मानसिक रोग - Novels
by Priya Saini
in
Hindi Fiction Stories
प्रकृति का अद्भूत नियम है, "जिसनें जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है"। कहा जाता है कि इंसान हो या जानवर, "पैदा होने से पहले उसकी मृत्यु निश्चित कर दी जाती है। उसे कब कहाँ कैसे मरना है, सब ...Read Moreहोता है।" मृत्यु पर किसी का ज़ोर नहीं परंतु जब इंसान ज़िंदा होकर ही मर जाये या उसके पास जीने की वजह ही न रहे। ज़िंदा लाश जिसे कहा जाता है, उस इंसान की ज़िन्दगी कैसे गुज़र होगी? ऐसी ही एक कहानी है श्लोका की, आईये पढ़ते है श्लोका की कहानी। छोटे से शहर में रहने वाली श्लोका
प्रकृति का अद्भूत नियम है, "जिसनें जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है"। कहा जाता है कि इंसान हो या जानवर, "पैदा होने से पहले उसकी मृत्यु निश्चित कर दी जाती है। उसे कब कहाँ कैसे मरना है, सब ...Read Moreहोता है।" मृत्यु पर किसी का ज़ोर नहीं परंतु जब इंसान ज़िंदा होकर ही मर जाये या उसके पास जीने की वजह ही न रहे। ज़िंदा लाश जिसे कहा जाता है, उस इंसान की ज़िन्दगी कैसे गुज़र होगी? ऐसी ही एक कहानी है श्लोका की, आईये पढ़ते है श्लोका की कहानी। छोटे से शहर में रहने वाली श्लोका
हम पढ़ रहे थे श्लोका की कहानी, पिछले भाग में हमनें पढ़ा श्लोका को अनुमति मिल जाती है निजी कंपनी में काम करने की पर एक शर्त के साथ। आइए पढ़ते है आगे की कहानी। ...Read More श्लोका निजी कंपनी में नौकरी देखना शुरू करती है पर उसको उसकी पढ़ाई के अनुसार काम नहीं मिलता। कभी नौकरी सही नहीं लगती कभी आय तो कभी वातावरण। श्लोका हार नहीं मानती। इन सबसे परेशान होकर श्लोका ने एक बड़ी कंपनी में आवेदन किया परन्तु वहाँ के लोगों को देखा तो उसे लगने लगा कि
मानसिक रोग के दूसरे भाग में आपने पढ़ा कैसे श्लोका अस्पताल में भर्ती हुई। आइये जानते हैं आगे की कहानी। जब माँ ने डॉक्टर को बताया श्लोका के बदले व्यवहार के बारे ...Read Moreडॉक्टर सुनते ही समझ गए कि श्लोका मानसिक रूप से बीमार है। उन्होंने श्लोका के माता-पिता को ये बात बताई परन्तु हमेशा श्लोका का साथ निभाने वाले माँ-बाप ये बात समझ ही नहीं पा रहे थे। समाज में मानसिक रोग को रोग कहाँ समझा जाता, ये तो पागलपन है इसी नाम से जाना जाता है। हालाँकि दो दिन उपचार के बाद श्लोका को अस्पताल
बचपन से पढ़ाई-लिखाई में तेज श्लोका आज अपना आत्मविश्वास खो चुकी थी। उसने ठान तो लिया कि फिर से सब ठीक करेगी परन्तु प्रश्न था कैसे? उसने धीरे-धीरे खुद को सकारात्मक बनाने की कोशिश की। पहले जिसे हर चीज ...Read Moreग़लत ही नज़र आता था, अब वह उनमें अच्छा खोजने लगी। ऐसा करने से श्लोका को थोड़ी हिम्मत तो मिल रही थी परंतु मन के ज़ख्म अब भी न भर रहे थे। ऐसे में उसने प्रतीत किया कि ज़िन्दगी के इस उतार चढ़ाव के कारण वह बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित हो गई।
