afsar का abhinandan by Yashvant Kothari | Read Hindi Best Novels and Download PDF Home Novels Hindi Novels अफसर का अभिनन्दन - Novels Novels अफसर का अभिनन्दन - Novels by Yashvant Kothari in Hindi Humour stories (106) 3.2k 4.4k 9 कामदेव के वाण और प्रजातंत्र के खतरे यशवन्त कोठारी होली का प्राचीन संदर्भ ढूंढने निकला तो लगा कि बसंत के आगमन के साथ ही चारों तरफ कामदेव अपने वाण छोड़ने को आतुर हो जाते हैं मानो होली ...Read Moreपूर्व पीठिका तैयार की जा रही हो । संस्कृत साहित्य के नाटक चारूदत्त में कामदेवानुमान उत्सव का जिक्र है, जिसमंे कामदेव का जुलूस निकाला जाता था । इसी प्रकार ‘मृच्छकटिकम्’ नाटक में भी बसंतसेना इसी प्रकार के जुलूस में भाग लेती है । एक अन्य पुस्तक वर्ष-क्रिया कौमुदी के अनुसार इसी त्योहार में सुबह गाने-बजाने, कीचड़ फेंकने के Read Less Read Full Story Listen Download on Mobile अफसर का अभिनन्दन - holi pr vishesh (7) 493 234 कामदेव के वाण और प्रजातंत्र के खतरे यशवन्त कोठारी होली का प्राचीन संदर्भ ढूंढने निकला तो लगा कि बसंत के आगमन के साथ ही चारों तरफ कामदेव अपने वाण छोड़ने को आतुर हो जाते हैं मानो होली ...Read Moreपूर्व पीठिका तैयार की जा रही हो । संस्कृत साहित्य के नाटक चारूदत्त में कामदेवानुमान उत्सव का जिक्र है, जिसमंे कामदेव का जुलूस निकाला जाता था । इसी प्रकार ‘मृच्छकटिकम्’ नाटक में भी बसंतसेना इसी प्रकार के जुलूस में भाग लेती है । एक अन्य पुस्तक वर्ष-क्रिया कौमुदी के अनुसार इसी त्योहार में सुबह गाने-बजाने, कीचड़ फेंकने के Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन -2 (3) 240 178 आज़ादी की तलाश में ..... यशवंत कोठारी आज़ादी की साल गिरह पर आप सबको बधाई, शुभ कामनाएं .इन सालों में क्या खोया क्या पाया , इस का लेखा जोखा कोन करेगा.क्यों करेगा . हर अच्छा काम मैने किया ...Read Moreगलत काम विपक्षी करता है , ये लोग देश को आगे नहीं बढ़ने देते हैं , देश आजाद हो गया . हर आदमी को आज़ादी चाहिये. सरकार को अच्छे दिनों व् काले धन के जुमलों से आज़ादी चाहिए . अफसर को फ़ाइल् से आज़ादी चाहिए, बाबु को अफसर से आज़ादी चाहिए, मंत्री को चुनाव से आज़ादी चाहिए.जनता को महँगाई से Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 3 (8) 167 156 चुनाव में खड़ा स्मग्लर यश वन्त कोठारी वे एक बहुत बड़े स्मगलर थे। समय चलता रहा। वे भी चलते रहे। अब वे समाज सेवा करने लग गए। सुविधाएं बढ़ने लगीं। उनके पास सभी कुछ था। शा ...Read Moreकार, कोठी, और कामिनी। कोठी में सजा हुआ है डाइ्रग रुम और डाइंग रुम में आयातित राजनीति है। बड़े अजीब आदमी है। चूना भी फांक लेते है। क्यों कि पुरानी आदत है, छूटती नहीं। पाइप भी पीते है, नई-नई आदत है, होंठ तक जल जाते हैं। सूट भी पहन लेते हैं। इधर खादी भण्डार से भी कपड़े Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 4 (5) 150 157 चुनावी - अर्थशास्त्र यशवंत कोठारी विश्व के सबसे महंगे चुनाव भारत में होने जा रहे हैं .