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मानसिक रोग - 8

श्लोका के इज़हार से आनन्द बेहद खुश था। उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। बेइंतहा मोहब्बत जो करता था श्लोका से। दोनों बहुत खुश थे। श्लोका ने माँ को फ़ोन करके झट से सब बता दिया। आनन्द एक जिम्मेदार, सुलझा हुआ और बड़ो की इज्जत करने वाला युवक था। जल्द ही श्लोका ने आनन्द की बात अपने माता पिता से कराई। वह दोनों भी अपने बच्चों के लिए खुश थे। उनको आनन्द पसन्द भी आया वो जल्द से जल्द आनन्द से मिलना चाहते थे।
वहीं आनन्द ने भी अपने परिवार में सबको इस रिश्ते के बारे में बता दिया। आनन्द के परिवार में उसके दादी, माता पिता और एक छोटी बहन थी। वह सब भी श्लोका से मिलने को उत्सुक थे। आनन्द का घर तो इसी शहर में था। आनन्द के माता पिता की मनोकामना बिल्कुल श्लोका जैसी बहु की ही थी। ऐसा लग रहा था मानो सब सपने जैसा हो। रविवार के दिन आनन्द के परिवार ने श्लोका को खाने पर बुलाया था।
श्लोका बेहद खुश थी, वह रविवार का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। आखिर रविवार आ ही गया। श्लोका गुलाबी रंग का सूट और हरे रंग का दुपट्टा पहने, आँखों मे काजल लगाए, छोटे-छोटे झुमके पहनकर तैयार हुई। पहली बार आनन्द के परिवार से मिलने जा रही थी तो एक छोटी सी गुलाबी बिंदिया भी लगा ली। इस अवतार में श्लोका बहुत खूबसूरत लग रही थी।
आनन्द श्लोका को लेने उसके घर पहुंचा। श्लोका को देखकर वह देखता ही रह गया। "बहुत खूबसूरत लग रही हो। मम्मी पापा खुश हो जायंगे तुम्हें देखकर" आनन्द ने ये कहते हुए श्लोका की तारीफ की। श्लोका भी थोड़ी शर्मा रही थी। खैर दोनों वहाँ से चल दिये। श्लोका और आनन्द, आनन्द के घर पहुँचते हैं। आनन्द के माता पिता श्लोका को देख कर खुश होते हैं। श्लोका दादी जी का भी आशीर्वाद लेती है। आनन्द की बहन को तो प्रतीत होता है जैसे श्लोका के रूप में उसे बड़ी बहन और एक दोस्त मिल गई। एक ही मुलाकात में सब घुल मिल जाते हैं। सब साथ खाना खाते हैं। आनन्द श्लोका को वापस उसके घर छोड़ आता है।
श्लोका यकीन ही नहीं कर पा रही। उसके लिए सब कुछ सपने जैसा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वह किसी सपने की दुनिया में जा बसी है।
दूर होने के कारण श्लोका के माता पिता अभी आनन्द से नहीं मिल पाए थे किन्तु उन्होनें फोन पर बातचीत कर ली थी। अब बस इंतज़ार था दोनों परिवारों के मिलने का। जल्दी वह समय भी आ ही गया। कुछ दिन पश्चात ही श्लोका के माता पिता आनन्द के माता पिता से मिलने आ पहुँचे। दोनों परिवारों में सब लोग बहुत खुश थे। दोनों परिवारों ने मिलकर पंडित जी से सगाई की तारीख़ निकलवाई। सगाई दो महीने बाद तय हुई। दोनों ही परिवार इससे सहमत हुए। सगाई की तारीख़ तय होने के अगले ही दिन श्लोका के माता पिता अपने शहर को वापस लौट गए आखिर बहुत सारी तैयारी जो करनी थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। अगले ही हफ़्ते आनन्द का प्रोमोशन हो गया परन्तु प्रमोशन के लिए उसे दूसरे शहर भेजा जा रहा था।
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़िये मानसिक रोग का अगला भाग