अनोखा जुर्म - Novels
by Kumar Rahman
in
Hindi Detective stories
वह अपनी इस नौकरी से तंग आ चुकी थी। अलबत्ता नौकरी में कोई कमी नहीं थी। एक एसी कार सुबह उसे लेने आती थी और शाम को घर छोड़ जाती थी। अच्छी खासी तनख्वाह थी। सैटरडे और सनडे ऑफ ...Read Moreथा। कुल मिलाकर एक नौकरी में जो कुछ भी ऐशो-आराम और सैलरी चाहिए होती है, वह सब कुछ इस नौकरी में उसे मिल रहा था। इसके बावजूद वह संतुष्ट नहीं थी।
जासूसी उपन्यास अनोखा जुर्म कुमार रहमान कॉपी राइट एक्ट के तहत जासूसी उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’ के सभी सार्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं। किसी भी तरह के उपयोग से पूर्व लेखक से लिखित अनुमति लेना जरूरी है। डिस्क्लेमरः उपन्यास ...Read Moreजुर्म’ के सभी पात्र, घटनाएं और स्थान झूठे हैं... और यह झूठ बोलने के लिए मैं शर्मिंदा नहीं हूं। अनोखा जुर्म भाग-1नौकरी वह अपनी इस नौकरी से तंग आ चुकी थी। अलबत्ता नौकरी में कोई कमी नहीं थी। एक एसी कार सुबह उसे लेने आती थी और शाम को घर छोड़ जाती थी। अच्छी खासी तनख्वाह थी। सैटरडे और सनडे
सैनोरीटा सार्जेंट सलीम सजधज कर होटल सिनेरियो के पार्किंग में कार पार्क करके जब ऊपर पहुंचा तो उसका मूड बड़ा अच्छा हो रहा था। एक तो मौसम सुहाना था, दूसरे आज होटल सिनेरियो में इटैलियन फेस्टिवल था। सार्जेंट सलीम ...Read Moreस्वर में एक पुराने फिल्मी गाने पर सीटी बजा रहा था। होटल सिनरियो को थीम के हिसाब से ही इटैलियन अंदाज में सजाया गया था। होटल की बिल्डिंग पर लेजर लाइट से एक इटैलियन ग्रुप को डांस करते हुए दिखाया गया था। ग्रुप की लड़कियों के हाथों में वहां का नेशनल फ्लैग था। गेट पर मौजूद गार्ड ने भी इटली
पीछा सार्जेंट सलीम कॉफी का मग गीतिका और हाशना को देने के बाद खुद के लिए कॉफी बनाने लगा। कॉफी का पहला सिप लेने के बाद उसने हाशना से कहा, “हां, अब बताइए कैसे आना हुआ?” हाशना ने गीतिका ...Read Moreतरफ देखते हुए कहा, “सार्जेंट साहब... यह मेरी दोस्त गीतिका हैं। यह एक अजीब परेशानी में मुब्तिला हैं। यह आप से मदद चाहती हैं।” “जी बताइए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं?” सलीम ने गीतिका की तरफ देखते हुए पूछा। गीतिका ने नजरें झुकाए हुए कहा, “मैं अपनी नौकरी से परेशान हूं।” “मैं आप की बात नहीं समझा।”
पीछा सार्जेंट सलीम हर दिन सुबह गीतिका के घर के सामने मौजूद एक चायखाने में बैठ जाता। वहां वह अपनी भोंडी शायरी सुनाता रहता। कभी चाय वाले से खरीद कर सिगरेट पीता तो कभी चाय। चाय वाले की बिक्री ...Read Moreऔर सलीम की शायरी की वजह से महफिल जमी रहती तो चाय वाला भी काफी खुश रहता। सलीम दूसरों को भी चाय पिलाता था। यही वजह थी कि तमाम निठल्ले उस के पहुंचते ही उसे घेर कर बैठ जाते। उसके लिए बाकायदा बेंच साफ की जाती और उसे बाइज्जत बैठाया जाता। सलीम अपने लिए ऐसी जगह बेंच लगवाता जहां से
