Hanuva ki Patni - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

हनुवा की पत्नी - 5

हनुवा की पत्नी

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 5

‘सॉरी हनुवा मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतना नाराज हो जाओगी।’‘अरे कैसी बात कर रही हो? सांभवी तुम तो मेरी जान बन चुकी हो। नाराजगी शब्द तुम्हारे लिए मेरी डिक्सनरी में है ही नहीं।’ इतना कहते-कहते हनुवा ने कुछ ही देर पहले ही फिर से सामने आ बैठी सांभवी को गले लगा लिया। और जब उससे अलग हुई तो उसकी आंखें भरी हुई थीं। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें सुर्ख हो गई थीं। बहुत ही भर्राई आवाज़ में बोली।

‘फिर ऐसा ना सोचना, तुम्हें मैं अपना हिस्सा मान चुकी हूं। मेरा मन यही कहता है कि इस दुनिया में अब सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हीं हो मेरी। तुमने अगर छोड़ा तो मेरे सामने मरने के सिवा कोई रास्ता ही नहीं होगा।’

हनुवा की भावुकता के सामने सांभवी भी ठहर ना सकी। अब उसने हनुवा को अपने गले से चिपका लिया। बोली ‘हनुवा-हनुवा मेरी हनुवा, मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। अब तुम ही मेरी सब कुछ हो। सब कुछ।’

इतना कहते हुए जब सांभवी अलग हुई तो उसकी भी आंखें भरी थीं। कुछ सेकेंड वह हनुवा के चेहरे को अपलक देखती रही फिर बोली ‘तुम्हारी उस टीचर ने तुम्हें किस तरह डंक मारा कि तुम जीवन भर उसके दर्द को महसूस करोगी यह तो बताया ही नहीं। बातों का ट्रैक ही बदल गया। कहां से कहां चले गए हम दोनों।’

‘हां सही कह रही हो तुम। बात तो मैं अपनी टीचर की कर रही थी। मन तो नहीं करता कि उनके लिए टीचर जैसे पवित्र शब्द का प्रयोग करूं। लेकिन मेरा कॅरियर बनाने में उनका इतना बड़ा हाथ है कि या ये कहें कि एक मात्र उन्हीं का हाथ है जिसकी वजह से उन्होंने मुझे जो पीड़ा दी जीवन भर की उसे मैं थोड़ा साइड कर देती हूं।

गुस्सा तो बहुत आता है। लेकिन फिर भी उनके लिए मन में कोई गंदा शब्द नहीं आता। कोई गाली नहीं आती। उस दिन जब स्कूल से बड़े प्यार दुलार से शाम को मुझे घर भेजा तो मैं बहुत खुश थी। लेकिन मैंने घर में किसी को कुछ नहीं बताया। अगले दिन स्कूल में नाएला जी ने मुझसे कहा कि उनके घर पर शाम को छः बजे तक कुछ लड़कियां पढ़ने आती हैं। मैं भी आ जाया करूं तो वह पढ़ा देंगी। इससे मेरे मार्क्स और अच्छे आएंगे। मैं अपने घर और अपने बारे में उन लोगों की इच्छा -अनिच्छा सब जानती थी, और यह भी कि मुझ पर एक पैसा भी एक्स्ट्रा खर्च करने वाले नहीं है। अलग से ट्यूशन की तो बात ही नहीं उठती।

इसलिए मैंने उनसे साफ कह दिया कि मैं नहीं आ सकती। मेरे मां-बाप फीस किताब ही मुश्किल से देते हैं। ट्यूशन का नाम सुनते ही मार भी सकते हैं। इस पर वह बोलीं ‘मैं तुम्हें पढ़ाई-लिखाई में इतना आगे बढ़ाना चाहती हूं कि तुम आगे चल कर किसी पर डिपेंड ना रहो। बल्कि घर की भी हेल्प कर सको। इतने अच्छे मार्क्स लाओ कि तुम्हें मैं स्कॉलरशिप दिला सकूं। पढ़ाने के लिए मैं तुम्हारे पैरेंट्स से एक पैसा नहीं चाहती।’

मैंने घर पर कहा तो मुझे झिड़क दिया गया। अगले दिन नाएला जी ने सारी बात सुनने के बाद भी हार नहीं मानी। तीन चार दिन में दुकान पर फादर से बात कर ली। फादर की दुकान के बगल में ही पी.सी.ओ. था। ज़रूरत पड़ने पर हम लोग उसी पर संपर्क करते थे। नाएला जी फादर को कंविंस करने में सफल रहीं। और अंततः पांचवें दिन से मैं उनके घर पढ़ने जाने लगी। मेरे अलावा चार लड़कियां और आतीं थीं।

