Ratnavali by ramgopal bhavuk | Read Hindi Best Novels and Download PDF Home Novels Hindi Novels रत्नावली - Novels Novels रत्नावली - Novels by ramgopal bhavuk in Hindi Novel Episodes (49) 5.9k 14.5k 7 तुलसी पत्नी का ताना सुनकर घर छोड़कर निकल पड़े। घर में उनकी पत्नी रत्नावली सारी रात दरवाजे पर खड़ी-खड़ी उनके लौटने की प्रतीक्षा करती रही। वे सोच रही थीं-अब मैं उनका मुस्कराकर हर दिन की तरह स्वागत करुँगी। यह ...Read Moreवे मुस्कराकर देखती हैं पर उनकी मुस्कराहट शंका के ऑँगन में विलीन हो जाती है। सुबह होने को है। वे वापस नहीं लौटे। पति-पत्नी के बीच तानों का लेन-देन तो चलता ही रहता है। तुम भी तो अपनी साहित्यिक भाषा में मुझसे क्या-क्या नहीं कहते थे। मैंने बात कुछ इसी तरह कह दी तो रूठ कर चले गये। तुम्हें पता नहीं है, भौजी बड़ी वो हैं। मजाक-मजाक में ऐसीं-ऐसीं बातें कह जाती हैं कि मन आहत हुये बिना नहीं रहता। Read Full Story Download on Mobile Full Novel रत्नावली 1 1.7k 2.7k एक तुलसी पत्नी का ताना सुनकर घर छोड़कर निकल पड़े। घर में उनकी पत्नी रत्नावली सारी रात दरवाजे पर खड़ी-खड़ी उनके लौटने की प्रतीक्षा करती रही। वे सोच रही थीं-अब मैं उनका मुस्कराकर हर दिन की तरह स्वागत ...Read Moreयह सोचकर वे मुस्कराकर देखती हैं पर उनकी मुस्कराहट शंका के ऑँगन में विलीन हो जाती है। सुबह होने को है। वे वापस नहीं लौटे। पति-पत्नी के बीच तानों का लेन-देन तो चलता ही रहता है। तुम भी तो अपनी साहित्यिक भाषा में मुझसे क्या-क्या नहीं कहते थे। मैंने बात कुछ इसी तरह कह दी तो रूठ कर Read रत्नावली 2 555 1k रत्नावली रामगोपाल भावुक दो आज स्वामी को गये कितने दिन हो गये! उन्होंने मेरी तो मेरी, मुन्ना की भी सुध नहीं ली। ऐसा भी निर्मोही कोई होता है। सोचते होंगे, आप मेरे पास नहीं हैं ...Read Moreक्या हुआ ? मुन्ना तो है। नारी एक ऐसी लता है जो दरख्त के सहारे ही ऊपर चढती है, नहीं तो धरती पर ही लोटती रहती है। हम नारियों को इस तरह निर्बल नहीं बनना चाहिए कि बिना सहारे के पग भी न चल सकें। बचपन में मॉँ बाप के सहारे ,युवावस्था में पति के सहारे और वृद्धावस्था में पुत्र Read रत्नावली 3 366 843 रत्नावली रामगोपाल भावुक तीन दीनबंधु पाठक की पत्नी बहुत पहले ही चल बसी थी। भाई विंदेश्वर की पत्नी केशर और उसका लड़का गंगेश्वर, उसकी पत्नी शान्ती घर के सदस्यों में थे। इसके अतिरिक्त रत्नावली ...Read Moreउसका पुत्र तारापति का भार और अधिक बढ़ गया था। जब से पण्डित दीनबन्धु पाठक ने यह सुना कि दामाद ने वैराग्य ले लिया है तब से वे भी मन से पूरे बैरागी बन गये। घर गृहस्थी में मोह न रह गया था। घर चलाने की दृष्टि से मन से बैरागी होने के बाद भी वे पाँण्डित्य वृति से नाता Read रत्नावली 4 378 891 रत्नावली रामगोपाल भावुक चार पण्डित सीताराम चतुर्वेदी धोती वाले पण्डित जी के नाम से प्रसिद्ध थे। लोग धोती वाले पण्डित जी के नाम से ही उन्हें जानते थे। वैसे तो सभी पण्डित धोती पहनते थे ...Read Moreवे आधी धोती पहने और आधी ओढ़े रहते थे। पण्डित जी ने धोती पहनने का औरों की अपेक्षा नया तरीका अपना रखा था। भगवान शंकर के नाम पर शिष्यों से दक्षिणा लेने निकल पड़ते थे। आसपास के बीस कोस क्षेत्र के गाँवों में पण्डित जी के शिष्य बसते थे। काछी जाति के पुरोहित के रूप में वे प्रसिद्ध हो चुके Read रत्नावली 5 240 708 पाँच सोच के जागरण से मनुष्य में सहनशक्ति बढ़ जाती