सत्रहवीं लोक सभा के लिए ये चुनाव पैसों की बरसात के सहारे सहारे चलेंगे. इस बार पैसा बरसेगा सत्तर लाख की ...Read Moreबहुत पीछे रह जायगी. पिछले चुनाव में लगभग ४० हज़ार करोड़ लगा था ,बढ़ी महंगाई के अनुसार यह आंकड़ा एक लाख करोड़ तक जा पहुचे तो कोई आश्चर्य नहीं. अमेरिका के विशेषज्ञ इसे ७१००० हज़ा र करोड़ का मान कर चल रहे हैं,चंदा कहाँ से कितना आया इसपर चर्चा करना बेकार है.सब प्रत्याशी चुनाव जीतना चाहते है,कुछ भी खर्च Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 5 (6) 157 171 व्यंग्य-- चुनाव ऋतु –संहार यशवंत कोठारी हे!प्राण प्यारी .सुनयने ,मोर पंखिनी ,कमल लोचनी,सुमध्यमे , सुमुखी कान धर कर सुन और गुन ऐसा मौका बार बार नहीं आता ,इस कुसमय को सुसमय समझ और रूठना बंद कर ,चल आ ...Read More,मइके से लौट आ वहां रहने की ऋतुएं तो और भी आ जायगी .लेकिन हे मृग नयनी यह जो चुनाव रुपी बसंत आपने बाणों के साथ हिमालय से उतर कर पूरे आर्याव्रत में महंगाई की तरह बढ़ रहा है ,ऐसा सुअवसर बार बार नहीं आता है.इसका स्वागत करने के लिए तू मेके से लौट आ. देख! बाहर खिड़की से बाहर Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 6 (5) 173 147 दुनिया के मूर्खों एक हो जाओ यशवन्त कोठारी बासंती बयार बह रही है। दक्षिण से आने वाली हवा में एक मस्ती का आलम है। फाल्गुन की इस बहार के साथ-साथ मुझे लगता है मूर्खों, मूर्खता और तत्सम्बन्धी ...Read Moreका अर्जन करने का यह सर्वश्रेष्ठ मौसम है। कालीदास हो या पद्माकर या जयदेव या निराला सभी ने बासंती ऋतु पर जी भर क प्रियों का याद किया है। मधुमास बिताया है । व्यंग्यकार का प्रिय विषय तो मूर्ख और मूर्खता है, अतः आज मैं मूढ़ जिज्ञासा करूंगा। पाठक कृपया क्षमा करें । सर्वप्रथम मूर्ख या मूढ़ शब्द को Read Less Listen Read अफसर का अभिनंदन - ७ (5) 196 163 रचनाकारों के छाया –चित्र यशवंत कोठारी इधर मैं रचनाकारों के छाया चित्रों का अध्ययन कर रहा हूँ .वर्षों पहले धर्मयुग में किसी लेखक का फोटो छप जाता तो उसे बड़ा लेखक मान लिया जाता था, मेरे साथ यह ...Read Moreदो तीन बार हो चुकी थी. बहुत से रचनाकारों के चित्र बड़े विचित्र होते हैं ,कभी काका हाथरसी का स्टूल पर खड़े हो कर क्रिकेट की गेंद फेकने का फोटो बड़ा चर्चित हुआ था. धरम वीर भारती का सिगार पीते हुए फोटो भी यादगार था. एक बार होली अंक में रिक्शे पर बेठे लेखकों के फोटो छ्पे थे .बड़ा Read Less Listen Read अफसर का अभिनंदन - 8 (4) 104 153 साहित्य में वर्कशॉप –वाद यशवन्त कोठारी इन दिनों सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वर्कशाप वाद चल रहा है। भक्तिकाल का भक्तिवाद रीतिकाल का शृंगारवाद, आधुनिककाल के प्रगतिवाद, जनवाद, प्रतिक्रियावाद, भारतीयता वाद- सब इस वर्कशाप वाद यानि कार्यशाला काल ...Read Moreसमा गये हैं। हर तरफ कार्यशालाओं, सेमिनारों, गोष्ठियों का बोलबाला है और लेखक, साहित्यकार इन वर्कशापों में व्यस्त हैं। कल तक जो लेखक साहित्यकार कहीं आना जाना पसंद नही करते थे वे आज हवाई जहाज के टिकट पर