Indradhanush Satranga book and story is written by Mohd Arshad Khan in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Indradhanush Satranga is also popular in Motivational Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
इंद्रधनुष सतरंगा - Novels
by Mohd Arshad Khan
in
Hindi Motivational Stories
हिलमिल मुहल्ले को लोग अजायब घर कहते हैं। इसलिए कि यहाँ जितने घर हैं, उतनी तरह के लोग हैं। अलग पहनावे, अलग खान-पान, अलग संस्कार, अलग बोली-बानी और अलग धर्म-वर्ण के। सचमुच, यह मुहल्ला और मुहल्लों से बिल्कुल अलग है। यहाँ के लोगों में प्रेम और अपनत्व का रंग बहुत गाढ़ा है। वे एक-दूसरे की ख़ैर-ख़बर रखते हैं ख़ुशियों में शामिल होते हैं दुख-तकलीफ में साथ देते हैं साथ उठते-बैठते हैं हँसी-मज़ाक़ करते हैं एक-दूसरे का हाथ बँटाते हैं।
हिलमिल मुहल्ले को लोग अजायब घर कहते हैं। इसलिए कि यहाँ जितने घर हैं, उतनी तरह के लोग हैं। अलग पहनावे, अलग खान-पान, अलग संस्कार, अलग बोली-बानी और अलग धर्म-वर्ण के। सचमुच, यह मुहल्ला और मुहल्लों से बिल्कुल अलग ...Read Moreयहाँ के लोगों में प्रेम और अपनत्व का रंग बहुत गाढ़ा है। वे एक-दूसरे की ख़ैर-ख़बर रखते हैं ख़ुशियों में शामिल होते हैं दुख-तकलीफ में साथ देते हैं साथ उठते-बैठते हैं हँसी-मज़ाक़ करते हैं एक-दूसरे का हाथ बँटाते हैं।
जून की रात थी। हवा ठप थी। गर्मी से हाल-बेहाल हो रहा था। मौलाना रहमत अली दरवाजे़ खडे़ पसीना पोंछ रहे थे।
‘‘ओफ्रफोह! आज की रात तो बड़ी मुश्किल से कटेगी--------’’
‘‘हाँ, जी सही कहा,’’ पटेल बाबू जाते-जाते खडे़ हो गए, ...Read Moreतो बस एक गर्मी का ही मौसम रह गया है। बाक़ी तो सब नाम के हैं।’’
‘‘कल टी0वी0 बता रहा था कि इस बार गर्मी ने पिछले पचास सालों का रिकार्ड तोड़ा है।’’
‘‘अरे मौलाना साहब, कर्तार जी! सब आ जाओ, जल्दी!’’
एक दिन घोष बाबू ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे।
आवाज़ सुनकर जो जिस हालत में था, वैसा ही निकल भागा। मौलाना साहब अलीगढ़ी पाजामे पर आधी बाँहोंवाली बनियान पहने स्कूटर धुलने ...Read Moreलगे थे। पटेल बाबू जालीदार बनियान और फूल छपी लुंगी पहने आराम फरमा रहे थे। कर्तार सिंह नहा-धोकर बाल सुखा रहे थे। गायकवाड़, मोबले, पुंतुलु आदि भी अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। पर घोष बाबू की आवाज़ सुनी तो काम छोड़कर सब दौड़े आए।
शाम को जब सारे लोग पार्क में टहल रहे थे तो घोष बाबू ने कहा, ‘‘आज कितना सूना-सूना लग रहा है।’’
‘‘हाँ, सचमुच,’’ गायकवाड़ उदासी से बोले।
‘‘पंडित जी हम लोगों के बीच उठते-बैठते ही कितना थे? पर आज उनके न ...Read Moreसे कितनी कमी महसूस हो रही है।’’ पटेल बाबू बोले।
‘‘अरे यार, तुम सब कैसी बातें कर रहे हो? पंडित जी हमेशा के लिए थोड़े ही गए हैं, आ जाएँगे दो एक दिनों में।’’ घोष बाबू ने माहौल हल्का करने की कोशिश में कहा।
आधी रात का वक़्त था। सारा मुहल्ला नींद में खोया हुआ था। चारों तरफ सन्नाटा था। अचानक कर्तार जी के दरवाजे़ पर किसी ने दस्तक दी। कर्तार जी चौंक उठे। उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने घोष बाबू खड़े थे। ...Read Moreबड़ी हैरत हुई।
‘‘ओए की हो गिआ तुहानू? एनी रात नूँ?’’ कर्तार जी कभी-कभी जब हैरत में होते, या गुस्सा करते, तो ठेठ पंजाबी बोलने लगते थे।
‘‘पुंतुलु की तबीयत बहुत ख़राब है। उल्टियाँ बंद नहीं हो रहीं। जल्दी चलिए, अस्पताल ले चलते हैं। भगवान न करे कहीं कुछ ऐसा-वैसा---’’