Anokha Jurm - 1 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | अनोखा जुर्म - भाग-1

अनोखा जुर्म - भाग-1

जासूसी उपन्यास अनोखा जुर्म
कुमार रहमान

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डिस्क्लेमरः उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’ के सभी पात्र, घटनाएं और स्थान झूठे हैं... और यह झूठ बोलने के लिए मैं शर्मिंदा नहीं हूं।

 

अनोखा जुर्म भाग-1

नौकरी

वह अपनी इस नौकरी से तंग आ चुकी थी। अलबत्ता नौकरी में कोई कमी नहीं थी। एक एसी कार सुबह उसे लेने आती थी और शाम को घर छोड़ जाती थी। अच्छी खासी तनख्वाह थी। सैटरडे और सनडे ऑफ रहता था। कुल मिलाकर एक नौकरी में जो कुछ भी ऐशो-आराम और सैलरी की ख्वाहिश होती है, वह सब कुछ इस नौकरी में उसे मिल रहा था। इसके बावजूद वह संतुष्ट नहीं थी।

एक बात और थी जो उसे खासा परेशान करती थी। उसे शुबहा था कि वह जब भी घर से बाहर किसी काम के लिए निकलती है तो कोई दूर से उस पर नजर रखता है। उसने आज तक उस पर नजर रखने वाले आदमी को नहीं देखा था। बस उसे इस बात का एहसास होता था कि कोई है जो दूर से उस पर निगाह रख रहा है।

बाकी नौकरी से संतुष्ट न होने की कोई और खास वजह नहीं थी। उसे लगता था कि उसे नौकरी में सब कुछ बेवजह और बहुत ज्यादा मिल रहा है। वह शायद इतने सब के लायक नहीं है। वह यह नौकरी पिछले एक साल से कर रही थी। अब उसे ऊब होने लगी थी। मुश्किल यह भी थी कि अगर नौकरी छोड़ दी तो उसके पास जिंदगी गुजारने के लिए पैसों का दूसरा कोई इंतजाम भी नहीं था। बस यही सोचकर वह नौकरी किए जा रही थी।

लड़की का नाम गीतिका था। वह राजधानी के डे स्ट्रीट इलाके में रहती थी। उसका ऑफिस घर से सात किलोमीटर दूर विजडम रोड पर था। गीतिका बहुत खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन उसके चेहरे पर एक खास कशिश थी। यह कशिश ही उसकी सांवली रंगत को सलोना बनाती थी। दूसरे उसकी बड़ी-बड़ी आंखें हमेशा किसी मदहोशी में डूबी रहती थीं।

आज गीतिका बहुत परेशान थी। उसने खुद पर नजर रखने वाले इंसान की एक झलक देख ली थी। दरअसल आज सैटरडे था और वह घर पर बोर हो रही थी। वह दोपहर को टैक्सी करके शॉपिंग मॉल में कुछ खरीदारी करने चली गई। शापिंग माल से वह बाहर निकल आई। उसे फॉलो करने वाला गेट से कुछ दूरी पर ही खड़ा था। गीतिका से नजर मिलते ही वह तेजी से एक तरफ मुड़ गया और फिर भीड़ में गायब हो गया। गीतिका ठीक से उसकी शक्ल तो नहीं देख सकी थी, लेकिन उसे इतना अंदाजा तो हो ही गया था कि वह उस पर नजर रख रहा था। इस बात से वह बहुत परेशान हुई।

गीतिका दोबारा शॉपिंग मॉल में चली गई और हाशना को फोन मिला दिया। उसने उसे पूरी बात बताते हुए शॉपिंग मॉल आने को कहा।

गीतिका ने हाशना को अपनी नौकरी की उलझनों के बारे में काफी पहले बताया था। यह भी कहा था कि उसे शक है कि कोई उसे फॉलो करता है। आज जब गीतिका ने उसे खुद को फॉलो करने वाले को देख लेने की बात बताई तो हाशना तुरंत ही उसके पास पहुंच गई।

