Apne-Apne Indradhanush book and story is written by Neerja Hemendra in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Apne-Apne Indradhanush is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अपने-अपने इन्द्रधनुष - Novels
by Neerja Hemendra
in
Hindi Moral Stories
आज न जाने क्यों मुझे घर के अन्दर अच्छा नही लग रहा था। बार-बार मन में उठ रही व्याकुलता व अपने आस-पास फैली उदासी से निजात पाने के लिए मैं छत पर आ गई। खुली हवा में, विस्तृत आसमान के नीचे, प्रकृति के सानिंध्य में आ कर कदाचित् मेरे अशान्त हृदय को कुछ सुकून मिल सके। मेरा यह सोचना ठीक ही था। छत पर आ कर मुझे अच्छा लगा। खुली हवा में आ कर मैंने अपने चारों ओर दृष्टि घुमायी। वातावरण में मुझे खूबसूरत परिवर्तन का आभास हुआ। न जाने कब कठोर शीत ऋतु परिवर्तित हो कर वासंती, मनमोहक रूप ले चुकी थी। जीवन के आपाधापी में मुझे ज्ञात ही न हो सका कि यह ऋतु कब परिवर्तित हो गई ? मार्च का महीना प्रारम्भ हो चुका है। सर्दी की ऋतु जा रही है। हवा में अब भी हल्की-सी ठंड व्याप्त है।
अपने-अपने इन्द्रधनुष (1) आज न जाने क्यों मुझे घर के अन्दर अच्छा नही लग रहा था। बार-बार मन में उठ रही व्याकुलता व अपने आस-पास फैली उदासी से निजात पाने के लिए मैं छत पर आ गई। खुली हवा ...Read Moreविस्तृत आसमान के नीचे, प्रकृति के सानिंध्य में आ कर कदाचित् मेरे अशा
अपने-अपने इन्द्रधनुष (2) शनै-शनै काॅलेज की दिनचर्या में मैं व्यस्त होने लगी। मन को नियत्रित करना व तनाव भरी घटनाओं को विस्मृृत करना मै सीख गयी हूँ । ये तो छोटी-सी घटना है। मैं अत्यन्त पीड़ादायक घटनाओं से उबर ...Read Moreहूँ। प्रतिदिन की भाँति आज भी मैं काॅलेज जाने के लिए समय पर घर से निकली थी। सड़क पर हाथ दे कर आॅटो रोका। चन्द्रकान्ता उसी आॅटो में पहले से बैठी थी जिसे मैंने रूकने के लिए हाथ दिया था। आॅटो में चन्द्रकान्ता को पहले से बैठा देख मुझे अच्छा लगा। चन्द्रकान्ता मेरी मित्र है। वह और मैं एक ही
अपने-अपने इन्द्रधनुष (3) कई दिनों के पश्चात् आज काॅलेज के काॅरीडोर में विक्रान्त मिल गया। वह बाहर जा रहा था। उसे देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह जल्दी में हो। मुझे देखते ही वह रूक गया। ...Read Moreमेरा हाल पूछ बैठा। मैं भी रूक गई। औपचारिक बातों के पश्चात् वह बताने लगा, ’’ क्या बताऊँ नीलाक्षी जी घर में परिस्थितियाँ ठीक नही चल रही हैं। ’’ ’’ क्या हुआ?’’ मैंने पूछ लिया। ’’ कुछ नही नीलाक्षी जी। ’’ कह कर वह चुप हो गया। किन्तु उसकी व्याकुलता बता रही थी कि चुप रह कर भी वह बहुत
अपने-अपने इन्द्रधनुष (4) कई दिनों के उपरान्त विक्रान्त आज काॅलेज में दिखाई दिया। मुझे वह बदला-बदला सा लगा। चेहरे पर बेतरतीब-सी उगी दाढ़ी जैसे कई दिनों से समय न मिला हो शेव करने का। कुछ कमजोर-सी। सबसे बढ़ कर ...Read Moreयह बदलाव परिलक्षित हो रहा था कि सबके व्यक्तिगत् जीवन की जानकारियाँ जुटाना व उनको ले कर व्यंग्यात्मक कटाक्ष करने व हँसने का शगल उसके स्वभाव से नदारद था। स्टाफरूम में मुझे देख कर वह मुस्कराया व अभिवादन करता हुआ मेरे समीप आ कर मेरा कुशलक्षेम पूछने लगा। औपचारिकता पूरी करने के पश्चात् भी वह मेरे पास बैठा रहा। कदाचित्
अपने-अपने इन्द्रधनुष (5) ’’ एक नीम का वृक्ष था। उस पर एक कौआ रहता था। एक दिन उसे प्यास लगी.......’’ काॅलेज की कैंटीन के सामने से गुज़रते हुए मैंने देखा कि कैंटीन की दीवार से सट कर बैठा महुआ ...Read Moreबेटा झूम-झूम कर प्यासा कौआ की कहानी पढ़ रहा था। मैं बरबस उसकी तरफ देखने लगी। मुझे अपना बचपन याद आ गया। तब मैं बहुत छोटी थी। स्मृतियाँ धुँधला गई हैं, किन्तु कुछ-कुछ याद आ रहा है। कदाचित् मैं पहली या दूसरी कक्षा में पढ़ती थी। हिन्दी की पुस्तक में प्यासा कौआ की कहानी बचपन की मेरी प्रिय कहानी हुआ