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स्वीकृति - 8

स्वीकृति अध्याय आठ


सुष्मिता पार्सल को खोलती है तो पार्सल में नोटों के कुछ बंडल पड़े थे जिसे देखते ही उसके आंखों में विस्मय तथा संशय दोनों ही भाव एक साथ तैरने लगते हैं. एक साथ सैकड़ों सवाल उसके मन में उठने लगते हैं. बड़े ही आशंकित मन से वह नोटों के उस बंडल को अपने हाथों से उठाती है तभी नोटों के उस बंडल के बीच से कागज का एक छोटा सा टुकड़ा खिसक कर गिरता है, वह उसे उठाती है.

कागज की उस टुकड़े पर कुछ लिखा हुआ था . लिखावट उसे कुछ जानी पहचानी सी लगती है. उस पर लिखा था" जितना जल्दी हो सके इस जगह को छोड़कर कहीं और चली जाओ ...तुम्हारी जान को खतरा है ...यह कुछ रुपए है जो तुम्हारे काम आएंगे..तुम्हारा शुभचिंतक , "हेमा."..हेमा ...उसे याद आता हैं यह नाम तो वह अपने भाई हेमंत को...चिढ़ाने के लिए हेमा कहकर बुलाती थी. उसके हेमंत भैया ही है. उसकी आंखों से आसुओं की धारा फूट पड़ती हैं वह उस कागज के टुकड़े को हाथों में पकड़े फुट फुट कर रोने लगती है इतने दिनों के बाद किसी अपने के एहसास ने उसे भावविभोर कर दिया था अपने अश्रुओ को रोक पाना उसके लिए मुश्किल हुआ जा रहा था..पर फिर भी किसी तरह उसने खुद को नियंत्रित किया और उस कागज के टुकड़े को एक बार फिर से पढ़ना चाहा....,इसके आगे भी शायद कुछ लिखा था, परंतु आगे की लिखावट के कुछ हिस्से उसके आसुंओं से धुल गए थे जिसे पढ़ना कठिन हो रहा था. शायद लिखा था यदि बहुत जरुरी हो तभी इस नम्बर पर काॅल करना परंतु वह नम्बर ही उसके आसुंओं से मिट गया था.

सुष्मिता बेहद घबड़ा जाती है और घबराहट में संदीप के नंबर पर कॉल करने लगती है. परंतु हर बार अनरीचेबल आता है उसने कुछ ही मिनटों में ना जाने कितने ही कॉल कर दिए और अंत में मजबूर हो कर वह घर से बाहर की ओर निकल जाती है संदीप को ढूंढने के लिए. ऑफिस का पता उसने कभी संदीप के मुंह से सुन रखा था, उसी यादाश्त के आधार पर वह निकल पड़ती है.


शाम का वक्त था. हेमंत अपने कमरे में था ...तभी मीनल उसके पास आती है और हेमंत की ओर मुस्कुराती हुई देख कर कहती है, "काम हो गया .."

"हाँ, वह तो तुम्हारे चेहरे से ही झलक रहा है", हेमंत ने एक सरसरी नजर उसके चेहरे पर डालते हुए कहा.

"तो जनाब चेहरा भी पढ़ लेते हैं", मीनल ने रहस्यमयी मुस्कान छोड़ते हुए कहा.

" लेकिन किसी को शक तो नहीं हुआ.. मेरा मतलब है.. तुम्हारे अचानक दिल्ली जाने से.. चाचा जी ने यदि पूछा तो क्या जवाब दोगी..., हेमंत ने चिंता जाहिर की.

'तुम फिक्र मत करो.. तुम्हारे चाचा जी आंखें बंद कर भरोसा करते हैं मुझ पर ..वह मुझसे कभी कोई सवाल नहीं पूछते", मीनल ने बेपरवाही दिखाते हुए कहा.

" तुम्हारे चाचा जी ठहरे रूप के पुजारी ...मेरा जादू तो उनके सिर चढ़कर बोलता है वो भला मुझ पर शक कैसे करेंगे !..मैं उन्हें जो भी समझा दूंगी वही उनके लिए सत्य है ",मीनल खुद पर इतराते हुए कहती है.

"तुम्हें कभी खुद पर शर्म नहीं आती ...कहां तुम्हारी उम्र और कहां चाचा जी ...",हेमंत ने घृणा भरी दृष्टि से उसकी ओर देखा

"खैर मुझे इन बातों से क्या.. लेकिन एक बात बताओ.. मेरी मदद करने में तुमहारा क्या स्वार्थ था" हेमंत आगे भी बोलना जारी रखता है, “और फिर तुम जैसी लड़कीयाँ तो बिना स्वार्थ के कुछ भी नहीं करती..”


