाई किसी का भी फोन आ सकता है। कुछ अच्छे दोस्त हो सकते हैं, काम के सिलसिले में बात करनी पड़ सकती है। बात लंबी भी हो सकती है जिसकी वजह से मोबाइल बिजी दिखे। हम मोबाइल पर पांच सौ काम करते हैं। किस किस की सफाई दें।

उसे इसी बात पर ऐतराज है कि मोबाइल इंगेज क्यों है। व्हाट्सअप पर तुम हम समय ऑन क्यों नजर आती हो। उसके लिए मेरा फोन हर समय फ्री रहना चाहिये। ये और इस तरह के बीसियों सवाल जिनका कोई सिर पैर नहीं होता था। विनय इसको ले कर मेरा कोई तर्क न सुनता।

फोन टूटने पर मैंने मुकुल को यही बताया था कि स्कूटी चलाते समय मोबाइल गिर कर टूट गया था। मेरे पास विनय और मुकुल के दिये कई मोबाइल थे। मैं तब विनय से नाराजगी के रूप में मुकुल का दिया मोबाइल इस्तेमाल करने लगी थी। तभी चौथे दिन अमेजन से एक कूरियर आया था। विनय ने एक और मोबाइल भेजा था। मुझे ये मोबाइल देख कर चिढ़ ही हुई थी। आप टूटा हुआ मोबाइल रिप्लेस कर सकते हैं, लेकिन आपने अपनी हरकत से मेरा जो दिल तोड़ा है, मेरी जो भावनाएं आहत की हैं, मेरे ही घर पर आ कर मेरा अपमान किया है, उन सबके रिप्लेसमेंट का भी कोई तरीका है आपके पास। मैंने मोबाइल का पैक भी नहीं खोला था।

  • मुझे कभी याद नहीं आता कि मुकुल ने पति होते हुए भी मुझसे कभी ऊंची आवाज में बात ही की हो या मुझ पर हाथ उठाया हो। बेशक मैं उसे गुस्सा होने के मौके भी देती रही हूं। कभी तो मुझ पर नाराज हो या मैं उस पर नाराज होऊं और हम लाड़ लड़ा कर एक दूजे को मनाएं। वह न तो रूठता है और न ही मेरे रूठने का उसे पता चलता है। मुझे मनाना तो दूर की बात है। बस हम दोनों में सब कुछ हमेशा सम पर चलता रहता है। फिर भी जो उसका हक है, जो उसका हिस्सा है, पति के रूप में, उसे उससे छीनकर मैं विनय को देती रही और विनय ने मेरे साथ यह व्यवहार किया। विनय क्यों भूल गया कि उसकी जिंदगी में अगर मैं हूं तो किसी और का हक छीन कर ही उसके साथ हूं। किसी और का समय चुरा कर मैं उसे दे रही हूं। किसी और के हिस्से का प्यार, स्नेह, कीमती पल उसके हिस्से में आ रहे हैं।

  • अगर मैं मुकुल और विनय को तराजू के दो पलड़ों में तौलूं तो हर मामले में विनय का पलड़ा ही भारी रहा है। अगर मैं ईमानदारी से कहूं तो मैं विनय के प्रति 60% और मुकुल के प्रति, अपने पति के प्रति सिर्फ 40% ही समर्पित और ईमानदार रही हूं तो गलत नहीं होगा।

    बेशक विनय से मेरी मुलाकातों में लंबे लंबे अंतराल भी आये हैं और ऐसा भी हुआ है कि हम एक एक बरस तक नहीं मिले हैं, इसके बावजूद विनय के प्रति मेरे प्रेम में और होने वाली मुलाकातों की गरमाहट में कोई कमी नहीं आई है।

  • कितनी अच्छी बुरी यादें हैं, कितनी घटनाएं हैं, कितने रोमांचकारी किस्से हैं, बेहद सुखद पल हैं और उतने ही दुखदायी पल भी जो विनय के साथ जुड़े हुए हैं। बारह बरस के लंबे अरसे की अनगिनत यादों की पोटली है। हमने एक दूसरे की कंपनी में कितना असीम सुख पाया है। हम दोनों की हर मुलाकात अपने आप में अनूठी, रोमांस और रोमांच से भरी हुई और यादगार होती थी। हम कितनी बातें करते थे। बातें थीं कि खत्म ही नहीं होती थीं। हमारी हम मुलाकात समय की सारी सीमाएं लांघ जाती थी। हम आधे घंटे के लिए मिलते थे और चार घंटे बाद विदा होते थे।

