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ख़्वाबगाह - 6

ख़्वाबगाह

उपन्यासिका

सूरज प्रकाश

छ:

मेरी शादी के एक बरस बाद की बात है। एक दिन सुबह सुबह ही विनय का मैसेज आया था - आज चार बजे कनॉट प्लेस में मिलो। उसके संदेश हमेशा इतने ही शब्दों के होते कि बात पहुंच जाए। हम एक दिन पहले ही मिले थे और हमने लंच भी एक साथ लिया था और काफी सारा समय एक साथ गुज़ारा था। अगले दिन मिलने की कोई बात तय नहीं थी इसलिए मैंने दूसरे कुछ ऐसे काम तय कर लिये थे जो विनय से ही मुलाकातों के चक्कर में कब से टल रहे थे। विनय से मिलने जाने का मतलब सारे काम किसी अगली तारीख के लिए कैंसिल करना। मैंने कम से कम चार काम उस दिन के लिए तय कर रखे थे। दुविधा में थी कि क्या करूं।

विनय से मिलने का आकर्षण हमेशा की तरह अपनी जगह पर था और कब से टलते आ रहे काम पूरे करने का लालच अपनी जगह पर था। विनय ने तो सात शब्द लिख आदेश दे दिया था कि आज मिलो और मेरे सामने दुविधा खड़ी कर दी थी कि क्या करूं।

फैसला विनय के पक्ष में हुआ था और मैं कैब ले कर चल दी थी। मैंने सारे प्रोग्राम कैंसिल कर दिये थे।

विनय तय रेस्तरां की तय सीट पर बैठा था। मुझे देखते ही मुस्कुराया था। हलके से हग करने के बाद उसने मुझे आंखें बंद करने के लिए कहा था। तब उसने कहा था कि हाथ आगे करो। उसने तब एक छोटी सी खूबसूरत संदूकची मेरे हाथों पर रख दी थी। आंखें खोलने पर उसने मुझसे कहा था कि खोल कर देखो, इसमें क्या है। उस वक्त विनय की आंखें खुशी के मारे चमक रही थीं। संदूकची के भीतर चाबियों का एक गुच्छा था। मेरे पूछने पर उसने बताया था कि ये हमारे नये फ्लैट की चाबियां हैं।

मैं हैरान हुई थी। उसने कभी बताया ही नहीं था कि वह कोई फ्लैट खरीद रहा है। जब मैंने पूछा कि कहां है फ्लैट तो वह शरारत से मुस्कुराया था – अभी चाबी ले कर ही आ रहा हूं। सबसे पहले तुम्हें बताया है। मैंने भी अब तक नहीं देखा है। बंद फ्लैट की चाबी ली और यहां चला आया। अभी फ्लैट देखने ही चल रहे हैं। लोकेशन खुद देख लोगी।

यह फ्लैट नोयडा में बन रही एक नयी और बहुत बड़ी सोसाइटी में था। बीसवीं मंजिल पर। सोसाइटी बेहद खूबसूरत थी और अभी भी उसमें काम चल रहा था। विनय ने मुझसे ताला खोलने के लिए कहा था। टू बेडरूम हॉल वाला फ्लैट था यह। दरवाजा खुलते ही एक खूबसूरत बड़ा सा हॉल सामने था और किचन बाथरूम और बेडरूम भीतर की तरफ थे। अभी मैंने पूरा फ्लैट देखा भी नहीं था कि विनय ने मुझे पीछे से भींच लिया था – अब हम यहीं मिला करेंगे जानेमन। यह सुनते ही मैं खुशी के मारे चीख पड़ी थी। अपने आपको छुड़ाते हुए बोली थी – अरे बाबा, कम से कम फ्लैट देख तो लेने दो। अभी तो फ्लैट बिल्कुल खाली है। सारा सामान लाने और सेट करने में वक्त तो लगेगा।

मैंने ड्रांइग रूम की बाल्कनी से झांक कर नीचे देखा था। बाल्कनी बहुत बड़ी थी और सामने का नजारा बेहद खूबसूरत था। ठीक नीचे ही खूबसूरत लॉन और स्विमिंग पूल थे। दोनों कमरों की बाल्कनी से भी खूबसूरत नजारे दिख रहे थे। दूर दूर तक बनी और अधबनी इमारतें नजर आ रही थीं। मुझे विनय की पसंद पर रश्क हो आया था। तभी उसने कहा था – इस फ्लैट की एक चाबी तुम्हारे पास रहेगी और..! इससे पहले कि वह अपना वाक्य पूरा कर पाता, मैंने उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा था – क्या मैं इस फ्लैट को अपने तरीके से सजाऊं? जवाब में विनय ने खुशी से हामी भर दी थी लेकिन एक शर्त भी लगा दी कि जो भी सजावट होगी या सामान खरीदा जाएगा, उसके लिए पसंद बेशक तुम्हारी रहेगी लेकिन तुम एक भी पैसा खर्च नहीं करोगी। हां, ये जरूर है कि तुम्हें यहां कई कई बार आना पड़ेगा।

