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स्वीकृति - Novels
by GAYATRI THAKUR
in
Hindi Moral Stories
घबराई हुई सी पुर्णिमा तेज भागती हुई सीढ़ियों से नीचे उतरती है. और घबराहट में नीचे उतरती हुई वह दो खेड़ी एक ही बार में फांद जाती है, और सीधे बुआ जी से टकराती है. बुआ जी जोर से चिल्लाती है..,”अरे..! होश कहां छोड़ आई है.. बदतमीज लड़की ऐसा क्या देख लिया.., जो यूं घबराई हुई सी भाग रही है...!”
तभी पूर्णिमा बोल पड़ती है..," बुआ जी! आप सुनोगे तो आपके भी होश उड़ जाएंगे.., छोटी भाभी अपने कमरे में नहीं है, मैंने हर जगह ढूंढा वह कहीं नहीं ..है" पूर्णिमा बिना रुके एक ही सांस में सारी बातें कह जाती है.
बुआ जी एक टक पूर्णिमा को देखती रह जाती हैं. और फिर बोल पड़ती हैं , "यह तो होना ही था! मुझे तो उसके हाव-भाव पहले से ही समझ आ रहे थे, पर मेरी सुनता कौन है!"
घबराई हुई सी पुर्णिमा तेज भागती हुई सीढ़ियों से नीचे उतरती है. और घबराहट में नीचे उतरती हुई वह दो खेड़ी एक ही बार में फांद जाती है, और सीधे बुआ जी से टकराती है. बुआ जी जोर से ...Read Moreहै..,”अरे..! होश कहां छोड़ आई है.. बदतमीज लड़की ऐसा क्या देख लिया.., जो यूं घबराई हुई सी भाग रही है...!” तभी पूर्णिमा बोल पड़ती है..," बुआ जी! आप सुनोगे तो आपके भी होश उड़ जाएंगे.., छोटी भाभी अपने कमरे में नहीं है, मैंने हर जगह ढूंढा वह कहीं नहीं ..है" पूर्णिमा बिना रुके एक ही सांस में सारी बातें
सुष्मिता ट्रेन की खिड़की से बाहर देखती हुई ताजी हवाओं को एक बार में ही अपनी सांसों में भर लेना चाहती है.... ऐसी ताजी हवाएं जो किसी कैदी को एक लंबे अंतराल के बाद कैद से मुक्ति के उपरांत ...Read Moreहोती है, सुष्मिता को ऐसे ही आजादी की अनुभूति इस वक्त हो रही थी.. वह इस आजादी को खुलकर अनुभूत करना चाह रही थी पिता के घर में तो उसके ऊपर इतनी पाबंदियाँ थी कि उसका वहां दम घुटता था. "घर.. घर क्या! .. बस एक जेलखाना ही था ,
ताराचंद अपने घर लौट आते हैं.घर आने पर अपनी पत्नी को रोता हुआ देख कर उनका क्रोध बढ़ जाता है. तभी ताराचंद की पत्नी उषा सिसकते हुए उनसे पूछती है, "सुष्मिता का कुछ पता.. च... ल.....". लेकिन डर में ...Read Moreइसके आगे कुछ कह नहीं पाती, मानो किसी अज्ञात डर ने उसके जुबान को जकड़ लिया हो... उसका इतना पूछना था और ताराचंद गुस्से से पागल हो जाते हैं,वहगुस्से में सामने रखे हुए कांच के गुलदान को हाथ में उठाकर उसकी ओर फेंकने ही वाले थे कि तभी उनके घर का नौकर उन्हें किसी के आने की सूचना देता है.
भरोसा और उम्मीद - यह दो ऐसी चीजें हैं जिसके सहारे इंसान मुश्किल से मुश्किल वक्त को भी काट लेता है. उम्मीद इस बात की, कि आने वाला कल आज से बेहतर होगा और भरोसा इस बात पर कि ...Read More सदैव एक सा नहीं रहता ..दुख की परिणति सुख में और सुख की परिणति दुख में होती ही रहती है...सुख और दुख का तो आना जाना लगा रहता है, और क्योंकि समय परिवर्तनशील है ....तो परिस्थितियां भी सदैव एक समान नहीं रहेगी… यह एक प्रकार की मानवीय प्रवृत्ति भी होती है कि अत्यंत दुख की घड़ी में भी वह
स्वीकृति 5 अप्रैल महीने का यह अभी दूसरा हफ्ता ही शुरु हुआ था और गर्मी का ग्राफ महंगाई की ग्राफ से भी आगे निकल चुका था. सुष्मिता खिड़की के पास रखे कुर्सी पर बैठी हुयी थी ...Read Moreउसने अपने दोनों पैर सामने के टेबल पर रखे हुए थे... इससे पहले वह कमरे में इधर से उधर 3 - 4 चक्कर अब तक लगा चुकी थी और अब थक कर कुर्सी पर बैठ गयी थी. सुष्मिता ऊपर लगे सीलिंग फैन को एक टक देखे जा रही थी. सीलिंग फैन खड..खड...की आवाज करते हुए घूम रहा था. वह थोड़ी झुंझलाती हुयी