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विश्वासघात--भाग(१२)


लीला और विजय की खबर सुनकर शक्तिसिंह जी की आँखों से आँसू बह निकलें, उनका मन व्याकुल हो उठा अपने नन्हें को देखने के लिए और उन्होंने प्रदीप से पूछा कि तुम कब मिले बेला से।
जी रक्षाबंधन वाले दिन,मै और संदीप भइया बाजार घूमने गए थे,तभी उनका पर्स एक चोर ले कर भागकर रहा था,हम दोनों ने ही तो उस चोर को पकड़ा था,प्रदीप बोला।।
अच्छा! तो इसका मतलब़ जब उस दिन हम सब बेला के साथ मंदिर गए थे तो हमारी मुलाकात वकील साहब से हुई थी,इसका मतलब़ है जो हमें मंदिर में मिला था वो तुम्हारा बड़ा भाई संदीप था,शक्तिसिंह जी ने पूछा।।
हाँ,भइया ने बताया तो था कि उनकी मुलाकात फिर से दीदी से हुई थी,प्रदीप बोला।।
अच्छा, वो ही संदीप है, उसने तो एक दिन मेरी और कुसुम की भी मदद की थी,दयाशंकर बोला।।
लो दया भाई! कितने संस्कारी बेटे और बेटी पाएं हैं तुमने,शक्तिसिंह बोले।
बेटों की परवरिश मे मंगला का हाथ है और बेटी की परवरिश में आप का हाथ है, अफ़सोस है कि मै तो अपने बच्चों के लिए कुछ नहीं कर पाया,दयाशंकर बोला।।
अफ़सोस मत करो दया भाई!गर्व करो कि तुमने इतने काब़िल बच्चे पाएं हैं,शक्तिसिंह जी बोलें।।
लेकिन, अब मुझसे सब्र नहीं होता है,गाँव जाकर मैं सबसे मिलना चाहता हूँ,दयाशंकर बोला।।
भाई,दया! जहाँ इतने दिन सब्र किया है तो दो दिन और कर लो,प्रदीप अभी ठीक नहीं है, डाक्टर ने आराम के लिए कहा है,चिट्ठी भी पहुँचने में समय लग जाएगा और टेलीफोन भी नहीं कर सकते,शक्तिसिंह जी बोले।।
लेकिन दो दिन कैसे कटेंगें,ऐसा लगता है कि जैसे दो वरष के समान हैं, दयाशंकर बोला।।
अरे,दया भाई! मुझसे पूछो ना कि मेरे मन में कैंसी उथल-पुथल मच रही है अपने नन्हें से मिलने के लिए,कितने संयोग वाली बात है कि मैं लीला से ब्याह करना चाहता था और उसने ही मेरे नन्हें की माँ बनकर उसे पाला,शक्तिसिंह जी बोले।।
ये तो आप दोनों का सच्चा प्यार है और उसे जोड़ने वाली कड़ी आपका नन्हें बन गया,दयाशंकर बोला।।
हाँ,अब दोनों को कभी भी खुद से दूर नहीं जाने दूँगा, शक्तिसिंह जी बोले।।
और मैं भी अब अपने परिवार से कभी भी अलग नहीं हूँगा, लेकिन इससे पहले मुझे अपनेआप को निर्दोष साबित करना होगा,नहीं तो दुनिया मेरे बच्चों पर फिर से उँगली उठाएँगी कि ये एक चोर और ख़ूनी के बच्चे हैं, दयाशंकर बोला।।
ऐसा ना कहों,दया भाई! अब समय आ गया है कि तुम्हारे जीवन पर लगा ये दाग़ मिट जाए और मुझे याद आया कि मेरे एक बहुत पुराने वकील दोस्त हैं वाज़िद अन्सारी, जो अपने जम़ाने के बहुत ही नामी गिरामी वकील रहें हैं, अब शायद उन्होंने वकीली छोड़ दी है,बुढ़ापे में कुछ बीमार से रहने लगें हैं लेकिन उनका कोई ना कोई शागिर्द जरूर होगा जो शायद तुम्हारा केस लेने को तैयार हो जाएं,शक्तिसिंह जी बोलें।।
क्या कहा अंकल आपने ?वाज़िद अन्सारी साहब! प्रदीप ने पूछा।।
हाँ बेटा वही,शक्तिसिंह जी बोले।।
जी वो ही तो भइया के सर हैं, भइया उन्हीं से तो वकालत के दाँवपेंच सीखते हैं,प्रदीप बोला।।
