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वचन--भाग ( ७)

वचन--भाग(७)

दिवाकर ने शिशिर से झगड़ा तो कर लिया था लेकिन उसके बहुत सारे राज शिशिर के पास थे और उसने जो धमकी दिवाकर को दी थीं, वो पूरी कर दी।।
शिशिर ने दिवाकर के विषय में सब प्रिन्सिपल से कह दिया,प्रिन्सिपल बहुत नाराज हुए और दूसरे ही दिन उन्होंने अपने आँफिस में दिवाकर को बुलवाया___
जो मैंने तुम्हारे बारें में सुना है,क्या वो सच है,प्रिन्सिपल ने दिवाकर से पूछा।।
क्या सुना है आपने सर? दिवाकर ने प्रिन्सिपल से पूछा।।
यही कि तुम अब कोई भी क्लास नहीं लेते,देर रात तक शराबखानें से लौटते हो,प्रिन्सिपल ने पूछा।।
हां,सर! और मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं है, दिवाकर ने बेशर्मी के साथ प्रिन्सिपल को जवाब दिया।।
तुम्हारा बड़ा भाई प्रभाकर तो ऐसा ना था,वो तो हीरा था...हीरा और एक तुम हो, जिसमें बड़ो का कोई लिहाज नहीं रह गया है,ये मेरी पहली और आखिरी चेतावनी है अगर तुमने अपनी आदतें ना सुधारी तो मैं प्रभाकर को चिट्ठी लिखकर सब बता दूंगा,प्रिन्सिपल बोले।।
जी,जो आदतें मुझे लग चुकीं हैं वो अब छोड़ना मेरे लिए आसान नहीं है और इतना कहकर दिवाकर प्रिन्सिपल आॅफिस से चला गया और प्रिन्सिपल साहब देखते रह गए।।
इस साल दिवाकर ने तो जैसे किताबों को हाथ लगाना ही बंद कर दिया था,अब तो दिन में भी आफ़रीन के यहां पड़ा रहता और अफ़रीन उससे पैसे ऐठती रहतीं, हाॅस्टल भी समय से ना पहुंचता,रात को ज्यादातर देर से लौटता तब तक हाॅस्टल के दरवाज़े बंद हो चुके होते वो फिर आफ़रीन के यहां पहुंच जाता,दिनभर आफ़रीन की मोटर में आफ़रीन के साथ घूमता रात को थियेटर देखता ,रेस्टरां में खाना और रात को शराब पीकर आफ़रीन के यहां पड़े रहना,बस यही दिनचर्या हो गई थी उसकी।।
इसी बीच एक दिन बिन्दवासिनी के पिता हीरालाल का शहर में कोई काम आन पड़ा, उन्होंने प्रभाकर से पूछा कि देवा को कोई संदेशा कहलवाना हो तो बता दो उससे कह दूंगा,प्रभाकर बहुत खुश हुआ ना जाने उसके लिए क्या क्या बंधवा दिया,बिन्दवासिनी ने भी अपने हाथों से लड्डू बनाकर देवा के लिए भिजवा दिए।।
हीरालाल जी शहर पहुंचे, उन्होंने दिनभर अपना काम निपटाया और शाम को दिवाकर को खोजते हुए हाॅस्टल पहुंचे लेकिन वहां जो उन्हें दिवाकर के बारें में सुनने को मिला वो सुनकर उनके होश उड़ गए,उनका मन बहुत ही दुखी हुआ और वो देवा को खोजते, आफ़रीन के घर की तरफ ही जा रहे थे कि उन्होंने देवा को किसी महिला के साथ मोटर में जाते हुए देखा,वो आफ़रीन का पता पूछते पुछते उसके घर जा पहुंचे,तब नौकरानी ने बताया कि वो दोनों तो मोटर में अभी अभी थियेटर ड्रामा देखने गए हैं, हीरालाल जी ने थियेटर का पता ठिकाना लिया और वो भी थियेटर पहुंच गए,जब ड्रामा खत्म हुआ तो हीरालाल जी ने देवा को देखकर पूछा___
