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सत्या - 10

सत्या 10

उस दिन घर पहुँचते ही खुशी कमरे में दौड़ी आई, “चाचा-चाचा, एक केक ले आना, परसों मेरा बर्ड्डे है.”

सत्या, “अच्छा! हैप्पी बर्थ डे इन एडव्हाँस. कितने साल की हो जाएगी मेरी गुड़िया?”

खुशी, “नाईन ईयर्स.”

सत्या ने खुश होकर कहा, “हम लोग ज़रूर से खुशी बेटी का बर्थ डे मनाएँगे. अपने सभी दोस्तों को बुला लेना.”

मीरा चाय का कप लेकर आई उसे सत्या के आगे मेज़ पर रखकर खुशी के कान उमेठने लगी, “अभी-अभी बाप मरा है और बर्ड्डे मनाएगी....”

खुशी दर्द से चीखी और रुआँसी हो गई. आँखों से बूँदें बस अभी टपकीं कि तब टपकीं. सत्या ने उसे इशारों से आश्वस्त किया कि वह केक लेकर ज़रूर आएगा. खुशी आँखें मलती हुई चली गई.

शाम के समय काम पर से लौटने के बाद सत्या को याद आया कि आज खुशी का जन्मदिन है. चाय पीकर वह केक लेने निकला. अभी उसने बाहर आकर गेट बंद की ही थी कि सविता उसके सामने आकर खड़ी हो गई. उसके हाथ में 'चरित्रहीन' उपन्यास था. सविता कहने लगी, “इस तरह की कहानियाँ आजकल कौन पढ़ता है? इतने भारी-भरकम शब्द गले में ही अटक जाते हैं.”

सत्या ने कहा, “अच्छा तो तुम ले गई थी किताब? वही हम बोले कि कहाँ रख कर भूल गये. ...तुम ऐसा करो, मन को किसी तरह मार कर 15-20 पन्ने पढ़ो. इसके बाद तुम्हें पढ़ने में स्वाद आने लगेगा.”

“पढ़ें हम. कोई मजा नहीं आ रहा है.”

“तुमको 'शेष प्रश्न' उपन्यास ज़रूर अच्छा लगेगा. एक बार पढ़ कर देखो.”

“ठीक है. ये वापस रखकर 'शेष प्रश्न' ले जाते हैं.”

सविता सत्या के कमरे में चली गई. सत्या वहीं खड़ा रह गया. थोड़ी देर बाद एक दूसरी किताब लेकर वह बाहर आई. उसने सत्या को अर्थपूर्ण नज़रों से देखा, “सत्या बाबू आप 'चरित्रहीन' उपन्यास एक बार और ज़रूर पढ़ियेगा और बताइयेगा कि इसमें

है क्या?”

“हम तो दो बार पढ़ चुके हैं.”

“मेरे कहने पर एक बार और पढ़ लीजिए ना,” इस अंदाज़ में सविता ने मनुहार किया कि सत्या सोच में पड़ गया.

बाज़ार से एक थैली में छुपाकर सत्या केक ले आया था. लेकिन खुशी और रोहन कहीं नज़र नहीं आ रहे थे. वह बरामदे में निकल आया. सोचने लगा कैसे उन्हें आवाज़ दे. उसने बेचैनी से इधर-उधर देखा. सामने अपने घर की गेट पर सविता खड़ी उसी की ओर दिलचस्पी से देख रही थी. वह भी अपने घर की गेट पर आ गया और फुसफुसाते हुए बोला, “मीरा से छुपकर आप आ जाईयेगा. हम जश्न मनाएँगे. अब ज़रा खुशी को आवाज़ दीजिए ना,” कहकर वह दबे पाँव वापस अपने कमरे के दरवाज़े के पास चला गया.

सविता ने खुशी को आवाज़ दी. खुशी बाहर निकली और सत्या को देखकर ठिठकी. सत्या ने इशारे से उसे रोहन के साथ कमरे में आने के लिए कहा.

