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बाली का बेटा

1 बाल उपन्यास

बाली का बेटा

राजनारायण बोहरे

तपस्वी का गुस्सा

पम्पापुर के युवराज अंगद हर रोज की तरह अपने दोस्तों के साथ मधुवन नाम के बागीचे में पेड़ों की आसमान छूती डालियों पर चढ़कर पत्तों के बीच छिपने और खोजने का खेल ‘ छियापाती’ रहे थे कि एक सैनिक ने आकर कहा ‘‘ राजकुमार , तुरंत घर चलो। महारानी तारा ने आपको बुलाया है।’’

अचानक ही महल का बुलावा सुना तो उनके सब मित्रों ने खेल बंद कर नीचे उतर आये।

महल की ओर जाते समय बाजार की हालत देख अंगद हैरान रह गये ।

सारे पम्पापुर में अफरा-तफरी मची हुई थी। नगर की गलियों, बाजारों और मुख्य मार्गो पर तमाम लोग इधर उधर भागे जा रहे थे। सबके सब परेशान और डरे हुए थे। लगता था कि नगर पर कोई भयानक संकट आन पड़ा है।

‘‘ बचाओ रे कोई ! ’’

‘‘ इन्हे समझाओ रे कोई!’’

‘‘ हटाओ रे, हमारे इन डरपोक सैनिकों को !’’

जो देखो वो चीख रहा था। ..और एक सज्जन तो खुले आम चिल्ला रहे थे ‘ महाराज सुग्रीव और जासूसी विभाग के प्रमुख बूढ़े योद्धा जामवंत की जितनी बुराई की जाय उतनी कम होगी उन्ही की लापरवाही के कारण जंगल में रहने वाले एक छोटे से तपस्वी की यह हिम्मत पड़ी है कि नगर के बीचोंबीच खड़ा हो कर किष्किन्धा राज्य के राजा को ललकार रहा है ।

अंगद तेज चाल से महल की ओर चल पड़े। राजमहल में घुसे तो देखा कि वहां भी यही हाल था। बल्कि नगर की तुलना में महल में ज्यादा हड़कंप था। सारे नौकर ही नहीं सैनिक तक भयभीत थे।

अंगद अपनी मां महारानी तारा को तलाशने लगे। उनकी दासियां एक तरफ डरी-सहमी हुई खड़ी थीं। अंगद ने इशारे से पूछा तो अंगुली उठा कर उन सबने बताया।

पता लगा कि माँ राजमहल के उसी राजदरबार वाले कमरे में बैठी हैं जहां हनुमान के आने के बाद चाचा महाराज सुग्रीव और उनके कुछ सलाहकार बैठ कर बातचीत कर रहे है। अंगद ने पहले तो सोचा कि बड़े लोगों की आपसी बातचीत में काहे को व्यवधान डालें, फिर सोचा कि उम्र में भले ही छोटे हों आखिर हैं तो पम्पापुर के युवराज, इसलिए उन्हे भी तो जानना चाहिये कि नगर पर ऐसा क्या संकट आ गया है?

उन्हे याद आया कि वे अपने गुरू से पूछें। गुरू यानी बुजुर्ग योद्धा जामवंत। कोई कहता उनकी उम्र एक सौ बीस बरस हो चुकी है तो कोई डेेढ़ सौ साल बताता। जामवंत ने जाने कितने राजाओं के यहाँ रहकर कई तरह के कठिन काम किये और जाने कितनी पीड़ियां उनके सामने बच्चे से जवान हुई और बूढ़ी होकर कामधाम छोड़ कर भजनपूजा में अपना समय काट रहे थे। इन दिनों युवराज अंगद को युद्ध कला, जासूसी, राजकाज से लेकर राजदरबार में बोलने-बतियाने का तमीज जामवंत जी नियम से अंगद को सिखा रहे थे। राजमहल में जामवंत भी कहीं नहीं दिख रहे थे।