तब तो ये बहुत ही बढ़िया रहा,अब इस केस को संदीप ही लड़ेगा,शक्तिसिंह जी बोले।।
तो फिर भइया के आने पर ही इस मसले पर अन्सारी साहब के पास जाने पर फायदा है, प्रदीप बोला।।
हाँ,तो थोड़ा इंतजार कर लेते हैं और अभी हमारे पास नटराज के खिलाफ कोई सुबूत भी नहीं है, बिना सूबूत के हम उस पर कोई भी इल्जाम नहीं लगा सकते हैं, अदालत इस बात के लिए सूबूत माँगेगी, शक्तिसिंह जी बोले।।
आप सही कह रहें हैं, जमींदार साहब! दयाशंकर बोला।।
और ऐसे ही आपस में सबकी बातें चलतीं रहीं____

और उधर मधु के फार्महाउस पर दूसरे दिन शाम को जब वो अपनी सहेलियों के साथ फार्महाउस पहुँची तो वहाँ पहुँचकर हक्की बक्की रह गई क्योंकि ना तो वहाँ प्रदीप था और ना वहाँ उसका कोई नामोनिशान, अब उसे डर था कि कहीं प्रदीप उसकी शिकायत काँलेज के प्रिन्सिपल से ना कर दे____
तू क्यों घबराती है मधु! तेरे डैडी तो काँलेज के ट्रस्टी हैं,वीना बोली।।
हाँ,वीना! तू सही कहती है, भला वो पिद्दी सा लड़का मेरा क्या बिगाड़ लेगा,मधु बोली।।
लेकिन मानना पड़ेगा मधु! लड़का है बहुत दमदार, आखिर भाग निकला,वीना बोली।।
भाग तो निकला लेकिन इस वीरान जगह पर वो जिन्दा भी बचा होगा भला! ऊपर से प्यास का मारा,मधु बोली।।
हाँ,यार मधु! मुझे बहुत डर लग रहा है अगर उसे कुछ हो गया होगा तो हम सब तो फँस जाएंगें, वीना बोली।।
अच्छा! कल ही मैं काँलेज जाकर उसके जान पहचान के लोगों से पूछती हूँ, मधु बोली।।
हाँ,तू तो उसके दोस्तों को जानती होगी क्योंकि तू तो उससे काफ़ी दिनो से जान पहचान बढ़ा रही थी कि उसे तुझ पर विश्वास हो जाए,वीना बोली।।
हाँ,कल ही पूछती हूँ, मधु बोली।।
तो फिर चलो यहाँ से,अब हमारा यहाँ क्या काम,पंक्षी तो उड़ गया,वीना बोली।।
हाँ...हाँ...चलो...चलो.. और सब फार्महाउस से वापस चले आएं लेकिन घर आकर रातभर चिंता के मारे मधु को नींद ना आई,ना जाने प्रदीप कहाँ गया हो और अगर रात को भागा हो तो उस वीरान जगह में किसी जंगली जानवर का शिकार हो गया ह़ो तो और थोड़ी देर यही सोचते सोचते उसे नींद आ गई।।
और दूसरे दिन उसने काँलेज जाकर प्रदीप के दोस्तों से पूछा तो सभी ने कहा कि उसे तो उन्होंने दो दिन से देखा ही नहीं फिर मधु ने दोस्तों से प्रदीप के कमरें का पता पूछा,उसने कमरें जाकर देखा तो ताला लगा था और वहाँ पूछने पर पता चला कि परसों शाम को प्रदीप कहीं गया था तबसे लौटा ही नहीं, अब तो मधु की बेचैनी बढ़ गई, उसे कई सारी शंकाओं ने घेर लिया कि आखिर प्रदीप कहाँ गया,वो दुआएँ माँगने लगी कि वो सही सलामत हो,घर आकर उसने खाना भी नहीं खाया,उसे अब पछतावा हो रहा था कि किसी से बदला लेने के चक्कर में वो इतनी गिर गई कि उसने ये भी ना सोचा कि किसी की जान भी जा सकती है, उसने पुलिस स्टेशन जाने का सोचा लेकिन ये सोचकर रह गई कि सबको पता चल जाएगा।।
अब उसे कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था कि वो क्या करें, वो थकहार अपनी माँ के पास इस उलझन सुलझाने के लिए पहुँची।।
साधना ने उसे देखा और पूछा___
क्या हुआ? आज माँ की याद कैसे आ गई?