सविता की आँखें चमकने लगी थीं. वह खुशी से कुलाचें मारकर अपने घर के अंदर चली गई.

मीरा रसोई घर में खाना बना रही थी. खुशी ने आकर कहा कि वह सत्या चाचा के पास पढ़ने जा रही है और रोहन को लेकर सत्या के कमरे में आ गई.

सत्या ने खुशी और रोहन की सहायता से टेबल पर रखे केक पर कैंडल लगाए. पूरी ख़ामोशी से सभी मिलकर बैलून फुलाने लगे, मानो वे नहीं चाहते हों कि मीरा को इसकी भनक लगे. कैंडल जलाई गई. खुशी ने फूँक मारकर उन्हें बुझाई. केक काटी. तीनों ने बिना आवाज़ की ताली बजाई, बिना आवाज़ निकाले होठों से ‘हैप्पी बर्थ डे टू यू’ गीत गाया. खुशी के मुँह में केक का एक टुकड़ा रखकर सत्या ने उसके गाल चूमे, सिर पर हाथ फेरे. रोहन को भी केक खिलाया. दोनों बच्चे एक के बाद केक का दूसरा टुकड़ा मुँह में डाल ही रहे थे कि अचानक मीरा सामने प्रकट हुई.

दोनों के मुँह से छीनकर केक के अधखाए टकड़ों को उसने प्लेट पर फेंका और ऊँची आवाज़ में बोली, “सत्या बाबू, हम हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना करते हैं कि मेरे बच्चों को उनके बाप से दूर मत कीजिए.”

दोनों बच्चे रोने लगे. मीरा उनको बाँहों से खींचती हुई कमरे से बाहर ले गई. सत्या को काटो तो खून नहीं.

बाहर से सविता और उसके पति के झगड़ने की आवाज़ें आने लगीं. बगल के कमरे से दोनों बच्चों की रोने की आवाज़ें भी आ रही थीं. सत्या निढाल होकर कुर्सी पर बैठ गया. चेन और ताला बिस्तर पर पड़ा था. उसने उसे उठाकर आलमारी में रखा और टेबल पर बिखरे केक के टुकड़ों को प्लेट में समेट कर कमरे से बाहर चला गया.

बाहर गेट खोलकर गली में रखी डस्टबीन में उसने प्लेट खाली कर दी. उसकी पीठ के पीछे सविता तेजी से खुली गेट से होते हुए सत्या के कमरे में चली गई और उसने दरवाज़े के पल्लों को आपस में जोड़ कर धीरे से लगा दिया. सत्या मुड़कर बरामदे में आया और उसने आवाज़ लगाई, “आज खाना मत भेजियेगा. भूख नहीं है.”

मीरा के कमरे से बच्चों के सुबकने की आवाज़ें आ रही थीं. सत्या दरवाज़े के पास आकर बंद दरवाज़े को देखकर ठिठका. फिर दरवाज़े के पल्लों को खोलकर अंदर चला गया. टेबल पर प्लेट रखते ही वह चौंका. पीठ पीछे दरवाज़ा बंद होने का हल्का सा खटका सुनाई पड़ा. उसने मुड़कर देखा. सामने सविता खड़ी थी. होठों पर उँगली रखकर ख़ामोश रहने का इशारा करती हुई. फिर क़ातिल अंदाज़ में मुस्कुराती हुई वह सत्या के बिल्कुल करीब आ गई. सत्या सहम कर एक कदम पीछे हट गया.

सविता, “हाथ जोड़कर बिनती है, हमको जाने के लिए नहीं कहियेगा. शंकर दारू पीकर हमको मारता-पीटता है. हमको इससे छुटकारा दिलाइये. अब हम वापस उसके पास नहीं जाएँगे. हमको अपनी शरण में ले लीजिये.”

सत्या ने घबराकर कहा, “ये कैसी बातें कर रही हो सविता? चलो हम शंकर को समझाएँगे. सब ठीक हो जाएगा.”