वे भीतर घुसे तो वहां सभी खास लोग मौजूद थे। खास लोग यानी कि बुजुर्ग मंत्री जामवंत, सेनानायक द्विविद, मंत्री मयंद सहित हनुमान , महारानी तारा और महाराज सुग्रीव । माँ ने उन्हे स्नेहपूर्वक ढंग से अपने पास बैठने का इशारा किया तो वे नीचा सिर किये जमीन की ओर ताकते हुए, बिना आवाज किये अपनी उनके पास जा बैठे।

सहसा हनुमान ने अंगद की ओर इशारा करके कहा, ‘‘ इस संकट से हमे युवराज अंगद और महारानी तारा ही बचा सकते हैं।’’

‘‘ हनुमान आपने सही उपाय बताया’’ जामवंत जी प्रसन्न होते हुए बोले ‘‘ ऐसा करते हैं कि पहले इन दोनों को उनके सामने भेजते हैं, फिर यदि क्रोधित राजकुमार महल तक आने को राजी हो जाते हैं तो यहां महाराज सुग्रीव उनके चरणों में बेठ कर माफी मांग लेंगे।’’

‘‘ हां यही ठीक है’’ महाराज सुग्रीव ने भी अपनी सम्मति दी तो सबने उनकी हां में हां मिलाई।

माँ के पास बैठे अंगद ने धीमे स्वर में माँ से पूछा ‘‘ माँ, हमारे नगर पर ऐसा क्या संकट आ गया जो सबके सब इतने डरे हुये हैं?’’

महारानी तारा ने एक हाथ से साड़ी का पल्लू संभाला और सबकी ओर कनखियों से देखते हुए उनके कान में ही कहा ‘‘ तुम बचपना कब छोड़ोगे अंगद ? पूरे नगर को जानकारी हो चुकी है और तुमको पता नहीं लग पाया ? संकट यह आया है कि आज अचानक ही श्रीराम के छोटे भाई्र लक्ष्मण जी गुस्से में भरे हुए नगर के चौराहे पर आकर खड़े हो गये हैं और तुम्हारे चाचा को लड़ाई के लिए ललकार रहे हैं।’’

अंगद को राम और लक्ष्मण के नाम को सुनकर एक अजीब सा भय लगता था, माँ की बात सुनी तो वही डर दुबारा उन्हें कंपाने लगा। सोचने लगे कि लक्ष्मण के सामने जाने की सलाह देकर हनुमान कहां हम लोगों को फंसाये दे रहे है। लक्ष्मण इस वक्त गुस्से में हैं तो वे किसी की न सुनेंगे। कहीं उन्होने माँ के लिए कुछ गलत-सलत बोल दिया तो अंगद सहन नहीं कर पायेंगे। हो सकता है इसी चक्कर में आपस में कोई झगड़ा हो बैठे। अगर झगड़ा हुआ तो कोई नहीं संभाल पायेगा।

अंगद ने सोचा वे साफ मना कर देंगे , ना वे खुद जायेंगे , ना ही माँ को लक्ष्मण के सामने जाने देंगे। सारा गुस्सा काका महाराज पर है तो वे ही जायें या फिर काकी रूमा जायें और अपने लाड़ले बेटे गद को ले जायें, हम क्यों जाये अपनी जान फंसाने?

वे आगे कुछ सोचते कि माँ की मीठी और रौबदार आवाज उस कमरे में गूंज उठी, ‘‘ आप लोगों की यही इच्छा है तो अपनी मातृभूमि की खातिर हम दोनों माँ-बेटे ही खतरा उठाकर उनके सामने जाते हैं। लेकिन जब तक हम लोग उन्हे लेकर लौटें आप लोग कुछ ऐसा इंतजाम जरूर कर लीजिये जिससे उन्हें ऐसा लगे कि हमे उनके काम की चिन्ता है।’’

अंगद का गुस्सा मन में ही दब गया। माँ ने उनकी सारी भावनाओं पर पानी फेर दिया था।

महारानी अचानक उठ कर खड़ी हो गई थीं और उन्होंने अंगद को भी इशारा किया था सो अंगद भी उनके साथ उठ खड़े हुये थे। सहज भाव से उन्होंने अपने दांये हाथ में रहने वाली भारी भरकम गदा उठाई तो माँ ने उन्हे इशारे से मना कर दिया। अंगद समझ गये कि उन दोनों को बिना हथियार के ही लक्ष्मण जी के पास जाना है।

