वचन - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Classic Stories
वचन--भाग(१) चंपानगर गाँव____ सेठ मनीराम अपनी दुकान में बैठकर सामान को तुलवा रहें हैं, पुरोहित जी के बेटे की शादी है तो सारा सामान मनीलाल जी के यहाँ से खरीदा जा रहा ...Read More ये दीनू क्या कर रहा है ? ध्यान से कर,देख ना तराजू टेढ़ा जा रहा हैं, उस पर बराबर बाँट रख,सामान की मात्रा कम नहीं होनी चाहिए, नहीं तो लोग कहेगें कि मनीराम बेईमान हैं, मनीराम जी बोले।। तभी पुरोहित जी बोले__ नहीं सेठ मनीराम,तुम पर हमें पूरा भरोसा हैं, इसलिए तो तुम्हारी ही दुकान से सामान खरीदने आते हैं।। बस,यही ईमानदारी और
वचन--भाग(१) चंपानगर गाँव____ सेठ मनीराम अपनी दुकान में बैठकर सामान को तुलवा रहें हैं, पुरोहित जी के बेटे की शादी है तो सारा सामान मनीलाल जी के यहाँ से खरीदा जा रहा ...Read More ये दीनू क्या कर रहा है ? ध्यान से कर,देख ना तराजू टेढ़ा जा रहा हैं, उस पर बराबर बाँट रख,सामान की मात्रा कम नहीं होनी चाहिए, नहीं तो लोग कहेगें कि मनीराम बेईमान हैं, मनीराम जी बोले।। तभी पुरोहित जी बोले__ नहीं सेठ मनीराम,तुम पर हमें पूरा भरोसा हैं, इसलिए तो तुम्हारी ही दुकान से सामान खरीदने आते हैं।। बस,यही ईमानदारी और
वचन--भाग(२) उधर शहर में प्रभाकर अपना सामान बाँधने में लगा था तभी उसके मित्र कैलाश ने आकर पूछा___ कहीं जा रहे हो मित्र! हाँ! रात की गाड़ी से निकलूँगा, गाँव जा रहा हूँ, इम्तिहान जो हो गए हैं ...Read Moreअभी नतीजे आने में वक्त हैं तो यहाँ भी रहकर क्या करूँगा? प्रभाकर बोला।। और सुनैना का क्या?वो तुम्हारे बिन रह पाएंगी, कैलाश ने पूछा।। हाँ! भाई यही तो कसौटी है, कभी कभी अपनोँ की खातिर बहुत कुछ त्यागना पड़ता है और अगर उसे मुझसे सच्चा प्रेम है तो मेरा इंतज़ार जरूर कर पाएंगी, नहीं तो इसका मतलब उसकी मौहब्बत
वचन--भाग(३) प्रभाकर का मन बहुत ब्यथित था,वो गाड़ी में बैठा और लेट गया,जब मन अशांत हो और हृदय को चोट लगी हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता,बस मन चाहता है कि शांत होकर एक कोने में बैठ जाएं, ...Read Moreसे बात करने का मन नहीं करता और फिर प्रभाकर अगर लड़की होता तो किसी सखी से अपने मन का हाल बताकर,मन हल्का कर लेता ,उसके कंधे पर सिर रखकर रो लेता,लेकिन लड़के तो ये भी नहीं कर सकते, पुरूषों ने स्वयं एक सीमा रेखा खींच रखी है,जिसे वे स्वयं पार नहीं करना चाहते ,वे डरते हैं क्योंकि लोग कहीं
वचन--भाग(४) प्रभाकर को देखते ही कौशल्या बोली___ तू आ गया बेटा!तूने तो कहा था कि तुझे कुछ ज्यादा दिन लग जाएंगे, सबसे मिलकर आएगा लेकिन तू इतनी जल्दी आ गया।। हाँ,माँ! यहाँ की चिंता थी ...Read Moreदुकान कैसीं चल रही होगीं और दिवाकर ठीक से पढ़ रहा होगा कि नहीं, प्रभाकर ने कौशल्या से कहा।। कितनी चिंता करता है बेटा! तूने हम सब के लिए अपनी पढ़ाई तक छोड़ दी,तेरे जैसा बेटा भगवान सबको दे,कौशल्या प्रभाकर को आशीष देते हुए बोली।। मेरी मेहनत तो तब सफल होगी माँ,जब मैं दिवाकर को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बना दूँगा,बस