  • मेरी यादों की गुल्लक में ये सब खुशियां भरी हुई हैं। मैं ये सब सोच सोच कर परेशान हो रही हूं कि हम दोनों के इस रिश्ते में एक दिन ऐसा भी आएगा कि फेसबुक जैसी मामूली चीज को लेकर वह मुझे थप्पड़ मारेगा। वह भी मेरे घर आकर।

    सोचती हूं कि क्या विनय के अलावा मेरा अपना जीवन नहीं है। क्या मुझे इतना भी हक नहीं है कि मैं विनय से अलग अपने जीवन की कल्पना कर सकूं और कुछ अपने लिए भी जी सकूं। कुछ तो ऐसा होगा जो सिर्फ मेरा हो, मेरा, सिर्फ मेरा।

  • याद करती हूं विनय से पहली मुलाकात। हम एक पार्टी में मिले थे। तब मैं बीए में थी। जैसा कि अमूमन उस उम्र में होता है हम सब फ्रेंड्स का भी एक गैंग था। किसी न किसी बहाने से गैंग की पार्टियां होती रहती थीं। ऐसी ही किसी पार्टी में विनय आया था। एक कॉमन दोस्त ने तब विनय से मिलवाया था। उस दोस्त से तो दोबारा मुलाकात नहीं हुई लेकिन शायद विनय ने उसी दोस्त से मेरा पता और फोन नंबर ले कर मुझसे संपर्क करने की मुहिम शुरू की थी। किसी न किसी तरह से फोन करके, संदेश भेजकर, कार्ड भेजकर हमेशा यह जतलाने की कोशिश की कि वह मेरे प्रति बेहद आकर्षित है और मुझसे मिलना चाहता है। उसने कई बार मिलने की भी कोशिश की थी। मैं ही हर बार टालती रही थी।

    बाद में उसने बताया था कि वह मेरे घर के और कॉलेज के भी चक्कर काटता रहा है। उसकी तरफ से यह लव एट फर्स्ट साइट वाला मामला था। एक बार उसने बहुत जिद करके वैलेंटाइन डे पर मिलने के लिए कहा था।

  • मेरे लिए यह पहला मौका था जब कोई मुझे वैलेंटाइन डे पर बुला रहा था। वह भी कई महीने पहले की इकलौती मुलाकात वाला बंदा। मैंने अब तक जितने भी वैलेंटाइन डे मनाये थे वे सब लड़के और लड़कियों के ग्रुप में मनाए गये थे। हमारी आमने सामने अकेले में यह पहली मुलाकात होती। उस समय मेरा कोई भी करीबी दोस्त नहीं था, इसलिए मैंने विनय से मिलना मंजूर कर लिया था। एक मॉल में मिले थे हम।

  • विनय तब बहुत सलीके से पेश आया था। उसने मुझे एक खूबसूरत डिबिया उपहार में दी थी और कहा था कि घर जा कर देखना, अभी नहीं। मेरा पहला वैलेंटाइन डे उपहार। मुझे तब उसके बारे में कुछ भी नहीं पता था और सच तो ये था कि मुझे उसकी शक्ल भी अच्छी तरह से याद नहीं थी। मैं उसके लिए कुछ भी ले कर नहीं गयी थी।

  • हमने तब ढेर सारी बातें की थीं और जितना हो सका, एक दूसरे को जाना परखा था। उसका व्यवहार इतना सहज था कि मेरी सारी झिझक पहली ही मुलाकात में दूर हो गयी थी और मैंने सोच लिया था कि इस युवक को दोस्त बनाया जा सकता है।

  • चलते समय मैंने संकोच से कहा था कि मैं आपके लिए कुछ भी नहीं ला पायी। मुझे डर था कि मेरी लायी कोई चीज आपको पसंद आयेगी भी या नहीं।

    - कोई बात नहीं। आप अगली बार मिलें तो अपने हाथ का बना कुछ लेती आयें। मुझे अच्छे खाने का बहुत शौक है। विनय बोला था।

    मैं खिलखिलायी थी - बहुत चालाक हैं आप, अगली मुलाकात का खुद ही फैसला कर लिया। चिंता न करें, हम मिलेंगे और जरूर मिलेंगे।

  • विनय का पहला उपहार पाजेब थी। मैं देर तक हंसती रही थी कि क्या सोच कर उसने मेरे लिए पाजेब खरीदी होगी। मैंने तभी पाजेब पहन ली थी और अगले कई दिन तक छम छम करती घर भर में घूमती रही थी। विनय का पहला उपहार ही इतना रुन झुन रुन झुन वाला था। हमेशा मेरे तन पर उसकी मौजूदगी का अहसास कराता सा।