अंगद को अचरज हुआ कि महारानी तारा बिना किसी पालकी या रथ के पांव-पैदल ही महल से निकल कर चली जा रही थीं और वे इतनी तेजी से चल रहीं थीं कि अंगद उनसे पीछे रह जाते थे। वे दो-चार कदम दौड़ कर उनके बराबर हो पाते थे।

नगर के प्रमुख चौराहे पर जहां चारों ओर खुला बाजार था और सबसे ज्यादा चहल-पहल रहा करती थी, एकदम सन्नाटा था। वहीं चौराहे के बीचोंबीच मूर्ति की तरह अचल लेकिन गुस्से में आग सी फुफकारते लक्ष्मण खड़े थे। अंगद को एक पल के लिए सारे बदन में फुरहरी सी आ गई, लेकिन माँ के धीरज और आत्मविश्वास को देख कर वे तुरंत संभल गये।

लक्ष्मण के हाथ में किसी मजबूत धातु का बना हुआ एक चमचमाता धनुष था जिस पर उन्होने एक जलता हुआ तीर चढ़ा रखा था , लग रहा था कि किसी भी क्षण वे बाजार की किसी भी दुकान को लक्ष्य करके तीर छोड़ देगे और कुछ ही देर में एक दुकान के बाद सारा बाजार, फिर सारा नगर आग से धू-धू करके जल उठेगा। अंगद एक बार फिर कंप गये।

महारानी तारा ने लक्ष्मण के पास पहुंच कर गंभीर भाव से दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और अपनी मीठी-रौबदार आवाज में बोलीं, ‘‘ रामानुज लक्ष्मण जी को तारा का प्रणाम !’’

फिर उन्होंने अंगद को इशारा किया तो अंगद ने जमीन पर लेटकर लक्ष्मण को प्रणाम किया ।

चमत्कार हुआ, लक्ष्मण के तने हुए चेहरे पर कोमलता झलक उठी। वे मधुर आवाज में बोले, ‘‘महारानी तारा, आप और अंगद को एक अनाथ होने के कारण श्रीराम ने हमारी शरण में लिया हैं, इसलिए आपकी बात अलग है, हम आप पर गुस्सा नहीं है। इस मामले में आप बीच में मत आइये , मुझे आज सुग्रीव से निपटना है। उसे बुलाइये यहाँ । मैं देखना चाहता हूं कि वह कितने बड़े राज्य का राजा हो गया है? उसे कितना घमण्ड हो गया है और मैं यही देखने आया हूं कि कितना ऐश्वर्य इकट्ठा क र लिया है उसने!’’

‘‘ अयोध्या के राजकुमारों के सामने हमारा यह पम्पापुर बिलकुल गरीब और भिखारी की तरह दिखने वाला राज्य है लक्ष्मण! इस छोटे से राज्य को पाकर सुग्रीव जी को भला कहाँ से अभिमान होने वाला है? ’’

‘‘ आप सामने से हट जाइये महारानी तारा , मैं आज इस नगर को जला कर राख करने के लिए आया हूं।’’ लक्ष्मण गुस्से में थे लेकिन वे महारानी तारा से बड़े सम्मान केसाथ बात कर रहे थे।

महारानी तारा ने अपनी होशियारी और विनम्रता नहीं छोड़ी वे फिर बोलीं ‘‘ आप उन्हे मत देखिये, हम दोनों को देखिये। आपने ही तो इस बालक को इस नगर का युवराज बनाया है, अगर आज इस नगर को जला देंगे तो कल राजा बनने पर इस नन्हे युवराज को क्या मिलेगा?...आप हमारी प्रार्थना सुनिये और कृपा करके महल चलिये।’’

लक्ष्मण तनिक असमंजस में दिखे।

महारानी तारा के इशारे पर अंगद आगे बढ़े और बोले ‘‘ राजकुमार लक्ष्मण, दया करिये, हमारे महल में चलिये। वहीं बैठ कर आप हमें डाँट लीजिए या पीट लीजिए। ’’

क्रमशः जारी