युगांतर - Novels
by Dilbag Singh Virk
in
Hindi Moral Stories
शहर से दूर, गाँव से बाहर, महलनुमा हवेली यादवेन्द्र की है। यह सिर्फ भूगौलिक रूप से ही गाँव व शहर से अलग नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से भी यह गाँव और शहर से कटी हुई है। क्यों कटी ...Read Moreहै ? शायद इसका कारण यही है कि समाज उनके लिए है, जो समाज के लिए हैं। जो समाज के विषय में नहीं सोचते, समाज उनके विषय में क्योंकर सोचे, लेकिन यादवेन्द्र को इसकी कोई चिंता नहीं। लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, इसकी उसे परवाह नहीं। वह तो अपनी धुन में मस्त है। वह अपने ढंग से कमाता है और अपने ढंग से जीता है। लोगों को उसके ढंग से हानि होती है या लाभ यह सोचना उसका काम नहीं।
भले ही वह समाज से कटा हुआ है, फिर भी समाज से उसका एक नाता बचा हुआ है। यह नाता भावनाओं का न होकर व्यवसाय का है। सिर्फ़ व्यवसाय की दृष्टि से कुछ लोगों से मिलता है और अपने आदमियों के द्वारा समाज से धनार्जन करता है। वैसे शौक तो उसे राजनीति का भी है, उस राजनीति का जिसमें वही लोग सफल होते हैं, जो जनता को अपना भाग्य निर्माता समझकर उनके दुख-दर्द को बँटाते हैं। समाज से नफ़रत करने वाला सफल राजनेता नहीं हो सकता, लेकिन यह शर्त एक तरफ़ा है, क्योंकि दूसरी तरफ़ है धन-दौलत, जो इस शर्त को झुठला देती है।
शहर से दूर, गाँव से बाहर, महलनुमा हवेली यादवेन्द्र की है। यह सिर्फ भूगौलिक रूप से ही गाँव व शहर से अलग नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से भी यह गाँव और शहर से कटी हुई है। क्यों कटी ...Read Moreहै ? शायद इसका कारण यही है कि समाज उनके लिए है, जो समाज के लिए हैं। जो समाज के विषय में नहीं सोचते, समाज उनके विषय में क्योंकर सोचे, लेकिन यादवेन्द्र को इसकी कोई चिंता नहीं। लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, इसकी उसे परवाह नहीं। वह तो अपनी धुन में मस्त है। वह अपने ढंग से कमाता
शिक्षा तो तपस्या है और तपस्या करनी ही पड़ती है, खरीदी नहीं जाती। धन पुस्तकें खरीद सकता है, ज्ञान नहीं। हाँ, कभी-कभार डिग्रियाँ भी पैसे के बल पर मिल जाती हैं, लेकिन डिग्रियाँ प्राप्त करने और शिक्षित होने में ...Read Moreका अन्तर है। जो लोग डिग्रियाँ खरीदते हैं, उनकी तो छोड़ो, जो पढ़कर डिग्रियाँ हासिल करते हैं, वे भी सारे-सारे शिक्षित हो गए हों, ऐसा नहीं होता। यदि किसी को सिन्धुघाटी, न्यूटन, त्रिकोणमिति आदि का ज्ञान है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह बुद्धिमान है। परीक्षा में अंक प्राप्त करना और जीवन में सफल होना दो अलग-अलग बाते हैं।
स्कूल के अध्यापक को फटकारने के उद्देश्य से वह अगली सुबह स्कूल जा धमका। शिष्टाचार की रस्म को निभाना न तो बेटे ने उचित समझा और न ही बाप ने। मास्टर जी तब बैठे काम कर रहे थे। प्रतापसिंह ...Read Moreपास जाकर गरजे, "आपने मेरे बेटे को क्यों मारा?"मास्टर जी ने यादवेन्द्र की तरफ देखा, जो अपने पिता की ऊँगली पकड़े मुस्करा रहा था और फिर प्रतापसिंह को ओर देखते हुए बोले, "एक तो यह कभी भी घर से स्कूल का काम करके नहीं लाता, दूसरा इसने कल एक लड़के को मारा।""तो बच्चों की लड़ाई में आपको दखल देने की