सविता ने करुण स्वर में कहा, “इतने ज़ालिम न बनिये सत्या बाबू. आपके लिए हम सबकुछ छोड़कर चले आए हैं. मेरा प्यार मत ठुकराईये.”

सत्या तो जैसे आश्चर्य के सागर में गोते खाने लगा, “क्या कह रही हो तुम?”

सविता, “ अभी थोड़ी देर पहले हमको देखकर आप मुस्कुराए और कमरे में बुलाए थे कि नहीं? वही तो इशारा था आपका कि आपको मेरा प्यार स्वीकार है. चिट्ठी में ऐसा ही करने के लिए तो हम लिखे थे. जब प्यार नहीं था तो क्यों मुस्कुराए? क्यों बुलाए?”

“तुम पागल हो गई हो. कौन सी चिट्ठी, कैसा प्यार?” सत्या की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था.

सविता ने दो क्षण सत्या को घूरा. फिर झपट कर 'चरित्रहीन' उपन्यास उठा लिया. तह किया हुआ एक कागज़ किताब में से निकलकर नीचे गिरा. लाल स्याही से उसपर दिल की आकृति और उसके बीच से गुज़रता एक तीर का चित्र ....सत्या ने झुककर उसे उठाया और कागज़ की तह खोल कर देखा. सुंदर लिखावट में कुछ लिखा था. सत्या पढ़ने लगा, "मेरे साजन, मेरे दिलवर, मेरे जानूँ, मेरे राजा. मैं अपना दिल तुमपर हार बैठी हूँ. इसमें मेरे दिल का कोई कसूर नहीं है. तुम हो ही इतने ज़ालिम. कोई तुमसे कैसे न प्यार करे.......यह सब क्या है सविता?”

सविता ने मदहोश होकर कहा, “मेरे दिल का हाल लिखा है. पढ़ तो लीजिए सत्या बाबू. कागज़ न सही मेरी आँखों में पढ़ लीजिए.”

सविता सत्या के करीब आ गई. अगाध प्रेम और याचना से भरी आवाज़ में उसने कहा, “हम आपसे प्यार कर बैठे हैं सत्या बाबू. अब आपके बिना एक पल भी नहीं रह सकते. हमको अपना लीजिए सत्या बाबू. अब हम आपके हो गए हैं. दूर रहकर जी नहीं पाएँगे.”

वह सत्या के सीने से लग गई. सत्या ऐसे छिटका जैसे उसने बिजली का नंगा तार छू लिया हो, “ये क्या पागलपन है सविता. अपने-आप को संभालो.”

सविता ने उसकी बाँह पकड़ कर उसे अपने करीब खींचा, “इतने कठोर न बनिए सत्या बाबू.”

हड़बड़ाहट में सत्या के मुँह से निकला, “देखो, देखो मीरा....”

मीरा का नाम सुनते ही सविता ने झट से अपना सर उठाया और सत्या की आँखों में गहराई तक झाँक कर दर्द भरे स्वर में कहा, “हम मीरा नहीं सविता हैं सत्या बाबू.....तो आपको मुझसे नहीं, मीरा से प्यार है.”

दरवाज़े पर हाथ में खाने की थाल लिए मीरा खड़ी दोनों को ग़ौर से देख रही थी. आँसुओं के बीच मुड़कर वह तेजी से चली गई. सविता और सत्या एक दूसरे को देखते रह गए. सविता की आँखों से जैसे ज्वालाएँ फूटने लगीं थीं. चुपचाप कुछ पल यूँ ही देखते रहने के बाद वह तेज कदमों से कमरे से बाहर चली गई.

सविता ने आवाज़ के साथ गेट खोली और बाहर आते ही अंधेरे में खड़े शंकर से टकरा गई. शंकर ने अचानक उसको बालों से पकड़ कर खींचा, “साली, बदचलन, कुतिया, तू सत्या बाबू के कमरे में इतना रात को क्या कर रही थी. मादरजात आज तुमको हम नहीं छोड़ेंगे.”

