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मानसिक रोग - 3

मानसिक रोग के दूसरे भाग में आपने पढ़ा कैसे श्लोका अस्पताल में भर्ती हुई। आइये जानते हैं आगे की कहानी।
जब माँ ने डॉक्टर को बताया श्लोका के बदले व्यवहार के बारे में, डॉक्टर सुनते ही समझ गए कि श्लोका मानसिक रूप से बीमार है। उन्होंने श्लोका के माता-पिता को ये बात बताई परन्तु हमेशा श्लोका का साथ निभाने वाले माँ-बाप ये बात समझ ही नहीं पा रहे थे। समाज में मानसिक रोग को रोग कहाँ समझा जाता, ये तो पागलपन है इसी नाम से जाना जाता है। हालाँकि दो दिन उपचार के बाद श्लोका को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।
श्लोका अब भी उसी बीमारी से जूझ रही थी। माता-पिता को ये डर सता रहा था कि आस पड़ोस, रिश्तेदारी में ये बात न फैल जाए कि उनकी बेटी पागल है। उन्होनें उसका इलाज भी नहीं कराया ये सोच कर कि कहीं दवाइयों से श्लोका और ज़्यादा बीमार या यूं कहो और ज़्यादा पागल न हो जाये। अब तक श्लोका भी अपनी इस बीमारी से परिचित हो गई थी। माँ ने उसे बिठा कर बात की और समझाया कि ये दवाइयों से और बढ़ जाएगी इसका इलाज करना सही नहीं होगा। माँ की हाँ में हाँ करके श्लोका चुप होकर बैठ गई।
शायद ये समाज ही ऐसा है यहाँ मानसिक रोग को रोग की तरह नहीं समझा जाता। कोई नहीं समझ पाता उस व्यक्ति पर क्या गुजर रही होती है जो इस रोग से ग्रसित हो। अपने ही परिवार के लोग जब ये बात न समझ पाए तो व्यक्ति समझ जाता है कि अब ऐसे ही जीना है। बस हाँ कर दो ताकि और कोई प्रश्न न आ जाये। सब ठीक है, हाँ। तुम ठीक हो, हाँ।
माँ, श्लोका को खुश रखने की कोशिशें करने लगी। कुछ वक़्त तो लगा पर अब श्लोका के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। चेहरे पर मुस्कान देख कर माँ को लगने लगा कि श्लोका अब स्वस्थ हो रही है पर क्या ज़ख्म अंदर से भी भर रहे थे? या बस बाहर से सबको दिखाने के लिये कि श्लोका पागल नहीं है। आत्मविश्वास से टूटी हुई श्लोका अब बाहर से सही दिखने लगी थी, यही तो चाहिए था माँ-बाप को। कुछ ही समय बीता था कि माता पिता ने सोचा श्लोका की शादी कर देते हैं। अब वह स्वस्थ भी है और ऐसा करने से वह भविष्य में वह ख़ुश रहेगी। किन्तु शादी समाधान कैसा होता, जब समस्या शादी थी ही नहीं। श्लोका ये सुन कर चौंक गई, वह सोचने लगी हमेशा सहयोग करने वाले माता पिता ये क्या सोच रहे थे। अभी तो श्लोका का मन के ज़ख्म भरे भी न थे और ये सब। सच ही कहा है किसी ने, अगर परिवार साथ हो तो व्यक्ति बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी जीत सकता है परंतु परिवार के साथ के बिना जीते हुए युद्ध भी हार जाता है। श्लोका की स्थिति भी ऐसी ही हो गई थी। अब श्लोका ने ठान लिया उसे खुद ही इससे लड़ना होगा, इस स्थिति को हराना होगा। सोच तो लिया किन्तु पूरी तरह से अपना आत्मविश्वास खो चुकी श्लोका कैसे शुरुआत करे, मन में लाखों प्रश्न थे।

इन प्रश्नों के जवाब खोजने चलते है मानसिक रोग के अगले भाग में।