तुम हाॅस्टल में क्यो नही रहते, मैं तुम्हें ढ़ूढ़ ढ़ूढ़ कर थक गया।।
लेकिन आप है कौन, मैं आपको नहीं जानता, दिवाकर बोला।।
अरे, मैं तेरा काका हीरालाल,देख तेरे भाई और मां ने तेरे लिए क्या क्या भेजा है, हीरालाल जी बोले।।
बड़े अजीब आदमी है आप,जब मैंने एक बार आपसे कह दिया कि मैं आपको नहीं जानता तो फिर क्यो मेरी जान खा रहें हैं,आपका देवा और कोई होगा मैं नहीं, कृपया मेरा पीछा छोड़िए और हम दोनों को जाने दीजिए, इतना कहकर दिवाकर, आफ़रीन के साथ वहां से चला गया और हीरालाल जी उसका मुंह ताकते रह गए।।
हीरालाल जी गांव पहुंचे और उन्होंने प्रभाकर से सब कुछ कह दिया लेकिन प्रभाकर उनकी बात मानने को तैयार ही नहीं था___
आप मेरे भाई को बदनाम करने की कोशिश मत कीजिए काका! प्रभाकर बोला।।
मैं सच कह रहा हूं,बेटा! भला मैं क्यो देवा को बदनाम करने की कोशिश करूंगा, हीरालाल जी बोले।।
होगा आपका कोई स्वार्थ, मुझे क्या पता और मुझे देवा के बारे कुछ नहीं सुनना, मुझे अपने भाई पर पूरा भरोसा है, प्रभाकर बोला।।
और प्रभाकर ने हीरालाल जी की बात नहीं मानी और चला गया।।
उधर दिवाकर की अय्याशियां अब हद से ज्यादा बढ़ गई थी और इस बार शिशिर बिल्कुल भी नहीं चूंका और उसने दिवाकर की फिर से शिकायत कर दी कि दिवाकर देर रात हाॅस्टल लौटता है और कभी कभी तो लौटता ही नहीं,वो शायद अपनी रातें बदनाम गलियों में ही गुजारता है,उसकी वहां कोई प्रेमिका भी है जिसका नाम आफ़रीन है।।
शिशिर की बात सुनकर प्रिन्सिपल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने फिर से एक बार दिवाकर को अपने आॅफिस बुलवा भेजा__
जो मैंने तुम्हारे बारे सुना क्या वो सच है कि तुमने अब शराबखाने के अलावा बदनाम गलियों में भी कदम रखना शुरू कर दिया,ये सब मैं तुम्हारे घर चिट्ठी लिखकर बताता हूं,प्रिन्सिपल बोले।।
हां,ये सच है और मुझे इस बात का कोई पछतावा नहीं, मैं उस लड़की से प्रेम करता हूं और उसे नहीं छोड़ सकता और आज ही मैं हाॅस्टल छोड़कर उसके घर चला जाऊंगा रहने के लिए, आपको जो कुछ भी मेरे घरवालों को बताना है बता दीजिए, मुझे कोई चिंता नहीं और इतना कहकर दिवाकर प्रिन्सिपल आॅफिस से चला गया।।
इधर प्रिन्सिपल ने प्रभाकर को चिट्ठी लिखकर सबकुछ बता दिया,ये सब जानकर प्रभाकर को बहुत दुःख हुआ उसने मां को बताया, मां ने कहा कि मैं ने पहले ही कहा था कि इंसान को बदलते देर नहीं लगती।।
और अब प्रभाकर ने दिवाकर को पैसे भेजने बंद कर दिए और चिट्ठी भी लिख दी कि तेरे हरकतों से परेशान होकर मैं ऐसा कर रहा हूं,उधर प्रभाकर के इस फ़ैसले से दिवाकर तिलमिला गया और गांव पहुंचा।।