मीनल के आखों में नमी सी उतर आती है, जिसे वह हेमंत की नजरों से छुपाने की कोशिश करती हुई कहती है, "तुम बताओ तुम्हारे चाचा तुम पर इतना भरोसा करते हैं, तुम्हें तो अपने औलाद से भी बढकर मानते हैं..

"औलाद", माय फुट..!

"क्यों .. तुम्ही तो उनके सारे सम्पत्ति के.. "

"सम्पत्ति..कैसी सम्पत्ति...! हाँ, और किस तरह की विरासत..! जिस संपत्ति का तुम अभी बात कर रही हो और चाचाजी जिसका दम भरा करते हैं..वे मेरे पापा के द्वारा अर्जित की हुई है, जो पहले से ही मेरा.. " इतना कहते कहते हेमंत रूक जाता हैं.

"तुम्हे क्या लगता हैं कि मैं यहाँ सम्पत्ति के लिए आया हूं... मेरे यहां आने का मकसद बस एक ही था.. इस राक्षस से उसकी रक्षा.. ये आदमी किसी भी हद तक जा सकता हैं.. इसके लिए तो धन दौलत और इसके द्वारा बनाई गई इसकी झूठी प्रतिष्ठा ही सबकुछ है.. मेरी विवशता है कि मैं खुलकर कुछ नहीं कर सकता.. मै मजबूर हूं ..सच में , बहुत मजबूर ..! मुझे चाचीजी की फिक्र है.. , काश!

मैंने तभी कुछ किया होता... जब मेरे माता पिता का...सच्चाई जानते हुए भी मैं उस वक्त कुछ भी कर नहीं सका और आज तक चुप रहा इतना कहते कहते वह क्रोध में कापने लगता है.. और फिर खुद को संयत करते हुए आगे बोलता है..

"और तुम बताओ तुमहारा क्या स्वार्थ हैं.. और फिर तुम्हे उसका पता कैसे मिला..?

" जो पहले से ही मालूम है उसे ढुढने की आवश्यकता नहीं..

"क्या मतलब!

" मतलब कुछ नहीं.. संदीप मेरा भाई है.. हाँ, वह मेरा सौतेला भाई है.. काफी वर्षों से हम एक दूसरे से मिले नहीं है.. वो मुझसे नफरत करता है.. , लेकिन ,मैं उसके जिंदगी से जुड़ी हुई सभी जानकारी रखतीं हूं.. और यही कारण है कि मैंने तुम्हारी मदद की.. " मीनल ने बड़े ही शान्त भाव से हेमंत के समक्ष उन बातों का खुलासा कर दिया जिसकी भनक भी उसने आज तक ताराचंद को नहीं लगने दी थी.

और करती भी कैसे नहीं, उसके दिल में हेमंत के प्रति एक "साफ्ट कार्नर" शुरू से था हेमंत इस बात को बखूबी समझता था और सिर्फ यही एक वजह था कि हेमंत ने अपनी बहन की मदद के लिए उससे सहयोग लेने में विश्वास रखा..


ताराचंद एक तरह से मानसिक रोगी बन गया था. निरंतर हासिल करते रहने की उसकी इच्छा ने उसके मन को बीमार कर दिया था. धन के लालच में उसने अपने सगे भाई के साथ ऐसा छल किया था कि उसके बड़े से बड़े दुश्मन ने भी ना किया होता. उस वक्त हेमंत की उम्र 9 साल की थी. उसे आज भी वह दिन अच्छे से याद है उस दिन जब उसके माता पिता दूर किसी रिश्तेदार के यहां जा रहे थे तब उसकी तबियत थोड़ी खराब थी. अतः उन लोगों ने हेमंत को उसकी चाची के पास छोड़कर निकलने का फैसला किया. परंतु हेमंत उनके साथ ही जाने की जिद किए बैठा था और वह गाड़ी के पिछली सीट पर छुप कर जा बैठा था. उसके माता-पिता अगली सीट पर थे इस बात से अनजान कि हेमंत पिछली सीट पर छुपकर बैठा है. थोड़ी ही देर में गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली थी और फिर जब उसके पिता ने ब्रेक लगानी चाही तो एकदम से ब्रेक फेल हो गया और उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई. उन तीनों को हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उसके माता पिता का निधन हो गया. परंतु संजोग बस हेमंत किसी तरह बच गया. लेकिन इस घटना के कुछ वर्ष बाद हेमंत को इस कड़वी सच्चाई का पता चला. उन दिनों वह अपने छात्रावास से छुट्टियां बिताने घर आया था. उसे मालूम हुआ कि उसके पापा की सारी संपत्ति चाचा जी ने अपने नाम करवा ली थी और वह दुर्घटना दरअसल दुर्घटना नहीं एक साजिश थी , जिसे उसके चाचा जी ने रची थी. वह चाहता था कि इस सच्चाई को वह सबके सामने रख दे परंतु उसे चाची जी ने समझाया था कि ऐसा करने से कोई फायदा नहीं होगा. ऐसा करने पर उसके खुद की जान को खतरा हो सकता है. उसके चाचा जी कुछ भी कर सकते हैं उनकी पहुंच बड़े से बड़े मंत्रियों पुलिस अधिकारियों तक है बहुत मुश्किल से उसकी चाची ने उसे समझाबुझा कर चुप करा दिया था.

चाची ने सुष्मिता और उसके बीच कहीं कोई भेद नहीं की बल्कि सगी मां से भी बढ़कर उसे प्यार दिया यहीं कारण था कि वह अब तक चुप था परंतु बदले की अग्नि में वह हमेशा जलता रहता था.


नीचे उस बड़े हाॅल में ताराचंद उन नेताओं के बीच में बैठे हुए थे. इन नेताओं का यहां आने के पीछे का मकसद पार्टी के लिए चंदा लेना था चुनाव नजदीक आ रहा था. ताराचंद इन राजनीतिक पार्टियों को चंदा दिल खोल कर देते थे आखिर उन्हें भी अपने काले धन को सफेद करना होता था.


पांडे जी का इस तरह मुस्कुराना चौधरी जी को बिल्कुल पसंद नहीं आता. वह भीतर ही भीतर उनसे चिढे़ से रहते थे. वह इस फिक्र में रहते थे कि उनका वह मनपसंद चुनाव क्षेत्र जिससे वह चुनाव लड़ना चाहते हैं वह सीट कहीं पांडे जी को ना मिल जाए .. वो अक्सर उन्हें नीचा दिखाने में या उनका मजाक उड़ाने में लगे रहते थे.

अचानक ही चौधरी जी को जाने क्या सुझता है कि वे टेबल पर रखे एक गिलास को उठाते हुए पांडे की ओर इशारा करते हुए बोलते हैं.."चाहिए पांडेजी.."

पांडे हामी मे सिर हिलाता है ..., तो वह हंसते हुए बोलते हैं , "पानी नहीं है..,पांडे यह शराब है...शराब !...और वह भी अंग्रेजी शराब ....कभी चखी है ऐसी शराब ... और वह टेबल पर रखे शराब की बोतल की ओर इशारा करता है, जिसे थोड़ी देर पहले ही ताराचंद का नौकर उनके बीच एक ट्रे में कुछ नमकीन के साथ सर्व करके गया था...

चौधरी द्वारा पांडे का इस तरह मजाक उड़ाता देख मोटे एवं नाटे कद वाला नेता बीच में बोल पड़ता है ,"क्या चौधरी ! अरे क्यों तंग कर रहे हो बेचारे पांडे को...,जबकि तुम्हें अच्छे से पता है कि पांडे जी मंगलवार के दिन शराब को हाथ तक नहीं लगाते... बाकी दिन होता तो बात कुछ और थी ..अरे! पांडे जी ठहरे सच्चे हनुमान भक्त..,मंगलवार को मांस मदिरा से दूर रहते हैं और फिर चुटकी लेते हुए कहता है, " हां यह अलग बात है कि ये सप्ताह के बाकी सारे दिन बिना दारू और मांस के रह ही नहीं पाते हैं ". और वह दोनों फिर ठहाके लगाकर हंस पड़ते हैं . बेचारे पांडे जी टुकुर-टुकुर शराब की बोतल को ललचाई नजरों से देखते रह जाते हैं. मन तो उनका भी बहुत हो रहा था परंतु करते भी तो क्या ..नेता जी ने उनकी हनुमान भक्ति याद दिलाकर इस स्वर्गिक सुख और आनंद की अनुभूति को प्राप्त करने से वंचित कर दिया था..


"पार्टी चंदे के लिए कितनी रकम दे दूं " 'अचानक ताराचंद के द्वारा पूछे गए इस सवाल ने जैसे उनके ठहाकों के बीच में बाधा उत्पन्न कर दिया हो , वे दोनों ही अचानक चुप हो कर सवाल भरी दृष्टि से ताराचंद की ओर देखने लगते हैं मानो जैसे उन्हें कुछ भी समझ में ना आया हो.

ताराचंद फिर से अपना सवाल दोहराते हुए पूछते हैं, "हां , बताइए कितना दे दूं..?

"अरे , ताराचंद जी ,आज तक आपने जो भी खुशी पूर्वक दिया है हमने कोई सवाल नहीं किया हमने या हमारे पार्टी के किसी नेता ने अपनी तरफ से कोई मांग नहीं रखी खुशी से जो भी बन पड़ता है आप दे सकते हैं हमारा तो काम है देश और समाज की सेवा ...और फिर आज यह सवाल किसलिए!