मेरे घर से उनका घर करीब बीस मिनट की दूरी पर था। ऊपर दो कमरे का मकान उन्होंने किराए पर लिया था। नीचे मकान मालिक रहते थे। पढ़ाते समय वो किसी एक लड़की को बोल कर सबके लिए चाय बनवातीं। अपना प्रिय पारले जी बिस्कुट खुद भी खातीं और हम सबको भी देतीं। कमरे में वह एक तखत पर कभी लेटे-लेटे पढ़ातीं तो कभी बैठ कर। कोई निश्चित टाइम नहीं था। कभी डेढ़ घंटा, कभी दो घंटा।

पढ़ना शुरू करने के बाद जब दूसरा संडे आया तो उन्होंने कहा कल भी दोपहर तक आ जाना। बता कर आना कि देर से आऊंगी। इतने दिन की पढ़ाई से मैंने खुद अपनी पढ़ाई में फ़र्क महसूस किया था। घर वालों ने भी। मेरी तरह वो लोग भी इंप्रेस थे। इस लिए संडे को मैं करीब एक बजे पहुंच गई। उस समय वो हफ्ते भर के कपड़े धुल चुकीं थीं। कमरे से लगी अच्छी-खासी बड़ी सी छत पर तार की अरगनी पर फैला रही थीं।

उन्होंने जो मैक्सी पहन रखी थी वह भी करीब-करीब पूरी भीगी थी। बदन से मैक्सी चिपक-चिपक जा रही थी। वह मुझे बड़ी अजीब लग रही थीं। सामने से मैक्सी का काफी हिस्सा ऊपर तक खुला था। चलने पर उनकी जांघें तक खुल जाती थीं। उनका गोरापन देखकर मैंने सोचा टीचर जी का आधा गोरापन भी मिल जाता हम भाई-बहनों को तो कितना अच्छा था। वह मुझे कमरे में बैठने को बोलकर काम में लगी रहीं।

मैं घर में काम करने की आदी तो थी ही। उनको ऐसे मेहनत करते देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने हेल्प करने की कोशिश तो वो नहीं मानीं। लेकिन मैंने भी उनकी बात नहीं मानी। उनके लाख मना करने पर भी हेल्प की। बाल्टी में चादरें थीं, उन्हें भी धुल कर डाला। कपड़ों के बाद वो पूरी छत धोकर नहाना चाहती थीं। मैंने कहा आप नहाइए। छत मैं धोऊंगी। वो बड़ी मुश्किल से मेरी बात मानीं।

मैंने देखा छत बीच-बीच में तो धो ली जाती है लेकिन किनारे-किनारे दिवारों के पास बहुत गंदी है। मैं अपनी सफाई पसंद नेचर के चलते एक-एक कोने को पूरी तरह साफ कर जब कमरे में पहुंची तब तक नाएला जी दो कप चाय, एक प्लेट में बिस्कुट, ढेर सा सेवड़ा (मैदा से बनीं नमकीन) और दो लौंगलता तखत पर रख चुकी थीं। मुझसे उसी पर बैठने को कहा। हम सभी स्टूडेंट उनके सामने जमीन पर दरी बिछा कर बैठते थे। मैंने संकोच में नीचे ही बैठने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानीं। तखत पर उन्हीं के सामने बैठी। बीच में नाश्ता था। पहले मिठाई फिर नमकीन, चाय हम दोनों ने खाई पी। मुझे वो बार-बार खाने को कहतीं तभी मैं लेती थी।

मैं बहुत डर रही थी। नाश्ते के दौरान ही उन्होंने पढ़ाई की बातें शुरू कर दीं थीं। मगर जल्दी ही बातों का ट्रैक उन्होंने बदला। यह समझाने की कोशिश कि की हमारे यहां का एजुकेशन सिस्टम केवल नौकरी के लिए ही तैयार करता है। स्टूडेंट को वह एजूकेट नहीं करती सिर्फ़ लिटरेट करती है। उन्हें अन्य डेवलप्ड कंट्रीज की तरह ऐसा नहीं बनाती कि अपने नेचुरल टैलेंट का वो कोई यूज कर पाएं। इतनी बातें करते-करते उन्होंने फिर ट्रैक बदला और मेरी जैसी ट्रांसजेंडर की स्थिति क्या होती है समाज में यह बताने लगीं। इस बीच नाश्ता खत्म हो चुका था और मैं प्लेट वगैरह किचन में रख आई थी। जब मैं लौटी तो वो तख्त पर लेट गई थीं। मैंने सोचा अब पढ़ाएंगी। अक्सर वह पढ़ाते-पढ़ाते लेट जाती थीं।