वो माँ के पास भागकर गई और उनसे लिपटकर फूटफूटकर रोने लगी,उसे ऐसा रोता हुआ देखकर साधना का मन पसीज गया और उसने मधु के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा____
क्या बात है ? डरो नहीं मुझे खुलके बताओं, मैं कुछ नहीं कहूँगी॥
माँ की हमदर्दी और प्यार भरा स्पर्श पाकर मधु पिघल गई और बोली___
तुम ठीक कहतीं थीं माँ! कि मेरी आदतें अच्छी नहीं हैं, मैं हमेशा लोगों से बदला लेने का सोचतीं थीं और इसी चक्कर में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, वो कहीं नहीं मिल रहा मैने उसे बहुत ढू़ढ़ा,अब मुझे डर है कि उसे कहीं कुछ हो ना गया हो।।
तू ये क्या कह रही है? कौन नहीं मिल रहा? तू किसे ढूढ़ रही है? जरा! खुलकर बताएगी कि क्या बात है?
साधना ने घबराते हुए पूछा।।
और मधु ने फार्महाउस वाली सारी बात अपनी माँ साधना को बता दी,मधु की बात सुनहकर साधना भी सहम गई कि घमंड और नादानी में मेरी बेटी ने ये क्या कर दिया।।
साधना ने मधु को समझाते हुए कहा कि कुछ नहीं होगा उसे तू बस सच्चे मन से ईश्वर से प्रार्थना कर कि उसे कुछ ना हो,देखना वो सही सलामत तेरे सामने आ जाएगा और मधु, माँ की बात मानकर मन्दिर के सामने बैठकर ईश्वर की प्रार्थना करने लगी,आधी रात से ज्यादा समय हो गया था मधु को प्रार्थना करते करते, उसे वहीं मन्दिर के सामने झपकी आ गई और वो वहीं सो गई, तब साधना ने उसे एक चादर ओढ़ा दी और वहीं लेटे रहने दिया ।।

और इधर गाँव मे___
उसी रात से महेश्वरी मास्टरसाहब से नहीं मिली थी,जिस रात वो उनके घर खाना खानें गई थी,उसका मन बहुत बेचैन था ,चाहती तो वो भी मास्टरसाहब से मिलने जा सकती थी लेकिन उसके मन ने ये गवारा नहीं किया, आखिर उन्होंने क्यों नहीं बताया कि वो कौन है जिसके लिए उनका मन तड़पता है।।
तब महेश्वरी ने सोचा,लेकिन उस दिन मैने भी तो नहीं बताया था जब उन्होंने मुझसे भी पूछा था तो फिर इस बात को लेकर इतना रूठना मनाना क्यों और फिर उनसे तेरा रिश्ता ही क्या है? जो वो तुझसे और तू उनसे हर बात बताती रहेगी,वो इन्सानियत के नाते तेरी खैर ख़बर लेते रहते हैं, तेरी मदद करते रहते हैं, बस इतना ही काफी़ नहीं है तेरे लिए कि अन्जान जगह में कोई तो तेरी खैर ख़बर रखता है।।
अब महेश्वरी को एहसास हो चुका था कि जो वो मास्टरसाहब के बारें में सोच रही है वो एकदम गलत है, कोई भी अपनी निजी बातें ऐसे भी किसी को नहीं बताता लेकिन फिर मुझे इतना बूरा क्यों लगा? क्या मैं उन्हें चाहने लगी हूँ, नहीं.... नहीं... ऐसा नहीं हो सकता ,मैं तो सिर्फ़ अपने बचपन वाले विजय को चाहती हूँ, मैं मास्टरसाहब के बारें में भला ऐसा कैसे सोच सकती हूँ,ऐसे ही उतार चढ़ाव वाले भाव महेश्वरी के मन में चल रहें थें।।
और उधर विजयेन्द्र भी यही सोच रहा था कि शायद उस रात मैनें डाक्टरनी साहिबा के सवाल का जवाब नहीं दिया कि वो कौन थी,इसलिए शायद वो मुझसे नाराज हैं, उस दिन से ना मिलने आईं और ना ही कोई ख़बर भेजी,लेकिन मैं उन्हें कैसें बता देता कि मेरे मन में तो बेला अब भी बसी है,मैनें जितने दिन भी उसके साथ गुजारे थे वो अब भी मेरे ज़हन में तरोताज़ा हैं, वो मेरे बचपन की जिन्दगी का सबसे हसींन पल थी,जिसे भुलाना मेरे लिए नामुमकिन है,लेकिन मुझे इतना बुरा क्यों लग रहा है डाक्टरनी साहिबा के लिए क्योंकि मैं तो सिर्फ़ बेला से ही प्यार करता हूँ और हमेशा उसी से ही प्यार करता रहूँगा, तो फिर मेरा खिचाव डाक्टरनी साहिबा की ओर इतना क्यों रहता है?आखिर ये सब कैसी उलझन है और इस उलझन को मैं सुलझा क्यों नहीं पा रहा हूँ?