वचन--भाग (५) प्रभाकर ने कौशल्या से पूछा__ मां! मैं हीरालाल काका से कैसे कहूं कि वें बिन्दवासिनी का अभी ब्याह ना करें क्योंकि उसे मैं अपने घर की बहु बनाना चाहता हूं, मेरे देवा को बिन्दू पसंद करती हैं। ...Read More तू एक बार हीरा भइया से बात तो करके देख,वे जरूर मान जाएंगे और फिर हमारा देवा आगे चलकर सरकारी नौकरी करेगा तो भला उसे कौन अपनी बेटी देने से मना करेगा, कौशल्या बोली।। मां तुम बिल्कुल सही कह रही हो, मैं आज ही इस विषय पर काका से बात करता हूं, लेकिन मां काका तो बाबूजी को पसंद
वचन--भाग(६) दिवाकर बहुत बड़ी उलझन में था,कमरें से बाहर निकलता तो उसे अपने पहनावें और चाल ढ़ाल पर शरम महसूस होती,कैन्टीन खाना खाने जाता तो सब काँटे छुरी से खाते और वो हाथ से,उसकी फूहड़ता पर सब हँसते,उसका मज़ाक ...Read Moreहाँस्टल में रहने वाले एक साथी ने उसका फायदा उठाया, उससे हमदर्दी जताई और उससे दोस्ती कर ली।। उसका नाम शिशिर था,उसने दिवाकर से कहा कि चिंता मत करो दोस्त,मैं तुम्हारी मदद करूँगा और देखना कुछ दिनों में ही तुम इन सबसे स्मार्ट और हैंडसम दिखोगें लेकिन इसके लिए तुम्हें थोड़े पैसे खर्च करने पड़ेगे, नए कपड़े,नए जूते,ये हेयरस्टाइल
वचन--भाग(७) दिवाकर ने शिशिर से झगड़ा तो कर लिया था लेकिन उसके बहुत सारे राज शिशिर के पास थे और उसने जो धमकी दिवाकर को दी थीं, वो पूरी कर दी।। शिशिर ने ...Read Moreके विषय में सब प्रिन्सिपल से कह दिया,प्रिन्सिपल बहुत नाराज हुए और दूसरे ही दिन उन्होंने अपने आँफिस में दिवाकर को बुलवाया___ जो मैंने तुम्हारे बारें में सुना है,क्या वो सच है,प्रिन्सिपल ने दिवाकर से पूछा।। क्या सुना है आपने सर? दिवाकर ने प्रिन्सिपल से पूछा।। यही कि तुम अब कोई भी क्लास नहीं लेते,देर रात तक शराबखानें से लौटते हो,प्रिन्सिपल ने
वचन--भाग(८) प्रभाकर का अब कहीं भी मन नहीं लग रहा था,ना ही दुकानदारी में और ना ही घर में उसे तो दिवाकर की चिंता थी कि कहीं वो ऐसे रास्ते पर ना चल पड़े कि वहाँ से लौटना उसके ...Read Moreमुश्किल हो जाए,उसके सिवाय अब कोई था भी तो नहीं उसका,आखिर जो वो भी हो ,खून का रिश्ता जो था उससे,वो उसका भाई हैं वो भी सगा,अब प्रभाकर ने शहर जाने का मन बनाया,उसने सोचा कैसे भी हो वो अपने भाई को वापस लाकर रहेगा,नहीं तो जो उसने बाबू जी को वचन दिया था उसका क्या होगा? वो दुकान
वचन--भाग(९) दरवाज़े की घंटी बजते ही समशाद ने दरवाज़ा खोला तो सामने दिवाकर खड़ा था,दिवाकर भीतर आ गया, उसने समशाद से पूछा कि आफ़रीन कहाँ है? समशाद बोली कि शिशिर साहब आएं है और वो उन्हीं के साथ हैं, ...Read Moreसुनकर दिवाकर का पारा चढ़ गया और वो फौरऩ बैठक की ओर गया,वहाँ उसने आफ़रीन और शिशिर को साथ में देखा तो,शिशिर के शर्ट की काँलर पकड़ कर बोला___ यहाँ क्या करने आया है, चल निकल यहाँ से,दिवाकर बोला।। जरा तम़ीज से पेश़ आओ बरखुरदार, ये तुम्हारा घर नहीं है,शिशिर अपनी काँलर छुड़ाते हुए बोला।। तो क्या
वचन--भाग(१०) अनुसुइया जी,सारंगी को भीतर ले गईं,साथ में दिवाकर भी सब्जियों का थैला लेकर भीतर घुसा और उसने दरवाज़े की कुंडी लगा दी,उसे अन्दर आता हुआ देखकर सारंगी बोली____ ओ..भाईसाब! भीतर कहाँ घुसे चले आ रहो ...Read More मैं यहाँ का किराएदार हूँ और कहाँ जाऊँ,दीदी! दिवाकर बोला।। फिर से दीदी! मुझे दीदी मत कहो,सारंगी बोली।। अच्छा! अब तू चुप होगी,मेरी भी कुछ सुन ले या खुद ही अपना हुक्म चलाती रहेंगी,अनुसुइया जी बोलीं। अच्छा,बोलो माँ! क्या कहना चाहती हो? सारंगी ने पूछा।। कुछ नहीं, बस इतना ही कि आज सब्जियां लेने बाजार गई थी,किसी मोटर