उसने ज़ोर से धक्का दिया. सविता गली में औंधे मुँह गिरी. शोर सुनकर कई लोग घरों से बाहर आ गए. शंकर घर से एक डंडा ढूँढ कर ले आया. तबतक सविता उठकर एक मज़बूत स्तंभ की तरह खड़ी हो गई थी. शंकर के हाथ का डंडा पकड़कर वह ज़ोर से चिल्लाई, “ख़बरदार...वहीं खड़े रहो. क्या बात है? व्हाई आर यू शाऊटिंग? आज अगर हमपर हाथ उठाया तो हम भी आज चुप नहीं बैठेंगे.”

सविता का उग्र रूप देखकर शंकर सहम गया. कुछ औरतें बीच-बचाव के लिए आ गईं. इस बार शंकर की आवाज़ में क्रोध नहीं शिकायत के स्वर थे, “एक तो रात में सत्या बाबू के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी. ऊपर से हमपर ही बरस रही है?..... वाह सत्या बाबू वाह. बस्ती में आकर खूब मजे कर रहे हैं. पूरा कृष्ण भगवान बने हुए हैं, जैसे बस्ती की सभी औरतें आपकी गोपियाँ हैं.”

सत्या बिल्कुल चुप. चेहरे का रंग उड़ा हुआ. उसने सूखे कंठ से थूक निगलने की कोशिश की.

सविता गरजी, “ज़बान संभाल के बात करो..... सत्या बाबू मेरे संग क्यों गुलछर्रे उड़ाएँगे?”

वह पलटकर आग्नेय नेत्रों से सत्या को घूरने लगी, “सत्या बाबू डज़्न्ट लव मी. सत्या बाबू तो मीरा से प्यार करते हैं.”

सभी लोग अचानक ख़ामोश हो गए. इस सन्नाटे में 'सत्या बाबू तो मीरा से प्यार करते हैं' की आवाज़ जैसे कई बार गूँज गई. सहसा मीरा के ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ आने लगी. सब लोगों का ध्यान अब मीरा पर केंद्रित हो गया. मीरा बरामदे में बैठी विलाप कर रही थी, “खुशी के बापू तुम कहाँ छोड़कर चले गए हमको ....यह सब सुनने से पहले हमारा मर जाना अच्छा है. खुशी के बापू हमको बुला लो अपने पास ... हाय, ये सब क्या हो रहा है मेरे साथ.”

औरतें मीरा को संभालने में जुट गईं. गोमती ने सत्या से सीधा सवाल किया, “ये सब क्या है सत्ता बाबू. क्या बोल रही है सबिता?”

“हम क्या बोलें?” सत्या हकला गया, “श्. श्शंकर की मार के डर से सविता आई थी मेरे पास, छुपने के लिए. हम बोले जाओ तो गुस्सा हो गई. इसमें मेरा क्या दोष?....और मीरा को तो हम आज तक आँख उठा कर भी नहीं देखे हैं.”

गोमती, “क्या सबिता, ठीक बोल रहा है सत्ता बाबू?”

उधर मीरा का विलाप जारी था, “और अब हम यहाँ नहीं रहेंगे. अभी चले जाएँगे

कहीं. खुशी के बापू....”

मुखिया ने इस बार कठोर शब्दों में कहा, “आज तक इस बस्ती में ऐसा कुछ नहीं हुआ. सत्या बाबू इस तरह किसी बिधबा को बदनाम मत कीजिए.”

“बस्ती का बदनामी का बात तो है ही,” गोमती ने उसकी बात में बात मिलाई, “तुम लोग ये सब मत करो. अच्छा होगा तुमलोग शादी कर लो. एक बिधबा को सहारा दोगे तो पुन्न ही मिलेगा. उसका जीबन खराब करोगे तो हम बोल देते हैं ठीक नेहीं होगा.”