दोनों ही एक अज़ीब कश्मकश में थे ,इस कश्मकश को दोनों सुलझा नहीं पा रहें थे,दोनों एकदूसरे को पाना भी नहीं चाहते थे और दोनों एकदूसरे से दूर भी नहीं जाना चाहते थे।।

महेश्वरी का मन नहीं माना और उसे पता था कि अब मास्टरसाहब की पाठशाला की छुट्टी होने वाली है, उसने देखा कि अब मरीज भी नहीं है,उसने कम्पाउण्डर साहब से दवाखाने को देखने को कहा और चल पड़ी पाठशाला की ओर मास्टरसाहब से मिलने।।
वो पाठशाला पहुँचने ही वाली ही थीं कि उधर से गाँव की कच्ची गलियों से विजयेन्द्र साइकिल लेकर चला आ रहा था,विजयेन्द्र ने महेश्वरी को देखा तो साइकिल से उतरकर बोला___
अरे,आप! यहाँ कहाँ जा रहीं हैं?किसी मरीज को देखने।।
नहीं! मैं तो आप से ही मिलने आ रही थी,उस रात से आपसे मुलाकात नहीं हुई ना! महेश्वरी बोली।।
हाँ,मैं भी दवाखाने आने की सोच ही रहा था,विजयेन्द्र बोला।।
हाँ,जुरूर! मुझे देखकर झूठ बोल रहें हैं, महेश्वरी बोली।।
मै भला झूठ क्यों बोलने लगा,मुझे क्या पड़ी है झूठ बोलने की,विजयेन्द्र बोला।।
यही कि आपको मेरे सवालों के जवाब ना देने पड़ें इसलिए ,महेश्वरी बोली।।
ऐसा नहीं है, चलिए नहर के किनारे चलकर बैठतें,चलेंगीं ना !मेरे साथ!विजयेन्द्र ने पूछा।।
हाँ...हाँ...क्यों नहीं,जुरूर, महेश्वरी बोली।।
तो फिर बैठिए साइकिल पर,विजयेन्द्र बोला।।
और महेश्वरी साइकिल पर बैठकर चल पड़ी,नहर के किनारें,विजयेन्द्र के साथ,दोनों उसी पुलिया पर जा बैठें, और ढ़ेर से पत्थर इकट्ठे करके पानी में मारने लगें,तभी विजयेन्द्र बोला___
वो मेरी बचपन की साथी थी,हम दोनों हमेशा एकदूसरे के साथ खेला करते थे,साथ साथ खाना खातें और झगड़ते भी बहुत थे,लेकिन एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते थे,फिर वो दूर कहीं चली गई, मुझे अकेला छोड़कर और मैं उसकीं यादों को दिल से लगाए अभी तक उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ, ना जाने कहाँ होगी,इस वक्त।।
बहुत चाहते थे आप उसे,महेश्वरी ने पूछा।।
हाँ,शायद खुद से भी ज्यादा,विजयेन्द्र बोला।।
तब तो वो बहुत भाग्यशाली है,महेश्वरी बोली।।
पता नहीं वो भाग्यशाली है या मैं अभाग्यशाली,इसलिए तो वो मुझसे बिछड़ गई, विजयेन्द्र बोला।।
अरे,भाग्य मेँ होगा तो जुरूर वो आपको मिलेगी,महेश्वरी बोली।।
अब तो मैने उम्मीद भी छोड़ दी है, अगर मिलना होता तो कब की मिल गई होती,विजयेन्द्र बोला।।
ऐसा ना कहिए,मैं आपके लिए दुआ माँगूगी कि वो आपको जल्द से जल्द मिल जाए,महेश्वरी बोली।।
आप ही दुआ माँगकर देखिए,शायद आपकी ही दुआ कुब़ूल हो जाए क्योंकि मैं तो सालों से दुआ माँग रहा हूँ, मेरी दुआ तो कुब़ूल नहीं हुई,विजयेन्द्र बोला।।
दोनों कि बातें ऐसी ही चल रहीं थीं कि____