- तुम उसकी चिंता मत करो, मैं देख लूंगी। लेकिन मेरी भी एक शर्त है। मैंने कहा था।

- कह डालो। विनय ने हरी झंडी दिखा दी थी।

- मेरी शर्त यह है श्रीमान, मैंने अपनी पसंद के घर को सजाने से जुड़ी, कब से दबी इच्छा पूरी होते देख कर कहा था – आप तब तक यहां नहीं आयेंगे जब तक यह मकान होम, स्वीट होम में न बदल जाए। आप कभी यहां आ कर झांकेगे भी नहीं। चाहें तो अपनी चाबी भी मेरे पास रखवा सकते हैं।

विनय ने मेरी बात मानते हुए कहना चाहा था – लेकिन बिल्डर की तरफ से ड्राइंग रूम में और दोनों कमरों में एसी लगवाए जाने हैं, पाइप गैस वाले अपना काम करेंगे, बिल्डर की तरफ से ओवन, फ्रिज और वाशिंग मशीन दी जानी है। मॉड्यूलर किचन का काम बिल्डर की तरफ से होना है। इन कामों में कुछ वक्त लग सकता है। और बिजली की कुछ एक्स्ट्रा फिटिंग्स करानी होंगी।

- इसका उपाय है मेरे पास। मैंने दिलासा दी थी - बाकी सब काम तुम पहले करवा लो। कुछ एक्स्ट्रा फिटिंग्स और दीवारों पर पेंट और परदे वगैरह का काम मैं अपनी निगरानी में करवा लूंगी। ये सब मेरे जिम्मे रहा। पूरी इंटीरियर मैं कराऊंगी। मेरी सारी तैयारियां होती रहेंगी, सारा सामान आ जाने के बाद बस, मुझे सजाने संवारने के लिए सिर्फ दो तीन दिन का समय और दो एक हैल्पर चाहिये।

अब अगली शर्त विनय की थी। उसने कहा था - जब भी हम गृह प्रवेश करेंगे, तुम पहले आओगी और दुल्हन के पहनावे में मेरा स्वागत करोगी।

शर्त मुश्किल थी। दोस्त के लिए दुल्हन बनकर आना। ऐसी हालत में जबकि दोनों ही शादीशुदा हैं। मैं सोचने लगी – क्या यह ठीक होगा। विनय ने टोका – क्या सोच रही हो? मैंने प्यार से विनय की तरफ देखा था। उसकी आंखों में शरारत थी। मैं सब समझ रही थी। मुकुल के साथ शादी के समय वह जब मेरे ब्राइडल मेकअप के समय आया था तब भी उसने यही कहा था - काश, हम शादी कर पाते। मैं तुम्हें यहीं से ले जाने के लिए तैयार हूं।

और अब उसकी वही हसरत जोर मार रही थी कि मैं यहां दुल्हन के रूप में स्वागत करूं। ये भी सोच रही थी कि मैं मुकुल की ब्याहता हूं। विनय मेरा दोस्त है और अपने नये फ्लैट में मुझे दुल्हन की तरह न केवल देखना चाहता है बल्कि उन पलों को जीना भी चाहता है।

मैं उसकी शरारतपूर्ण मंशा समझ रही थी। दुल्हन के रूप में आना यानि दोस्त के साथ दूसरी सुहाग रात। यह एक्शन रिप्ले मेरे लिए बहुत मुश्किल था। फिर भी मैंने सिर हिला कर हां कर दी थी।

अब सवाल ये था कि दुल्हन की तरह मेकअप तो कराया जा सकता था लेकिन दुल्हन के कपड़े मुझे जुटाने पड़ते और यहां पहले ला कर रखने पड़ते। हालांकि उस तरह का मेकअप भी आसान नहीं था। लेकिन मैंने उसकी बात मान ली थी। लेकिन अपनी तरफ से ये जोड़ दिया था कि मैं पूरी कोशिश करूंगी कि हम उस दिन यहां आयें जब मुकुल शहर में न हो ताकि हम यहां पर पहली बार भरपूर वक्त एक साथ गुजार सकें। मैं अभी से वादा नहीं कर सकती। विनय ने मेरी यह बात मान ली थी कि तब की तब देखेंगे।

हम बहुत खुश खुश लौटे थे वहां से। वापसी में विनय ने बताया था कि इस फ्लैट के बारे में न तो उनकी मां को पता है और बीवी को बताने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। उसने यह फ्लैट बहुत पहले इन्वेस्टमेंट के तौर पर बुक करवाया था। उसने एक और अच्छी बात बतायी थी कि उस फ्लोर पर कुल तीन ही फ्लैट थे और बाकी दो फ्लैट भी इन्वेस्टर्स के होने के कारण अरसे तक खाली ही रहने वाले थे। यह बात बहुत सुकून देने वाली थी।

  • विनय ने जब मेरी यह बात मान ली थी कि मैं ही इस फ्लैट को सजाना संवारना चाहूंगी, यह सुन कर मैं बेहद रोमांचित हो गयी थी। हालांकि मैं इस बात को ले कर अचानक उदास भी हो गयी थी कि अपने सपनों का घर मैं अपने खुद के लिए नहीं, बल्कि एक दोस्त के लिए सजाने जा रही हूं। शादी से पहले और विनय से भी मिलने से पहले मैंने अपने घर को ले कर कितने सपने संजोए थे कि उसमें ये ये होगा और उसे मैं कैसे कैसे सजाऊंगी। पूरे घर की मुकम्मल सजावट की तस्वीर मेरी आंखों में एक तरह से बसी हुई थी और उसे बस, पूरा करने की देर थी। एक तरह से उस घर की हर शै का रंग, उसकी जगह, उसका इस्तेमाल मैंने कब से मन ही मन तय कर रखा था।

    लेकिन हुआ क्या। मुकुल से जब शादी हुई तो ससुराल में आने पर मैंने देखा कि मुकुल का कमरा सामान से इतना ठूंस ठूंस कर भरा हुआ था कि उसमें मुझे शादी में मिले उपहार या मेरी अटैचियां भी रखने की जगह नहीं थी। उस घर में और ड्राइंगरूम में सब कुछ पहले से मौजूद था। कुछ भी नया लाने की जगह ही नहीं थी। जो कुछ मेरे साथ चला आया था, उसके लिए भी इंच भर जगह नहीं थी। मेरे सपनों के महल की नींव भी नहीं खुद पायी थी अपने घर में। मुकुल से शादी के बाद जब मेरी ये हसरत पूरी नहीं हुई थी तो मैं इसे कब का भूल चुकी थी।

  • और अब मेरा दोस्त अपने नये घर की चाबी दे कर उसने सजाने संवारने की जिम्मेवारी दे रहा था। बस उसी पल से, फ्लैट से निकलते समय से मेरे सपनों के महल के नक्शे मेरी आंखों के आगे फिर से तैरने लगे थे और सब कुछ तय हो चुका था। इस बात का भी सुकून था कि अब हमें एकांत में मिलने के लिए विनय के दोस्त के खाली फ्लैट में नहीं जाना पड़ेगा। उस फ्लैट की एक चाबी बेशक हर समय विनय के पास रहती थी लेकिन वहां जाने के कई संकट होते थे। सबसे पहले तो विनय अपने दोस्त से पूछता था कि वहां कोई है तो नहीं और वहां किसी के न होने पर ही हम वहां जा पाते थे। दूसरा संकट वहां के अड़ोसी पड़ोसियों का था। वह फ्लैट पुराना सा था, दूसरी मंजिल पर था और वहां लिफ्ट नहीं थी। हर मंजिल पर चार फ्लैट थे। मिडिल क्लास लोग। बिल्डिंग में सबको पता था कि ये फ्लैट किसका है और हम दोनों अक्सर दोपहर के वक्त दो चार घंटे के लिए क्या करने आते हैं। सब इतने समझदार थे और जानते थे कि कम से कम पति पत्नी को इस तरह से चोरी छुपे कहीं एकांत में मिलने के लिए किसी दोस्त के घर की चाबी की जरूरत नहीं पड़ती। दूसरा संकट उस फ्लैट में जाने का ये था कि हमारे वहां पहुंचते ही दरवाजे की घंटी बजनी शुरू हो जाती। अभी हमने प्यार करना शुरू भी न किया होता, कपड़े उतारने की बात तो बहुत दूर की होती, हर पांच दस मिनट बाद दरवाजे की घंटी बजनी शुरू हो जाती। एक दो बार विनय ने की होल से देखा भी तो कोई नजर न आया। ये तय था कि अड़ोसी पड़ोसी या उनके बच्चे ही ये शरारत करते थे लेकिन हम कुछ भी नहीं कर सकते थे। देखने के लिए न दरवाजा खोल सकते थे और न ही विनय के दोस्त से शिकायत ही कर सकते थे। जब हर बार यही होने लगा तो हमने वहां जाना ही छोड़ दिया था।

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