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सत्या - 13

सत्या 13

सत्या की ज़िंदगी फिर से पटरी पर आ गई लगती थी. मीरा घर लौट आई थी. उस दिन सविता गुस्से में जितना खूँखार लग रही थी, अब उतनी ही बड़ी हमदर्द बनी हुई थी. उसी की सेवा और हिम्मत आफज़ाई का नतीज़ा था कि मीरा बिस्तर से उठकर अब घर का काम करने लगी थी.

सत्या के मन में अब एक नया ज़ुनून सवार था. बच्चों को शहर के सबसे अच्छे स्कूल में दाख़िला दिलाने का, ताकि अच्छी शिक्षा प्राप्त कर दोनों बच्चे बड़ा अफसर बन सकें और गोपी का सपना पूरा हो सके. अपने साहब से सिफारिश करवाकर उसने दोनों का दाख़िला मिशनरी स्कूल में करने की व्यवस्था कर ली थी. लेकिन मीरा इसके लिए राज़ी नहीं हो रही थी.

बरामदे में खड़ा सत्या मीरा को समझाने की कोशिश कर रहा था. सविता भी पास खड़ी थी. मीरा ने रोहन के बाल संवारते हुए फिर एक बार ज़िरह की, “हम तो कहते हैं इनको इसी स्कूल में पढ़ने दीजिए. अगर मन लगाकर पढ़ेंगे तो यहाँ भी अच्छा करेंगे. सारे बच्चे लॉयला-कॉन्वेंट से पढ़कर ही जीवन में सफल नहीं होते हैं.”

“स्कूल से फर्क पड़ता है मीरा जी. एक तो बस्ती का माहौल आप देख ही रही हैं. अच्छे नंबर आ भी गये तो यहाँ के माहौल से निकलकर ज़िंदगी का सामना नहीं कर पाएँगे. अच्छे स्कूल पढ़ाई के साथ-साथ ओवर-ऑल डिवेलपमेंट पर भी ध्यान देते हैं,” सत्या मीरा को मनाने की पूरी कोशिश कर रहा था, “इनको गोपी का सपना पूरा करना है तो हर तरह से अपने आप को तैयार करना होगा. जीवन में कॉन्फिडेंट बनना पड़ेगा. इसके लिए ही हम इनको शहर के सबसे अच्छे स्कूल में डाल रहे हैं. आप इनको समझाईये न सविता जी.”

सविता ने हाँ में हाँ मिलाई, “सत्या बाबू ठीक कह रहे हैं. देखती नहीं हो रजनीश को, ग्रैजुएट होकर भी अंगरेजी का एक सेंटेंस नहीं बोल पाता है. अच्छी ग्रूमिंग होगी तो जीवन में बहुत आगे जाएगा. हम तो कहेंगे मना मत करो.”

“अच्छा, आप जैसा ठीक समझें,” मीरा ने हथियार डाल दिए, “हम एक दो घरों में काम पकड़ कर कैसे भी इनके पढ़ने का खर्च निकालेंगे.”

एक किला फतह हो चुका था. लेकिन मीरा का घर-घर काम करके खर्च निकालने की बात अब आड़े आ गई थी. सत्या ने समझाया, “देखिए, आप घर-घर काम करके इनकी पढ़ाई का खर्च नहीं निकाल पाएँगी. और फिर ये भी तो सोचिये कि ये अपने संगी-साथियों को क्या कहेंगे कि इनकी माँ घरों में झाड़ू-बर्तन का काम करती है? इनको कितनी शर्मिंदगी का सामना करना होगा.”

“माँ अगर हाथ फैलाने की जगह अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए ज़्यादा मेहनत करेगी तो क्यों शर्म लगेगी इनको?” मीरा ने गुस्से में कहा, “हम ऐसे स्कूल में इनको नहीं पढ़ाएँगे.”

सत्या को कुछ कहते नहीं बन रहा था. उसने फिर भी कोशिश की, “इनको पढा-लिखा कर अफसर बनाना है कि नहीं? ये दलीलें और भावनाएँ सफलता नहीं दिलाएँगी. जीवन में ऊँचाइयों को छूने के लिए जिस रास्ते पर चलना ठीक रहेगा, हमको उसी रास्ते को चुनना होगा.”