मैं यह सोच कर दरी बिछाने और किताबें निकालने को हुई तभी उन्होंने अपनी बगल में तख्त पर ही बैठने को कहा। उनकी जिद पर मैं बिल्कुल उनके पैरों के पास बैठी। लेकिन वो फिर जिद कर बैठीं और मुझे बीच में बैठाया। मैं उनके चेहरे की ओर मुंह किए उनके पेट के नजदीक ही बैठी। मेरे बैठते ही उन्होंने करवट ली। उनका पेट मुझसे छूने लगा। मैं उनकी जिद के कारण हट नहीं पा रही थी। कुछ ही देर में उनकी हरकतों से मैं सहमने लगी, उनकी बातें मुझे डराने लगीं। उन्होंने कई उदाहरण देते हुए कहा कि ‘‘तुम्हारे जैसी ट्रांसजेंडर को हिजड़ों का समूह उठा ले जाता है। शरीर के कई हिस्सों को अपने धंधे के हिसाब से अंग-भंग कर देता है। अगर उनको मालूम हो जाएगा तो वो तुम्हें जबरदस्ती उठा ले जाएंगे। घर वाले, पुलिस कोई उन्हें रोक नहीं पाएगा।’’

लगे हाथ एक घटना भी बता दी कि मेरे जैसी किसी ट्रांसजेंडर को वो ऐसे ही ले जा रहे थे। घर के लोगों ने रोका तो वो झगड़ा करने लगे। पुलिस आई तो वो सब नंगे होकर लड़ने पर उतारू हो गए। पुलिस भाग गई। शहर भर के हिजड़े इकट्ठा हो कर उस लड़की को लेते गए। आज वो उन्हीं की तरह नाचने-गाने का काम करती है। बेइज्जती के कारण उसके फादर, मदर ने सुसाइड कर लिया। बाकी बच्चों को भी जहर दे दिया था। सब के सब मर गए।

मैं ये सब सुनकर रोने लगी। तो उन्होंने मुझे अपने से और चिपका कर आंसू पोंछते हुए कहा ‘‘हनुवा तुम्हें रोने की ज़रूरत नहीं है। मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी। मैं तुम्हारा कॅरियर ऐसा बना दूंगी कि तुम बाकियों के लिए एक एक्जॉम्पिल बन जाओगी।’’ उन्होंने पहले की तरह फिर कई ऐसे ट्रांसजेंडर्स की बात की जिन्होंने ने अपनी इस समस्या से पार पा के अपना एक स्पेस बनाया। मैं इस बीच बार-बार यह भी फील कर रही थी कि नाएला जी के हाथ मुझे ऐसी जगह भी टच कर रहे हैं, सहला रहे हैं जहां मेरी समझ से उन्हें टच नहीं करना चाहिए था। सांभवी उन्होंने मुझे यह कह कर सबसे ज़्यादा डरा दिया कि हम जैसे लोग समाज में महाभारत काल से ही एकदम कोने में फेंके जाते रहे हैं।

एक उदाहरण तब का बताया जब राम के अयोध्या वापस आने पर नगरवासी उत्सव मना रहे थे। देर हुई तो राम ने सारे नर-नारियों, बच्चों, बूढों को घर जाकर सोने ,आराम करने को कहा। लेकिन जो ट्रांसजेंडर थे उन्हें कहना भूल गए। और ये ट्रांसजेंडर राजा राम का आदेश ना मिलने के कारण रात भर नाचते रहे। अगले दिन राम ने पता होने पर खेद प्रकट किया।

दूसरा उन्होंने ऐसा प्रमाण दिया जिस पर डाउट करने का मेरे पास कोई रीजन नहीं था। उन्होंने कहा तमिलनाडू में एक जिला बिल्लूपुरम है। वहां कुआगम गांव में महाभारत के काल से ही एक परंपरा चली आ रही है। गांव के एक मंदिर कुठनद्वार में साल में एक बार बहुत बड़ा मेला लगता है। जिसमें देशभर से सारे ट्रांसजेंडर इकट्ठा होते हैं। वहां उनकी एक दिन के लिए शादी होती है। फिर मंदिर का पुजारी उनके मंगलसूत्र तोड़ कर उन्हें विधवा बना देता है। वो असली विधवाओं की तरह खूब विलाप करती हैं। यह परंपरा तब से शुरू हुई जब महाभारत युद्ध चरम पर था। उसी समय अर्जुन और उनकी नागवंशी पत्नी चित्रांगदा के पुत्र अरवाण ने युद्ध में भाग लेने से एक दिन पहले विवाह की इच्छा प्रकट कर दी।