तृतीय श्रेणी में यात्रा कर वर्कशापों की शोभा बढ़ा रहे हैं। वैसे भी बुद्धिजीवियों की हालत यह है कि हवाई जहाज Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 9 (3) 86 103 सम्माननीय सभापतिजी यश वन्त कोठारी इधर श हर में साहित्य, संस्कृति-कला का तो अकाल है, मगर सभापतियो अध्यक्षों और संचालको की बाढ़ आई हुई है। जहां जहां भी सभा होगी वहां वहां पर सभापति या सभा पिता या ...Read Moreपत्नी अवष्य होगी। हर भूतपूर्व कवि कलाकार, राजनेता, सेवानिवृत्त अफसर, दूरदर्षन, आकाषवाणी, विष्वविधालयों के चाकर सब अध्यक्ष बन रहे है। जो अध्यक्ष नहीं बन पा रहे है वे संचालक बन रहे है। कुछ तो बेचारे कुछ भी बनने को तैयार है। अध्यक्ष बना दो तो ठीक नही तो संचालक, मुख्य अतिथि, विषिप्ट अतिथि बनने से भी गुरेज नहीं करते। Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 10 (3) 101 123 लू में कवि यशवन्त कोठारी तेज गरमी है। लू चल रही है। धूप की तरफ देखने मात्र से बुखार जैसा लगता है। बारिश दूर दूर तक नहीं है। बिजली बन्द है। पानी आया नहीं है, ऐसे ...Read Moreकवि स्नान-ध्यान भी नहीं कर पाया है। लू में कविता भी नहीं हो सकती, ऐसे में कवि क्या कर सकता है? कवि कविता में असफल हो कर प्रेम कर सकता है, मगर खाप पंचायतों के डर से कवि प्रेम भी नहीं कर पाता। कवि डरपोक है मगर कवि प्रिया डरपोक नहीं है, वह गरमी की दोपहर में पंखा लेकर अवतरित Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 11 (4) 113 96 व्यंग्य सफल और स्वादिष्ट श्रद्धांजली यशवंत कोठारी साहित्य के भंडारे चालू आहे.कविता वाले कविता का भंडारा कर रहे हैं,कहानी वाले कहानी के भंडारे में व्यस्त है. नाटक वाले नाटकों के भंडारे कर रहें हैं.सर्वत्र भंडारे है,आपका मन करे ...Read Moreजीमे. इस महीने सरकारों ने अपनी थैली के मुहं खोल दिए हैं,माता के दरबार में हाजरी दे या भोले बाबा के राज में भंडारे में आपका स्वागत है.सरकार से नहीं बनती है तो ट्रस्ट ,फाउंडेशन ,समिति,विदेशी संस्थाओं से माल खीचों और भंडारे लगा दो.आप भी खाओ और दूसरों को भी खिलाओ. लेकिन पिछले दिनों एक अलग किस्म के भंडारे से Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 12 (1) 93 132 आओ अफवाह उड़ायें भारत अफवाह प्रधान देश है। अतः आज मैं अफवाहों पर चिन्तन करूंगा। सच पूछा जाए तो अफवाहें उडा़ना राष्ट्रीय कार्य है और अफवाहें हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। अफवाहों की राष्ट्रीय गंगोत्री दिल्ली के शीर्ष से ...Read Moreदेश के गांवों, कस्बों, शहरों नदी नालों मेूं तैरती रहती है। किसी भी ताजा अफवाह के हवा में तैरते ही एक नया माहौल जनता और आम आदमी में दिखायी देने लग जाता है। वास्तव में पूछा पाए तेा बिन अफवाह सब सून। जयपुर में त्रिपोलिया गजट शुरू से ही प्रसिद्ध रहा हैं। हर शहर के चौराहे पर पान की Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 13 (2) 97 89 होना फ्रेक्चर हाथ में ... यशवंत कोठारी आखिर मेरे को भी फ्रेक्चर का लाभ मिल गया.