चपरासी ऊपर वाले ने सलीम की एक न सुनी और उसे स्काई सैंड सॉफ्टवेयर कंपनी में चपरासी बन कर जाना ही पड़ा। गीतिका उस से एक बार कोठी पर मिल चुकी थी, इसलिए सोहराब ने उसे वहां मेकअप में ...Read Moreथा। उस की नाक की दाहिनी तरफ एक बड़ा सा मसा था और उस पर दो बाल उगे हुए थे। इस मसे को लेकर सलीम ने बड़ा हल्ला मचाया था। वह किसी भी तरह इस के लिए राजी नहीं था। उस की भंवें भी कुछ चौड़ी की गई थीं। होठों पर बार्डर लाइन टाइप की पतली मूछें थीं। ग्रे कलर
कॉकरोच शाम को सलीम ऑफिस से निकल कर सीधे गीतिका के घर के सामने वाले चायखाने पर ही आ कर रुका था। गीतिका के दरवाजे पर ताला नहीं लटक रहा था। इस का मतलब यह था कि वह अंदर ...Read Moreहै। सलीम कुछ देर तक चायखाने पर बैठा रहा। इस बीच उसे कोई खास बात नजर नहीं आई। उस ने चायखाने पर एक चाय पी और उठ कर घर की तरफ चल दिया। जब वह घर पहुंचा तो वहां सोहराब नहीं था। नौकर से पता चला कि वह सुबह से ही नहीं लौटा है। सलीम को डिनर भी अकेले ही
पीछा सार्जेंट सलीम ने कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद हाशना से पूछा, “यह वाकिया कब हुआ था?” “लगभग तीन साल पहले।” हाशना ने बताया। इसके बाद सार्जेंट सलीम और हाशना वहां से उठ आए। दोनों पार्किंग ...Read Moreतरफ बढ़ गए। तभी सार्जेंट सलीम से एक आदमी टकरा गया। इसके साथ ही सलीम ने अपने कोट की जेब पर दबाव सा महसूस किया। वह जब तक कुछ समझता, टकराने वाला आदमी सॉरी बोल कर बाहर की तरफ तेजी से चला गया। उसने पीछे देखे बिना ही सॉरी बोला था। सार्जेंट सलीम उसकी शक्ल नहीं देख सका था। सलीम
फायरिंग गेट से अंदर पहुंचते ही सार्जेंट सलीम ठिठक कर रुक गया। अंदर एक लाश रखी हुई थी। वहां तमाम लोग बैठे हुए थे। कुछ महिलाएं जारो कतार रो रहीं थीं। एक बच्चा एक महिला से चिमटा हुआ ...Read Moreथा। यह मंजर देख कर सार्जेंट सलीम उदास हो गया। कई लोग उस की तरफ देखने लगे थे। सलीम एक खाली कुर्सी पर जा कर बैठ गया। कुछ देर वह यूं ही शांत बैठा वहां मौजूद लोगों का जायजा लेने लगा। इस के बाद वह उठ कर एक आदमी के पास जा कर खड़ा हो गया। उस आदमी ने सलीम की
सलाम नमस्ते, ‘मौत का खेल’ उपन्यास पहले लिखना शुरू किया था. इस बीच मन में ‘अनोखा जुर्म’ का प्लाट भी तैयार हो गया. इसलिए उसे भी लिखना शुरू कर दिया. पाठकों की शिकायत है कि उनके मन में दोनों ...Read Moreगडमड हो रही हैं. मुझे भी दोनों कहानियां एक साथ लिखने में दिक्कत हो रही है.अगर आप लोगों की इजाजत हो तो ‘अनोखा जुर्म’ को ‘मौत का खेल’ उपन्यास पूरा होने तक रोक दिया जाए. उसके बाद ‘अनोखा जुर्म’ के आखिर के छह पार्ट को फिर से रिराइट करके अनोखे अंदाज में लिखा जाए.कुमार रहमानएनकाउंटर इंस्पेक्टर कुमार सोहराब एक दीवार की