शॉपिंग मॉल में उनके लिए बात कर पाना मुमकिन नहीं था। हाशना ने उस से फिंच कैफे चलने के लिए कहा। शॉपिंग मॉल से निकल कर दोनों कार में बैठ गईं। कार हाशना ड्राइव कर रही थी। कुछ दूर जाने के बाद हाशना ने कहा, “तुम परेशान मत हो। वह फॉलोवर तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। वरना अब तक ऐसा कर चुका होता।”

“अहम सवाल यह है कि वह मुझे फॉलो क्यों करता है?” गीतिका ने गंभीर आवाज में कहा।

हाशना ने कहा, “हां, यह अहम सवाल है कि आखिर फॉलो करने का मकसद क्या है? चलो कैफे चल कर बात करते हैं।” यह कहने के साथ ही उसने कार की स्पीड बढ़ा दी।

कुछ देर बाद ही दोनों किंगफिशर कैफे पहुंच गए। हाशना ने कार को बेसमेंट में पार्क किया और फिर दोनों लिफ्ट से ऊपर पहुंच गए। दोपहर का वक्त होने की वजह से कैफे में ज्यादा भीड़ नहीं थी। वह गेट से दूर हट कर सबसे आखिर में एक कोने की मेज पर जा कर बैठ गए। हाशना ने जानबूझ कर गीतिका को इस तरह से बैठाया था कि उसकी पीठ गेट की तरफ रहे।

यह एक बड़ा सा हाल था। हाल के एक कोने में बड़ा सा किंगफिशर का स्टैच्यू लगा हुआ था। यहां का मालिक प्रकृति प्रेमी था। उसने हाल में बीच-बीच में बड़े-बड़े नक्काशीदार गमलों में खूबसूरत पौधे लगा रखे थे। यह वह पौधे थे जो सूरज की रोशनी के बिना भी पनप सकते थे।

वेटर को कॉफी और सैंडविच का आर्डर देने के बाद हाशना ने कहा, “हां अब बताओ क्या है पूरा मामला?”

जवाब में गीतिका ने उसे पूरी बात बता दी। सब सुनने के बाद हाशना ने पूछा, “वह तुम्हें कब से फॉलो कर रहा है?”

गीतिका ने कहा, “मेरे नौकरी ज्वाइन करने के कुछ दिनों बाद से ही।”

“तुम्हें पक्का यकीन है!” हाशना ने गंभीर आवाज में पूछा।

“यकीन से तो नहीं कह सकती, लेकिन इस का एहसास कई बार हुआ है।” कुछ देर खामोश रहने के बाद गीतिका ने दोबारा कहा, “आज मैं ने जब उस की एक झलक देख ली तो यकीन हो गया है।”

“यह भी तो हो सकता है कि तुम्हें भ्रम हुआ हो।” हाशना ने कहा।

“लेकिन फिर वह भाग क्यों गया?” गीतिका ने मासूमियत से कहा।

उस की बात सुनने के बाद हाशना सोच में पड़ गई। कुछ देर बाद उस ने पूछा, “तुम क्या चाहती हो?”

“मैं इस अजीब नौकरी से पहले से परेशान हूं और फिर यह फॉलो करने का सिलसिला... मैं इन दोनों ही हालातों से आजाद होना चाहती हूं।”

“नौकरी से तुम्हें दिक्कत क्या है?” हाशना ने पूछा।

“मुझे लगता है कि कुछ गड़बड़ है!” गीतिका ने जवाब दिया।

“तुम बहुत शक्की हो।” हाशना ने उसे समझाते हुए कहा, “ऐसा तो है नहीं कि तुम उस कंपनी में अकेले काम करती हो। वहां और भी तो बहुत सारे लोग हैं।”

“नहीं... मैं वहां मिलने वाले स्पेशल ट्रीटमेंट से हैरान और परेशान हूं।” गीतिका ने चिंता भरे स्वर में कहा।

“लेकिन क्या वहां काम करने वाले बाकी लोगों को परेशान किया जाता है?” हाशना ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा। उसके होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट थी।

उसकी मुस्कुराहट और सवाल से गीतिका नाराज हो गई। वह सीट से उठते हुए बोली, “मैंने तुम्हें अपनी मदद करने के लिए बुलाया था, लेकिन तुम यहां बैठकर मेरा मजाक उड़ा रही हो। मैं घर जा रही हूं।”