  • और मैं अगली मुलाकात में विनय के लिए खीर बना कर ले गयी थी। सच तो ये है कि मुझे उस वक्त तक कुछ भी बनाना नहीं आता था। मम्मी कहते कहते थक जाती थी और मैं रसोई में नहीं जाती थी। खीर बनाने की रेसिपी भी मैंने एक सहेली से पूछी थी।

  • उसके बाद तो सिलसिला ही बन गया था। मैं हर बार मुलाकात के लिए उसके लिए कुछ न कुछ बना कर ले जाती। मुझे ये मानने में कोई संकोच नहीं है कि तरह तरह की चीजें बनाना मैंने विनय के चक्कर में ही सीखा। मम्मी भी हैरान होती कि जो लड़की कभी रसोई में पैर नहीं धरती थी वह अचानक इतना अच्छा खाना कैसे बनाने लगी। बाद में तो कई बार जब विनय की वाइफ घर पर नहीं होती थी, मैंने उसके घर पर भी जा कर खाना बनाया है और दोनों ने मनुहार करके एक दूसरे को खिलाया है।

  • विनय भी कभी खाली हाथ न आता। हर बार मेरे लिए कोई न कोई उपहार लाता। मुझे घर पर यह भी बताना भारी पड़ता कि अचानक मेरे पास इतने सारे कपड़े, इतने उपहार, घड़ी, सैंडल कहां से आने लग गए हैं। मेरा जेब खर्च इतना नहीं था कि मैं यह सारी चीजें हर महीने एफोर्ड कर सकती। लेकिन विनय नहीं मानता था और हर मुलाकात में कुछ ना कुछ उपहार मुझे जरूर देता। उन दिनों में 21 बरस की थी और मुझे विनय से हर मुलाकात सातवें आसमान पर पहुंचने जैसे लगती। शुरू के दिनों में और बाद में मेरी शादी के बाद भी उसने मुझे मुकुल से कई गुना ज्यादा उपहार दिये होंगे। ये सारे उपहार कई बार बहुत कीमती होते और मेरे पर्सनल यूज के होते। ऐसी कौन सी चीज होगी जो उसने मुझे न दी हो। सिर से पैर तक के लिए। हेयर क्लिप से पाजेब तो मामूली चीजें हैं, ईयर रिंग्स, गले के लिए कीमती हार, अंगूठियां, सोने के कड़े, घड़ियां, ब्रेसलेट्स, लेटेस्ट मोबाइल, महंगे ईयर फोन्स, साड़ियां, टी शर्टं, जींस, स्कर्ट, लहंगे, ओवरऑल, लिंगरीज़, सैंडिल, मेकअप के पूरे किट, महंगे स्प्रे। कोई एक चीज हो तो गिनाऊं। मेरी अल्मारियां भरी पड़ी हैं विनय की दी हुई चीजों से। मैं जब भी तैयार होती हूं चाहें कहीं भी जाना हो, मेरे तन पर उसकी दी हुई कोई न कोई चीज़ जरूर होती है। विनय से मुलाकात के लिए जाते समय तो ज्यादा ही।

    सिर्फ उपहार ही नहीं दिए उसने, कितनी ही बार शॉपिंग भी हमने एक साथ की। हर बार वह यही कहता कि अपने लिए कुछ शॉपिंग करनी है, लाजपत नगर या करोल बाग चलते हैं। वहां उसकी शॉपिंग तो दस मिनट में पूरी हो जाती, तब शुरू होती मेरी खरीदारी। एक से एक फैशन की लिंगरीज़ खरीदी जा रही हैं तो कभी गाउन या ड्रेसेस। शॉपिंग के बाद बढ़िया लंच होता। इस तरह की शॉपिंग का सिलसिला मेरी शादी के बाद भी चलता रहा। इस सारी शॉपिंग के साथ विनय की एक अलिखित शर्त जुड़ी रहती कि मैं जब भी उससे मिलूं उसके उपहार के कपड़ों और लिंगरीज में ही आऊं। मोबाइल तो उसका होना ही चाहिये। मोबाइल में कैमरा आ जाने के बाद मेरी एक और ड्यूटी जुड़ गयी कि वाशरूम में मोबाइल ले जा कर पहनी हुई लिंगरीज की फोटो खींच कर उसे भेजूं। ये बात मैं आधी मानती थी कि कभी भी चेहरे के साथ फोटो नहीं भेजती थी। वैसे भी हम दोनों के मोबाइल में इन सब बरसों की एक दूसरे की एक भी फोटो नहीं होगी। हम दोनों ने एक दूजे के नंबर भी फेक नामों से सेव किये हुए हैं।

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