सत्या की बातों से सविता भी असहमत थी. लेकिन उसने ज़िरह की बजाय सुलह का रास्ता चुना. बोली, “हम भी यही मानते हैं कि यह ज़रूरी नहीं है कि अच्छे स्कूलों में पढ़कर ही कोई जीवन में सफल हो सकता है. लेकिन अच्छे स्कूल की गाईडेंस का महत्व भी कम नहीं है. सत्या बाबू की बात मान लेने से सफलता की संभावना बढ़ जाएगी. देखो मीरा, गोपी का सपना हमको किसी भी तरह पूरा करना है. जब सत्या बाबू सिफारिश कराके एडमिशन दिला रहे हैं तो हमें इसका फायदा उठाना चाहिए. कोई चाँस नहीं लेना चाहिए.”

“गोपी इतना भी बड़ा सपना नहीं देखा था,” इतने खर्चे वाले स्कूल में पढ़ाने की बात मीरा के गले से नहीं उतर रही थी, “हमपर वैसे भी आपके काफी अहसान हैं. और अहसान हम नहीं ले पाएँगे सत्या बाबू.”

सत्या अंदर से छटपठा गया, “कोई एहसान-वेहसान नहीं कर रहे हैं हम.”

मीरा ने चिल्लाकर तो नहीं कहा, लेकिन सहज ढंग से पूछे गए इस सवाल ने सत्या को अंदर से हिला कर रख दिया, “कौन हैं आप सत्या बाबू? ... क्यों हमपर इतने मेहरबान हैं?”

सत्या कुछ कह नहीं पाया. उसने सविता की ओर सहायता की उम्मीद में देखा. सविता की आँखों में भी वही सवाल था. सत्या ने बात को टालने की कोशिश की, “ये सब छोड़िए. हम तो कहते हैं आप गोपी के सपनों को पूरा करने की सोचिए...... चलिए ऐसा करते हैं. जबतक आपको कोई ढंग का काम नहीं मिल जाता है, हम इनकी पढ़ाई का खर्चा उठाते हैं. इनकी पढ़ाई की चिंता आप हमपर छोड़ दीजिए. जब आपके पास पैसे होंगे, आप वापस कर दीजिएगा. ठीक है अब?”

“हमको ढंग का क्या काम मिलेगा?”

“कितना तक पढ़ी हैं आप?”

“नौवीं में थे तो 15 बरस की उमर में शादी हो गई.”

“ठीक है फिर, आप इस साल प्राइवेट से मैट्रिक की परीक्षा दीजिए. फिर दो साल बाद प्लस टू. जब खुशी दसवीं की परीक्षा लिखेगी आप ग्रैजुएट हो जाएँगी. इसके बाद ढंग का काम मिल जाएगा आपको..... क्यों, ठीक है न खुशी? मम्मी भी अगले साल से स्कूल जाएगी.”

खुशी खुश होकर ज़ोर से सर हिलाने लगी. लेकिन मीरा ने प्रतिवाद किया, “ये कैसे होगा? पढ़ाई छूटे तो सालों हो गए. अब फिर से पढ़ना नहीं हो पाएगा हमसे.”

सत्या दोनों बच्चों के हाथ पकड़कर चल पड़ा. सत्या ने चलते-चलते कहा, “सब होगा मीरा जी. हम बोलते हैं न. बस अपने पर भरोसा रखिए.”

सविता, “इसको पढ़ाने का ज़िम्मा हम लेते हैं. सत्या बाबू, आप चिंता न करें. मीरा ज़रूर पढ़ेगी. आप बस किताबें लाकर दे दीजिए.”

सत्या रुककर घोर आश्चर्य और कृतज्ञता भरी नज़रों से सविता को देखने लगा, “आपने कितनी पढ़ाई की है?”

“आई हैव डन प्लस टू ..... हम एम. ए., बी. एड. करना चाहते थे. लेकिन माँ-बाप ने परमानेंट नौकरी वाला लड़का मिलते ही मेरी शादी करा दी. अब अगर मीरा पढ़ाई शुरू करेगी तो हम भी आगे पढ़ेंगे.”

सत्या ने हाथ जोड़ दिए, “आप सोच नहीं सकती हैं कि मेरे मन से कितना भारी बोझ उतर गया. आपका कैसे धन्यवाद करें, समझ में नहीं आ रहा है..... तो अब मीरा जी पढ़ाई के लिए कमर कस लीजिए.”

सत्या दोनों बच्चों को लेकर वहाँ से चला गया. मीरा पढ़ाई का नाम सुनकर पूरी तरह घबराई हुई थी और सविता सोच रही थी कि बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने का विरोध छोड़कर मीरा अब खुद अपनी पढ़ाई की उलझन में खो गई थी. सविता ने मन-ही-मन सत्या की तारीफ की, “यू आर ए जीनियस सत्या बाबू. मानना पड़ेगा आपकी कलाकारी को.”