Satya book and story is written by KAMAL KANT LAL in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Satya is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
सत्या - Novels
by KAMAL KANT LAL
in
Hindi Fiction Stories
सत्या पहला पन्ना 1970 के दशक के प्रारंभ की बात है. तब मैं काफी छोटा था. एक दिन सुबह सवेरे मेरे पिता के एक जूनियर कुलीग हमारे घर पर आए और उन्होंने पूरे उत्साह के साथ बीती रात उनके साथ घटी एक धटना का ज़िक्र किया. उस दिन सुनी हुई उस घटना के इर्द-गिर्द ही इस कहानी का ताना-बाना बुना गया है. आरंभ 1 जमशेदपुर शहर नवंबर का महीना. अच्छी ख़ासी ठंढ पड़ने लगी थी. रात काफी हो चुकी थी. सुनसान सड़क पर बिजली के खंभों के नीचे बल्ब की रौशनी के ख़ामोश दायरे पड़े थे. सड़क के दोनों तरफ
सत्या पहला पन्ना 1970 के दशक के प्रारंभ की बात है. तब मैं काफी छोटा था. एक दिन सुबह सवेरे मेरे पिता के एक जूनियर कुलीग हमारे घर पर आए और उन्होंने पूरे उत्साह के साथ बीती रात उनके ...Read Moreघटी एक धटना का ज़िक्र किया. उस दिन सुनी हुई उस घटना के इर्द-गिर्द ही इस कहानी का ताना-बाना बुना गया है. आरंभ 1 जमशेदपुर शहर नवंबर का महीना. अच्छी ख़ासी ठंढ पड़ने लगी थी. रात काफी हो चुकी थी. सुनसान सड़क पर बिजली के खंभों के नीचे बल्ब की रौशनी के ख़ामोश दायरे पड़े थे. सड़क के दोनों तरफ
सत्या 2 सुबह काफी तड़के सत्या उठ गया. उसने साईकिल निकाली और धीरे-धीरे साईकिल चलाता हुआ सड़क के दोनों तरफ नज़र दौड़ाने लगा, इस उम्मीद में कि शायद उसका चेन और ताला कहीं पड़ा मिल जाए. सामने भीड़ देखकर ...Read Moreरुका. फिर जिज्ञासावश पास जाकर देखा तो सन्न रह गया. सड़क के किनारे बोल्डर्स पर गोपी की लाश पड़ी थी. चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं. सर के पास खून बिखर कर सूख गया था. एक पच्चीस-छब्बीस बरस की स्त्री पास बैठी ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी. कुछ औरतें उसको संभाल रही थीं. कई लोग पास खड़े अफ़सोस ज़ाहिर कर
सत्या 3 कंधे पर एक छोटा सा बैग लटकाए सत्या मानगो पुल के पास ऑटोरिक्शा से उतरा. सड़क पार करते समय बेख़्याली में वह एक तेज रफ्तार ट्रक के नीचे आते-आते बचा. ट्रक के ड्राईवर ने ज़ोर से ब्रेक ...Read Moreट्रक के टायर चीखे. सत्या सदमे में अपनी जगह पर जैसे जम गया. खलासी ने खिड़की से बाहर सर निकालकर एक भद्दी सी गाली दी. आस-पास गुज़रते लोग भी रुककर गालियाँ देने लगे, “अबे मरने का इरादा है क्या?” एक भला मानस सत्या का हाथ पकड़कर उसे सड़क के पार ले गया. ट्राफिक फिर सामान्य ढंग से चलने लगी. किंतु
सत्या 4 रतन सेठ की दुकान से संजय ने चिप्स की एक पैकेट ख़रीदी और खाने लगा. बगल की गली से गोपी का शव कंधे पर लेकर लोग निकले. आगे चल रहे व्यक्ति के “हरी बोल हरी” के जवाब ...Read Moreपीछे चल रहे सारे लोग “बोल हरी” कहते हुए सामने से तेजी से निकल गए. संजय ने अनजान बनकर रतन सेठ से पूछा, “कौन मर गया?” रतन सेठ ने अफ़सोस ज़ाहिर किया, “था एक लड़का गोपी....बेचारा...भगवान इसकी आत्मा को शांति दे.” संजय, “कैसे मर गया?” रतन सेठ ने जवाब दिया, “कल रात अंधेरे में गिरा. पत्थर पर सिर टकराया. माथा
सत्या 5 सत्या बस्ती की गलियों में चला जा रहा था. मीरा के घर के आगे भीड़ लगी देखकर उसके कदम तेज़ हो गए. पास जाकर उसने भीड़ के पीछे से उचक कर देखने की कोशिश की. एक काला-कलूटा ...Read Moreऊँची आवाज़ में हाथ लहरा-लहरा कर कह रहा था, “क्या मजाक है, छे महीना का किराया नहीं दिया. घर भी खाली नहीं कर रही है. मेरा तो नुस्कान हो रहा है ना? तुमलोग मेरे बारे में भी तो सोचो. मेरा भी बाल-बच्चा है.” औरतों के बीच खड़ी गोमती ने समझाने वाले अंदाज में कहा, “अरे तभी तो बोल रहे हैं,