तभी एक छोटा सा मेमना नहर के किनारें के कीचड़ में लगी घास चरने चला आया लेकिन वहाँ कि मिट्टी गीली होने की वजह से फिसलन ज्यादा थी और वो बकरी का बच्चा खुद को सम्भाल नहीं पाया और नहर में गिरकर में...में...करने लगा,पानी का बहाव ज्यादा था इसलिए वो किनारे तक नहीं पहुँच पाया,उसकी माँ बकरी ने जब अपने डूबते बच्चे की आवाज सुनी तो वो भी मदद के लिए में...में... करने लगी आखिर माँ तो माँ ही होती है, तभी महेश्वरी और विजयेन्द्र ने देखा तो उस ओर भागें,विजयेन्द्र ने आव देखा ना ताव फौऱन अपना कुर्ता उतारा और कूद पड़ा पानी में और कुछ देर की मसक्कत के बाद उसने मेमने को बचा लिया,तब तक दो एक लोंग और भी इकट्ठे हो गए, विजयेन्द्र और मेमना जैसे ही बाहर आए,बकरी अपने बच्चे के पास फ़ौरन चली आई और उसे अपने मुँह से टटोलने लगी,सब भी बकरी और मेमने को देखकर खुश हो रहे थे।।
तभी एकाएक महेश्वरी की नज़र विजयेन्द्र के बाजू पर पड़ी,जिस पर "बेला"गुदा हुआ था,ये देखकर महेश्वरी की खुशी का ठिकाना ना रहा और वो विजयेन्द्र से बोली___
ये "बेला" नाम बचपन में दशहरे के मेले मे गुदवाया था ना! बोलो।।
हाँ,लेकिन आपको कैसे पता?विजयेन्द्र बोला।।
तब महेश्वरी ने भी अपनी बाँह ऊपर की और अपनी बाजू दिखाई जिस पर "विजय"नाम गुदा था,ये देखकर विजयेन्द्र की खुशी का ठिकाना ना रहा औ उसने मारे खुशी के अपनी बेला को गले से लगा लिया और फौऱन ही दोनों ये ख़बर देने घर पहुँचे।।
संदीप भी अभी वहीं था,सबने ये ख़बर सुनी तो रो पड़े,बेला ने ये भी बता दिया कि बापू भी मिल गए हैं और विजय के ताऊ जी ही मेरे बाबा हैं, अब सबकी खुशियाँ दुगुनी हो गई,उस रात घर में मारे खुशी के पकवान बनें और सारी रात बेला और विजय ने चाँद और तारों को निहार कर बातें की।।
बेला बोली,सुबह ही टेलीफोन करके बाबा और बापू को बताने चलेंगें कि सब मिल गए हैं,
विजयेन्द्र बोला ,ठीक है।।

और दूसरे दिन ही दोनों टेलीफोन करने गए और ये खुशखबरी सुनाई,सब बहुत खुश हुए और उस दिन दोनों फिर से सियादुलारी काकी के यहाँ से बिना खाना खाए ना आ पाएं।।
और इधर शक्तिसिंह जी बोले___
इतनी बड़ी खुशखबरी है तो सब मंदिर चलते है, फिर गाँव के लिए रवाना होंगे क्योंकि अब दो दिन हो चुके हैं, प्रदीप भी ठीक हो गया और फिर मैनें महेश्वरी से भी कह दिया है कि हम सब गाँव आ रहें हैं।।
और सब मन्दिर की ओर दर्शन करने निकल पड़े।।

इधर मधु के घर में___
मधु जागकर बोली___
माँ ! क्या मैं रातभर जमीन पर ही सोई रही।।
हाँ, बिटिया! सच्ची भक्ति ऐसी ही होती है, चल अब तैयार हो जा, मन्दिर होकर आते हैं, प्रदीप के लिए प्रार्थना करके आएंगे कि वो सही सलामत हो,साधना बोली।।
जी,माँ! अभी आई,तैयार होकर,मधु चहकते हुए बोली।।
जय हो भगवान! तेरी लीला अपरमपार है, एक हादसे ने मेरी बिटिया को इन्सानियत सिखा दी,साधना भगवान से दुआँ माँगते हुए बोली।।
मधु कुछ देर में तैयार होकर आ गई और दोनों मोटर से मन्दिर पहुँचे,दोनों दर्शनों के लिए मन्दिर के भीतर जाने को हुए कि प्रदीप और उसका परिवार मन्दिर से बाहर आ रहा था,मधु ने जैसे ही प्रदीप को देखा तो वो बहुत खुश हुई और उसके पास जाकर पूछा__
प्रदीप! तुम ठीक हो॥
प्रदीप ने कुछ नहीं देखा और कुछ नहीं सुना ,बस जोर का थप्पड़ मधु के गाल पर दिया और बोला___
शरम नहीं आती,पहले जख्म देती हो फिर मरहम लगाने आती हो बेहया! कहीं की।।
ये नज़ारा देखकर सब सन्न रह गए, मधु ने इतनी भीड़ में थप्पड़ खाकर प्रदीप को कुछ भी नहीं कहा और रोते हुए अपनी मोटर की ओर भागी।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा____