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बाली का बेटा (16)

16

बाली का बेटा

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

विभीषण से भेंट

हनुमानजी सुनाने लगे-

उस मकान के सामने पहुंचा तो देखा कि बाकी मकानों पर पहरा लगा था लेकिन इस मकान पर कोई पहरा न था। मैंने देखा कि दरवाजे के बाहर ओम लिखा हुआ था और धनुष बाण के चित्र बनाये गये थे। भीतर आंगन में तुलसी का पौधा लगा था, जिसके पास वे सज्जन आँख मूँद कर बेठे किसी भजन में डूबे हुए थे।

मैंने अपनी गदा छिपाई और जय श्रीराम कहते भीतर प्रवेश किया तो वे सज्जन चौंक कर उठे और मुझे देख कर हाथ जोड़ कर बोले ‘‘ जय जय श्रीराम ’’

मुझे तसल्ली हो गई कि मैं सही जगह आ पहुँचा हूं।

वे सज्जन बोले ‘‘ हे सज्जन, पधारिये। ’’

मैं उनके एकदम निकट जा पहुँचा तो वे बहुत धीमी आवाज में बोले ‘‘ कृपा करके बताइये कि आप कौन हैं और कहाँ से पधारे है। सीता की खोज में लंका में आगये श्रीराम या लक्ष्मण में ही तो कोई नही हो?’’

मैने सोचा अब कुछ भी छिपाना उचित नहीं है सेा मैंने विभीषण विभीशण जी को हाथ जोड़ कर अपना परिचय दिया । फिर कहा कि रात पूरी होनेे वाली है, ऐसे में मेरा इस नगर में छिपे रहना संभव नहीं होगा। इसलिए आप जल्दी से बताइये कि सीताजी कहाँ हैं और मैं वहां तक कैसे जा सकता हूं। विभीषण

जी ने मुझे बताया कि वे रावण के छोटे भाई विभीषण हैं और मैं उन्हे अपना दोस्त समझूं। सीताजी को अशोक वन नामक रावण के निजी बागीचे में खुले में कैद किया गया है।

अशोक वन विभीषण के मकान से बहुत पास था। उन्होने मुझे वहां जाने का रास्ता समझाया तो मैंने तुरंत ही उनसे विदा ली और अशोकवन के लिए चल पड़ा। रास्ते में मैंने देखा कि गेंहू और चावल के बोरों में भर कर बहुत बड़ी मात्रा में अन्न का भण्डार कर के रखा गया है। मुझे लगा कि अगर मौका मिला तो इस भण्डार को नष्ट करके लंका में खाने-पीने की समस्या पैदा की जा सकती है।

जब मैं अशोकवन के पास पहुंचा तो वहां से आ रही खुशबूदार फूलों की सुगंध और फलों की महक से मेरा मन प्रसन्न हो उठा। मैंने देखा कि वन दो भागों में है। एक में दूब का मैदान है जिसमें अशोक वृक्षों की एक लम्बी कतार लगी है जबकि दूसरे हिस्से में फलों के वृक्ष है उन वृक्षों की रक्षा के लिए कुछ सैनिक तैनात हैं और वे सो नहीं रहे पूरी तरह जाग कर पहरा दे रहे हैं। अशोकवृक्षों वाले हिस्से में महिला सैनिक घूम करपहरा दे रहीं थीं। विभीशण जी ने बता दिया था कि सीताजी अशोकवृक्षों वाले हिस्से में कैद हैं।

मैं चुपचाप वहां प्रवेश कर गया। फिर सेनिको की नजर बचाकर मै पेड़ पर चढ़ गया और मैंने तुरंत ही पहचान लिया कि सीताजी कहां है। एक विशाल अशोकवृक्ष के नीचे एक तेजस्विनी महिला उदास भाव से बैठी थी , उनके उदास चेहरे को देख कर ही मुझे अहसास हुआ कि ये ही सीताजी हैं।

मैं सोच रहा था कि क्या करूं पर कुछ भी समझ में नही आ रहा था। इसी ऊहापोह में अंधेरा खतम होने लगा और पक्षीयों की चहचहाहट से सन्नाटा भंग होने लगा। मुझे लगा कि अब पूरे दिन मुझे छिप कर बैठना पड़ेगा।

अचानक एक महिला सैनिक ने आवाज लगाई ‘‘सावधान ! सावधान ! लंकाधिपति महाराज रावण पधार रहे हैं।’’

मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं मुझे किसी ने पेड़ पर देख लिया तो क्या होगा? खैर मैं चुपचाप बैठा रहा। सोचा कि जो होगा देखा जायेगा।

कुछ देर बाद बहुत सारी स्त्रियों को साथ लेकर लंकेश रावण अपने हाथ में चांदी की तरह चमकती तेज धार वाली तलवार लिये हुए वहां हाजिर हुआ और सीताजी के सामने आन खड़ा हुआ।

उसे देख कर सीताजी ने दूसरी ओर मुँह फेर लिया तो रावण बहुत जोरसे हंसा और अपनी गरजदार आवाज में बोला ‘‘ हे सुन्दरी, तुम मुझे देख कर उधर मुंह क्यों कर लेती हो? तुम्हें लंका में आये हुए इतना समय बीत गया , तुमने इसी वन में चार महीन तक बरसात को झेला है लेकिन तुम्हे अब भी उस तपस्वी की प्रतीक्षा है। अरे पगली उसे आना होता तो वह अब तक कब का आ चुका होता।’’

