Hanuva ki Patni book and story is written by Pradeep Shrivastava in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Hanuva ki Patni is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
हनुवा की पत्नी - Novels
by Pradeep Shrivastava
in
Hindi Fiction Stories
हनुवा धारूहेड़ा, हरियाणा से कई बसों में सफर करने, और काफी पैदल चलने के बाद जब नोएडा सेक्टर पंद्रह घर पहुंची तो करीब ग्यारह बजने वाले थे। मौसम में अच्छी खासी खुनकी का अहसास हो रहा था। चार दिन बाद दीपावली थी। हनुवा का मन रास्ते भर नौकरी, अपने घर भाई-बहनों, मां-बाप पर लगा हुआ था। दीपावली के एकदम करीब होने के कारण बहुत सी जगहों पर उसे रास्ते में दोनों तरफ घरों और बहुत सी बिल्डिंगों पर रंग-बिरंगी लाइटें सजी दिख रही थीं।
हनुवा धारूहेड़ा, हरियाणा से कई बसों में सफर करने, और काफी पैदल चलने के बाद जब नोएडा सेक्टर पंद्रह घर पहुंची तो करीब ग्यारह बजने वाले थे। मौसम में अच्छी खासी खुनकी का अहसास हो रहा था। चार दिन ...Read Moreदीपावली थी। हनुवा का मन रास्ते भर नौकरी, अपने घर भाई-बहनों, मां-बाप पर लगा हुआ था। दीपावली के एकदम करीब होने के कारण बहुत सी जगहों पर उसे रास्ते में दोनों तरफ घरों और बहुत सी बिल्डिंगों पर रंग-बिरंगी लाइटें सजी दिख रही थीं।
उन सबके हावभाव से साफ पता चलता है कि वे नहीं चाहते कि मैं उन लोगों के पास पहुंचूं। सब कितनी फॉर्मेलिटी करते हैं। कहीं मैं उन सबको कुछ ज़्यादा ही तो परेशान नहीं करने लगी? वो सब मुझे ...Read Moreखुशियों पर लगा ग्रहण मानते हैं। मुझे अब यह सब समझना चाहिए। अपने स्वार्थ के लिए कब तक उनके लिए ग्रहण बनी रहूंगी। वो मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं। मैं ही पीछे पड़ी रहती हूं। मगर लगता है कि अब समय आ गया है कि मैं बोल्ड स्टेप लूं। उन सब लोगों से अब हमेशा के लिए सारे रिश्ते खत्म कर लूं।
एक बार बुआ की लड़की की शादी में घर के सब लोग जा रहे थे। लेकिन पैरेंट्स मेरी कंडीशन के कारण ही मुझे लेकर नहीं जाना चाहते थे। वो एक पड़ोसी को जिन्हें हम सारे भाई-बहन दादी कहते थे ...Read Moreउन चार-पांच दिनों के लिए घर पर मेरे साथ छोड़ कर जाने की तैयारी कर चुके थे। मुझे इसका पता तक नहीं था। तब तक मैं इंटर पास कर चुकी थी। सारे-भाई बहनों के कपड़े बने। लेकिन मेरे लिए नहीं। लेकिन ये मेरे लिए बड़ी बात नहीं थी। मेरे साथ चाहे त्योहार हो, या कोई भी अवसर, कपड़े लत्ते मेरे लिए म़जबूरी में ही बनते थे। एक्स एल साइज ना होता तो शायद उतरने ही मिलतीं।
‘वही जो अब मैं हूं। थर्ड जेंडर। उस समय तो यह शब्द सुना भी नहीं था। तब के शब्द में हिजड़ा। उसी समय से मेरी आवाज़ के साथ-साथ अब शरीर भी लड़कियों सी स्थिति में आने लगा। मेरे लड़कियों ...Read Moreकट्स बनने लगे। कमर, हिप, थाई लड़कियों सी कर्वी शेप लेने लगे। ग्यारह होते-होते निपुल लड़कियों की तरह बड़े-बड़े इतने उभर आए कि मोटी बनियान, शर्ट पहनने पर भी साफ उभार दिखाई देता। मां मेरी बनियान को पीछे से सिलकर खूब टाइट कर देती। मगर सारी कोशिश बेकार। स्कूल में साथी अब आवाज़ के साथ-साथ इसको भी लेकर चिढ़ाने लगे।
‘सॉरी हनुवा मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतना नाराज हो जाओगी।’‘अरे कैसी बात कर रही हो? सांभवी तुम तो मेरी जान बन चुकी हो। नाराजगी शब्द तुम्हारे लिए मेरी डिक्सनरी में है ही नहीं।’ इतना कहते-कहते हनुवा ने ...Read Moreही देर पहले ही फिर से सामने आ बैठी सांभवी को गले लगा लिया। और जब उससे अलग हुई तो उसकी आंखें भरी हुई थीं। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें सुर्ख हो गई थीं। बहुत ही भर्राई आवाज़ में बोली।