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सत्या - 12

सत्या 12

सुबह का समय. एक ऑटोरिक्शा आकर रुकी. सत्या के साथ गोमती और एक और व्यक्ति उतरे. सत्या ने सविता को आवाज़ दी. वह बाहर आई. दोनों बच्चे भी साथ थे.

सत्या ने जल्दी-जल्दी कहा, “सविता तुम तैयार हो जाओ. अस्पताल जाना है,” समोसे और जिलेबी का पैकेट बढ़ाते हुए सत्या ने आगे कहा, “पहले तुमलोग कुछ खा लो. ...और गोमती मौसी शाम को पाँच बजे तैयार रहना. आपको ही रात में रुकना होगा. ...निरंजन थोड़ा और कष्ट करना होगा भाई. सविता को ज़रा अस्पताल छोड़ आना.”

सब चले गए तो सविता ने पूछा, “मीरा कैसी है?”

सत्या, “सीरियस है. फेफड़े में पानी भर गया है. आज 11 बजे पानी निकालेंगे.”

सविता, “बच तो जाएगी न?”

“अरे शुभ-शुभ बोलो. सब ठीक होगा. हम अभी नहाकर आते हैं. साथ ही चलेंगे,” कहकर सत्या भागकर अपने कमरे में चला गया. सविता बच्चों को लेकर अपने घर के अंदर चली गई. निरंजन कपड़ा निकालकर ऑटोरिक्शा पोंछने लगा.

सड़क पर ऑटोरिक्शा दौड़ रही थी सत्या और सविता साथ बैठे थे. सत्या चिंतित दिखाई दे रहा था. सविता सत्या के चेहरे पर नज़र टिकाए थी. सत्या का ध्यान आगे के रास्ते पर था. सविता ने निरंजन की नज़र बचा कर सत्या के हाथ पर टैप किया. सत्या चौंक कर मुड़ा. सविता ने अपने दोनों हाथ जोड़े. दाहिने हाथ से अपनी गरदन के निचले भाग पर चुटकी ले कर क्षमा याचना की मुद्रा बनाई. सत्या ने थोड़ी देर उसकी आँखों में देख कर जानना चाहा कि वह सचमुच क्षमा माँग रही है या फिर से उसके मन में कोई शरारत है. फिर उसने पलकें झपकाकर आश्वस्त किया कि उसे विश्वास हो गया है.

अस्पताल के वार्ड में नर्सेज़ ड्यूटी रूम के आगे सत्या और सविता साथ खड़े थे. एक नर्स एक शीशी में लाल रंग का पदार्थ और एक पुर्जा सत्या के हाथ में देकर बोली, “जाँच के लिए लैब में दे दीजिए.”

सत्या, “क्या है यह?”

“छाती से पानी निकला है, वही है. जाँच करा लीजिए,” कहकर नर्स व्यस्त हो गई.

सत्या, “कितना पानी निकालना पड़ा?”

“आज दो लीटर निकाला है. कल बाकी निकालेंगे.”

सविता के मुँह से अनायास निकला, “बाप रे, दो लीटर!”

सत्या, “इसका रंग लाल क्यों है? .... क्या लगता है सिस्टर क्या हुआ है...कहाँ से आया इतना पानी?”

“जाँच करा लीजिए, पता चल जाएगा,” नर्स ने मशीनी अंदाज़ में कहा.

“फिर भी आपको क्या लगता है? कौन सी बीमारी है?”

“डॉक्टर से मिल लीजिए,” कहकर नर्स मुड़कर चली गई.

उधर से एक डॉक्टर आया. संजय ने आगे बढ़कर डॉक्टर का रास्ता रोका, “सर, सर, मीरा देवी की हालत कैसी है?”

डॉक्टर, “आप कौन हैं उसके?”

“जी हमारी बस्ती की है. बेचारी विधवा है.”

डॉक्टर, “काफी सीरियस कंडीशन में लेकर आए हैं आपलोग. एक फेफड़े में तो पूरा पानी भर गया है. आज केवल 2 लीटर ही निकाला गया है. कल फिर कोशिश करेंगे.”

“आज ही निकाल देते सर.”

“एक बार में इससे ज़्यादा निकालने से कॉम्प्लीकेशन हो सकती है. आप ये सैंपल जाचँ करा लीजिए. तभी हमलोग सही ईलाज शुरू कर पाएँगे.”

सविता, “क्या हुआ है डॉक्टर साहब इनको?”

“जाँच की रिपोर्ट देखकर ही हमलोग निश्चिंत हो पाएँगे कि कैन्सर नही है. वैसे टी.बी. की दवा शुरू कर दी गई है,” कहकर डॉक्टर दूसरे मरीज़ की ओर मुड़ गया.

सत्या और सविता के मुँह से एक साथ निकला, “कैंसर?.......” दोनों किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े रह गए. चिंतित और उदास.

सविता ने कहा, “आज हम रुक जाते हैं रात को.”

सत्या मुड़कर चल पड़ा, “हम ये सैंपल जाँच के लिए देकर आते हैं.”

मीरा को प्रोसेड्योर रूम से बाहर लाया गया. सत्या जाते-जाते रुक गया. मीरा आँखें बंद किए हुए थी. कमज़ोरी और थकान से निढ़ाल. ट्रॉली से उतार कर उसके बेड पर उसको लिटाया गया. नर्स ने सलाईन की बोतल लगाई, बी. पी. चेक किया. एक अन्य डॉक्टर ने आकर पल्स देखा. आला से छाती की जाँच की. फिर संजय की तरफ देख कर नर्स को इशारा किया.

