बाली का बेटा - Novels
by राज बोहरे
in
Hindi Classic Stories
1 ...Read More बाल उपन्यास बाली का बेटा राजनारायण बोहरे तपस्वी का गुस्सा पम्पापुर के युवराज अंगद हर रोज की तरह अपने दोस्तों के साथ मधुवन नाम के बागीचे में पेड़ों की आसमान छूती डालियों पर चढ़कर पत्तों के बीच छिपने और खोजने का खेल ‘ छियापाती’ रहे थे कि एक सैनिक ने आकर कहा ‘‘ राजकुमार , तुरंत घर चलो। महारानी तारा ने आपको बुलाया है।’’ अचानक ही महल का बुलावा सुना तो उनके सब मित्रों ने खेल बंद कर नीचे उतर आये। महल की ओर जाते समय बाजार
पहाड़ों के बीच एक राज्य था, जिसका नाम था- किष्किन्धा। इसकी राजधानी थी पम्पापुर। पम्पापुर के राजा थे सुग्रीव और युवराज थे अंगद। एक दिन अचानक पम्पापुर में गुस्से में भरे एक तपस्वी आ खड़े हुए और ...Read Moreकि मैं अभी नगर को जला के राख कर दूँगा।
बाली का बेटा राजनारायण बोहरे लक्ष्मण ने आँखें मूँदी और अपने निचले होंठ को ऊपर के दांत से दबाने लगे। अंगद ने महसूस किया कि वे अपना गुस्सा रोकने का प्रयत्न कर रहे हैं। आगे-आगे अंगद ...Read Moreमें लक्ष्मण और पीछे महारानी तारा ने महल में प्रवेश किया तो मुख्य द्वार के पास ही महाराज सुग्रीव रोनी सी सूरत बनाये खड़े हुए मिले । वे लक्ष्मण के पैरों में झुक गये। लक्ष्मण उन्हे एक तरफ सरका कर आगे बढ़ गये। आगे जामवंत खड़े थे, फिर हनुमान थे। उनसे
पम्पापुर के राजमहल से बहुत सारे लोग प्रबरसन पर्वत के लिए चल पड़े थे। लक्ष्मण सबसे आगे थे। उनके ठीक पीछे अंगद थे। बाकी लोग उनके पीछे चल रहे थे। यह जुलूस जहां से गुजरता, वहां के लोग ...Read Moreउन सबको प्रणाम करते और पीछे हट जाते। कुछ ही देर में लोगों का यह झुण्ड नगर की गलियों को पार करता हुआ नगर से बाहर पहुंच गया। अब वे ऐसे मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे, जो पहाड़ पर जाता था।
4 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे बाली अंगद के पिता ! यानी वनवासियों के राज्य किष्किन्धा के राजा- बाली। बाली का राज्य था किष्किन्धा ! जामवंत जी इन दिनों अंगद के गुरू हैं, वे बताते हैं कि यह राज्य किष्किन्धा सैकड़ों साल पुराना है । वनवासियों के इस छोटे से राज्य की बहुत सुन्दर सी राजधानी पम्पापुर है । लोग बताते हैं कि दुनिया के सबसे सुदर मकान बनाने वाले होशियार कारीगर मय ने इस नगर की रचना की थी। पम्पापुर ऊँचे पहाड़ों के बीच
5 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे जामवंत के किस्से जामवंत कई किस्से सुनाते हैं बाली महाराज के। उन्होंने अपनी राजधानी पम्पापुर की सुरक्षा के लिए नगर के चारों ओर एक बड़ी चहार दिवारी बनबाई थी। जिसमें चार दरवाजे थे। चारों दरवाजे रात को दियाबाती के समय बंद कर दिया जाता और सुबह सूरज उदय होने के एक पहर बाद ही खोला जाता।
6 ...Read More बाल उपन्यास बाली का बेटा राजनारायण बोहरे बाली का किस्सा बीच में टोक कर जामवंत से अंगद ने पूछा कि ‘‘ बाबा , मेरे पिता और काका सुग्रीव के बीच
7 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे सुग्रीव को राज्य सब लोगों ने विचार करके निर्णय लिया कि इस गुफा का मुंह पत्थर की एक बड़ी चट्टान से बंद कर देना चाहिए और यहां से हट कर राजधानी पम्पापुर चल देना चाहिऐ। ऐसा ही हुआ। गुफा का मुंह बंद करके सब लोग राजधानी लौट आये। अगले दो-चार दिन और इंतजार किया गया। मंत्रियों ने सलाह दी कि एक महीने से किष्किन्धा राज्य बिना राजा का है, ऐसे में राज्य बहुत असुरक्षित होता है। इसलिए उचित होगा कि सुग्रीव राजा बन जायें
8 ...Read More बाल उपन्यास बाली का बेटा राजनारायण बोहरे ऋष्यमूक जामवंत जब कोई किस्सा सुनाते हैं तो ऐसा रोचक होता है कि सुनने वाले बंध कर रह जाते हैं। लोग खाना-पीना भूल कर उनकी बातों में डूब जाते हैं। उन्होंने एक लम्बी सांस लेकर उस आगे का किस्सा आरंभ किया। सुग्रीव का नया ठिकाना ऋष्यमूक पर्वत बना। वही ऋष्यमूक पर्वत जहाँ के बारे में कई किंवदन्ती प्रचलित हैं। कोई कहता है कि बाली को वहां के सात ताड़ वृक्षों के नीचे तपस्या करते मुनि ने गुस्सा होकर शाप दिया है कि जिस दिन ऋष्यमूक पर्वत
9 ...Read More बाल उपन्यास बाली का बेटा राजनारायण बोहरे दोस्ती हनुमान ने आगे बढ़ कर सुग्रीव को राम और लक्ष्मण का परिचय दिया तथा अपने दल के लोगों का परिचय राम-लक्ष्मण से कराया। राम लक्ष्मण उन सबसे गले लग कर दोस्तों की तरह मिले, फिर सब लोग वहां रखे हुए पत्थर के टुकड़ों पर बैठ गये। द्विविद, मयंद और नल-नील ने तुरंत ही सबके लिए ताजे फलों का इंतजाम कर अल्पाहार कराया । जामवंत ने पहाड़ पर चढ़ने की मेहनत से थक चुके राम और लक्ष्मण से कुछ देर आराम करने का अनुरोध किया।
10 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे कुश्ती पांच दिन बाद! सब लोग चलने को तैयार थे बस राम के हुकुम का इंतजार था। दो दिन में राम और जामवंत को बहुत कुछ करना पड़ा। राम ने सुग्रीव को समझाया कि बाली से इतना डरो मत! वह कोई पत्थर की मूर्ति नहीं है, एक साधारण सा आदमी है,
11 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे बाली से लड़ाई राम ने बानर वीरों की तरफ देखा। वे सब उदास से खड़े थे, जैसे उन्हे कोई मतलब न था। यह बात सुगीव के पक्ष में थी। यदि वे लोग बाली की हां में हां मिलाते तो इससे साबित हो जाता कि वे सब बाली को नुकसान पहुंचने पर भढ़क उठेंगे। बाली अब भी चिल्ला रहे थे, ‘‘ अरे ओ राम, मैं तुम्हारे पूरे परिवार को जानता हूं। तुम्हारी माँ कैकेयी जितनी सुन्दर हैं उतनी ही दुश्ट भी हैं। तुम्हारे पिता तो उनके
12 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे तलाश सुबह सबेरे राम के साथ सुग्रीव , जामवंत, द्विविद, हनुमान आदि योद्धा बैठे और विचार करने लगे कि सीता को खोजने के लिए किस दिशा में दल भेजा जाये। जामवंत ने बताया कि चारों दिशाओं में दल भेजे जाने चाहिए लेकिन सबसे बड़ा दल दक्षिण दिशा को भेजा जाये। क्योंकि उस दिन वह
13 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे समुद्र पार की होड़ जामवंत को बड़ी खुशी हुई। चलो असली चोर का पता लग गया। वे संपाती से बोले ‘‘आप हमारा इतना भला और कीजिये कि वह जगह बताइये जहां लंका बिलकुल पास हो। हम लोग लंका जाकर सीता का पता लगाना चाहते हैं।’’ संपाती बोला ’’ मैं जिस गुफा में रहता हूं उसमेंसे होकर आप आगे बढ़ेगे तो यही पहाड़ के दूसरी ओर जाकर समुद्र किनारे खुल जायेगी। समुद्र के इसी किनारे से लंका सबसे पास यानी चार सौ योजन दूर पड़ती
14 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे हनुमानजी की वापसी सुबह सूरज के गोले के आसमान में चढ़ते-चढ़ते सब लोगों ने घाटी के पेड़ों से पेट भर के फल खाये और कुछ देर बाद उसी गुफा के रास्ते वे समुद्र के किनारे जा पहुंचे। अब उन सबको हनुमानजी के लौटने की प्रतीक्षा थी। बानर लोग खेलते-कूदते रहे तो दूसरे लोग आपस में कुश्ती करके एक दूसरे की ताकत को परखते रहे। फिर भी समय काटे नहीं कट रहा था। सब बार-बार समुद्र की ओर देखने लगते थे। एकाएक अंगद को लगा कि समुद्र
