Anokha Jurm - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखा जुर्म - भाग-3

पीछा


सार्जेंट सलीम कॉफी का मग गीतिका और हाशना को देने के बाद खुद के लिए कॉफी बनाने लगा। कॉफी का पहला सिप लेने के बाद उसने हाशना से कहा, “हां, अब बताइए कैसे आना हुआ?”

हाशना ने गीतिका की तरफ देखते हुए कहा, “सार्जेंट साहब... यह मेरी दोस्त गीतिका हैं। यह एक अजीब परेशानी में मुब्तिला हैं। यह आप से मदद चाहती हैं।”

“जी बताइए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं?” सलीम ने गीतिका की तरफ देखते हुए पूछा।

गीतिका ने नजरें झुकाए हुए कहा, “मैं अपनी नौकरी से परेशान हूं।”

“मैं आप की बात नहीं समझा।” सलीम ने कहा, “जरा तफ्सील से अपनी बात बताइए। तभी मैं कुछ समझ सकूंगा और आप की मदद के बारे में फैसला ले सकूंगा।”

उस की बात सुनने के बाद गीतिका कुछ देर नजरें झुकाए बैठी रही। मानो तय कर रही हो कि बात कहां से शुरू करे। कुछ देर यूं ही बैठी रहने के बाद उस ने दोबारा बात शुरू की, “मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करती हूं। यह कंपनी सॉफ्टवेयर डेवलप करने का काम करती है।”

“नाम जान सकता हूं।” सलीम ने बीच में टोकते हुए पूछा।

“स्काई सैंड सॉफ्टवेयर कंपनी।” गीतिका ने कहा।

“ओके।” सलीम ने कहा, “आप बात जारी रखिए।”

“मैं पिछले एक साल से यहां नौकरी कर रही हूं। मेरी मुश्किल यह है कि कंपनी में मेरे साथ बहुत अजीब व्यवहार किया जाता है।” गीतिका ने बताया।

“किस तरह का अजीब व्यवहार।” सलीम ने पूछा।

“ऑफिस में मुझे स्पेशल ट्रीटमेंट मिलता है। जैसे मेरे लिए एक अलग वाशरूम है। उसमें किसी और को जाने की इजाजत नहीं है। मीटिंग में मुझे मैनेजर के सबसे करीब वाली सीट दी जाती है। चाय-कॉफी के कप भी मेरा सब से अलग है।” गीतिका ने बताया।

“हो सकता है यह सब कुछ मैनेजर की इच्छा से हो रहा हो। क्या उम्र है उनकी?” सलीम ने पूछा।

“जैसा आप समझ रहे हैं। वैसा बिल्कुल भी नहीं हैं। वह बुजुर्ग आदमी हैं और अकेले में मुझे हमेशा बेटी कह कर ही बुलाते हैं।” गीतिका ने सफाई दी।

“जी।” सलीम ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

गीतिका ने आगे बताया, “एक सबसे अजीब बात यह है कि ऑफिस के सभी लोग मुझ से घुलते-मिलते नहीं हैं। जैसे उन्हें मुझ से कोई डर हो या वह मुझे पसंद न करते हों।”

“हां... यह तो अजीब बात है। कभी आप ने किसी साथी से मालूम नहीं किया?” सलीम ने पूछा।

“वहां मेरी किसी से दोस्ती नहीं हुई एक साल में। मैं पूछूं किस से। अगर कुछ इंप्लाई आपस में कोई बात कर रहे होते हैं और मैं पहुंच जाती हूं तो वह चुप हो जाते हैं।” गीतिका ने चिंताजनक स्वर में कहा।

“स्ट्रेंज।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“इस से भी अजीब बात यह है कि मुझे मैनेजर से सिर्फ एक रुपये कम सैलरी मिलती है, जबकि ओहदे में मैं उन से काफी नीचे हूं।”