नर्स ने ऊँची आवाज़ में सत्या से कहा, “भाई साहब ये लेडीज़ वार्ड है. अब आपको बाहर जाना होगा.”

सत्या बाहर चला गया. सविता वहीं बैठ गई. मीरा के मुहँ पर ऑक्सीजन मास्क लगा दिया गया. उसने आँखें बंद कर ली.

सत्या दोनों बच्चों को लेकर संजय के घर पर पहुँचा और उसको मीरा की तबियत के बारे में सारा कुछ बताया. उसने गीता को दोनों बच्चों के हाथ देते हुए कहा, “बोऊदी और कोई उपाय नहीं है. कुछ दिन आपको इन बच्चों को संभालना होगा. इनके स्कूल में हम बता दिए हैं. अभी सप्ताह भर ये स्कूल नहीं जा पाएँगे.”

गीता ने सहजता से स्वीकार किया और कहा, “ठीक आच्छे. आमी देखबो. तुमी कोनो चिंता कॉरो ना.” (ठीक है, मैं देखूँगी. आप कोई चिंता न करें.)

गीता ने फ्रिज़ से मिठाई निकाल कर दोनों बच्चों को दी. खुशी पूछने लगी, “माँ हॉस्पिटल से कब आयेगी?”

“बहुत जल्दी आ जाएगी बेटा. तबतक तुमलोग बोऊदी के साथ रहो. हाँ?”

गीता उनको लेकर दूसरे कमरे में चली गई.

संजय चिंतित होकर बोला, “अगर मीरा को कैंसर निकला तब तो ये बच्चे अनाथ हो जाएँगे. रिपोर्ट कब तक मिलेगी?”

सत्या बैठा रहा, चिंतित और ग़मगीन. संजय उठकर टहलने लगा.

सत्या रुआँसा होकर बोल रहा था, “सब मेरे कारण हो रहा है. हम ही हैं इस परिवार की बर्बादी का कारण. हे भगवान मीरा को कुछ न होने देना. हमपर कृपा करो भगवान. दो दिन लगेंगे रिपोर्ट आने में. तबतक मेरी जान गले में अटकी रहेगी.”

संजय ने दिलासा दिलाने की कोशिश की, “रिपोर्ट में सब ठीक होगा, तुम देखना. वह जल्द ही ठीक हो जाएगी.”

लेकिन उसकी आवाज़ में विश्वास नहीं झलक रहा था. उसने सत्या के कंधे पर हाथ रखा. सत्या ने एक लंबी साँस खींची और सिर पकड़ कर बैठ गया.

सुबह का समय. हॉस्पिटल की गेट के पास सत्या और सविता खड़े बातें कर रहे थे. सविता चिंतित मुद्र में कह रही थी, “आप कैसे भी करके मीरा को समझाईये. वह तो कहती है कि वह अब और जीना नहीं चाहती. डॉक्टर भी कह रहा था कि अगर वह बीमारी से लड़ना छोड़ देगी, तो दवाई भी काम नहीं करेगी.”

सत्या ने बेबसी से कहा, “उसको समझाओ न, कि तुम्हारी बात गलत थी. कोई उसपर इलज़ाम नहीं लगा रहा है. मेरे मन में भी उसके लिए केवल आदर का भाव है, और कुछ नहीं.”

“बात कुछ और है सत्या बाबू,” सविता ने ख़ुलासा किया, “हम बहुत पूछें तो पता चला कि वह अपने को गुनहगार मानती है और मर जाने को ही वह अपनी सज़ा मानती है.”

“ऐसा क्या गुनाह किया है उसने, जिसकी सज़ा मौत है?”

“वह कहती है कि वह गोपी की मौत की ज़िम्मेदार है. उस रात उसने ही गुस्से में गोपी को बहुत खरी-खोटी सुनाई थी कि बाप होकर वह बच्चों की स्कूल की फीस नहीं दे सकता, जिसके कारण उनका स्कूल से नाम कटने जा रहा था. उस रात मीरा ने गुस्से में उसे कहीं से भी पैसों का इंतेजाम करके लाने को कहा तो वह चुपचाप घर से चला गया. शायद पैसों का इंतजाम नहीं हो पाया तो दुख में पी लिया और ज़्यादा नशा होने के कारण लड़खड़ा कर पत्थर पर गिर कर मर गया. वह कहती है कि इस अपराध के लिए भगवान उसको ठीक ही सजा दे रहा है.”

सत्या ने झुँझलाकर कहा, “ये सब बकवास है. उसके कारण गोपी नहीं मरा है...गोपी तो.....”

सत्या के मुँह से सच्चाई निकलने ही वाली थी. लेकिन वह संभल गया. दोनों के बीच दो पल का सन्नाटा खिंच गया. लेकिन सविता को शायद आभास नहीं हुआ कि सत्या कुछ और कहने जा रहा था. उसने आगे कहा, “हम उसको कितना समझाएँ कि ये सब फालतू बातें नहीं सोचे. लेकिन वो तो ज़िद पकड़ कर बैठी है. आप ही कुछ समझाईये, अपने अपराध-बोध के कारण वो मर जाएगी तो कौन देखेगा खुशी और रोहन को?”

“अच्छा हम देखते हैं,” सत्या ने गंभीरता के साथ कहा और मन ही मन दोहराया, “अपराध-बोध.”

सत्या ने हाथ के इशारे से एक ऑटोरिक्शा रोका और सविता को उसमें बैठा दिया. सविता ने चलते-चलते खुशी और रोहन को घर ले आने के लिए कहा, “उनका स्कूल का नागा हो रहा है. हम उनको स्कूल भेजकर हॉस्पिटल आ जाएँगे. अबसे रात को गोमती मौसी मीरा के पास रुकेंगी.”