है। हर दर्द का प्रारम्भ असहनीय होता है। धीरे-धीरे वह दर्द सहनीय बनता जाता है। दर्द से सहनशक्ति तो बढ़़ती ही है इसके साथ आदमी में अनन्त ...Read Moreभी बढ़़़ता जाता है। जीवन के प्रति आस्थायें गहरी हो जाती हैं। यों सोचकर पण्डित दीनबन्धु पाठक कुछ दिनों से निश्चिंत रहने लगे थे। शनैःशनैः चिन्तन ने असहनीय पीड़ा को सहनीय बना दिया था। रत्ना इन परिस्थतियों में मुस्कराना सीख रही थी। वह जान गयी थी, अब उसकी मुस्कराहट ही समाज के सामने शान से जीने का काम Read रत्नावली 6 357 714 रत्नावली रामगोपाल भावुक छह रत्नावली का तारापति के कारण ही कुछ मन लग गया था। वह कुछ न कुछ बोलने लगा था। घर के सभी लोग उसे खिलाने का आनन्द लिया करते। नानाजी ...Read Moreगाँव में लिए फिरते। अब रत्ना ने अपने जीवन की सारी आशायें पुत्र पर टिका दी थीं। और वह सोचने लगी थी कि उसका समुचित विकास मामा के घर में नहीं, अपने ही घर में हो सकता है। आज यह छोटा है, कल बड़ा होगा। भैया-भाभी अभी अपनापन दिखा रहें हैं, कल के बारे में कौन जाने किसका व्यवहार कैसा Read रत्नावली 7 213 591 रत्नावली रामगोपाल भावुक सात नाव राजापुर के घाट लगी। घाट पर कुछ लड़के खड़े थे। रत्ना मैया को देखकर चिल्लाने लगे-‘मैया आ गयीं। मैया आ गयीं।‘ मैया नाव से उतर आयीं। एक लड़के ने आगे ...Read Moreतारापति को ले लिया। गणपति मैया का सामान लिए था। घर यमुना के किनारे पर ही था। घाट से ऊपर चढ़कर ऊॅंचे पर घर बना था, जिससे बाढ़ के वेग से बचा रह सके। सभी घर आ गये। शास्त्री जी के समय से ही घर के कामकाज में मदद एक महिला करती थी। उसका नाम था हरको। हरको के Read रत्नावली 8 249 732 रत्नावली रामगोपाल भावु आठ महेबा की तरह रत्नावली यहाँ भी जल्दी सोकर उठ जाती। उसने अपनी दिनचर्या गोस्वामी जी की तरह बना ली थी। स्नान-ध्यान में कोई विध्न नहीं पड़ता था। वाल्मीकि रामायण का ...Read Moreरामनाम की माला, यही दैनिक जीवन के क्रम में आ गया था। कार्य से निवृत्त हो पाती कि तारापति उठ जाता। फिर उसे निपटाने में समय निकल जाता। धनिया आ गयी थी जो बर्तन लेकर नदी पर चली गयी। गंगेश्वर रोज महेबा जाने की कहता, बहन बुरा मन बना लेती तो रह जाता था। उसने पिछले दिन चेतावनी दे दी Read रत्नावली 9 183 504 रत्नावली रामगोपाल भावुक नौ कब से हरको भी वहाँ आकर खड़ी हो गयी थी! पर वह रत्ना की सोच में व्यवधान नहीं बनना चाहती थी। सो, जब वे अपने सोच से बाहर आ गयी तो ...Read Moreधीरे से बोली-‘भौजी, किताबें देख-देखकर आप मुझे देती जायें, मैं जमाती जाती हूँ।‘ रत्नावली ने एक हस्तलिखित पुस्तक उसके हाथ में दे दी। पुस्तक लेते हुये हरको बोली-‘भौजी मुझे भी पढना-लिखना सिखा दो ना।‘ यह सुनकर रत्नावली बोली-‘यह तुम्हारा अच्छा विचार है। लेकिन डॉँट खाना पड़ेगी। फिर कहोगी भौजी डॉँटती हैं।‘ हरको गम्भीर हो कर बोली-‘भौजी, गुरु को Read रत्नावली 10 165 528 रत्नावली रामगोपाल भावुक दस संसार अपनी तरह ही दूसरों का मूल्याँकन करता है। मानवीय कमजोरियों को भी अपनी तरह ही दूसरों पर आरोपित करने में उसे जरा भी संकोच नहीं होता। हरको यही सोच रही थी ...Read Moreउसे महावीर प्रसाद जैन के यहाँॅ से बुलाना आया। उनके लड़के को मियादी बुखार बन गया है। रात भर किसी न किसी को जागना पड़ता है। सो किसे बुलाया जावे ? गाँव भर में एक ही नाम था हरको। हरको रत्नावली से आज्ञा लेकर उसके यहाँॅ चली गयी। जब दो दिन बाद वह लौट कर आयी। आते ही रत्नावली Read रत्नावली 