“आप वहां काम क्या करती हैं।” सलीम ने पूछा।

“मैं सॉफ्टवेयर डेवलपर हूं।” गीतिका ने बताया।

“आप को यह नौकरी मिली कैसे थी?” सलीम ने पूछा।

“कंपनी से मेरे पास फोन आया था। बताया गया था कि आप का इंटरव्यू होना है। मैंने बताया कि उन को गलतफहमी हुई है। तो उधर से फोन पर बताया गया कि मैंने जॉब के लिए एप्लाई किया था। हकीकत यह है कि मैंने जॉब के लिए एप्लाई ही नहीं किया था।” गीतिका ने सलीम की तरफ देखते हुए बताया।

“हो सकता है आप के घर में किसी और ने एप्लाई कर दिया हो और वह आप को बताना भूल गया हो?”

“यही मुझे भी लगा था... हो सकता है मेरी मां ने किया हो...। मां का निधन यह कॉल आने से महीने भर पहले हो गया था। यही वजह थी कि मैं उन से पूछ नहीं सकती थी। मैंने भी मान लिया था कि हो सकता है उन्होंने ही मेरी जॉब के लिए ऑनलाइन एप्लाई कर दिया हो। वह मेरी जॉब को लेकर फिक्रमंद रहती थीं।” गीतिका की आवाज गमजदा थी।

“आपके घर में कौन-कौन है?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“मैं अकेली रहती हूं। इस दुनिया में मां के अलावा मेरा कोई नहीं था। मां मेरे नाना के साथ रहती थीं। नाना का दस साल पहले निधन हो गया था। तब से हम दोनों अकेले ही रह रहे थे। नाना यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस के एचओडी थे। मेरी मां उनकी अकेली संतान थीं।” गीतिका ने बताया।

“आप के फादर….!” सलीम ने बात अधूरी छोड़ दी।

“मेरी पैदाइश के एक साल बाद ही उन्होंने मेरी मां को डायवोर्स दे दिया था। उस के बाद वह अमेरिका चले गए थे। वहां प्लेन क्रैश में 20 साल पहले उन का निधन हो गया। डायवोर्स के बाद मां नाना के साथ आ कर रहने लगी थीं, क्योंकि नानी के इंतकाल के बाद से नाना भी अकेले ही रहते थे।” गीतिका ने मानो अपना पूरा शिजरा ही खोल कर रख दिया था।

कुछ देर की खामोशी के बाद गीतिका ने एक और अजीब बात बताई। उसने कहा, “नाना के निधन के एक महीने बाद मेरी मां के बैंक अकाउंट में हर महीने की 30 तारीख को एक निश्चित रकम आ जाती थी। इस बारे में मां ने बहुत खोजबीन की, लेकिन पैसे भेजने वाले का पता नहीं चल सका। जो पता अकाउंट के साथ दिया गया था। वहां कोई नहीं रहता था। मां ने इस बारे में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से भी शिकायत की थी। कुछ दिनों बाद इनकम टैक्स वालों का जवाब आया कि आप के पिता जी से किसी ने कुछ रकम उधार ली थी, इसलिए यह रकम वह किस्तों में वापस कर रहा है।”

“इनकम टैक्स वालों ने आप की मां को यह बात बताई थी कि उन्हें यह जानकारी कहां से मिली?” सलीम ने कुछ सोचते हुए पूछा।

गीतिका ने कहा, “मां ने पूछा था तो उन्होंने कहा था कि कर्ज लौटाने वाला यह बात गुप्त रखना चाहता है।”

“हर महीने बैंक अकाउंट में आने वाली रकम कितनी होती थी।” सार्जेंट सलीम ने दोबारा पूछा।

“बीस हजार रुपये।” गीतिका ने बताया।

“क्या वह रकम अब भी मां के अकाउंट में आती है।” सलीम ने पूछा।

“मां के निधन के बाद एकमुश्त 35 हजार रुपये आए थे। उस के बाद वह रकम आना बंद हो गई थी।” गीतिका ने बताया।

सलीम सर पकड़ कर बैठ गया। अजीब मामला था। उस ने अपने लिए एक मग कॉफी और बनाई। कॉफी के कुछ सिप लेने के बाद उस ने गीतिका से कहा, “अभी तक आप ने ऐसी कोई बात नहीं बताई है, जिस में कोई गैरकानून बात हुई हो। भला मैं इस में आपकी क्या मदद कर सकता हूं?”