15 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे लंका में हनुमान हनुमान ने कहा… मैंने एक बहुत लम्बी छलांग लगा कर समुद्र का बहुत बड़ा हिस्सा पार कर लिया था और इस लम्बी छलांग के बाद जब मेरा पैर नीचे आने ही वाला था कि मैंने देखा नीचे एक टापू दिख रहा है। मैंने टापू पर पाँव रखा तो लगा कि टापू कुछ हिला है। मैं अचरज में था। अचानक एक वनवासी जाने कहां से मेरे सामने प्रकट हुआ। मैं चौंक गया । वनवासी बहुत अच्छा आदमी था। उसने अपने हाथ में
16 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे विभीषण से भेंट हनुमानजी सुनाने लगे- उस मकान के सामने पहुंचा तो देखा कि बाकी मकानों पर पहरा लगा था लेकिन इस मकान पर कोई पहरा न था। मैंने देखा कि दरवाजे के बाहर ओम लिखा हुआ था और धनुष बाण के चित्र बनाये गये थे। भीतर आंगन में तुलसी का पौधा लगा था, जिसके पास वे सज्जन आँख मूँद कर बेठे किसी भजन में डूबे हुए थे। मैंने अपनी गदा छिपाई और जय श्रीराम कहते भीतर प्रवेश किया तो वे सज्जन चौंक कर उठे और
17 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे रावण की सभा त्रिजटा के जाने के बाद सीताजी रूआंसी हो उठीं और बोली ‘‘ आज मुझे कोई भी साथ नहीं दे रहा। चंद्रमा तुम्ही आग दे दो। हे अशोक वृक्ष तुम्ही
18 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे विभीषण का आगमन लंका की खबरें सुन कर श्रीराम ने सुग्रीव से पूछा ‘‘क्या करें मित्रवर ?’ सुग्रीव बोले ‘‘हमको लंका की सेना की सारी खबरें और वहां की भौगोलिक जानकारी मिल गई है, अब देर का क्या काम ? हमे तुरंत चल देना चाहिए।’’ जामवंत बोले ‘‘ प्रभो, हम अब कुछ गुप्तचर लंका में भेज रहे हैं
19 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे लंका में अंगद राम दल में चर्चा चल रही थी कि आगे की रणनीति क्या बनाई जाय? कोई कहता कि अब देर करना उचित नहीं, सीधे हमला कर देना चाहिये। किसी का कहना था कि एक खबर भेजकर रावण को युद्ध का आमंत्रण दिया जाय। कोई सलाह देता था कि हमारी सेना की मौजूदगी की खबर से बौखला कर रावण खुद हम पर हमला करेगा, इसलिए धीरज से उसके आगे बढ़नेकी उम्मीद की जाय। जामवंत ने कहा ‘‘ प्रभू, कूटनीति और राजनीति की
20 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे लड़ाई अगले दिन सुबह अंगद ने अपनी यात्रा क पूरे समाचार राम को सुनाये। लक्ष्मण बोले ‘‘ भ्राता , मैंने आपसे पहले ही कहा था कि उस दुष्ट को समझाने से कोई फायदा नहीं है।’’ सुग्रीव बोले ‘‘ लेकिन कुत्ते की पूछ सदा ही टेड़ी रहती है ।’’ हनुमान कहने लगे ‘‘ प्रभू हमारे, दल के लोग पूरी तरह से तैयार हैं। हमे कोई डर नहीं है। आपको अभी युद्ध में भाग नही लेना,आप तो पीछे बैठ कर हमे निर्देश देते रहें।’’ ‘‘ हमारा
21 ...Read More बाली का बेटा बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे वापसी अगले दिन बहुत सुबह विभीषण राम के सामने हाजिर थे। वे चाह रहे थे कि राम कुछ दिन लंका में चल कर मेहमान की तरह रहें, लेकिन राम नही माने।वे कह रहे थे कि उन्हे अयोध्या से चौदह बरस का वनवास मिला था, जो पूरे हो चुके है, अब वहां उनके छोटे भाई