Shri Chaitanya Mahaprabhu - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

श्री चैतन्य महाप्रभु - 3

दो चोरों पर कृपा

अब तो निमाइ ने चलना भी सीख लिया था। इसलिए सारा दिन दूसरे बच्चों के साथ यहाँ-वहाँ घूमते हुए शरारतें करने लगे। किसी के घर में घुसकर भात खा लेते, तो किसी के घर में रखा हुआ दूध-दही चुराकर खा लेते और यदि किसी के घर में कुछ नहीं मिलता तो गुस्से में भरकर घर में रखे हुए मिट्टी के बर्तनोंको ही तोड़ डालते थे। किसी के घर में बच्चा सो रहा होता, तो उसे रुलाने लगते, जब घर के लोग आ जाते तो सभी बच्चे वहाँ से भाग जाते। और यदि कभी किसी स्त्री की पकड़ में आ भी जाते, तो बचने का उपाय न देखकर बड़ी चतुराई के साथ उसके पैरों को पकड़ लेते और कहते— “मैया! आज मुझे छोड़ दो, मैं तुम्हारी शपथ लेता हूँ, दोबारा तुम्हारे घर में चोरी करने नहीं आऊँगा।” उनकी ऐसी बुद्धि को देखकर सभी लोग आश्चर्य में पड़ जाते तथा उन्हें अपनी गोदी में लेकर लाड़ प्यार करने लगते थे।