हाशना ने उसका हाथ पकड़ कर सीट पर बैठाते हुए कहा। “नाराज मत हो डार्लिंग! मैं तुम्हें सिर्फ रिलैक्स करना चाहती हूं।”

वेटर कॉफी लेकर आ गया था। इस वजह से दोनों की बात रुक गई। वेटर कॉफी रख कर जाने लगा तो अचानक ही गीतिका की नजर उस पर पड़ गई और वह अंदर तक सिहर गई। उसने मजबूती से हाशना का हाथ पकड़ लिया। उसकी कैफियत देखकर एक पल के लिए हाशना की समझ में कुछ नहीं आया। फिर उसका वेटर की तरफ ध्यान चला गया। तेजी से जाते वेटर को उसने आवाज दी, “रुको!”

हाशना की आवाज सुनने के बाद भी वेटर नहीं रुका और वह तेजी से चला गया। उस के जाने के बाद उस ने गीतिका की तरफ देखते हुए पूछा, “तुम वेटर को देख कर डर क्यों गईं थीं?”

“मुझे उस की शक्ल फॉलोवर से मिलती-जुलती लगी थी।” गीतिका ने घबराई हुई आवाज में जवाब दिया।

“ऐसा कैसे हो सकता है... और फिर तुम ने फॉलोवर की शक्ल भी तो ठीक से नहीं देखी थी। ऐसा कैसे कह सकती हो कि यह वही है। अच्छा रुको मैं देखती हूं।” यह कहते हुए हाशना उठ कर चली गई।

कुछ देर बाद हाशना हेड वेटर और कॉफी सर्व करने वाले वेटर के साथ लौट आई। हाशना ने सीट पर बैठते हुए कहा, “यह वेटर यहां कई सालों से काम कर रहा है। यह बेचारा गूंगा और बहरा है। इस वजह से मेरे आवाज देने पर भी नहीं रुका।”

हेड वेटर ने गीतिका से सॉरी कहा और कॉफी सर्व करने वाले वेटर ने भी हाथ जोड़ दिए। इसके बाद दोनों वहां से चले गए।

“रिलैक्स गीतिका!” हाशना ने गीतिका के दोनों हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा, “परेशान मत हो... हम कुछ रास्ता निकालते हैं। पहले कॉफी पीते हैं। वरना ये ठंडी हो जाएगी।”

हाशना कॉफी बनाने लगी। उस ने पहला मग गीतिका की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “यहां की कॉफी बहुत अच्छी होती है। अभी दोपहर का टाइम है, इसलिए ज्यादा भीड़ नहीं है। शाम को तो यहां बैठने की भी जगह नहीं होती है।”

जवाब में गीतिका ने कुछ नहीं कहा और वह काफी की हल्की-हल्की सिप लेने लगी। वह किसी गहरी सोच में गुम थी। हाशना ने अपने लिए भी कॉफी बना ली। वह कॉफी पीते हुए गीतिका को चिंता भरी नजरों से देखे जा रही थी।

काफी खत्म करने के बाद हाशना ने कहा, “तुम घबराओ नहीं हम इस मामले में सार्जेंट सलीम से मिलते हैं।”

“यह कौन है?” गीतिका ने पूछा।

“दोनों खुफिया महकमे के मशहूर जासूस हैं। मेरे दादा के एक केस के सिलसिले में मैं उस के बॉस इंस्पेक्टर कुमार सोहराब से मिली थी। सार्जेंट सलीम उस का असिस्टेंट है। यहां से हम सीधे उन्हीं के पास चलते हैं।” हाशना ने जवाब दिया।

“लेकिन क्या वह हमारी मदद करेगा?” गीतिका ने चिंता भरे स्वर में पूछा।

“बात करने में क्या हर्ज है। हो सकता है मदद को तैयार ही हो जाए।” हाशना ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा।

*** * ***

गीतिका की नौकरी का राज़ क्या था?
आखिर वह फॉलोवर कौन था?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’....

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