mansik rog - 2 in Hindi Fiction Stories by Priya Saini books and stories PDF | मानसिक रोग - 2

मानसिक रोग - 2

हम पढ़ रहे थे श्लोका की कहानी, पिछले भाग में हमनें पढ़ा श्लोका को अनुमति मिल जाती है निजी कंपनी में काम करने की पर एक शर्त के साथ। आइए पढ़ते है आगे की कहानी।
श्लोका निजी कंपनी में नौकरी देखना शुरू करती है पर उसको उसकी पढ़ाई के अनुसार काम नहीं मिलता। कभी नौकरी सही नहीं लगती कभी आय तो कभी वातावरण। श्लोका हार नहीं मानती। इन सबसे परेशान होकर श्लोका ने एक बड़ी कंपनी में आवेदन किया परन्तु वहाँ के लोगों को देखा तो उसे लगने लगा कि उसकी पढ़ाई बेकार गई, उसे तो कुछ भी नहीं आता, उसमें कोई हुनर ही नहीं है। वहाँ उसका चयन भी नहीं हुआ। इसी प्रकार श्लोका एक कंपनी से दूसरी कंपनी में आवेदन देने लगी पर उसके पास कोई अनुभव नहीं था न कोई जान पहचान, अंत में निराशा ही हाथ लगती। श्लोका साथ ही सरकारी नौकरी की भी परीक्षा दे रही थी परंतु वहाँ भी कुछ नहीं हो रहा था।
इसी तरह पहले कुछ महीने फिर साल निकलने लगे। श्लोका समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है उसके साथ, और वही दूसरी ओर श्लोका के साथ में पढ़ने वाली लड़कियां या तो अपना सुखमय गृहस्थ जीवन गुजार रही थी या जो नौकरी करती थी वो सब एक अच्छे मुकाम पर थीं। यह सब देख कर श्लोका को प्रतीत होने लगा कि कमी उसमें ही है। धीरे-धीरे श्लोका का आत्मविश्वास डगमगाने लगा। वह हर बात का दोषी ख़ुद को ही मानने लगी। उसने नौकरी के बारे में सोचना भी छोड़ दिया और घर पर रहने लगी। श्लोका ने खुद को सबसे दूर कर लिया अपने दोस्तों से, परिवार से, समाज से और एक कमरे को ही अपनी दुनियां बना लिया। अब उसको न खाना अच्छा लगता न किसी से बात करना, वह अन्दर ही अंदर घुटने लगी थी। वह पूरे दिन बस रोती ही रहती। उसका आत्मविश्वास पूरी तरह टूट गया था।


माता पिता को श्लोका का बदला हुआ व्यवहार दिख तो रहा था परंतु वो कुछ समझ नहीं पा रहे थे। एक दिन माँ ने बात करनी चाही तो श्लोका और तड़प उठी। वह किसी को अपनी बात समझा ही नहीं पा रही थी शायद इसीलिए उसने किसी से कुछ कहने से बेहतर चुप रहना समझा। एक महीने और गुजर गया। श्लोका की हालत दिन पर दिन और खराब होती जा रही थी। अब तो श्लोका को आत्महत्या करने का विचार भी मन में आने लगा। वह बहुत दुःखी हो गई थी। सारे रास्ते उसे बंद से नज़र आ रहे थे। मानो जैसे सब कुछ खत्म ही हो गया हो। जीने के लिए कोई मक़सद ही नहीं रहा हो ज़िन्दगी में ऐसी स्थिति में आ गई थी श्लोका।

माँ-बाप को श्लोका की बात समझना कठिन था। उनके लिए बहुत छोटी सी बात थी। उन्होनें सोचा भी नहीं नौकरी न मिलने से श्लोका ऐसी हो जाएगी। बात नौकरी की थी या आत्मविश्वास की, ये तो श्लोका जानती थी। एक दिन श्लोका पानी लेने रसोईघर में जा रही थी कि अचानक बेहोश होकर गिर पड़ी। आनन-फानन में उसको अस्पताल लेकर गए। डॉक्टर ने बताया कि कमजोरी की वजह से वह बेहोश हुई है।
आगे की कहानी पढ़िए अगले भाग में।

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