सीताजी की आवाज यों तो मीठी थी लेकिन वे बहुंत गुस्से में बोल उठीं ‘‘अरे दुष्ट , तू अपने आपको जाने क्या समझता है? तुझे शायद पता नहीं कि श्रीराम के अमोघबाण का क्या प्रताप है। तुझे याद नहीं है कि तेरे रिश्तेदार खर और दूषण को एक ही बाण से मार देने वाले मेरे पति कितने बलशाली हैं।’’

रावण बोला ‘‘ सीते , तुम्हे लंका की संपत्ति का पता नही है। अरी बावली स्त्री, मेरे यहां के नौकर भी सोने के मकान में रहतेे हैं।’’

सीता तड़ाक से बोली ‘‘ मुझे तेरी संपत्ति से कुछ नही लेना देना। अरे दुष्ट , सोने-चांदी के मकान से कोई आदमी बड़ा नही बन जाता। तू सिर्फ मकान और महल देखता- फिरता है। लोगों के आचरण नहीं देखता। तेरे नगर के सोने-चांदी के मकान में रहने वाले लोग भीतर से तो बहुत ही गरीब हैं। ’’

‘‘ सीता,मैं तुम्हें लंका की महारानी बनाना चाहता हूं। तुम खुद मान जाओं इसके लिए विचार करने को तुम्हे एक महीने का समय देता हूं। ध्यान रखना एक महीने के बाद या तो तुम मेरी रानी बन जाओगी या फिर तुम्हें मेरी यह चंद्रहास नाम की तलवार मौत के घाट उतार देगी।’’ इतना कह कर रावण वहां से चला गया। उसके पीछे स्त्रियों का झुण्ड भी चला गया ।

रावण के जाते ही सीता की सिसकी भर के रोने की आवाज आई तो मेरेे सारे बदन में गुस्सा भर उठा। लगा कि मेरे होते हुए सीताजी रो रही हैं। यह तो मेरे लिये शर्म की बात है!

नीचे ध्यान दिया तो देखा कि तीन जटाओं वाली एक महिला सैनिक सीताजी के पास बैठी है और सीताजी उससे बातें कर रही है। मुझको याद आया कि जामवंत ने कहा था कि त्रिजटा रावण की विरोधी है और हमारी मदद कर सकती है।

‘‘ हे माता, आपने मुझे धीरज बंधाकर अब तक आत्महत्या करने से रोका है, अब मुझसे सहा नहीं जाता। कहीं से आग की एक चिन्गारी लाकर दे दीजिये , मैं इसी अशोकवृक्ष की लकड़ी की चिता बना कर अपने आप को खत्म कर देना चाहती हूं।’’

त्रिजटा ने ऊपर देखा तो हनुमान को लगा कि अब वे दिख जायेगे और सारा खेल खत्म हो जायेगा । लेकिन त्रिजटा ने शायद कुछ नहीं देख पाया था। उसने अपनी भारी आवाज में कहा ‘‘ हे राज कुमारी , आप धीरज धरो सब ठीक हो जायेगा।’’ फिर अपनी साथी महिला सैनिकों से बोली ‘‘ सुनो सब सुनो! मैंने आज एकअजीब सपना देखा है। मैंने देखा कि हमारी लंका में जाने कहां से एक बानर जाति का बहुत बलिष्ठ वीर घुस आया है। उस बानर ने हमारी लंका नगरी को जला कर राख कर दिया और हमारे लंका के बहुत से सैनिकों को मार डाला है। हमारे राजा रावण की हालत तो बहुत खराब देखी मैंने। उनका सिर मुड़ा हुआ है और वे गधे पर बैठ कर दक्षिण दिशा की ओर भगा दिये गये है, लंका का राज विभीषण को मिल गया है। मुझे तो यह लगता है कि अपन सब सीता को अकेला छोड़ कर अपने घर लौट जायें।’’

मैं चौंक उठा। त्रिजटा ये क्या कह रही है, क्या सचमुच उसे सपना आया है। उसने बानर के आने की बात क्यों कही? किसी दूसरे समाज के नागरिक के आने की बात कयों नही कही। फिर लंका को जलाने और यहां की सेना के कुछ सैनिकों को मारने की आगे की घटनाओं को बता कर कहीं उसने मुझे यहाँ जो-जो काम करने हैं वे तो नहीं बता दिये। हो सकता है इस बीच जामवंत ने त्रिजटा के माध्यम से मुझे यह संदेश भेजा हो।

मैंने नीचे देखा कि कि त्रिजटा का कहा हुआ सपना सुनना था कि एक-एक कर सब महिला सैनिक वहां से अपने घर के लिए चली गई। त्रिजटा बैठी रहीं फिर सीता से बोली, ‘‘ राजकुमारी , मेरा सपना एक अच्छा सगुन है, तुम्हें बहुत जल्दी कोई ठीक खबर मिलने वाली है।’’

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