जब जवानी का जोश और अमीरी का नशा हो, तब पढ़ना कौन चाहेगा? फिर यादवेन्द्र के लिए तो यह पढ़ाई आफत के सिवा और कुछ थी ही नहीं, इसलिए उसका बैल के सींग पकड़ना दुश्कर ही लग रहा था ...Read Moreउसने यह दुस्साहस भी कर ही लिया, क्योंकि उन दिनों 2 स्कूल और कॉलेज दोनों में होती थी और उसने सुन रखा था कि कॉलेज में स्कूलों की तरह न पढ़ने पर मार नहीं पड़ती, अनुशासन भी उतना सख्त नहीं होता और इसी बात को ध्यान में रखते हुए, उसने 10 1 के लिए कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज
कॉलेज के चुनावों में आम चुनावों अर्थात लोकसभा, विधानसभा, नगरपालिका, पंचायत आदि के चुनावों की तरह वोट खरीदे नहीं जाते, क्योंकि कॉलेज के विद्यार्थी जागरूक होते हैं। वे वोट बेचने को अपनी शान और अपने अधिकार दोनों के खिलाफ ...Read Moreहैं, लेकिन कॉलेज के चुनावों पर भी अन्य चुनावों की तरह ही खूब खर्च होता है, क्योंकि वोटरों के लिए पार्टियों आदि का आयोजन होता है, इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से वोट खरीदे जाते हैं। कुछ उन पागल विद्यार्थियों का, जो दूसरी पार्टी के समर्थक हैं, अपहरण भी करना पड़ता है। अपहृत किए हुए विद्यार्थियों से बुरा व्यवहार करना कॉलेज
किसी भी विधायक को मंत्री बनने के बाद अपने सहयोगियों का उद्धार करने की सोच ज़रूर रखनी चाहिए। उसका अपना उद्धार तो उसी दिन हो जाता है, जिस दिन वह चुनाव जीतता है, लेकिन जिन सहयोगियों ने उसकी जीत ...Read Moreमुमकिन बनाया होता है, उनका उद्धार तब तक नहीं हो पाता, जब तक नेता जी अपना आशीर्वाद उन्हें प्रदान नहीं करते। आमतौर पर सभी नेता मलाई मिलते ही अपने सहयोगियों को भी थोड़ा-बहुत हिस्सा देना शुरु कर देते हैं। आखिर इन्हीं सहयोगियों की मदद से तो वे यहाँ तक पहुँचते हैं। फिर ये सहयोगी अपना घर-बार चौपट करते हैं, तो
रास्ते भर विचारों का ज्वार-भाटा उसके मस्तिष्क में उठता रहा। उसने पिताजी से पूछने की बात कही थी, लेकिन पूछने से पहले वह खुद भी इस निर्णय से सहमत होना चाहिए था। वह खुद से पूछ रहा था कि ...Read Moreयह उचित है ? एक पल वह सोचता कि इसमें खतरा है, लेकिन अगले ही पल वह खुद को समझाता कि सरकार अपनी है। कभी वह सोचता कि यह अनैतिक है और कभी उसे लगता कि इसमें पैसा है। यादवेन्द्र जो अपनी आर्थिक हालत से इस वक्त बौखलाया हुआ है, वह जानता है कि 'गरीबी तेरे तीन नाम, झूठा, पाजी,
चिंता और जीवन का तो चोली दामन का साथ है। जीवन रूपी सागर में चिंता रूपी लहरें उठती ही रहती हैं। प्रतापसिंह भी इसका अपवाद नहीं । उसे भी हर वक्त कोई-न-कोई चिंता लगी ही रहती है। वैसे कोई ...Read Moreचिंता स्थायी नहीं होती। यह भी प्रकृति का एक नियम है। हर कोई इस सच को जानता है, फिर भी हम तनावमुक्त रह नहीं पाते। चिंताओं से घबराना हमारी आदत बन गयी है। जिन्दगी के लम्बे सफर में अनेक चिन्ताओं पर अपनी विजयपताका लहराने वाला प्रतापसिंह अब भी चिंतित है। अब उसकी चिन्ताएँ पहले वाली चिंताओं से कुछ भिन्न प्रकार
