Shri Chaitanya Mahaprabhu book and story is written by Charu Mittal in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Shri Chaitanya Mahaprabhu is also popular in Spiritual Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
श्री चैतन्य महाप्रभु - Novels
by Charu Mittal
in
Hindi Spiritual Stories
लगभग 527 वर्ष पूर्व की बात है। उस समय भारतवर्ष पर
मुसलमानों का राज्य था। हिन्दुओं पर अनेक प्रकार के अत्याचार हो रहे थे और वे निर्भीक रूप से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाते थे। किन्तु उससे भी अधिक दयनीय अवस्था वैष्णव-धर्म की थी, क्योंकि मुसलमानों के साथ-साथ पाखण्डी हिन्दु लोग भी वैष्णवों के घोर विरोधी हो गये थे। मुसलमानों का सङ्ग करते-करते उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी तथा उनका आचरण मुसलमानों के जैसा ही हो गया था। वैसे तो उस समय वैष्णव ही गिने-चुने रह गये थे तथा जो थे भी, वे पाखण्डी लोगों द्वारा उपहास तथा अपमान किये जाने के कारण छिपकर ही भजन करते थे। यदि लोगों को पता चल जाता कि यह व्यक्ति वैष्णव है, तो सभी लोग उससे घृणा करते थे तथा समाज से उसका बहिष्कार कर देते थे।
उस समय पूर्व भारत में भगवती भागीरथी के सुन्दर तट पर बसा हुआ नवद्वीप-धाम विद्या का प्रधान केन्द्र था। नवद्वीप में विद्या अध्ययन कर लोग स्वयं को धन्य मानते थे। वहाँपर बड़े-बड़े वैदान्तिक तथा नैयायिक पण्डित रहा करते थे, जो गीता-भागवत-पुराण-वेद आदि शास्त्रों के ज्ञाता थे। वे नित्यप्रति भागवत एवं गीता इत्यादि का पाठ करते थे। श्रीमद्भागवत वेदरूप कल्पवृक्ष का रसमय परिपक्व ( पका हुआ) फल है तथा रसिक भक्त उसका आस्वादनकर सदा सर्वदा प्रेम में मत्त रहते हैं, परन्तु आश्चर्य की बात तो यह थी कि नवद्वीप के पण्डित लोग इसकी व्याख्या करते समय कहते कि मुक्ति ही गीता और श्रीमद्भागवत का चरम फल है। यद्यपि सभी शास्त्रों का उद्देश्य भगवद्-भक्ति है, परन्तु वे लोग अपनी व्याख्याओं में कहते कि शास्त्र हमें कर्म, ज्ञान एवं योग की शिक्षा ही प्रदान करते हैं। इस प्रकार भक्ति का विचार प्रायः लुप्त हो चुका था। भक्ति के नाम पर लोग नाक-भौंह सिकोड़ते थे।
लगभग 527 वर्ष पूर्व की बात है। उस समय भारतवर्ष परमुसलमानों का राज्य था। हिन्दुओं पर अनेक प्रकार के अत्याचार हो रहे थे और वे निर्भीक रूप से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाते थे। किन्तु उससे भी ...Read Moreदयनीय अवस्था वैष्णव-धर्म की थी, क्योंकि मुसलमानों के साथ-साथ पाखण्डी हिन्दु लोग भी वैष्णवों के घोर विरोधी हो गये थे। मुसलमानों का सङ्ग करते-करते उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी तथा उनका आचरण मुसलमानों के जैसा ही हो गया था। वैसे तो उस समय वैष्णव ही गिने-चुने रह गये थे तथा जो थे भी, वे पाखण्डी लोगों द्वारा उपहास तथा
जन्म-लीलानवद्वीप नगर में समस्त गुणों से विभूषित परम भक्तिमान एक ब्राह्मण निवास करते थे। उनका नाम श्री जगन्नाथ मिश्र था। उनकी पत्नी का नाम श्री शचीदेवी था। वे भी परम भक्तिमती और पतिव्रता नारी थी। उनके गर्भ से क्रमशः ...Read Moreकन्याओं ने जन्म ग्रहण किया, परन्तु वे सभी जन्म के थोड़े-थोड़े समय पश्चात् ही मर गयीं। इससे वे दोनों पति पत्नी बहुत ही दुःखी रहते थे। कालक्रम से श्रीशचीदेवी ने नौवीं बार एक बालक को जन्म दिया। बालक बहुत ही सुन्दर था। उसके शरीर से अद्भुत तेज निकल रहा था। वह स्वयं बलदेव जी का अंश था। एक बार जो
दो चोरों पर कृपाअब तो निमाइ ने चलना भी सीख लिया था। इसलिए सारा दिन दूसरे बच्चों के साथ यहाँ-वहाँ घूमते हुए शरारतें करने लगे। किसी के घर में घुसकर भात खा लेते, तो किसी के घर में रखा ...Read Moreदूध-दही चुराकर खा लेते और यदि किसी के घर में कुछ नहीं मिलता तो गुस्से में भरकर घर में रखे हुए मिट्टी के बर्तनोंको ही तोड़ डालते थे। किसी के घर में बच्चा सो रहा होता, तो उसे रुलाने लगते, जब घर के लोग आ जाते तो सभी बच्चे वहाँ से भाग जाते। और यदि कभी किसी स्त्री की पकड़
तैर्थिक ब्राह्मण पर कृपाएक दिन एक ब्राह्मण तीर्थों में भ्रमण करता हुआ नवद्वीप नगर में उपस्थित हुआ। वह गोपाल मन्त्र के द्वारा श्रीकृष्ण की उपासना करता था। उसने अपने गले में बाल गोपाल एवं शालग्रामशिला को लटकाया हुआ था। ...Read Moreशरीर से अद्भुत तेज निकल रहा था तथा वह सब समय अपने मुख से कृष्ण-कृष्ण उच्चारण कर रहा था। वह महाभाग्यवान ब्राह्मण नवद्वीप में घूमते-घूमते जब श्रीजगन्नाथ मिश्र के घर पर उपस्थित हुआ, तो श्रीजगन्नाथ मिश्र उसके अद्भुत तेज को देख झट उठकर खड़े हो गये और उसे प्रणाम किया। तत्पश्चात् उसके हाथ-पैर प्रक्षालन कराकर (धुलवाकर) उसे बैठने के लिए
भक्ति विमुख एवं वैष्णव-विद्वेषी ब्राह्मणों को दण्डअब निमाइ कुछ बड़े हो चुके थे, अतः मिश्र ने उन्हें विद्या अध्ययन के लिए विद्यालय में भेज दिया। उनकी बुद्धि इतनी तीव्र थी कि एक बार सुनने मात्र से ही उन्हें सब ...Read Moreस्मरण हो जाता था। वे अपने से उच्च कक्षा के छात्रों को भी बातों ही बातों में हरा देते थे। यह देखकर सभी आश्चर्यचकित रहे जाते थे।विद्यालय से वापस आते समय निमाइ अपने मित्रों के साथ गङ्गा में अनेक प्रकार की जल क्रीड़ाएँ करते थे। यदि वे देख लेते कि कोई भक्ति रहित एवं वैष्णव-विद्वेषी ब्राह्मण जल में खड़ा होकर