जिस उम्र में लेखकों को मधुमेह ,उच्च रक्त चाप ,किडनी फेलियर ,या स्ट्रोक या ह्रदय की बीमारी मिलती है मुझे फ्रेक्चर मिला.मैंने सोचा अब ...Read Moreसे काम चलाना होगा.मैंने प्रभु का धन्यवाद किया,और इस दर्दनाक हादसे पर यह स्वभोगी-स्ववित्तपोषित आलेख पेश-ए-खिदमत है.हुआ यों कि मैं सायंकालीन आवारा गर्दी के लिए निकला.गली पर ही एक एक्टिवा पर तीन बच्चियां तेज़ी से निकली ,मैं साइड में था ,मगर शायद दिन ख़राब था ,एक कुत्ते को बचाने के चक्कर में मेरी पीठ पर दुपहिया वाहन ने तीनों लल्लियों Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 14 (4) 67 131 धंधा चिकित्सा शिविरों का ... यशवंत कोठारी हर तरफ चिकित्सा शिविरों की बहार हैं. जिसे देखो वो ही शिविर लगा रहा है. कहीं भी जगह दिखी नहीं की कोई न कोई शिविर लगाने वाला आ जाता है, मंदिर ...Read More,गुरु द्वारा , गिरजा घर , मैदान ,स्कूल, कालेज , हर जगह चिकित्सा शिविर के लिए मोजूं हैं.मैं इन शीविरों में गया. ज्यादातर शिविर किसी न किसी चेरिटी ट्रस्ट के नाम पर चलाये जाते हैं, ट्रस्ट, समिति , फाउन्डेशन आदि बनाकर आय कर बचाया जाता है, इन शी विरों का प्रचार प्रसार बड़े जोर शोर से किया जाता है, बड़े Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 15 (3) 75 163 बनते –बिगड़ते फ्लाई ओवर यशवंत कोठारी जब भी सड़क मार्ग से गुजरता हूँ किसी न किसी बनते बिगड़ते फ्लाई ओवर पर नज़र पड़ जाती है.मैं समझ जाता हूँ सरकार विकास की तय्यारी कर रही है,ठेकेदार इंजिनियर कमिशन का ...Read Moreलगा रहे हैं और आस पास की जनता परेशान हो रही हैं टोल नाके वाले आम वाहन वाले को पीटने की कोशिश में लग जाते हैं.फ्लाई ओवर का आकार -प्रकार ही ऐसा होता हैं की बजट लम्बा चो डा हो जाता है.अफसरों की बांछे खिल जाती हैं .सड़क मंत्री संसद में घोषणा करते हैं और लगभग उसी समय सड़क पर Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 16 (2) 83 146 व्यंग्य हम सब बिकाऊ हैं . यशवंत कोठारी इधर समाज में तेजी से ऐसे लोग बढ़ रहे हैं जो बिकने को तैयार खड़े हैं बाज़ार ऐसे लोगों से भरा पड़ा हैं,बाबूजी आओ हमें खरीदों.कोई फुट पाथ पर बिकने ...Read Moreखड़ा है,कोई थडी पर ,कोई दुकान पर कोई ,कोई शोरूम पर,तो कोई मल्टीप्लेक्स पर सज -धज कर खड़ा है.आओ सर हर किस्म का मॉल है.सरकार, व्यवस्था के खरीदारों का स्वागत है.बुद्धिजीवी शुरू में अपनी रेट ऊँची रखता है ,मगर मोल भाव में सस्ते में बिक जाता है.आम आदमी ,गरीब मामूली कीमत पर मिल जाते है.वैसे भी कहा है गरीब की Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 17 (4) 85 94 मारीशस में कवि यशवंत कोठारी जुगाडू कवि मारीशस पहुँच गए.हर सरकार में हलवा पूरी जीमने का उनका अधिकार है,वे हर सरकार में सत्ता के गलियारे में कूदते फांदते रहते हैं और कोई न कोई जुगाड़ बिठा लेते हैं.जरूरत ...Read Moreपर विरोधियों का भी विरोध कर लेते हैं.एक ने पूछा –आप हर सरकार में कैसे घुस जाते हैं ?जवाब मिला-विद्वान सर्वत्र पूज्यते ,वापस उत्तर मिला-चमचा सर्वत्र विजयते .