सभी बड़े असमंजस में पड़ गए। कृष्ण ने पूरे युद्ध की तरह यहां भी छल-छद्म का इस्तेमाल किया। एक खूबसूरत स्त्री का रूप धारण कर अरवाण से विवाह कर लिया। मगर अरवाण रात भर अपनी सुहागरात नहीं मना सका। कृष्ण का मोहिनी रूप उसे कंफ्यूज किए रहा। उसे बार-बार ऐसा महसूस होता कि उसकी पत्नी के शरीर से कभी माखन की तो कभी मिसरी की खुशबू आ रही है। कृष्ण अपने हावभाव से रात भर उसे कंफ्यूज किए रहे। और सवेरा हो गया। अरवाण अपनी अधूरी सुहागरात की पीड़ा लिए युद्ध मैदान में चला गया।

उसके भयानक संग्राम से विपक्षी सेना में हा-हा कर मच गया। वह पत्थर का रूप धारण कर दुश्मनों पर लुढकता चला जा रहा था। उन्हें कुचलता मारता जा रहा था कि तभी उसने देखा कि उसकी पत्नी रोती, चीखती-चिल्लाती अपने सुहाग चिह्नों को मिटाती, तोड़ कर फेंकती चली आ रही है। यह देख कर अरवाण को संतोष हुआ कि उसके बाद उस पर आंसू बहाने वाला कोई तो है। कहते हैं कि इसी अरवाण का पत्थर बना सिर कुठनद्वार मंदिर में है। जिसकी पूजा तभी से सारे ट्रांसजेंडर करते आ रहे हैं। मेले वाले दिन आज भी दुनिया भर से सारे ट्रांसजेंडर यहां आते हैं।

‘अरे यार एक बार तो इस मेले में चल कर देखना चाहिए कि सच क्या है?’

‘नहीं सांभवी मैं वहां के नाम से कांपती हूं। वहां लाखों हिजड़ों में से किसी ने भी यदि मेरी सच्चाई जान ली तो मैं बच नहीं पाऊंगी। कहते हैं वो सब ट्रांसजेंडर्स को सात तहों में भी पहचान लेते हैं। तुम वहां से अकेले ही आओगी। मैं तभी से कुवागम नाम से ही सिहर उठती हूं जब उस दिन नाएला जी ने इन किस्सों के साथ-साथ ढेर सारे ऐसे ही और किस्से बतायए। मुझे थर्ड जेंडर की उन्होंने जो दुनिया दिखाई उससे मैं तभी से हर पल डरती-कांपती रहती हूं। अपने को बचाए रखने का कौन सा जतन नहीं करती हूं। यह डर ही है कि मैं फूट-फूट कर उनके सामने रोती रही कि मुझे वो जल्दी से वह बना दें कि मैं सुरक्षित होकर लोगों के लिए एक्जाम्पिल बन जाऊं। मेरे उस भय का ही उन्होंने फायदा उठाया।

मेरी सारी फिज़िकल कंडीशन को थॉरोली समझ कर, मेरे लिए वो एक प्लान बना कर आगे बढ़ सकें, इसके लिए चेक करने के नाम पर उन्होंने मेरे सारे कपड़े अलग कर दिए। मेरे अंगों से खेलती खुद भी नेकेड हुईं। और मेरा जी भर कर सेक्सुअल हैरेसमेंट किया। उस दिन पढ़ाई के नाम पर तीन घंटे मुझे रोका। इस सारे समय चेकअप के नाम पर मेरा हैरेसमेंट करतीं रहीं। और फिर यह बरसों-बरस चला।’

इतना कहते-कहते हनुवा फिर रोने लगी। सांभवी ने उसे चुप कराते हुए कहा ‘ओह गॉड! टीचर होकर तुम्हारे साथ ऐसा किया। और बरसों तक करती रहीं। आश्चर्य तो यह है कि फिर भी इतने सालों बाद भी तुम्हारे मुंह से उसके लिए एक भी गलत शब्द नहीं निकलता। यार तुम क्या हो? तुम क्या-क्या सहन करती आई हो? कितना सहन करती हो? तुमने उसी दिन अपने पैरेंट्स से क्यों नहीं बताया? मान लो डर के मारे नहीं बताया। लेकिन यह भी तो कर सकती थी कि अगले दिन से उस गंदी औरत के पास जाती ही नहीं। तुम्हें नहीं लगता कि तुमने बड़ी गलती की जिस कारण वह सालो-साल तुम्हारा शोषण करती रहीं।’

‘सांभवी ये पॉसिबल नहीं था।’‘क्यों?’