एक दिन की बात है कि प्रभु अकेले ही घूमते-घूमते अपने घर‌ से बहुत दूर चले गये। उसी समय दो चोरों की दृष्टि उनपर पड़ी। प्रभु के शरीर में धारण कराये गये अलङ्कारों को देखकर उन चोरों के मन में लोभ जाग गया और उन दोनों ने उन बहुमूल्य अलङ्कारों को लूटने की योजना बनायी। इसलिए दोनों ही श्री गौरसुन्दर के निकट पहुँचे और बोले—
चोर (बड़े प्यार से) – “अरे बेटा! तुम अभी तक कहाँ थे? तुम्हारे घर के लोग कितनी देर से तुम्हें खोज रहे हैं, घर में सभी लोग तुम्हारे लिए चिन्तित हैं। चलो हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुँचा देते हैं।”
गौर सुन्दर (मन-ही-मन मुसकराते हुए )— “बहुत अच्छा! मैं रास्ता भूल गया, मुझे मेरे घर पहुँचा दो।”
ऐसा कहकर प्रभु उनके कन्धे पर बैठ गये। अब तो चोरों की प्रसन्नता की सीमा ही नहीं रही, क्योंकि उन्हें भय था कि यदि बच्चा रोया या चिल्लाया तो वे विपत्ति में फँस जायेंगे। परन्तु गौर सुन्दर तो हँसते-हँसते जाने के लिए तैयार हो गये, इसलिए वे जल्दी-जल्दी गौरसुन्दर को कन्धे पर बैठाकर चलने लगे। उस समय रास्तेमें बहुत से लोग आ-जा रहे थे, परन्तु किसीको भी उन चोरोंपर सन्देह नहीं हुआ। सभी लोग समझ रहे थे कि कोई अपने बच्चेको ले जा रहा है। बीच-बीच में वे प्रभु को सन्देश (मिठाई) भी देते जा रहे थे। वे दोनों चोर आपस में बातें करते हुए अपने स्थान को जा रहे थे। एक ने कहा मैं इसके हाथ का कङ्गन और बाला लूँगा, दूसरे ने कहा कि मैं गले का हार लूँगा । इस प्रकार मन-ही-मन प्रसन्न होकर चलते-चलते वे बहुत दूर आ गये।
उधर निमाइ को घर और आस-पड़ोस में न पाकर श्री जगन्नाथ मिश्र, श्री शची माता तथा अन्यान्य लोग बालक को चारों ओर खोजने लगे। उनकी ठीक वैसी ही अवस्था हो गयी जैसे जल के बिना मछली की होती है। रोते-बिलखते हुए सभी लोगों ने भगवान्‌ की शरण ली। उधर चोर तो आनन्द पूर्वक गौरसुन्दर को अपने घर की ओर ले जा रहे थे, परन्तु भगवान्‌ की मायासे मोहित होकर रास्ता भूल गये और प्रभु के घर की ओर ही चल पड़े।
प्रभु के घर को अपना घर जानकर उन्होंने सोचा कि हमारा घर आ गया है अतः वे बोले – “बेटा! नीचे उतरो, तुम्हारा घर आ गया है।”
गौर सुन्दर (हँसते हुए) – “हाँ-हाँ, मुझे नीचे उतारो। मेरा घर आ गया है।” ऐसा कहकर निमाइ नीचे उतरे तथा दौड़कर श्री जगन्नाथ मिश्र की गोदी में चढ़ गये। अचानक निमाइ को कुशलपूर्वक घर आया हुआ देखकर सभी के मुख पर प्रसन्नता उमड़ आयी तथा सबने बालक को घेर लिया। इधर दोनों चोर हक्के-बक्के रह गये। उन्हें कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि यह क्या हुआ? वे सोचने लगे कि हम अपने घरका रास्ता भूलकर यहाँ कैसे आ गये? अपने पकड़े जाने के भय से वे भागने का अवसर देखने लगे। उन्होंने देखा कि सभी लोग आनन्द में डूबकर बालक को घेरे हुए हैं, किसी का भी ध्यान उनकी ओर नहीं है। अतः उपयुक्त अवसर जानकर दोनों वहाँ से जान बचाकर भागे। भागते-भागते आपस में कहने लगे– “आज अवश्य ही हम पर किसी ने जादू कर दिया है। यह तो चण्डी देवी हैं, जिनकी कृपा से जान बच गयी। इस प्रकार वे महा-भाग्यवान चोर जिनके कन्धे पर स्वयं भगवान् ने आरोहण (सवारी) किया, अपने को सुरक्षित देखकर बहुत प्रसन्न हुए।
इधर कुछ देर बाद सभी ने विचार किया कि जो निमाइ को सुरक्षित लेकर आया है, उसे पुरस्कार देना चाहिये। अतः सभी लोग इस विषयमें इधर-उधर पूछने लगे, परन्तु कोई भी “हाँ, मैं लाया हूँ।” नहीं बोला। इतने में एक व्यक्ति ने कहा– “मैंने देखा कि दो लोग निमाइ को अपने कन्धेपर यहाँ तक छोड़कर चले गये।” तब सभी निमाइ से ही पूछने लगे—
श्रीजगन्नाथ मिश्र– “बेटा निमाइ! तू कहाँ चला गया था तथा तुझे यहाँ तक कौन छोड़ गया है ?”
निमाइ— “मैं गङ्गा स्नान करनेके लिए गया था, परन्तु लौटते समय रास्ता भटक गया और नगर में यहाँ-वहाँ घूमने लगा। उसी समय मेरे पास दो व्यक्ति आये। उन्होंने मुझसे बड़े प्यार से कहा कि हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुँचा देंगे, ऐसा कहकर वे मुझे अपने कन्धे पर बैठाकर घुमाते-फिराते हुए यहाँ तक छोड़ गये।”
यह सुनकर वहाँ पर उपस्थित सभी लोग कहने लगे कि शास्त्रों में सत्य ही कहा गया है कि शिशु, वृद्ध एवं अनाथ लोगों की भगवान् स्वयं रक्षा करते हैं। इस प्रकार भगवान्‌ की माया से मोहित होने के कारण कोई भी श्रीगौरसुन्दर को पहचान नहीं पा रहा था। सभी उन्हें एक साधारण बालक मान रहे थे। भगवान्‌ की इच्छा के बिना कोई भी उन्हें जान नहीं सकता। यही भगवान्की महिमा है।


हरे कृष्ण🙏🏻