सम्मलेन दसियों हो गए हिंदी का क्या हुआ.यह यक्ष प्रश्न बना ही रहा.बहती गंगा में सब ने हाथ धो लिए.हर सरकार में एसा ही होता आया हैं.आगे भी होता रहेगा.सरकार केवल चुनाव जितना Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 18 (2) 65 97 युवा ,रोज़गार और सरकार यशवंत कोठारी देश भर में बेरोजगारी पर बहस हो रही है.संसद से लेकर सड़क तक हंगामा बरपा है.बेरोजगार युवाओं की लम्बी लम्बी कतारें कहीं भी देखि जा सकती है.सरकार एक पद का विज्ञापन करती ...Read Moreतो हजारों आवेदन आते है.लोग बेरोजगारों को पकोड़े बेचने तक की सलाह दे रहे हैं.कुछ लोग कह रहे है की रोजगार मांगने वाले नहिं रोजगार देने वाले बनो.लेकिन क्या यह सब इतना आसान है ? भारत एक युवा देश है चालीस प्रतिशत आबादी के युवा है जिन्हें रोज़गार चाहिए.स्टेट को आइडियल रोज़गार प्रदाता माना गया है लेकिन कोई भी राज्य Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 19 (3) 67 107 हिंदी -व्यंग्य में पीढ़ियों का अन्तराल यशवंत कोठारी काफी समय से हिंदी व्यंग्य का पाठक हूँ .अन्य भाषाओँ की रचनाएँ भी पढता रहता हूँ .उर्दू,गुजराती , मराठी ,अंग्रेजी व राजस्थानी में भी पढने के प्रयास किया है.पिछले कुछ ...Read Moreमें हिंदी में नई पीढ़ी कमाल का लिख रहीं है.यहीं हाल अन्य भाषाओँ में भी है.टेक्नोलॉजी भी अपना कमाल दिखा रही है.तकनीक के हथियार के साथ लोग हुंकार भर रहे हैं ,पुरानों को कोई पढने की आवश्यकता नहीं समझता .पुराने लोगों ने बहुत मेहनत की,आजकल फटाफट का ज़माना है.शरद जोशी ने कुछ समय ही नौकरी की फिर फ्री लान्सिंग,परसाई जी Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 20 (4) 71 145 सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा यशवन्त कोठारी हमारे देश का नाम भारत है । भारत नाम इसलिए है कि हम भारतीय हैं । कुछ सिर फिरे लोग इसे इण्डिया और हिन्दुस्तान भी पुकारते हैं, जो उनको ...Read Moreके दिनों की याद दिलाते हैं । वैसे इस देश का नाम भारत के बजाय कुछ और होता तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता । हम-आप इसी तरह इस मुल्क के एक कोने में पड़े सड़ते रहते और कुछ कद्रदान लोग इस देश को अपनी सम्पत्ति समझते रहते । वैसे भारत पहले कृषि-प्रधान था, अब कुर्सी प्रधान है; पहले सोने Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 21 (2) 84 164 कहाँ गए जलाशय ? यशवंत कोठारी भयंकर गर्मी है देश –परदेश में पानी के लिए त्राहि त्राहि हो रही है.बूंद बूंद के लिए सर फूट रहे हैं .अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जायगा.देखते देखे हजारों ...Read Moreस्रोत मर गए.उनका कोई अत –पता नहीं है.नदियाँ नाले बन गई.नाले लुप्त हो गए.झीले ,तालाब,पोखर ,कुएं बावड़िया सब धीरे धीरे नष्ट हो रहे हैं,जो लोग पचास साठ साल के हैं वे जानते हैं उनके आस पास के जल श्रोत याने वाटर बॉडीज समाप्त हो गए.