" मतलब आप अच्छे से समझ रहे है , मैं व्यापारी आदमी हूं हर काम की कीमत देता और लेता हूं. मुझे आपसे कुछ और भी काम है . .


"कीमत जो भी आप कहे.. आप या आपके पार्टी के नेता प्रमुख जो भी कीमत मांग करते हैं वो सारी कीमत... सभी कुछ.. सभी कुछ से मेरा मतलब आप समझ रहे हैं न.. अच्छे से समझ रहे होंगे..... कीमत जब जहां कहे भेज दिया जाएगा.. परंतु बदले में मुझे आपके पुलिस, प्रशासन ,मिडिया सबकी जरूरत पड़ेगी...


" किस तरह की मदद चाहिए.. कहना क्या चाह रहे हैं ताराचंद जी आप ! जरा स्पष्ट करेंगे.. हमने और हमारी पार्टी ने हमेशा आपको सहयोग दिया है हमेशा आपकी मदद की है चाहे हम सत्ता में थे या विपक्ष में . हमारा सहयोग तो हमेशा आपको मिला है हमारा आपका रिश्ता आज का नहीं.सालों से हमने एक दूसरे को सहयोग दिया है इसमें समझने वाली बात तो कुछ भी नहीं लगती .." चौधरीजी ने आश्चर्य जताते हुए कहा.


" तो ठीक है.., सबसे पहले आप अपने उस मिडिया कर्मी.. क्या नाम है उसका.. खैर जो भी है.. उन्हें फोन करे और उसे अपने चैनल के माध्यम से एक न्यूज़ फलैश करने का निर्देश दे जो कुछ इस तरह से होगा ... "दहेज के लोभी ससुराल वालों ने किया लड़की को गायब हत्या की भी आशंका.. शहर के नामी उधोगपति ताराचंद की इकलौती बेटी को उसके ही ससुराल वालों ने पैसे के लालच में किया गायब..!


कल सुबह तक यह न्यूज़ सभी टीवी चैनल्स में दिखाया जाना चाहिए.. जिससे पब्लिक प्रैशर बने ... मेरी बेटी के ससुराल वालों की गिरफ्तारी दो दिनों के अन्दर हो जानी चाहिए..


"लेकिन, कैसे संभव है ... आपकी बेटी खुद किसी के साथ भागी थी... यह तो पुरा शहर जानता है.. और वैसे में ...मेरा मतलब है.... "


"मतलब वतलब कुछ नहीं... ताराचंद ने बड़े गुस्से में पान्डे जी की बात बीच में ही काटते हुए कहा. और ये बात मुझे नहीं लगता कि आप में से किसी को भी मुझे खास तरीके से समझाने की आवश्यकता है...

आप सबों को जो भी रास्ते अपनाने है जैसे भी करना है करे...

आप सभी अनुभवी है.. करना आप सबको हैं... पर हां, पैसे या फिर किसी और चीज की आप चिंता न करें.. जहां भी पहुंचाने की आवश्यकता पड़ेगी पहुंचा दी जाएगी.. "


" वो सब तो ठीक है.. पर मुश्किल यह है कि राज्य में हमारी सरकार नहीं है.. पुलिस और प्रशासन हमारे पकड़ के बाहर है.. यदि हम सत्ता में होते तो कोई भी दिक्कत नहीं होती.." उस नाटे कद के नेता ने अपनी असमर्थता समझानी चाही.


"मुझे मत समझाइए.. मैं अच्छे से समझता हूं.. सत्ता में विपक्ष और पक्ष का मतलब.. ये सब जनता को उल्लू बनाने के लिए है... राजनीति में सभी अपने हैं और सभी पराये भी., क्या सत्तारुढ दल के उन दो मन्त्रियों.. खैर, उनका नाम लेना मैं आवश्यक नहीं समझता.. क्या उनके साथ आज भी आपके घनिष्ठ संबंध नहीं है.. आने वाले चुनाव में बहुमत न मिलने की स्थिति में आपलोगो ने, क्या गठबंधन की सरकार बनाने का विकल्प खुला नहीं रखा है?

अब काम किस तरह से करवाने है और किस तरह के हथकंडे अपनाने है ये आप समझे.." ताराचंद ने अकड़ते हुए कहा.


"ठीक है काम हो जाएगा .. परंतु इस कार्य में खर्च काफी करने पड़ेंगे... मेरा मतलब है काफी लोगों को खिलाना पिलाना पड़ेगा.." चौधरी ने हामी भरते हुए अपनी बात समझानी चाही.


"आपकी बात मै समझ गया हूं.. "

आप इस बात की चिंता नहीं करे.. मुंहमांगी कीमत दी जाएगी..", ताराचंद ने कहा.

क्रमशः


गायत्री ठाकुर