कारण जो भी हो, परिणाम यह है कि शादी का दिन आ गया। 'शादी पर खर्च न हो' यह हजम होने वाली बात नहीं । हम खर्च कम नहीं कर सकते, भले ही हमें इस खर्चे से निपटने के ...Read Moreचोरी करनी पड़े या डाका डालना पड़े। इस परिवार ने धन कैसे कमाया था, यह बात भूलकर खर्च, इस तर्क के साथ कि और कमाए किस दिन के लिए जाते हैं, बड़ी दरियादिली से किया जा रहा है। सारी हवेली बिजली के बल्बों से चमचमा रही है। लाईट का प्रबन्ध रहे, इसके लिए एक जरनेटर भी चल रहा है। जनरेटर
मायके जाने का ख्याल भले उसे आया, लेकिन उसे पता था कि इस प्रकार मायके जाना अच्छी बात नहीं। 'पति-पत्नी में अगर तकरार हो जाए तो मायके का रौब नहीं दिखाना', यही तो सिखाया था उसकी माँ ने। वह ...Read Moreभी समझती थी कि रूठकर मायके जाने से रिश्ता नहीं निभ सकता। पति अब कैसा भी काम करता हो, अब उसका पति है। पत्नी के नाते वह पति से हर बात जानना चाहती है। पति की उसे चिंता है, इसीलिए वह पति से बात करना चाहती थी, उसे समझाना चाहती थी कि वे गलत कार्य न करें क्योंकि गलत कामों
राजनीतिज्ञों की जिन्दगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज है चुनाव। राजनीतिज्ञ चाहे छोटा हो या बड़ा, चुनाव के समय हर खुशी, हर गम को भूल जाया करता है। चुनावों के दिनों में सोते जागते बस यही एक बात ध्यान में ...Read Moreहै कि कैसे जीता जाए, कैसे वोट हासिल किए जाए। तिकड़मबाजी के इस क्षेत्र में अपना कौशल दिखाने का समय फिर आ गया है। यादवेन्द्र अपने माँ-बाप की मृत्यु के गम को भुलाकर चुनावों के लिए प्रचार अभियान में जुट गया। उनकी सरकार ने पाँच वर्ष तक राज्य चलाया था। पहले चार वर्ष तो सरकार वालों ने अपने घर भरे
शांति जानती थी कि बड़ी मंजिल पाने से पहले छोटे-छोटे मोर्चे फतेह करने पड़ते हैं। वह सरकारी नौकरी करती थी, लेकिन नौकरी तक सीमित रहना उसका मकसद नहीं था। उसका पहला पड़ाव था अपने महकमें में धाक जमाना, लेकिन ...Read Moreअफसर मि. चोपड़ा थोड़ा खडूस किस्म का था। नियमों पर चलता था और शांति का लावण्य उस पर असर नहीं दिखा रहा था। शांति अपनी सुंदरता के इस अपमान को सहन नहीं कर पा रही थी, इसलिए वह अपनी फरियाद लेकर यादवेंद्र के पास पहुँची। वैसे भी वह जब से शहर में आई थी, यादवेंद्र से मिलना चाह रही थी।
यादवेंद्र यहाँ क्लीवेज को देख रहा था, वहीं परेशान होने का अभिनय भी कर रहा था। "आप तो गहरी सोच में पड़ गए।" - शांति ने धीरे से उनका हाथ अपने नाजुक हाथो में लेकर सहलाते हुए कहा। "सबूत ...Read Moreचाहिए ही, भले झूठा ही हो।" - यादवेंद्र ने अपनी परेशानी का कारण बताया। आँखों के मयखाने में चतुराई का जाम भरते हुए शांति बोली, "अगर आप चाहें तो हम खुद ही सबूत बन जाएँ।" यादवेन्द्र ने शांति की गर्म साँसो को अपने करीब अनुभव करते हुए और उससे आनन्दित होते हुए कहा, "हम तो चाहेंगे ही।" शांति ने अपने