जयपुर का राम गढ़ बांध मर गया ,कानोता बांध आखरी सांसे गिन रहा है अनुपम मिश्र Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 22 (4) 65 185 हेलमेट की परेशानी यशवन्त कोठारी वरमाजी राष्ट्रीय पौशाक अर्थात लुगी और फटी बनियांन में सुबह सुबह आ धमके। गुस्से में चैतन्य चूर्ण की पींक मेरे गमले में थूक कर बोले यार ये पीछे वाले हेलमेट की ...Read Moreपरेशानी है। पहनो तो दोनो हेलमेट टकराते है, नहीं पहनो तो पुलिस वाले टकराते है। अब आप ही बताओं भाई साहब नब्बे बरस की बूढ़ी दादी या नानी को मंदिर दर्शन ले जाने वाला पोता या नाती इस दूसरे हेलमेट से कैसे जीते। दादी-नानी जिसकी गर्दन हिल रही है, कपडे नहीं संभाले जा रहे है वो बेचारी सर पर टोपलेनुमा Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 23 (4) 98 157 मेरे संपादक ! मेरे प्रकाशक!! यशवंत कोठारी (१) लेखक के जीवन में प्रकाशक व् सम्पादक का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है .एक अच्छा संपादक व् एक अच्छा प्रकाशक लेखक को बना या बिगाड़ सकता है. मुझे अच्छे प्रकाशक ...Read Moreमिले,बुरे भी मिले.किसी ने उठाया किसी ने गिराया, किसी ने धमकाया , किसी ने लटकाया , किसी ने अटकाया किसी ने छापा किसी ने अस्वीकृत किया ,किसी ने खेद के साथ अन्यत्र जाने के लिए कहा , किसी किसी ने स्वीकृत रचना वापस कर दी, कुछ ने स्वीकृत पांडुलिपियाँ ही वापस कर दी किसी ने विनम्रता से हाथ जोड़ लिए. Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 24 (3) 69 235 व्यंग्य धंधा धरम का यशवंत कोठारी आजकल मैं धरम-करम के धंधे में व्यस्त हूँ.इस धंधे में बड़ी बरकत है,बाकी के सब धंधे इस धंधे के सामने फेल हैं.लागत भी ज्यादा नहीं,बस एक लंगोटी,एक कमंडल,कुछ रटे रटाये श्लोक ,कबीर ...Read Moreके कुछ दोहे.बस काम शुरू.हो सके तो एक चेली पाल लो बाद में तो सब दोडी चली आएगी.जिस गाँव में असफल रहे हैं वहीं उसी गाँव के बाहर जंगल में धुनी ,अखाडा,आश्रम.डेरा खोल्दो.काम शुरू.लेकिन डर भी लग रहा है.इन दिनों बाबाओं की जो हालत हो रही है वो किसी से छिपी हुई नहीं हैं.कई बाबा जेल में है कई जेल Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 25 (3) 63 175 कला- हीन कला केंद्र यशवंत कोठारी हर शहर में कला केन्द्र होते हैं ,कलाकार होते हैं और कहीं कहीं कला भी होती है.रविन्द्र मंच,जवाहर कला केंद्र ,भारत भवन,मंडी हाउस ,आर्ट गेलेरियां आदि ऐसे ही स्थान है जहाँ पर कला ...Read Moreकद्रदान विचरते रहते हैं.सरकार ने संस्कृति की रक्षा के लिए एक पूरा महकमा बना दिया है जो कला संकृति की रक्षा के लिए कला कारों को हड़काता रहता है .चलो जल्दी करो मंत्रीजी के आने का समय हो गया है और तुम यहाँ क्या कर रहे हो जाओ कोस्टुम पहनो. सीधे खड़े रहो, सी एम् सर को प्रणाम करो, सचिव Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 26 (2) 57 177 प्रभु !हमें कॉमेडी से बचाओं यशवंत कोठारी इस कलि का ल में वर्षा का तो अकाल है मगर कॉमेडी की बारिश हर जगह हो रही हैं ,क्या अख़बार क्या टी वि चेनल क्या समाचार चेनल सर्वत्र कॉमेडी की ...Read Moreबहार है.दर्शक श्रोता कॉमेडी की बाढ़ में बह रहा है, चिल्ला रहा है,मगर उसे बचा ने वाला कोई नहीं है.