‘क्योंकि जब तीन घंटे बाद उन्होंने मुझे घर जाने के लिए छोड़ा तो एक तरह से साफ-साफ धमकी दी कि घर में बताया तो वो मेरी सारी बातें सब को बता देंगी,। वहां जो हिजड़े हैं उन्हें भी बता देंगी। वो सबसे यही कहेंगी कि पढ़ने के लिए डांटा-मारा तो मैंने उन पर झूठा आरोप लगा दिया। मेरी बात पर कोई यकीन नहीं करेगा। उनके पास जाना मैं इसलिए नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि घर पर उन्होंने सबको यकीन दिला रखा था कि वो मेरा कॅरियर ऐसा बना देंगी कि मैं परिवार पर कोई बोझ ना रह कर परिवार की ताकत बन जाऊंगी।

मेरी पढ़ाई में जो परिवर्तन घर वालों ने देखा था उससे वो नाएला जी के जबरदस्त प्रभाव में थे। वो नाएला जी की ही बात मानते। सबसे ज़्यादा मैं इस बात से परेशान थी कि उन्होंने वहां के हिजड़ों को मेरी बात बता देने की धमकी दी थी। मेरे खिलाफ उनके हाथ में यह एक ऐसा ब्रह्मास्त्र था जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था। तुम्हीं बताओ क्या मेरे पास कोई जवाब हो सकता था?’

हनुवा इतना कहकर सांभवी को देखने लगी तो वह बोली ‘सच कहूं हनुवा कि ऐसी स्थिति में मुझे भी कोई रास्ता नहीं सुझाई देता। मैं तुम्हारी जगह होती तो इतना तो यार तय था कि मैं क्या रिजल्ट होगा इसका खयाल ना करती। और वहां जो कुछ मेरे हाथ लगता उसी से उस निम्फोनिएक लेडी को मार देती। निश्चित ही मैं यही करती। खैर जब इतनी गिरी हुई औरत थी तो तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई कॅरियर का उसने क्या किया? जब-जब वह तुम्हारा सेक्सुअल हैरेसमेंट करती थी तब-तब तुम उसे मना करने की कोशिश नहीं करती थी क्या?’

‘सांभवी उस समय मैं बड़ी ही अजीब, बड़ी ही क्रिटिकल सिच्यूएशन में थी। उनके सामने पड़ते ही मैं कसाई के सामने पड़ गए मेमने की तरह कांपती थी। एक ऐसी खिलौना बन जाती थी जिसका रिमोट उनके हाथ में था। वो जैसा चाहती थीं मुझे वैसा ही चलाती थीं। और-और मैं, एक्चुअली उन्होंने अपना काम आसान, परफेक्ट बनाए रखने के लिए मुझे अपनी स्थिति अपने शरीर को एंज्वाय करने की आदत डाली। सेक्स के हर पहलू से परिचित करा कर वो मुझे ऐसा बना देना चाहती थीं कि मैं खुद उनके पास पहुंचूं।

काफी हद तक वो अपने काम में सफल रहीं। मैं खुद तो उनसे क्या पहल करती लेकिन वो जब मुझे यूज करतीं तो मुझे कोई गुस्सा या खीझ नहीं होती थी। हां जब कभी-कभी वह बहुत ही ज़्यादा एग्रेसिव हो जातीं तो मुझे तकलीफ होती। और मैं अलग होने की कोशिश में उन्हें धकेल तक देती। मगर वह फिर इतने प्यार से करीब आतीं कि मेरा गुस्सा खत्म हो जाता।

मैं अपनी भी गलती बताऊं कि उनसे बचने की मैं पूरी कोशिश नहीं कर पाती थी। आधी-अधूरी ही करती थी। या शायद तब इतनी समझदार ही नहीं थी। पूरी कोशिश करती तो शायद वो उतना शोषण ना कर पातीं जितना किया। एक बात और कि वह अपनी बात की बहुत पक्की थीं। वो मेरी पढ़ाई-लिखाई पर अब और ज़्यादा ध्यान देती थीं। उन्हीं के कारण मैं बीटेक. कर सकी। उन्होंने ही कानपुर युनिवर्सिटी से प्राइवेट एम.ए. भी करवाया। वो नौकरी के लिए जगह-जगह फॉर्म भरवाती रहीं।