मीरा के रोने की आवाज़ तेज हो गई.

सत्या ने ज़ोर से प्रतिवाद किया, “अरे-अरे, ये सब क्या बातें हो रही हैं? ये प्यार-मोहब्बत, शादी-ब्याह इन सबके लिए सोचने की भी फुर्सत नहीं है हमको.”

गोमती ने अब पूरी तरह मोर्चा संभाल लिया था, “सुन ऐ मीरा, तुमको शादी करना है इससे तो बोलो. हम जबर्दस्ती कराएँगे इससे तुम्हारा शादी. क्या बोलता है मुखिया भाई?”

मुखिया बगलें झाँकने लगा. लोगों के चेहरों पर असमंजस के भाव थे. पर वहाँ खड़ी सारी औरतें गोमती की बातों से सहमत दीख रही थीं. मीरा ने गुहार लगाई, “ये पाप है मौसी....ये पाप हमसे मत कराओ.”

गोमती, “तुम बोलो बाबू. तुमको मीरा से प्यार है? ..शादी करेगा?”

सत्या, “तुम सब लोग ये बात समझ लो. हम उस मिट्टी से बने ही नहीं हैं जो किसी की मज़बूरी का फायदा उठाएगा. मीरा से मेरा कोई संबंध नहीं है.... हम उस मिट्टी से बने ही नहीं हैं,...." सत्या ने आगे कहा, “हम मीरा के लिए नहीं, खुशी और रोहन के लिए इतना कुछ कर रहे हैं. इसमें आख़िर बुराई ही क्या है अगर हम बच्चों को पढ़ा लिखा रहे हैं? मीरा गोपी की पत्नी है, बस इतना ही हम जानते हैं. उससे मेरा संबंध जोड़ना ठीक नहीं है. आप लोग इस तरह की बात मत करो. सबको पाप लगेगा.”

गोमती ने अंतिम फैसला सुनाया, “तब ठीक है. चलो सब लोग अपना-अपना घर जाओ....और क्या रे शंकर दारू पीकर सबिता को रोज मारता है.... दूसरा औरत होता तो कबसे तुमको छोड़कर किसी और से शादी कर लेता.”

मुखिया ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई, “ठीक बात है. शंकर तुम संभल जाओ. हम लोग को रोज-रोज का ये झगड़ा-झंझट पसंद नहीं है. पीना है घर में पीयो और चुप-चाप सो

जाओ. मार-पीट मत करो.”

लेकिन गोमती ने उसे अच्छी तरह धमकाया “हाँ नहीं तो, दारू पीकर शेर हो जाता है. वो एक बार बोलेगी तो हम लोगुन तुमसे तलाक करा करके किसी और से शादी करा देंगे. संभल जाओ तुम.”

उधर मीरा का रोना थम ही नहीं रहा था, “हम इस घर में और नहीं रहेंगे. कहीं चले जाएँगे.” सहसा बरामदे में लुढ़ककर मीरा बेहोश हो गई.

खुशी आतंकित स्वर में चिल्लाई, “माँ-माँ, क्या हुआ माँ को?”

औरतों ने मीरा को घेर लिया.

गोमती, “अरे इसको तो बहुत तेज बुखार है.”

सत्या, “हटो-हटो, भीड़ मत लगाओ. इसको अस्पताल ले जाना होगा. रामबाबू, अपनी ठेला गाड़ी ले आओ. अस्पताल ले चलते हैं.”

गोमती ने भी आवाज़ लगाई, “अरे ओ निरंजन, जाकर टेम्पो लेकर आ.”

सत्या पूरी तरह घबराया हुआ था. उसने ऊँची आवाज़ में कहा, “सविता, ज़रा बच्चों को संभालना. .... गोमती मौसी आपको भी चलना होगा....”

सविता ने दोनों बच्चों को अपने पास समेट लिया. एक ऑटोरिक्शा आकर रुकी.