11 240 630 रत्नावली रामगोपाल भावुक ग्यारह जीवन में कुछ काम खेल की तरह आनन्द देते हैं। यही सोचकर रत्नावली खेल जैसा आनन्द पठन-पाठन में लेने लगी थीं। शास्त्री जी के प्रथम शिष्य गणपति ...Read Moreपढ़ाने का दायित्व अपने हाथ में लेने से उन्हें आनन्द की अनुभूति हो रही थी। उसके पिता विधवत् अध्ययन जारी कराने के लिए चक्कर लगा रहे थे। कुछ दिनों से रत्नावली इस उधेड़बुन में रहने लगी कि अध्ययन किस प्रकार शुरू किया जाये ? पुरानी परम्परा और नये परिवेश में द्वन्द्व छिड़ गया था। लेकिन सबसे पहली बात थी, Read रत्नावली 12 168 531 रत्नावली रामगोपाल भावुक बारह राजापुर गॉँव यमुना की कछार में बसा है और रत्नावली का घर यमुना के किनारे पर। घर का मँह यमुना की तरफ खुलता है। घर से निकलते ही दिखता है, ...Read Moreका प्रवाह। भरपूर फसलें देने वाली उपजाऊ मिट्टी।.... बसन्त के सुहावने मौसम की समाप्ति। मौसम का परिवर्तन। लोग बीमार पड़ने लगे। छूत के रोग की तरह बीमारियॉँ गाँव भर में फैल गयी। हरको व रामा भैया लोगों की सेवा में लग गये। रात तारापति खूब खीजा। उसे चुप कराने में रत्नावली रुऑँसी हो गयी। फिर भी वह चुप न Read रत्नावली 13 183 510 रत्नावली रामगोपाल भावुक तेरह आस्थाओं-अनास्थाओं में युगों-युगों से संघर्ष होता रहा है। विजयश्री कभी आस्थाओं को मिली है, कभी अनास्थाओं को। आस्थाहीन मानव को लोग भटका हुआ मानते हैं। वह जिस चिन्तन में ...Read Moreको आत्मसात् किये रहता है उसमें उसका आत्मविश्वास पर्वत की भॉँति अटल अविचल खड़ा होता है। आस्थाओं वाले धरातल के तथ्य को वह अपने तर्कों की अनुभूतियों से काट फेंकता है। इनमें उसका कोई न कोई दर्शन अवश्य होता है।... रामा भैया रात भर ऐसी ही बातें सोचते रहे। और रत्नावली रात भर सोचती रही - मैंने जाने Read रत्नावली 14 156 453 रत्नावली रामगोपाल भावुक चौदह भूतकाल की घटनायें वर्तमान के लिए प्रेरक का कार्य करती हैं, जब हम भविष्य के लिए योजनायें बुनने लगते हैं। तब भूतकाल के अनुभवों के कारण भटकाव का भय नहीं रहता। ...Read Moreतो ऐसे ही उनके पथ को पल्लवित करने का व्रत लिया है। अब उनसे मिलने तो जाना ही है। देखें, वे मेरे बारे में क्या हल निकालते हैं ? हे राम जी, जरा उनके मन में बैठ जाना। हे सीता मैया उनके मन को फेर देना। बस मुझे शरण दे दें। मैं कभी उनके पथ में रोडे़ बनने का किन्चित Read रत्नावली 15 84 402 रत्नावलीरामगोपाल भावुक पदह रत्नावली जैसे ही चटाई डालकर लेटीं, सोमवती के बाद मिलने के काल्पनिक विम्ब मन ही मन बनाने-मिटाने लगीं। यों ही सोचते-सोचते थकावट के कारण पता नहीं कब नींद लग गयी ? सोमवती के दिन घाट पर ...Read Moreअधिक भीड़ थी। ये लोग भी भीड़ के कारण दिन निकलने तक निवृत हो पाये। कामतानाथ के दर्शन करने जाना ही था। वे राम घाट से निकल कर नाले को पार करते हुये गाड़ी की गड़वात के रास्ते से चलते हुये कामदगिरि पर्वत के मुखारविन्द पर जा पहंचे। वहॉं भगवान कामतानाथ की मूर्ति के उन्होंने भक्ति भाव से दर्शन किये। Read रत्नावली 16 120 372 रत्नावली रामगोपाल भावुक सोलह होली के पावन पर्व पर हम होली न खेलें। फिर भी उसके छींटे ऊपर पड़े बिना नहीं रह सकते। यह सोचते हुये हरको अपने पति की शिकायत करते हुये रत्नावली से ...Read Moreतो भौजी, आज वो होली में मेरा रास्ता रोककर खड़ा हो गया- बड़ी, छोटी से तो मेरा जी भर गया। ऐसा कर, छोटी को गुरुआन के यहॉं पहॅँचा दे और तू घर में आकर रहने लग। उसने मेरे कान भर-भर के तुझे घर से निकलवा दिया। अब हर घड़ी लड़ती रहती है।