Afsar ka abhinandan - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

अफसर का अभिनंदन - 8

साहित्य में वर्कशॉप –वाद

यशवन्त कोठारी

इन दिनों सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वर्कशाप वाद चल रहा है। भक्तिकाल का भक्तिवाद रीतिकाल का शृंगारवाद, आधुनिककाल के प्रगतिवाद, जनवाद, प्रतिक्रियावाद, भारतीयता वाद- सब इस वर्कशाप वाद यानि कार्यशाला काल में समा गये हैं। हर तरफ कार्यशालाओं, सेमिनारों, गोष्ठियों का बोलबाला है और लेखक, साहित्यकार इन वर्कशापों में व्यस्त हैं। कल तक जो लेखक साहित्यकार कहीं आना जाना पसंद नही करते थे वे आज हवाई जहाज के टिकट पर तृतीय श्रेणी में यात्रा कर वर्कशापों की शोभा बढ़ा रहे हैं। वैसे भी बुद्धिजीवियों की हालत यह है कि हवाई जहाज का किराया देकर, पंच सितारी सुविधाएं परोस कर कुछ भी बुलवा लो, कुछ भी लिखवा लो। मैं बात साहित्य की वर्कशाप की कर रहा था। हर अकादमी, परिषद, संस्था साहित्य के वर्कशाप लगाने में व्यस्त हैं। कई बार हालत यह होती है कि वर्कशापों के लिए मिस्त्री ओर तकनीकी अधिकारी कम पड़ जाते हैं। साहित्य के इन वर्कशापों में हेड मिस्त्री होते हैं, छोटे मिस्त्री होते हैं। कविता, कहानी, उपन्यास की रचना समझने जानने वाले इंजीनियर होते हैं। वर्कशापों में हेड मिस्त्री अपने हाथ में हथौड़ा, पिलास, पेचकस, संडासी, छीणी, आदि ले लेता है और प्रशिक्षणार्थी साहित्यकारों को कविता, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, आलोचना की मरम्मत का काम सिखाता है। वह कविता को ठोकता है, बजाता है, उसकी डेंटिंग निकालता है और अन्त में पेंटिग करके कविता को चमका देता है। हेड मिस्त्री का हाथ लगते ही कहानी साहित्य की सड़क पर सरपट दौड़ने लग जाती है।

हेड मिस्त्री थक जाता है तो प्रशिक्षणार्थी साहित्यकारों तथा अन्य मिस्त्रियों के साथ काफी बिस्कुट में व्यस्त हो जाता है। सब सामूहिक लंच लेते हैं, हा हा हू हूं करते हैं और वर्कशाप की दूसरी पारी का इंतजार करते हैं। सायंकाल वर्कशाप की दूसरी पारी शूरू होती है। हेड मिस्त्री एक व्यंग्य रचना के पेच खोल कर नवांकुरों को व्यंग्य के अस्थिपंजर दिखाता है। वे व्यंग्य के शरीर को पुनः बंद कर देते हैं। नव साहित्यकार यह सब देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। ऐसा चमत्कार ! भाई वाह ! मिस्त्री हो तो ऐसा। एक नवांकुर उत्साह के अतिरेक में मिस्त्री के चरण स्पर्श कर लेता है। हेड मिस्त्री चारों तरफ अकड़ी हुई गर्दन से देखता है। नव साहित्यकार की रचना प्रतिष्ठित पत्र में छपवाने का आश्वासन भी देता है।

सांयकालीन सत्र के बाद रात्रिचर्या होती है। दिन भर की थकान दूर करने के लिए सभी मिस्त्री हेड मिस्त्री के कमरे में एकत्रित होकर सोमरस का पान अश्लील वार्ता के अनुपान के साथ करते हैं।

साहित्य का यह वर्कशाप वाद सर्वत्र जारी है। गली-मोहल्लों और संस्थाओं के कार्यालयों में साहित्य की मरम्मत, डेंटिंग, पेंटिंग, स्क्रू, कसाई की दुकानें खुल गयी हैं और हर दिशा के बेकार, बूढ़े, नकारा हो चुके लेखक, पत्रकार, अध्यापक, साहित्यकार इन वर्कशापों में मिस्त्री, हेड मिस्त्री, इंजीनियरों के रूप में भर्ती हो गये हैं। ये मिस्त्री अपने-अपने चेले, शिष्यों, नौसिखियों और नवांकुरों को अपने-अपने वर्कशापों में भर्ती कर रहे हैं। मुफ्त का खान-पान, प्रमाण-पत्र और सम्परक की सुविधा।

उद्घाटन और समापन समारोह हेतु राष्ट्रीय राजधानी या प्रांतीय राजधानी से एक बड़े सम्पादक, राजनेता, अधिकारी साहित्यकार को बुला कर ये वर्कशाप अपना काम जमा लेते हैं। वर्कशापों का कवरेज अच्छा आये, इसकी पूरी व्यवस्था की जाती है। सरकारी अनुदान, अकादमी की सहायता और बड़े उद्योगपतियों से स्पान्सरशिप, वर्कशाप की सफलता में फिर क्या शक रह जाता है। साहित्य में वर्कशाप शायद वाहनों की वर्कशाप की तर्ज पर चले हैं। जो वाहन बंद हो जाते हैं, उन्हें वर्कशाप में लाया जाता है। उसी प्रकार जो साहित्य बाजार में नहीं चलता है उसे वर्कशापों में लाया जाता है। कार्यशालाओं में इनकी पूरी जांच की जाती है, नया रंग-रोगन करके तेल पानी हवा देकर वापस बाजार में भेजे जाते हैं ताकि पुनः चल सके। वर्कशापों से आये ऐसे लोग कु छ समय तक चलते हैं और फिर साहित्य की सड़क पर खड़े होकर धुआं देने लग जाते हैं।

अच्छी रचना को किसी वर्कशाप या किसी मिस्त्री की दरकार नहीं होती, मगर सरकारी अनुदान बटोरने के इस नायाब नुस्खे को कोई छोड़ना नहीं चाहता। अंधा बांटे रेवड़ी और फिर-फिर अपने को देय। अकादमियां, सरकार वर्कशापों को भी रेवड़ी की तरह ही बांट रही है। कुल मिलाकर ये कि उत्तर आधुनिक काल में साहित्य में वर्कशापों के योगदान पर चर्चा होनी चाहिए। यदि संभव हो तो एक दो पीएच.डी. इसी विषय पर करवा दिये जाने चाहिए।

इन वर्कशापों में बर्फी होती है, समोसा होता है, तड़क-भड़क होती है। इत्र सेंट की ‘खुशबू’ और कीमती वस्त्र होते हैं। साहित्य में समोसे के योगदान पर, साहित्य में बर्फी और रसगुल्लों के येागदान पर विचार-विमर्श जारी है। ये वर्कशाप सफल ही नहीं स्वादिषट और जायकेदार भी होते हैं। साहित्य में वर्कशाप वाद इस समय चरम सीमा पर है। आप भी इस बहती गंगा में हाथ् धो लीजिये, अपनी रचनाओं की डेंटिंग पेंडिंग करा लें, फिर ना कहना कि हमें खबर ना हुई।

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यशवन्त कोठारी

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