Vishwasghat book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Vishwasghat is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
विश्वासघात - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Moral Stories
नन्दपुर गाँव___
ओ..बेला की माँ !जरा सम्भालों तो अपने लाल को देखो तो बस,रोए ही जा रहा है, दयाशंकर ने अपनी पत्नी मंगला से कहा।।
आती हूँ जी! तुम्हारा ही तो काम कर रही थीं, तुम्हारे रास्ते के लिए कुछ सूखा नाश्ता बना रही थी जो दो चार दिन चल सकें,तुम बाहर गाँव जाते हो जी !तो मुझे यहाँ खटका सा लगा रहता ,कभी दस दिन में लौटते हो तो कभी पन्द्रह दिन में और मैं यहाँ बच्चों को लिए पड़ी रहती हूँ और फिर इस गाँव में और आस पास के गाँवों में डकैतों का कितना खतरा बढ़ गया है, अब तो कभी कभार दिनदहाड़े भी आ जाते हैं और कुछ ना मिलने पर लोगों का कत्ल करके भाग जाते हैं, तुम वहाँ बाहर गाँव अपनी टोली के साथ जाते हो तो मन में एक डर सा बैठा रहता है कि बस तुम सही सलामत रहो, मंगला बोली।।
नन्दपुर गाँव___ ओ..बेला की माँ !जरा सम्भालों तो अपने लाल को देखो तो बस,रोए ही जा रहा है, दयाशंकर ने अपनी पत्नी मंगला से कहा।। आती हूँ जी! तुम्हारा ही तो काम कर रही थीं, तुम्हारे ...Read Moreके लिए कुछ सूखा नाश्ता बना रही थी जो दो चार दिन चल सकें,तुम बाहर गाँव जाते हो जी !तो मुझे यहाँ खटका सा लगा रहता ,कभी दस दिन में लौटते हो तो कभी पन्द्रह दिन में और मैं यहाँ बच्चों को लिए पड़ी रहती हूँ और फिर इस गाँव में और आस पास के गाँवों में डकैतों का कितना खतरा बढ़
दयाशंकर ने डरते हुए पूछा___ कौन है भाई? तभी दरवाज़े के पीछे से आवाज़ आई___ मैं हूँ शक्तिसिंह!दरवाज़ा खोलों भाई! मेरे छोटे भाई और उसकी पत्नी को डाकुओं ने मार डाला है,मैं जैसे तैसे अपने दस साल के भतीजे ...Read Moreबचाकर यहाँ आ पहुँचा कि किसी भी कोठरी में इसे छुपा दूँगा,कम से कम मेरे खानदान का इकलौता चिराग बचा है, वो ना बुझ पाएं,अगर तुम इसे इस कोठरी में छुपाने की जगह दे दोगे तो बहुत कृपा होगी,जिन्द़गी भर तुम्हारा एहसान मानूँगा,शक्तिसिंह बोलें।। अरे,दयाशंकर भइया जल्दी से दरवाज़ा खोल दो,बच्चे की जान को खतरा है, लीला बोली।। हाँ,लीला
उधर कृष्णनगर गाँव में___ आइए मालिक! इस बार बहुत दिनों के बाद आपका शहर से गाँव आना हुआ,हरिया ने पूछा।। अब क्या बताऊँ? तुम से तो कुछ भी छुपा नहीं है, तुम्हें तो मेरी हालत के बारें ...Read Moreसब मालूम है, उस रात जब डाकुओं ने मेरे पेट मे खंजर भोंका तो मुझे लगा कि अब मैं अपने भतीजे विजयेन्द्र प्रताप को खो दूँगा लेकिन भला हो लीला का और दयाशंकर का जो वो दोनों मेरे भतीजे को बचाकर ले भागे और मैं वहाँ काफ़ी देर तक ऐसे ही तड़पता रहा फिर भगवान ने तुम्हें मेरा रक्षक बनाकर भेंज
वो कहते हैं कि ना,समय किसी के लिए नहीं रूकता,वो तो निरन्तर अपनी चाल से चलता रहता है और समय ही सबसे बलवान होता है, उसके आगें कभी किसी की नहीं चलती,सब अपनी अपनी पुरानी बातें भूलकर अपनी जिन्द़गी ...Read Moreआगें बढ़ गए, पन्द्रह सालों के बाद सबकी जिन्दगियों ने एक नया मोड़ ले लिया था____ आज मैं बहुत खुश हूँ बेला! कि तुम डाँक्टर बन गई,जमींदार शक्तिसिंह बोले।। बाबा! ये तो सब आपकी मेहरबानियों का नतीजा है, आप ने उस दिन मुझे डाकू से बचाया और अपने साथ शहर ले गए, मुझे पढ़ा लिखाकर इस काब़िल बना दिया
पन्द्रह अगस्त का जलसा खत्म होनें के बाद डाँक्टर महेश्वरी, मास्टर साहब को खोज रहीं थीं ताकि अब उनसे जाने की इजाजत ले सकें और जब वे नहीं दिखें तो वो जाने लगी तभी पीछे से मास्टर साहब ने ...Read Moreलगाई____ अरे,डाक्टरनी साहिबा! आप मुझसे बिना मिलें जा रहीं हैं, मैं थोड़ा काम में लग गया था,कुछ लड्डू बच रहे तो सोचा आँगनवाड़ी में बँटवाने के लिए बोल दूँ और आप यहाँ चल दी,विजयेन्द्र बोला।। हाँ,मुझे लगा कि शायद आप को फुरसत नहीं है, इसलिए जा रही थी,डाक्टर महेश्वरी बोली।। चलिए, मुझे भी तो वहीं तक जाना हैं,