पिछले भाग में आपने जाना श्लोका के पास दो रास्ते थे। आइये अब जानते है श्लोका ने कौनसा रास्ता चुना और वह कितना सही थी अपना रास्ता चुनने में। ...Read More अब श्लोका ने ठान लिया उसको पीछे मुड़कर नहीं देखना है। उसे अपने सपनों को साकार करना है। आत्मविश्वास से भरी श्लोका फिर उठ खड़ी हुई। उसने फिर से सब बातों को समझने का प्रयास किया। धीरे-धीरे वह अपने दोस्तों से भी बातें करने लगी, जिन सबसे वह दूर हो गई थी। वह अंदर से खुद को मजबूत करने लगी। श्लोका ने फिर से पढ़ना शुरू
अब तक आप श्लोका के बचपन से लेकर उसके मैनेजर बनने तक का सफ़र जान चुके है। अब हो रही है श्लोका की ज़िन्दगी की नई शुरआत। आइए पढ़ते हैं आगे की कहानी। ...Read More श्लोका निश्चित कर चुकी थी वह किसी अनजान शख़्स के नाम अपनी पूरी ज़िंदगी नहीं करेगी किन्तु इस पर माता-पिता का सहयोग न था। श्लोका अपने माता-पिता से बहुत प्रेम करती थी। वह उनका दिल नहीं दुखाना चाहती थी परंतु वह अपनी ज़िंदगी के फैसले भी खुद करना चाहती थी। कितनी अजीब बात है ना
पिछले भाग में आपने जाना एक दिन ऑफिस से जाते वक्त आनन्द श्लोका को शादी के लिए पूछ ही लेता है। अभी श्लोका ने आनन्द को जाना ही कितना था, पूरी ज़िन्दगी की बात थी। श्लोका सोचने के ...Read Moreवक़्त लेकर घर को निकल गई। घर जाकर श्लोका ने माँ को फोन किया और आनन्द के बारे में बताया। माँ ने सुझाव दिया कुछ समय लेकर देखो अगर तुम्हें ठीक लगता है तो आगे बढ़ना इस रिश्ते में नहीं तो आनन्द को साफ शब्दों में मना कर देना। जो भी हो हम तुम्हारे साथ हैं, तुम जो भी फ़ैसला लोगी
श्लोका के इज़हार से आनन्द बेहद खुश था। उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। बेइंतहा मोहब्बत जो करता था श्लोका से। दोनों बहुत खुश थे। श्लोका ने माँ को फ़ोन करके झट से सब बता दिया। आनन्द ...Read Moreजिम्मेदार, सुलझा हुआ और बड़ो की इज्जत करने वाला युवक था। जल्द ही श्लोका ने आनन्द की बात अपने माता पिता से कराई। वह दोनों भी अपने बच्चों के लिए खुश थे। उनको आनन्द पसन्द भी आया वो जल्द से जल्द आनन्द से मिलना चाहते थे। वहीं आनन्द ने भी अपने परिवार में सबको
पिछले भाग में आपने पढ़ा आनन्द का पप्रोमोशन हो जाता है। घर के सब लोग असमंजस में आ जाते हैं। अभी तो सगाई की तारीख़ तय हुई है, श्लोका यहाँ है, आनन्द का परिवार भी यहाँ है। आनन्द को ...Read Moreनहीं आ रहा वह इस स्थिति में क्या करे। श्लोका और परिवार वालों ने आनन्द को प्रोत्साहन दिया कि वह अपने कैरियर में आगे बढे। और फिर आनन्द कुछ ही समय में दूसरे शहर में रहने लगा। शुरुआत में थोड़ा मुश्किल था। आनन्द कभी अपने परिवार से दूर नहीं रहा था और अब तो श्लोका का साथ भी उसे बेहद
आनन्द की देह को सामने देखकर श्लोका निरंक खड़ी रहती है। दूसरी ओर आनन्द के पिता अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उसके अंतिम संस्कार की तैयारी करते हैं। थोड़ी देर में आनन्द को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते ...Read Moreआनन्द की माँ बेजान सी हो जाती हैं। श्लोक की माँ आनन्द की माँ को सहारा देती है। आनन्द की बहन आनन्द की दादी को हौंसला दे रही होती हैं। श्लोका एक कोने में खड़े अपने सारे लम्हें याद कर रही होती है जो उसने आनन्द के साथ बिताए थे। अंतिम संस्कार की विधि पूरी