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नीलांजना - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Love Stories
सुंदर पहाड़ और झरनें ,पंक्षियो का कलरव और घना जंगल, उसके समीप बसा एक सुंदर और धन-धान्य से परिपूर्ण राज्य, जहां की प्रजा बहुत सुखपूर्वक अपना जीवन बिता रही है, सभी परिवार सम्पन्न और प्रसन्न हैं, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है किसी को, उस राज्य का नाम है पुलस्थ राज्य है और वहां के राजा का नाम है प्रबोध प्रताप सिंह!!
राजा प्रबोध प्रताप सिंह का बहुत ही सुंदर,भव्य महल है,महल के प्रांगण की शोभा देखते ही बनती है!!
महल के पीछे बहुत ही सुंदर वाटिका है,जहां भांति-भांति के पुष्प और वृक्षों की भरमार है,बड़ा सा फब्बारा भी लगा है।
राजा प्रबोध अपने महल की वाटिका में विचरण कर रहे हैं, तभी उनकी रानी सुखमती और उनकी नन्ही दो साल की पुत्री भी महल की वाटिका में प्रवेश करते हैं।
सुंदर पहाड़ और झरनें ,पंक्षियो का कलरव और घना जंगल, उसके समीप बसा एक सुंदर और धन-धान्य से परिपूर्ण राज्य, जहां की प्रजा बहुत सुखपूर्वक अपना जीवन बिता रही है, सभी परिवार सम्पन्न और प्रसन्न हैं, किसी चीज़ की ...Read Moreकमी नहीं है किसी को, उस राज्य का नाम है पुलस्थ राज्य है और वहां के राजा का नाम है प्रबोध प्रताप सिंह!! राजा प्रबोध प्रताप सिंह का बहुत ही सुंदर,भव्य महल है,महल के प्रांगण की शोभा देखते ही बनती है!! महल के पीछे बहुत ही सुंदर वाटिका है,जहां भांति-भांति के पुष्प और वृक्षों की भरमार है,बड़ा सा फब्बारा भी
चंद्रदर्शन के ऐसे शब्द सुनकर, दिग्विजय हतप्रभ हो गया,अब उसे लगा कि शायद उससे बहुत बड़ी भूल हो गई है, उसे जब तक अपने किए पर पछतावा होता,तब तक चन्द्रदर्शन ने उसे बंदी बनाने का आदेश दे दिया और ...Read Moreको बंदी बना लिया गया। उधर चन्द्रदर्शन ने राजा प्रबोध को मृत समझकर सैनिकों को आदेश दिया कि प्रबोध के मृत शरीर को नदी में बहा दिया जाए, सैनिकों ने चन्द्रदर्शन के आदेश का पालन किया और प्रबोध के मृत शरीर को नदी में बहा दिया गया। अब चन्द्रदर्शन रानी सुखमती के पास पहुंचा और बोला, रानी अब आप हमारी
सारी योजनाएं बना कर दिग्विजय ने सुखमती से जाने की अनुमति ली और चन्द्रदर्शन के पास पहुंचा, उसने चन्द्रदर्शन से कहा कि महाराज!! राजकुमारी नीलांजना का पता चल गया है, लेकिन नीलांजना का पता आपको मैं तभी बताऊंगा,जब आप ...Read Moreसुखमती को कारागार से मुक्त कर देंगे।। लेकिन क्यो? चन्द्रदर्शन ने दिग्विजय से पूछा।। वो इसलिए, बहुत पीड़ादायक था मेरे लिए सुखमती को इस अवस्था में देखना,प्रेम करता था मैं उसे और विश्वासघात किया मैंने उसके साथ,मेरा हृदय रो पड़ा। चंद्रदर्शन बोला,ये मत भूलो दिग्विजय अभी भी तुम मेरी शरण में हो, अभी भी चाहूं तो बंदी बना सकता हूं।
भांति-भांति के प्रकाश से प्रकाशित, भांति-भांति के सुगंधित पुष्पों से सुसज्जित , भांति-भांति के इत्रो की सुगंध पूरे कक्ष को सुगन्धित कर रही थी और भांति-भांति के वाद्ययंत्रों से ध्वनियां निकाल रही रमणियां,कक्ष की शोभा देखते ही बनती थी। ...Read Moreपर सुखमती का प्राणघातक सौंदर्य,उसकी भाव-भंगिमा देखकर बस चन्द्रदर्शन तो अपने प्राण, न्यौछावर करने के लिए लालायित हो बैठे। धानी रंग के परिधान में सुखमती का रूप बहुत ही खिल रहा था, नृत्य करते समय वो किसी स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं लग रही थी,उसका अंग-अंग थिरक रहा था, उसकी नृत्य-मुद्राएं चन्द्रदर्शन के हृदय को विचलित कर रही थी।
प्रात:काल हो चुका था,सूरज की किरणें अपनी लालिमा चारों ओर बिखेर चुकी थी,हरे हरे वृक्षों पर पंक्षी चहचहा रहे थे,जंगल की अपनी ही शोभा होती है, वहीं जंगल रात्रि को बड़ा ही भयानक प्रतीत होता है और प्रात:काल होते ...Read Moreउसकी सुंदरता अलग ही दिखाई देती है।। दिग्विजयसिंह और सुखमती उसी मार्ग से आए थे जो मार्ग सुखमती ने सौदामिनी को सुझाया था,जब वो नीलांजना को लेकर भागी थी। रात भर नाव से नदी पार की और फिर जंगल में भागते भागते दिग्विजय और सुखमती बहुत थक गये थे, उन्हें दूर से एक गांव दिखाई दिया, दोनों वहां पहुंचे।। गांव