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नीलांजना--भाग(१)

सुंदर पहाड़ और झरनें ,पंक्षियो का कलरव और घना जंगल, उसके समीप बसा एक सुंदर और धन-धान्य से परिपूर्ण राज्य, जहां की प्रजा बहुत सुखपूर्वक अपना जीवन बिता रही है, सभी परिवार सम्पन्न और प्रसन्न हैं, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है किसी को, उस राज्य का नाम है पुलस्थ राज्य है और वहां के राजा का नाम है प्रबोध प्रताप सिंह!!
राजा प्रबोध प्रताप सिंह का बहुत ही सुंदर,भव्य महल है,महल के प्रांगण की शोभा देखते ही बनती है!!
महल के पीछे बहुत ही सुंदर वाटिका है,जहां भांति-भांति के पुष्प और वृक्षों की भरमार है,बड़ा सा फब्बारा भी लगा है।
राजा प्रबोध अपने महल की वाटिका में विचरण कर रहे हैं, तभी उनकी रानी सुखमती और उनकी नन्ही दो साल की पुत्री भी महल की वाटिका में प्रवेश करते हैं।
उनकी पुत्री अपने पिता के समीप आकर उनकी गोद में आने को लालयित हो उठी, अपनी प्यारी पुत्री की चंचलता को देखकर राजन अपने आप को रोक नहीं पाए और तुरंत अपनी बांहों में अपनी प्यारी पुत्री को ले लिया।।
उनकी पुत्री है भी तो बिल्कुल दूध सी सफेद, गुलाबी गुलाबी कोमल गाल और नीली आंखें इसलिए राजन ने उसका नाम नीलांजना रखा है,वो अपनी मां सुखमती के जैसी ही सुंदर है।।
रानी सुखमती एक साधारण परिवार से थी,उनका परिवार कबीलों में रहता था,वो लोग नृत्य-गायन करके अपना जीवनयापन करते थे,उस कबीले में सुखमती बहुत सुंदर और बहुत ही निपुण नृत्यांगना थी,सुखमती सुंदर भी बहुत थी,उसको नृत्य करते देख, ना जाने कितने लोग अपना हृदय हार बैठते थे, उसकी खूबसूरती का बखान दूर दूर तक के कबीलों में होता था,हर कोई उससे विवाह करना चाहता था, लेकिन उनके कबीले की परम्परा थी कि कन्या ही अपनी पसंद का वर चुनकर विवाह कर सकती थी उसके साथ कोई भी जबरदस्ती नहीं की जाती थी।
एक दिन राजा प्रबोध राज्य का भ्रमण करने गये, उन्होंने सुखमती को नृत्य करते देखा और उस पर मोहित हो गए, उन्होंने कबीले में सुखमती से विवाह का प्रस्ताव रखा,सुखमती के पिता को और सुखमती को कोई आपत्ति नहीं हुई और उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
राजा प्रबोध और सुखमती का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया और अब वो रानी सुखमती हो गई।
राजा प्रबोध के माता-पिता पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे, माता बचपन में ही अकेले छोड़कर चली गई थी और पिता को किसी युद्ध में मस्तिष्क में अंदरूनी चोट लग गई थी उस समय तो वे युद्ध जीत गये लेकिन महल में आने के कुछ दिनो बाद ही उनकी स्थिति खराब होने लगी, कोई सुधार ना हुआ और वो प्रबोध को छोड़कर चले गए, उनके जाने के बाद प्रबोध को पुलस्थ राज्य का राजा घोषित किया गया।।
राजा प्रबोध ने सुखमती से विवाह तो कर लिया लेकिन सुखमती के कबीले में एक दिग्विजय नाम का नवयुवक था जो सुखमती को प्रेम करता था और उससे विवाह करना चाहता था लेकिन सुखमती ने उससे विवाह के लिए कभी हां नहीं कहा और जब सुखमती ने राजा प्रबोध से विवाह कर लिया तो वो बहुत ही क्रोधित हुआ और उसने पड़ोसी राज्य कीर्तिनगर जाकर वहां के राजा चन्द्रदर्शन से मित्रता कर ली और सुखमती की सुंदरता का बखान कर दिया,अब चन्द्रसेन,सुखमती की एक झलक पाने को लालयित है उठे, उन्होंने सोचा मैं पुलस्थ देश के राजा से मित्रता कर लूं फिर उसके सारे राज जानने के बाद मैं उसके राज्य पर चढ़ाई कर दूंगा और फिर सुखमती मेरी हो जाएगी।
और यही योजना दिग्विजय भी बना रहा थी राजा चन्द्रदर्शन जब पुलस्थ राज्य को जीत जाएंगे तो मैं उन्हें मारकर सुखमती को प्राप्त कर लूंगा।
सब अपनी अपनी योजनाएं बनाते रहे और इसी तरह तीन साल ब्यतीत हो गए,अब रानी सुखमती दो साल की पुत्री की मां है और राजा प्रबोध अपनी रानी और पुत्री के साथ खुशहाल हैं।
आज बहुत समय बाद राजा प्रबोध प्रताप सिंह को अपने राज्य के कार्यो की ब्यस्तता से थोड़ा समय मिला है और वो निश्चिंत होकर अपनी रानी और पुत्री के साथ वाटिका में समय बिता रहे हैं।
तभी एक सेविका संदेश लेकर आई!!