हाशना ने गीतिका को टोकते हुए कहा, “पीछा करने वाली बात तो तूने बताई ही नहीं!”

गीतिका ने चौंकते हुए कहा, “एक अजीब बात और हो रही है... मेरे नौकरी ज्वाइन करने के कुछ दिनों बाद मुझे एहसास होने लगा है, जैसे कोई मुझ पर नजर रखता है।” कुछ पल खामोश रहने के बाद गीतिका ने आगे कहा, “हालांकि मैंने अभी तक नजर रखने वाले को देखा नहीं है। बस एक एहसास हमेशा बना रहता है।”

“यह बात गौर करने वाली है।” सार्जेंट सलीम ने गंभीर आवाज में कहा।

“आज नजर रखने वाले एक आदमी से गीतिका का सामना हो गया था, लेकिन फिर वह भीड़ में गुम हो गया।” हाशना ने बताया।

“उस वक्त कहां पर थे आप लोग?” सलीम ने पूछा।

“गीतिका अकेले शापिंग माल गई थी। वह अचानक वहां से निकल आई तो उस का नजर रखने वाले से आमना-सामना हो गया।” हाशना ने कहा, “हालांकि वह ठीक से उसकी शक्ल नहीं देख सकी।”

सलीम ने गीतिका की तरफ देखते हुए कहा, “आप अपना फोन नंबर और पता मुझे नोट करा दीजिए। मैं देखता हूं कि आप की मदद किस तरह से की जा सकती है।”

सलीम ने जेब से पेन और नोटबुक निकाल ली। उस ने गीतिका का पता और फोन नंबर नोट कर लिया। इस के बाद हाशना और गीतिका वहां से रवाना हो गईं।

सलीम उन्हें बाहर तक छोड़ने के बाद दोबारा ड्राइंग रूम में आ कर बैठ गया। उस की गुद्दी गर्म हो गई थी। ऐसा केस उस के सामने पहले कभी नहीं आया था। उस ने जेब से पाइप और तंबाकू का पाउच निकाल लिया और पाइप में वान गॉग तंबाकू भरने लगा। पाइप सुलगाने के बाद अभी उस ने कुछ कश ही लिए थे कि उसे इंस्पेक्टर सोहराब ड्राइंग रूम के सामने से जाते हुए नजर आया। वह लपक कर उस के पास पहुंचा और उसे ड्राइंग रूम में ही बुला लाया।

“क्या हुआ मियां साहबजादे! चेहरे के तोते क्यों उड़े हुए हैं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने बैठते हुए मुस्कुरा कर पूछा।

“बड़ी अजीब बात बता गई है वह लड़की।” सार्जेंट सलीम ने गंभीर आवाज में कहा।

“कौन, हाशना” इंस्पेक्टर सोहराब ने पूछा।

“नहीं उस की दोस्त गीतिका।” सार्जेंट सलीम ने कहा। इसके बाद उस ने गीतिका से पता चली सारी बातें इंस्पेक्टर कुमार सोहराब को बता दीं।

सोहराब ने बिना टोके सार्जेंट सलीम की सारी बातें सुन लीं। उस के बाद उस ने पूछा, “तुम किस नतीजे पर पहुंचे हो?”

“मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है गीतिका की बातों पर।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“ऐसा किस बिना पर कह रहे हो?” इंस्पेक्टर सोहराब ने उस से पूछा।

“अगर किसी को अच्छी सैलरी मिल रही है। ढेर सारा ऐशो-आराम और इज्जत मिल रही है तो इस में अजीब बात क्या है! यह तो हर इंप्लाई चाहता है।” सार्जेंट सलीम ने अपनी बात में वजन पैदा करते हुए कहा।

“और उस पर नजर रखने वाली बात?” सोहराब ने उसे याद दिलाया।

“हो सकता है कोई उस का आशिक हो। परपोज करने के लिए सही वक्त तलाश रहा हो!” सलीम ने शक जाहिर किया।

“एक साल से मौका तलाश रहा है! बड़ा अजीब आशिक है!” इंस्पेक्टर सोहराब की आवाज में व्यंग था।

“यह दुनिया अजीबो-गरीब आशिकों से भरी पड़ी है। आप नहीं जानते।” सार्जेंट सलीम ने हंसते हुए कहा।

“और उसकी मां को बैंक के जरिए हर महीने जो मदद मिलती थी। उसे किस खाने में फिट करोगे।” सोहराब ने पूछा।

“इस तरह की गोपनीय मदद बहुत सारे लोग करते हैं।” सार्जेंट सलीम ने जवाब दिया।

“गीतिका के नाना के बारे में शायद तुम नहीं जानते हो। वह देश के जाने-माने कंप्यूटर साइंस के जानकार थे। उनका नाम विक्रेंद्र कुमार था।” कुमार सोहराब ने कहा।

इंस्पेक्टर सोहराब की बात सुन ने के बाद सलीम चौंक पड़ा। उस ने पूछा, “गीतिका से मैं उस के नाना का नाम पूछना भूल गया था, लेकिन आप को मालूम है उन के बारे में।”

सोहराब ने सलीम की बात टालते हुए पूछा, “इस सब के पीछे कोई गहरा रहस्य है। इसे हलके में लेने की गलती मत कर बैठना।”

“जो हुक्म फादर सौरभ!” सार्जेंट सलीम अकसर सोहराब को फादर सौरभ कहा करता था। उस का मानना था कि सोहराब का हिंदी रूपांतरण सौरभ ही होता है।

सोहराब ने सोफे से उठते हुए कहा, “आओ मेरे साथ।”

सलीम उस के पीछे-पीछे चल दिया। सोहराब मेकअप रूम में घुस गया। वहां उस ने सलीम के चेहरे में मेकअप से थोड़ी सी फेर बदल की। उस ने सलीम को एक शानदार जींस पहनने को दी और ऊपर से एक शार्ट कुर्ता पहना दिया। अब सलीम एक यूनिवर्सिटी स्टूडेंट नजर आ रहा था। उसने सलीम के हाथ में एक डायरी और पेन थमाते हुए कहा, “अब तुम भी गीतिका का पीछा करो। उसे इस बात का एक दम पता नहीं चलना चाहिए। यह मालूम करने की कोशिश करो कि क्या वाकई कोई गीतिका पर नजर रख रहा है।”

सलीम ने बड़ी दर्दनाक आवाज में कराहते हुए कहा, “मर गए।”

“कहीं दर्द है?” सोहराब ने हंसते हुए पूछा।

“किसी का पीछा करने से बड़ा दर्द भला और क्या हो सकता है।” सलीम ने दर्द भरी आवाज में जवाब दिया।

“गीतिका मोहतरमा मिलेंगी कहां?” सलीम बड़बड़ाया।

“वह यहां से सीधे अपने घर गई है... और उसके घर का पता आपकी डायरी में नोट है।” सोहराब ने कहा।

“आप को कैसे पता कि वह सीधे घर गई है?” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“किसी भी परेशान हाल लड़की के लिए सबसे सुरक्षित जगह उस का घर ही हो सकता है।” सोहराब ने कहा और सलीम को कंधे से पकड़ कर बाहर ढकलते हुए कहा, “दफा हो जाओ।”

सलीम बड़ी सुस्त चाल से वहां से चल पड़ा। पीछे से सोहराब की आवाज सुनाई दी, “कार से मत जाना। मोटरसाइकिल ले जाओ।”


*** * ***


क्या गीतिका सच बोल रही थी?
आखिर वह कौन था जो गीतिका का पीछा कर रहा था?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’ का अगला भाग...