Motibaai book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Motibaai is also popular in Women Focused in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मोतीबाई - (एक तवायफ़ माँ की कहानी) - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Women Focused
"माँ" मेरे हिसाब से ये एक ही ऐसा शब्द है,जिस पर दुनिया टिकी हुई है,मानव इतिहास के जन्म के समय से ही स्त्री माँ बनती आई है और मातृत्व को जीती आई है,ये अलग बात है कि स्त्री गर्भावस्था से लेकर प्रसवपीड़ा तक इतना कुछ झेलती है इसके बावजूद भी बच्चे को हमेशा पिता की सन्तान रूप में इंगित किया जाता है,माँ की सन्तान के रूप मे नही.... फिर भी वो कुछ नहीं बोलती,बस चुप्पी साधकर सालों साल वंश की बेल बढ़ाने की परम्परा को कायम रखती है और जमाना उसे दायित्व,फर्ज और कर्तव्य का नाम दे देता है,कितनी
"माँ" मेरे हिसाब से ये एक ही ऐसा शब्द है,जिस पर दुनिया टिकी हुई है,मानव इतिहास के जन्म के समय से ही स्त्री माँ बनती आई है और मातृत्व को जीती आई है,ये अलग बात है कि स्त्री ...Read Moreसे लेकर प्रसवपीड़ा तक इतना कुछ झेलती है इसके बावजूद भी बच्चे को हमेशा पिता की सन्तान रूप में इंगित किया जाता है,माँ की सन्तान के रूप मे नही.... फिर भी वो कुछ नहीं बोलती,बस चुप्पी साधकर सालों साल वंश की बेल बढ़ाने की परम्परा को कायम रखती है और जमाना उसे दायित्व,फर्ज और कर्तव्य का नाम दे देता है,कितनी
कमरें में बंद महुआ दिनभर रोती रहीं,शाम होने को आई लेकिन मधुबनी ने दरवाजा नहीं खोला,रात भी हो गई और रात को मधुबनी ने महुआ को ना खाना दिया और ना ही कमरें का दरवाजा खोला,दूसरे दिन भी महुआ ...Read Moreही भूखी प्यासी कमरें में पड़ी रही लेकिन निर्दयी मधुबनी ने कमरें के दरवाज़े नहीं खोले...... और फिर रात होने को आई थी,ना महुआ ने दरवाज़ा खोलने को कहा और ना मधुबनी ने दरवाज़े खोलें,ये देखकर उपेन्द्र को महुआ की कुछ चिन्ता हो आई क्योंकि करीब करीब दो दिन होने को आए थे ,महुआ को कमरें में बन्द हुए,ऐसा ना
कुछ ही दिनों में मोतीबाई उस कोठे की सबसे मशहूर तवायफ़ बन गई,अपनी गायकी और नाच से वो सबकी दिलअजीज बन गई,उसकी आवाज़ का जादू अच्छे अच्छो का मन मोह ले लेता,जो एक बार अजीजनबाई के कोठे पर मोतीबाई ...Read Moreठुमरी सुन लेता वो बार बार सुनने के लिए आता,अजीजनबाई के दिनबदिन ग्राहक बढ़ते ही जा रहे थें,अजीजनबाई की आमदनी भी बहुत बढ़ गई थी,जिससे वो मोतीबाई की हर इच्छा मान लेती,मोतीबाई जो भी कहती तो अजीजनबाई कभी भी उसकी बात नहीं काटती।। इस तरह मोतीबाई इस काम से खुश तो नहीं थी लेकिन उसके पास अब दौलत और
इसके बाद फिर कभी भी उपेन्द्र ने मोतीबाई पर शक़ नहीं किया,उसे प्रभातसिंह की बात अच्छी तरह समझ में आ गई थी कि प्रेम उथला नही गहरा होना चाहिए,अब मधुबनी कुछ भी कहती रहती और उपेन्द्र उसकी एक ना ...Read Moreतरह जिन्द़गी के दो साल और गुज़र गए,वक्त ने करवट ली और एक बार फिर मोतीबाई की गोद हरी हुई,इस तरह उसने एक बार फिर से एक और बेटी को जन्म दिया,उसका नाम मोतीबाई ने मिट्ठू रखा।। दो दो बेटियों को देखकर मधुबनी की नीयत खराब होने लगी,वो इन लड़कियों को भी कोठे पर बिठाने के सपने देखने लगी,अब
उपेन्द्र बिना देर किए हुए दोनों बेटियों को संगीत कला केन्द्र में प्रभातसिंह के साथ भरती करवाने ले गया,प्रभातसिंह की चचेरी बहन ही संगीत कला केन्द्र को चलातीं थीं इसलिए एडमिशन मे कोई दिक्कत ना हुई,बच्चियों के संगीत ...Read Moreचले जाने से अब उपेन्द्र और महुआ की परेशानी कुछ कम हो गई थी,फिर से उनका जीवन सुचारू रूप से चलने लगा, इसी बीच जब उपेन्द्र के पास बेटियों की जिम्मेदारी खतम हो गई तो उसने सोचा कोई काम शुरू किया जाए,वो पढ़ा लिखा तो था नहीं,इसलिए उसने एक डेरी खोलने का सोचा,शहर से बाहर उसने कुछ जमीन और कुछ गाय