राजन !! कीर्तिनगर के राजा चन्द्रदर्शन महल में पधार चुके हैं और शीघ्र ही आपसे मिलने के इच्छुक हैं।
राजा प्रबोध बोले!! उनसे कहो कि हम शीघ्र ही आ रहे हैं।।
तभी रानी सुखमती निराश होकर बोली, ऐसा भी क्या ब्यस्तता?
राजन कि परिवार के पास आपके लिए समय नहीं है,इतने दिनों बाद तो आपके साथ समय बिताने को मिला था ऊपर से आपके मित्रगण भी आ आकर रंग में भंग में मिला देते हैं।
राजन, मुस्करा बोले!! रानी थोड़ा सब्र रखिए,आपको भी अवश्य समय मिलेगा और इतना कहकर अपनी गोद से नीलांजना को रानी के गोद में देकर चले गए।।
रानी अपना दुखी मन लेकर रह गई।।
राजा चन्द्रदर्शन ने अब राजा प्रबोध से गहरी मित्रता कर ली है, अपने गुप्तचरों की सहायता से राज्य की एक एक चीज़ की खबर पा ली है,अब बस वो किसी भी रोज आक्रमण की योजना बना रहे हैं और राजा प्रबोध अब उन पर पूर्णतः विश्वास करने लगे हैं उन्हें इस योजना के विषय में कुछ पता ही नहीं है।
तभी राजा प्रबोध अतिथि कक्ष में पहुंचे और राजा चन्द्रदर्शन सर्वदा की तरह गले मिले,इसी बीच चन्द्रदर्शन ने अपनी कटार निकाली और राजा प्रबोध के सीने में घोंप दी और वहां उपस्थित सैनिकों से कहा सारे महल के लोगों को बंदी बना लो,इसी बीच रानी तक जैसे ही खबर पहुंची उन्होंने अपनी सबसे कर्त्तव्यनिष्ठ दासी सौदामिनी को नीलांजना को लेकर भाग जाने को कहा।
सौदामिनी महल से नीलांजना को ले जाने में सफल रही,वो भागते भागते नदी के पास पहुंची और उसने एक छोटी नाव को नदी किनारे बंधे पाया, उसने नाव खोली और उसमें बैठकर राजकुमारी नीलांजना को ले चली कहीं दूर सुरक्षित स्थान पर।।
और वहां महल में चन्द्रदर्शन ने राजा प्रबोध प्रताप सिंह को मार डाला और रानी सुखमती को बंदी बना लिया, उसने पहले से सारी योजनाएं बना रखी थी,वो तीन सालों से अपने गुप्तचरों से पुलस्थ राज्य की सारी जानकारी प्राप्त कर रहा था।
और उसने अपनी योजनाओं में सफलता प्राप्त कर ही ली और दिग्विजय तो सिर्फ रानी सुखमती को चाहता था और उसने राजा चन्द्रदर्शन से इस विषय पर बात की।
राजा चन्द्रदर्शन ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा, इतनी जल्दी भी क्या है दिग्विजय, पहले हम तो रानी जी के दर्शन कर ले_____

क्रमशः____
सरोज वर्मा____🦋