रात हो चली थीं लेकिन अनुसुइया जी और दिवाकर की बातें खत्म ही नहीं हो रहीं थीं और उधर सारंगी अपने कमरें में रखी टेबल कुर्सी पर बैठकर अपने कुछ कागजात देख रही थीं, तभी सारंगी बोली____ ...Read More माँ!अब क्या रातभर अपने मेहमान के साथ बैठी बातें करती रहोगी,सोना नहीं है क्या? अब क्या करूँ, तू तो दिनभर बाहर रहती है और मैं यहाँ लोगों से बात करने को तरस जाती हूँ,बहुत दिनों के बाद कोई मिला है, आज तो जरा जी भर के बातें कर लेने दे और तू मत सोना,मैं अभी तेरे लिए दूध लेकर आती हूँ, अनुसुइया
जुम्मन चाचा ऐसे ही अपने तजुर्बों को दिवाकर से बताते चले जा रहे थे और दिवाकर उनकी बातों को चटकारे लेकर के सुन रहा था,ताँगा भी अपनी रफ्त़ार से सड़क पर दौड़ा चला जा रहा था,जुम्मन चाचा एकाएक दुखी ...Read Moreबोले___ मियाँ! हमारे दादा परदादा भी रईस हुआ करते थे,मगर जबसे गोरों का इस देश में हुक्म चलने लगा तो धीरे धीरे सब छिनता चला गया और बँटवारे के बाद तो जैसे रोटी के लाले पड़ने लगें, सारी जमापूँजी खत्म होने को थी,तब अब्बाहुजूर ने खेंतों पर एक अस्तबल तैयार करवा लिया,जहाँ तरह तरह के घोड़े थे,उस समय रईस
वचन--भाग(१३) प्रभाकर को ये सुनकर बहुत खुशी हुई कि उससे मिलने देवा आया था,आखिर उसे अपने भाई की याद आ ही गई और कैसे ना मेरी याद आती?सगा भाई जो है मेरा,प्रभाकर इतना खुश था कि इतना थका हुआ ...Read Moreके बावजूद भी रात के खाने में उसने खीर पूड़ी बनाई और रात को आज बहुत दिनों बाद चैन की नींद सोने वाला था वो,लेकिन पगले ने अपना पता ठिकाना दे दिया होता तो ढ़ूढ़ने में आसानी रहती,फिर भी मैं बहुत खुश हूँ कि वो मुझे ढ़ूढ़ते हुए यहाँ आ पहुँचा,प्रभाकर ये सोचते सोचते कब सपनों में खो गया उसे
वचन--भाग(१४) भीतर अनुसुइया जी,सुभद्रा और हीरालाल जी बातें कर रहे थें और बाहर चारपाई पर सारंगी और दिवाकर बातें कर रहें थें और इधर हैंडपंप के पास बिन्दू बरतन धो रही थी और बीच बीच में सारंगी की बातों ...Read Moreभी जवाब देती जाती,कुछ देर में बिन्दू ने बरतन धो लिए और बरतनों की डलिया उठाने को हुई तो दिवाकर बोला___ तुम रहने दो बिन्दू! मैं रख देता हूँ,काफी भारी होगी।। ठीक है और इतना कहकर वो सारंगी के पास आकर बैठ गई,सारंगी बोली,तुम दोनों बातें करो,मै तो चली ,मुझे दफ्तर के कुछ कागजात़ का काम निपटाना है,
वचन--(अन्तिम भाग) हाँ,भइया मुझे पक्का यकीन है कि सारंगी दीदी आपको बचा लेंगीं, दिवाकर बोला।। नहीं, दिवाकर! जब सबको पता है कि आफ़रीन का ख़ून मैने किया है तो केस लड़ने से क्या फायदा,मै ...Read Moreकूसूरवार हूँ, जब मैने खुद ही मान लिया है तो सारंगी इस केस के लिए माथापच्ची क्यों करेगी भला, प्रभाकर बोला।। लेकिन भइया!आप निर्दोष हैं और मैं ये साबित करके रहूँगा,दिवाकर बोला।। तू किसी से कुछ भी नहीं कहेंगा, दिवाकर! नहीं तो मेरा मरा हुआ मुँह देखेंगा,प्रभाकर बोला।। भइया! कृपा करके,कसम की बेड़ियाँ मत डालिए मुझ पर नहीं तो इस अपराधबोध से मैं