उसने कहा कि मुझे बंटवारा चाहिए मेरे हिस्से में जितना आता है उतना मुझे देदो,उसे बेचकर मैं हमेशा के लिए शहर चला जाऊंगा और कभी नहीं लौटूंगा, मैं ऐसे रिश्तेदारों का मुंह भी नहीं देखना चाहता।।
ये सुनकर प्रभाकर रो पड़ा और तिजोरी की चाबी फेंकते हुए बोला कि तुझे जितना रुपया चाहिए सब ले जा लेकिन मेरे जीते जी इस घर का बंटवारा कभी ना होने दूंगा, फिर चाहें क्यो ना मेरी जान ही चली जाएं,
दिवाकर ने बेशर्मों की तरह तिजोरी की चाबियां उठाई,मनमाना रुपया निकाला और बिना कुछ कहे शहर वापस चला गया क्योंकि वो आफ़रीन की मोटर लेकर आया था,उसके लिए शहर जाना आसान हो गया।।
कौशल्या ये सब देखकर बेहोश होकर गिर पड़ी, अपने घर की ऐसी दुर्दशा देखकर उसे बहुत आघात पहुंचा, ऐसा सदमा लगा कि उसने बीमार होकर बिस्तर पकड़ लिया।।
उधर बिन्दवासिनी ने जब दिवाकर का ये रूप देखा तो उसका विश्वास हिल गया,उसके दिल को बहुत चोट पहुंची,उसे लगा कि दिवाकर ने तो उसे कभी प्रेम किया ही नहीं था नहीं तो वो ऐसे किसी भी लड़की के साथ,वो कोई अच्छे घर की नहीं बदनाम लड़की के साथ, बिन्दू की जिंदगी पर तो जैसे कोई पहाड़ सा टूट ड़ा था और वो बहुत दुखी रहने लगी,अब तो उसका खाना पीना भी छूट गया और दिन-ब-दिन वो कमजोर होती जा रही थीं, प्रभाकर बिन्दु को देखता तो रो पड़ता और उससे नज़रें मिलाकर बात ना कर पाता, उससे कहता कि मेरी बहन, ये सब मेरी वजह से हुआ,काश मैं पहले ही तुम्हारी सगाई दिवाकर से करवा देता,उसकी पढ़ाई की चिंता ना करता लेकिन मैंने ऐसा नहीं सोचा था जैसा हो गया।।
नहीं भइया, इसमें आपका कोई दोष नहीं है, आपने तो देवा की भलाई चाही थी,अब उसकी अक्ल ही फिर गई तो कोई क्या करें, बिन्दू बोली।।
नहीं बिन्दू, इसमें मेरा दोष है, मैं भाई के प्रेम में पागल हो गया था, मैंने ही उसको कुछ ज्यादा छूट दे दी,ये सब मेरी ही गलतियों का ही नतीजा है, प्रभाकर बोला।।
इधर कौशल्या बहुत बीमार रहने लगी,उसे चिंता खाएं जा रही थी,वो रोज प्रभाकर से पूछती की दिवाकर कब आएगा, लेकिन इसका प्रभाकर के पास कोई जवाब नहीं था क्योंकि प्रभाकर ने बहुत सी चिट्ठियां लिखी थीं दिवाकर को कि मां की हालत बहुत खराब है और रोज तेरे बारे में पूछती है हो सकें तो जल्दी से आ जा, लेकिन प्रभाकर की एक भी चिट्ठी का जवाब दिवाकर ने नहीं दिया।।
और कुछ दिनों बाद ऐसे ही बिमारी की हालत में दिवाकर का इंतजार करते करते एक दिन कौशल्या भगवान को प्यारी हो गई लेकिन दिवाकर ये खब़र पाकर भी गांव ना आया और अब प्रभाकर बिल्कुल अकेला हो चुका था।

क्रमशः__
सरोज वर्मा__