उसे इस तथाकथित कॉमेडी मे से ही जीवन तत्व की ऑक्सीजन ढूंढनी है.शायद ही एसा कोई चेनल हो जो कॉमेडी नहीं परोस रहा है.कार्यक्रमों की स्थिति ये की इन प्रोग्रम्मों से अच्छी कामेडी तो घरों में बच्चे कर लेते हैं, स्कूल Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 27 (2) 49 171 प्रेस नोट की राम कहानी यशवन्त कोठारी इस क्षण भंगुर जीवन में सैकड़ो प्रेसनोट पढ़े। कई लिखे।छपवाये, मगर पिछले दिनो एक ऐसे प्रेस नोट से पाला पड़ा कि समस्त प्रकार के विचार मन में आ गये। ...Read Moreअखबारों की नौकरी तो नहीं की मगर प्रेस नोट वाले नेताओं, अफसरो, उ़द्योगपतियों के बारे में जानकारी खूब हो गई। अक्सर प्रेस नोट लेकर अखबारों के दफतरो में दौड़ पड़ने वालो से भी मुलाकाते हो ही जाती है। सच पूछो तो बहुत से नेता तो केवल प्रेस नोट केबल पर ही बड़े नेता बन गये। उन्हे जनता से कोई लेना Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 28 (1) 23 136 सुब्रहमण्य भारती और भारतीय चेतना यशवंत कोठारी भारतीयता का सुब्रहमण्य भारती की कविताओं से बड़ा निकट का संबंध रहा है। वास्तव में जब सुब्रहमण्य भारती लिख रहे थे, तब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ जन-आन्देालन की शुरूआत ...Read Moreरही थी और भारती ने अपनी पैनी लेखनी के द्वारा राष्ट्री यता और राष्ट्र वाद की अलख जगाई थी। यही कारण था कि सुब्रहमण्य भारती के बारे में महात्मा गांधी ने लिखा- ‘मुझे सुब्रहमण्य भारती की रचनाओं जैसी कृतियां ही वास्तविक काव्य प्रतीत होती है, क्योंकि उनमें जन जन को अग्रसर करने की प्रेरणा है, जीवन की ज्योति जगाने Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 29 (3) 22 149 वन लाइनर ,फन लाइनर ,गन लाइनर :फेस बुकी टुकड़े यशवंत कोठारी 1-इधर मैने किताब बेचने के बारे में नया सोचा -किसी संपादक को किताब दो,फिर धीरे से एक रचना खिसका दो ,रचना छपेगी, उसके पारिश्रमिक को किताब ...Read Moreकह सकते है,-मैं ऐसा सा कर चुका हूँ. २-मठाधिशों को मठ्ठाधिशों से बचाओ. ३-हिंदी व् मैथिली भाषा के बीच बहस जारी है,राजस्थानी भाषा वाले...- ४-एक बड़े मठाधीश हर साल एक ही नए प्रकाशक की पुस्तके अपने विभाग में खरीदते है,कुछ दिनों बाद उस संसथान से उनकी पुस्तक आती है ,यही बाजारवाद है . ५-वंश वाद संस्थाओं को नष्ट Read Less Listen Read अफसर का अभिनन्दन - 30 (4) 15 66 बधाई से आर आई पी तक यशवंत कोठारी इन दिनों सोशल मीडिया पर जिन शब्दों का सब से ज्यादा मिस यूज हो रहा है उन में इन शब्दों का रोल सबसे ज्यादा है.सुबह उठते ही फेस बुक ...Read Moreवाट्स एप या कोई अन्य साईट खोलो इन शब्दों की झंकार कानों में बिना पड़े नहीं रहती .हालात ऐसे हैं पाठकों कि कहीं भी किसी का भी निधन हो जाये बस आर आई पि को चिपकाइए और आगे चल दीजिये. इस बात का कोई मतलब नहीं की मरने वाला कोन था, दाग कब है,उसकी मौत केसे व् कब हुई , Read Less Read More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Yashvant Kothari Follow