‘ भौजी मैंने तो उससे कह दिया-‘मैं अब Read रत्नावली 17 120 519 रत्नावली रामगोपाल भावुक सत्रह जब जब सोमवती का अवसर आता है। रत्नावली स्थूल शरीर से तो राजापुर में ही बनी रहतीं। लेकिन सूक्ष्म शरीर से वह चित्रकूट के दर्शन में रम जातीं। राजापुर में रहते हुये ...Read Moreआंखों के सामने से चित्रकूट के दृश्य न हटते। यों सोमवती का पर्व निकल जाता। पठन-पाठन का क्रम बन्द नहीं हुआ था। बच्चे पढ़ने आते रहते थे। उससे गुरु दक्षिणा मिल जाती। जिससे गुजर चलती रहती थी। गणपति का अध्ययन पर्याप्त हो गया था। वे गाँवके प्रतिष्ठित व्यक्ति बन चुके थे। रमजान का अध्ययन छूट गया था उसके यहाँ Read रत्नावली 18 99 420 रत्नावली रामगोपाल भावुक अत्ठरह राजापुर के घाट से गोस्वामी जी को लोग विदा करके आये थे, उसी दिन से उनके मन में काशी की यात्रा करने की बात बारम्बार आती रहती थी। ...Read Moreभी दो तीन बुजुर्ग मिलते, तीर्थ यात्रा पर जाने की योजना बनाने लगते। गणपति इस योजना में विशष् भूमिका निभाने लगे। कुछ लोगों को साथ चलने के लिए उकसाने लगे। धीरे-धीरे कुछ लोगों के मन यात्रा पर जाने के लिए बन गये। अब रत्ना मैया को तैयार करने का काम ही शेष रह गया। रत्नावली अब रत्ना मैया के नाम Read रत्नावली 19 132 501 रत्नावली रामगोपाल भावुक उन्नीस कभी-कभी जीवन में आनन्द की अनन्त सम्भावनायें दिखने लगती हैं। तब पिछले सारे घाव भर जाते हैं। युग-युग तक जीने की इच्छा होने लगती है। जो जीवन कोसा जाता था वही सराहा ...Read Moreलगता है। सिर पर रामचरित मानस की प्रति रखे सभी राहगीरों के साथ रत्नावली चलती जा रही थीं और इस तरह जाने क्या-क्या सोचती भी जा रही थीं। मानस की प्रति को राजापुर बासी क्रम से अपने-अपने सिर पर रखकर मंजिल तय कर रहे थे। रास्ते भर सभी इसी तुकतान में रहे, कब उन्हें वह पवित्र ग्रंथ सिर पर रखने Read रत्नावली 20 102 462 रत्नावली रामगोपाल भावुक बीस रामचरित मानस की कथायें जन चर्चा का विषय बन गयीं। कस्बे के लोग इन चर्चाओं में भाग लेने रत्नावली के पास आने लगे। सुबह से शाम तक आने-जाने वालों का ताँता ...Read Moreरहता। सुबह शाम मानस का पाठ। मध्यांतर में मानस के प्रसंगों पर चर्चा। भोजन पानी के समय भी लोग यही चर्चा करते रहते। लोगों के घरों में भी यही चर्चा का विषय बन गया था। घर के लोग जब बातें करते तो यही चर्चा और कहीं कोई मेहमान आ गया तो फिर इस चर्चा के अलावा दूसरी कोई बात ही Read रत्नावली 21 अन्त 102 432 रत्नावली रामगोपाल भावुक इक्कीस वृद्धावस्था आने पर ज्ञानी लोग महसूस करने लगते हैं कि वे मृत्यु के निकट पहॅुँच रहे हैं। इससे वे दुःखी नही होते। आखिर जर्जर शरीर से मुक्ति का अंतिम उपाय मृत्यु ही है। ...Read Moreचिर सत्य को जानकर वे खिन्न नहीं होते बल्कि इससे उनका उत्साहवर्धन ही होता है। मृत्यु के बारे मे सोचने का क्रम रत्ना मैया का काफी दिनों से शुरू हो गया था। उनकी मृत्यु के लिए मानसिक तैयारी पूरी हो गयी थी। वे दिन पर दिन कमजोर होती जा रही थीं। समय ने सभी पात्रों की उम्र में Read More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Novel Episodes Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Humour stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Social Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything ramgopal bhavuk Follow