Mujahida - Hakk ki Jung book and story is written by Chaya Agarwal in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mujahida - Hakk ki Jung is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मुजाहिदा - ह़क की जंग - Novels
by Chaya Agarwal
in
Hindi Moral Stories
तलाक .....तलाक ......तलाक....... इन तीन अल्फ़ाजों को, बिल्कुल किसी मालिकाना हक की तरह बोल कर, उसका शौहर आरिज़ कमरें से बाहर निकल गया।
जलजले की तरह आये इन लब्जों के मायनों ने उस बैडरूम में कोहराम मचा दिया था। उस कमरें के सारे काँच दरक गये और दीवारें चटखने लगीं थीं। कमरें में मौत जैसा सन्नाटा छा गया था। वह बुत की तरह बैड पर बैठी हुई थी और घुटनों को मोड़ कर सीने से लगा लिया था उसके बाजुओं का घेरा घुटनों के इर्द-गिर्द फैला हुआ था और चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थीं। आरिज़ के इन अल्फ़ाज़ों ने उसके कानों के परदों को फाड़ दिया था। जो अभी-अभी वह कह कर कमरें से बाहर निकल गया था। "या अल्लाह...! ये हमनें क्या सुना है? ये कौन से गुनाह की सजा है? रहम कर हे! पर्वरदिगार..हम पर रहम कर..."
फिज़ा ने अपने दोनों कानों को अपने हाथों से ढ़ाँप लिया। उसे लग रहा था जैसे उफनता हुआ गर्म लावा किसी नें उसके कानों में डाल दिया हो और उसकी गर्मी से उसका पूरा जिस्म पिघल रहा हो। पूरा का पूरा बैडरुम धरती की तरह अपनी धुरी पर घूम रहा था। होंठ सिल गये थे और अब्सार से आसूँओ का रेला फूट पड़ा था।
वह गूँगी -बहरी सी हो गयी। हाथ-पाँव काँप रहे थे और दिल धड़क कर गर्दन में अटक गया था। दीवार पर लगी तस्वीरें काँपने लगी थीं और कमरे की वाकि चीजें धुँआँ-धुँआँ सा होकर आड़ी- तिरछी रेखाओं में तबदील हो गयी थीं। आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा और वह पलंग पर कच्चे घड़े की तरह लुढ़क पड़ी। रोते-रोते वह बेहोश हो गयी थी और घण्टे भर बेहोश ही पड़ी रही।
भाग 1तलाक .....तलाक ......तलाक....... इन तीन अल्फ़ाजों को, बिल्कुल किसी मालिकाना हक की तरह बोल कर, उसका शौहर आरिज़ कमरें से बाहर निकल गया। जलजले की तरह आये इन लब्जों के मायनों ने उस बैडरूम में कोहराम मचा दिया ...Read Moreउस कमरें के सारे काँच दरक गये और दीवारें चटखने लगीं थीं। कमरें में मौत जैसा सन्नाटा छा गया था। वह बुत की तरह बैड पर बैठी हुई थी और घुटनों को मोड़ कर सीने से लगा लिया था उसके बाजुओं का घेरा घुटनों के इर्द-गिर्द फैला हुआ था और चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थीं। आरिज़ के इन अल्फ़ाज़ों
भाग 2उसने नजर उठा कर पूरे घर का चप्पा-चप्पा निहारा था। दीवारों को हाथ से छुआ था। आइने को देख कर आँखें छलछला पड़ी थीं, ये वही आइना था जिसमें सुबह-शाम वह दौड़ी-छूटी खुद को निहारा करती थी। कभी ...Read Moreजान से नजर बचा कर तरह-तरह के चेहरे बनाती तो कभी खुद पर ही लजा जाती और मुस्कुरा कर भाग जाती। उसने विदाई के वक्त घर के फर्नीचर से लेकर छत तक सब से विदाई की इजाज़त माँगी थी। घर के सामान से, भरी हुई आँखों ने छुप कर बातें भी की थीं, बगैर ये जाने उन्होनें सुनी भी होगीं
भाग 3आरिज़ ने तो कई बार उसके साथ मार-पीट भी की थी। तब भी कोई कुछ नही बोला था। उसका गुनाह था कि उसने कठपुतली बनने से इन्कार कर दिया था। मजलूम औरतों के हक़ के लिये लड़ने की ...Read Moreथी। ये दो चीजें थी जो उन्हें नश्तर के माफिक चुभ रही थीं। हलाँकि एक हद तक उसने सहा भी था।उनके बाहर निकल जाने के बाद फिज़ा ने जैसे ही खुद को महसूस किया एक अन्जाने दर्द से वह चिल्ला उठी। गिरियां कर रो पड़ी। पेट के निचले हिस्से में भयंकर दर्द उठा था, साथ ही उसे अपने नीचें कुछ
भाग 4उसकी सारी जान जैसे निकल चुकी थी और वह बेसुध हो गयी थी। सिर्फ आरिज़ की अम्मी ही उसके साथ थीं, आरिज़ भी नही। वह होता भी क्यों? अब उसके साथ उसका रिश्ता बचा ही क्या था? वैसे ...Read Moreतो उसकी अम्मी के साथ भी नही बचा था, मगर हालात के मद्देनजर उन्हे ये करना पड़ा था। जिसमें उनकी मर्जी शामिल नही थी। उनकी बेरुखी इस बात की गवाह थी। वैसे भी उनका होना या न होना बराबर ही था।अस्पताल आ गया था। ड्राइवर चाचा ने अस्पताल के ठीक गेट के पास गाड़ी लगाई थी ताकि फिज़ा को उतरने
भाग 5दो जोड़ा कपड़े लेकर वह मायके आ गयी थी। ये दो जोड़ा कपड़े वही थे जो चलते समय आरिज़ की अम्मी ने एक बैग में रखे थे। शायद उन्होंने पहले से तय कर रखा था कि अब इसे ...Read Moreघर नही लाना है। इसके वालदेन तो आ ही रहे हैं वहीँ उन्हें सौंप दिया जायेगा। फिज़ा का नकाब आँसुओं से भीग-भीग कर तर हो चुका था। घर आते ही अम्मी से लिपट कर बिलख पड़ी। अब वह खुल कर रो पाई थी। दहाड़े मार-मार कर रो रही थी। घर में कोहराम मच गया। उसकी आँखों से जारो-कतार आँसू बह