उन्होंने सिविल सर्विस के लिए भी तैयारी कराई। दो बार प्री वीट भी कर लिया। लेकिन आगे नहीं बढ़ पायी। असल में विनिंग लाइन पर पहुंच-पहुंच मैं बार-बार जो हारती रही तो इसके पीछे मेरा डर ही जिम्मेदार है। नाएला बार-बार इससे मुझे बाहर निकलने को कहतीं। एक मनोचिकित्सक की तरह मेरा ट्रीटमेंट करतीं, लेकिन मैं भेद खुल जाने, हिजड़ा कहे जाने के डर से उसके फोबिया से खुद को ना निकाल पाई। नाएला कोशिश करके हारती रहीं। वो खीझ कर कहतीं कि ‘‘अब तो इतना पढ़ चुकी हो। डरने की ज़रूरत नहीं। ये दुनिया जो चाहे कहे उसकी परवाह ही नहीं करनी है।’’

उनके ऐसा कहते ही मैं गिड़गिडाने लगती कि नहीं ऐसा किसी हालत में नहीं करना है। सांभवी मेरी पढ़ाई-लिखाई में जितना खर्च हुआ वह सब उन्होंने ही किया। उन्होंने ना जाने कहां से कैसे कोशिश कर-कर के मुझे कई स्कॉलरशिप दिलवाई, जिससे उनका बोझ हल्का हुआ। बाद के दिनों में मेरे पैरेंट्स इतने इंप्रेस हुए कि उनसे कहने लगे ‘‘बहन जी आप ही इसकी मां-बाप हैं। अब तो हनुवा आपकी हुई। हम तो इसे पैदा करने भर के दोषी हैं बस।’’

यह सुन कर मेरे तन-बदन में आग लग जाती। ऐसी टीस उठती कि जी तड़प उठता। वहीं दूसरी तरफ नाएला जी का भी चेहरा देखती। जहां सेकेंड भर में अनगिनत भाव आ आकर चले जाते। मेरे शोषण के साल भर ही बीते होंगे कि नाएला जी के हसबैंड ने उन्हें तीन तलाक दे दिया। वो जब बच्चों से मिलने गईं तो मिलने भी नहीं दिया। मार-पीट अलग की। इससे दुखी नाएला जी कई दिन स्कूल नहीं गईं। घर पर पड़ी रोती रहतीं। मुझे बुलातीं जरूर लेकिन पढ़ाती नहीं। बस होम वर्क वगैरह पूरा करा देतीं। खाना-पीना कुछ ना बनातीं। मेरे घर वालों के भेजने पर मना कर दिया। कहा ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, बना लेंगे।’’ फिर मैं ही उनके घर पर कुछ ना कुछ बना कर उनको खिला भी देती।

उनको मामले को कोर्ट ले जाने की सलाह दी गई, तो उन्होंने कहा कि ‘‘कुछ नहीं होगा। कई मामले कोर्ट में गए। महिलाओं के हक़ में फैसले भी हुए। लेकिन अमल में कुछ नहीं आया। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने हिसाब से चलेगा। तलाक मामलों में हम महिलाओं के लिए बड़ी उम्मीद वहां नहीं है। कोर्ट में भी यह बाधा ही है।’’ नाएला इस सदमें के चलते बीमार पड़ गईं। तब मैंने पैरेंट्स के कहने पर उनकी जीजान से सेवा की। उन्हीं के साथ रहने लगी। रात में भी। जल्दी ही वह ठीक हो गईं। फिर मुझे वह अपने ही यहां रोकने लगीं। मुझे अपने साथ ही सुलातीं। मेरे प्रति उनका प्यार और उनके द्वारा मेरा शोषण दोनों ही रोज पर रोज बढ़ते गए। अब वह मेरी पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ कपड़े वगैरह का भी खर्च उठाने लगीं। साल में बाकी भाई-बहनों को भी कपड़े वगैरह देने लगीं। लेकिन इन सबको मुझसे दूर ही रखतीं।’

‘तुम्हारी नाएला को मैं क्या कहूं समझ में नहीं आता। भगवान ने भी दुनिया में ना जाने कैसे-कैसे कैरेक्टर बना के भेजे हैं। लेकिन जब तुम और बड़ी हो गई तब भी कोई विरोध नहीं करती थी या कभी तुम दोनों का झगड़ा नहीं हुआ’ ‘सांभवी आज भी उनके सामने आने पर मेरी स्थिति छोटे बच्चे की तरह होती है। जो टीचर के सामने जाने पर डरता रहता है। बी-टेक. करने के समय तक मैं शारीरिक रूप से नाएला जी की अपेक्षा बहुत स्ट्रॉन्ग हो चुकी थी। मैं ज़्यादा से ज़्यादा पर्सेंट्ज लाने के लिए जमकर पढ़ाई करने में लगी रहती थी।

अब नाएला जी का मेरी पढ़ाई पर इतना ही हस्तक्षेप था कि उनकी इंग्लिश लैंग्वेज बहुत अच्छी थी। उसी में हेल्प करती थीं। इसलिए मैं उनके मन मुताबिक उन्हें समय ना दे पाती। ऐसे में देर रात तक जब पढ़ती तो वह साथ सोने को बुला लेतीं। मैं आना-कानी करती तो नाराज होतीं। मैं मन मार कर साथ सो जाती। मुझे बड़ा गुस्सा आता। जिसे मैं रिलेशनशिप के दौरान उन्हें रौंद कर उतारती। उस वक्त तो वह कुछ ना बोलतीं। शायद वह मेरी जबरदस्त आक्रामकता के कारण हिम्मत ना कर पाती थीं। लेकिन बाद में दो-तीन दिन ठीक से बात ना करके अपनी नाराजगी जाहिर कर देतीं। मगर फिर प्यार से बुला लेंती।

कुछ उसी तरह की स्थिति होती थी जैसे मियां-बीवी के बीच दिन में टुन्न-भुन्न हुई लेकिन रात होते ही सब खत्म, एक हो गए। वास्तव में हुआ यह कि शुरू के दो चार बार तो उन्होंने मेरे अग्रेसन को यह समझा कि अब मैं बड़ी हो गई हूं। और सेक्सुअल डिजायर के अपने उफान को कंट्रोल में नहीं रख पाती। जिसका अल्फावेट मैंने उन्हीं से जाना था। लेकिन जल्दी ही जब वह मेरे अग्रेसन का कारण समझ गईं तो गुस्सा होने लगीं।’

‘वाह री नाएला जी। इनसे तुम्हें फुरसत कब मिली?’

‘फुरसत! उस दिन जब दिल्ली में जॉब मिली। जब उनसे मैं आने से पहले मिलने गई। उनके यहां मेरा जो सामान, किताबें, कपड़े वगैरह थीं उन्हें लाने गई और उनसे आशीर्वाद मांगा।’ ‘आशीर्वाद! उस औरत से जिसने तुम्हारी मजबूरी का सालों फायदा उठाया, सालों जुम्हारा हैरेसमेंट किया। उस औरत से आशीर्वाद!क्या हनुवा मैं तो यह सुनकर आश्चर्य में हूं।’

‘सांभवी कुछ भी हो, थीं तो मेरी टीचर ही ना।’ ‘अरे कैसी बात कर रही हो। उसके कुकर्मों को जानने के बाद तो मुझे नहीं लगता कि उसे कोई टीचर कहेगा। उसे वैसी रिस्पेक्ट देगा। वो तो टीचर के नाम पर कलंक हैं।’

‘तुम अपनी जगह सही हो। लेकिन मेरी अपनी मजबूरी थी। मैं यह सोचती हूं कि यदि वह नहीं होती तो मैं निश्चित ही पढ़-लिख नहीं पाती। इंजीनियर नहीं बन पाती। होता यह कि मैं हर तरफ से उपेक्षा, अपमान, तकलीफों के चलते आत्महत्या कर लेती। या फिर? अन्य थर्ड जेंडर्स की तरह नाचना या कि उनमें से ही बहुतों की तरह सेक्स टॉय बनी नर्क भोग रही होती। क्यों कि मुझे तो मेरे पैरेंट्स भी सपोर्ट नहीं करते थे। तो नाएला जी ने ना सिर्फ़ मरने से बचाया बल्कि नर्क भोगने से भी बचाया। सांभवी मैं इसे उनका स्वयं पर इतना बड़ा एहसान मानती हूं जिसे मैं समझती हूं कि मैं इस जीवन में चुका नहीं सकती। इसलिए उनकी सारी गलतियों को भुला कर उन्हें अपनी टीचर ही मानती हूं। अपनी मेंटर मानती हूं।

इसीलिए मैं उनसे आशीर्वाद लेने गई थी। असल में मैं उस वक्त बहुत भावुक हो गई थी। मेरी आंखें बार-बार भर जा थीं। जब मैंने उनके पैर छुए तो उन्होंने एकदम से मुझे खींचकर गले से लगा लिया। एकदम जकड़ लिया मुझे। और ऐसा फूट-फूट कर रोने लगीं,कि जैसे कोई मां अपनी लड़की को शादी के वक्त बिदा करते समय रोती है। मैं भी खुद को रोक न पाई हम दोनों बड़ी देर तक रोते रहे।

वह बार-बार कहती रहीं ‘‘हनुवा मुझे माफ करना। मैं नहीं जानती कि मैंने तुम्हारे साथ कितने गुनाह किए हैं। मगर इतना जानती हूं कि तुम बहुत बड़े दिल वाली हो। तुम माफ कर दोगी तो ऊपर वाला भी माफ कर देगा। ’’ वह बार-बार यही कहतीं और फफक कर रो पड़तीं।

मैंने किसी तरह उन्हें बैठाया। पानी पिलाया। कहा आपको इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ़ इतना जानती हूं कि आज मैं जो कुछ भी हूं आपकी वजह से हूं। मेरे भाई-बहनों की पढ़ाई में यहां तक कि मेरे घर में रहन-सहन में जो बड़ा बदलाव, संस्कार आया उसमें भी आपका बड़ा हाथ है। बहुत समझाने के बाद वो चुप हुईं। मगर बीच-बीच हिचकियां उनकी आती रहीं।

आखिर में उन्होंने मुझसे यह वादा कराया कि मैं उन्हें जीवन भर छोडूंगी नहीं। और जब वो मरेंगी तो सूचना मिलने पर मैं जरूर पहुंचूं और उनका संस्कार पूरा कराऊं। एक बार यह कह कर वह फिर फफक पड़ीं कि ‘‘हनुवा इस दुनिया में तुम्हारे सिवा अब मेरा कोई नहीं है।’’

सांभवी उस दिन पहली बार मेरा ध्यान इस ओर गया कि नाएला जी मन ही नहीं तन-मन दोनों ही से बुरी तरह कमजोर जर्जर खोखली हो गई हैं। वह भीतर ही भीतर बड़ी तेज़ी से गलती जा रही हैं। अपनी उम्र से कहीं दुगुनी रफ्तार से। और इसकी मुझे दो ही वजह नजर आई, एक उनके पति ने उनसे जिस तरह का व्यवहार किया। दूसरा उनके मायके वालों ने भी उन्हें जिस तरह एकदम छोड़ दिया था, उससे चिंता और तनाव ने उन्हें तेजी से खोखला करना शुरू कर दिया था। लिमिट से कहीं ज़्यादा सेक्स को भी मैं एक और कारण मानती हूं । मुझे लगता है कि वो तनाव को सेक्स के जरिए खत्म करने का रास्ता ढूंढ़ रही थीं। जो उनके भ्रम के सिवा और कुछ नहीं था।

उस दिन मुझे सही मायने में यह अहसास हुआ कि मैं भी उन्हें कितना चाहती हूं। जब अपना सामान लेकर नीचे आई। रिक्शे पर बैठी तो मैं अपने को रोक न सकी। नाएला जी ऊपर बॉलकनी पर खड़ी मुझे देख रही थीं। मैंने जैसे ही उन्हें ऊपर देखा, एकदम से रो पड़ी। मैं बिजली की तेज़ी से नीचे उतरी, जितना हो सकता था उतनी तेजी़ से ऊपर दौड़ती हुई गई और उनसे चिपक कर फूट-फूट कर रो पड़ी। वह भी रोती रहीं।

बड़ी देर बाद मैं फिर नीचे आई और किसी तरह घर पहुंची। उसके बाद जब स्टेशन पर ट्रेन चली तो जैसे-जैसे वह आगे बढ़ती मुझे लगता जैसे मेरा हृदय मुझसे अलग होता हुआ उन्हीं के पास चला जा रहा है। मेरा ध्यान घर वालों की तरफ नहीं उन्हीं की तरफ बार-बार चला जा रहा था। दिल्ली आकर भी मैं कई दिन रोई हूं उन्हीं के लिए।’ हनुवा की आंखें फिर नम हो गईं। उसे देखते हुए सांभवी अपना सिर हनुवा की जांघों पर रखकर लेट गई। जैसे कोई लड़की बड़े प्यार स्नेह से अपनी मां की गोद में सिर रख लेट जाती है।

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