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विश्वासघात--भाग(८)


और उधर संदीप और प्रदीप के कमरे पर___
क्या हुआ भइया! आप अभी तक गए नहीं है,प्रदीप ने पूछा।।
हाँ,आज जरा कचहरी जाना है, सर ने बुलाया था कि जरा कचहरी आकर देख जाना कि मुकदमे की सुनवाई कैसे होती है क्योंकि ज्यादा दिन नहीं रह गए है, बस दो चार महीने के बाद ही तुम पूरे वकील बन जाओगें,इसलिए आज काँलेज जा पाना नहीं हो पाएगा, संदीप बोला।।
अच्छा तो ये बात है,प्रदीप बोला।।
हाँ,प्रदीप! मैं भी चाहता हूँ कि जल्द से जल्द वकालत की डिग्री मेरे हाथ में हो और वकील के लिब़ास में माँ के सामने जाऊँ, ताकि इतने सालों बाद उनके चेहरे पर मुस्कान देख सकूँ, संदीप बोला।।
हाँ,भइया! हम सब भी यही चाहते हैं कि आप जल्द से जल्द वकील बन जाएं,काश के बापू भी मिल जाते और आप उनका केस लड़कर उन्हें न्याय दिलवा सकते,प्रदीप बोला।।
हाँ,प्रदीप ये मेरी दिलीइच्छा है लेकिन ना जाने हमारे बापू विश्वासघात का कलंक लगा कर कहाँ भटक रहे हैं, काश के वे लौट आएं और मैं उन्हें निर्दोष साबित कर सकूँ,संदीप बोला।।
अच्छा, भइया! खाना बना दिया है, आप समय पर खा कर कचहरी चले जाइएगा, कहें तो मैं अभी परोसकर दे दूँ,क्योंकि मैं अब काँलेज के लिए निकलूँगा, प्रदीप बोला।।
तू काँलेज जा,मैं परोस कर खा लूँगा, संदीप बोला।।
ठीक है भइया!अब मैं जाता हूँ, प्रदीप बोला।।
और हाँ सुनो,ये रही साइकिल की चाबी आज मैं साइकिल लेकर नहीं जा रहा,तू चाहे तो आज साइकिल ले जा सकता है, संदीप ने कहा।।
अच्छा, भइया! और प्रदीप साइकिल लेकर काँलेज की ओर निकल गया,रास्तें में चला जा रहा था कि एकाएक एक लड़की मोटर से निकली ,रास्ते में कीचड़ से भरे गड्ढें में उसकी मोटर का पहिया गया और प्रदीप के ऊपर कीचड़ के छींटे डालता हुआ निकल गया।।
प्रदीप पीछें से उसे चिल्लाता रहा लेकिन वो मोटर ना रूकी,प्रदीप ने उस मोटर को पहचान लिया और उस मोटर का अपनी साइकिल से पीछे करने लगा लेकिन कहाँ मोटर की रफ्त़ार और कहाँ साइकिल की रफ्त़ार,बस क्या था ?मोटर आगें निकल गई और प्रदीप पीछे से हाथ मलता रह गया और दुखी मन से काँलेज के गेट पर ही पहुँचा था कि वो मोटर उसे खड़ी हुई मिली,उसने देखा कि उसके एक पहिए के तरफ कीचड़ भी लगा था,अब प्रदीप को पक्का यकीन हो गया कि ये वही मोटर है जिसने अभी कुछ देर पहले ही उस पर कीचड़ के छींटे डाले थे और उसने उस लड़की से बदला लेने के लिए उस मोटर के दो पहियों की हवा निकाल दी और काँलेज में छुपकर उस लड़की के आने का इंतज़ार करने लग गया,उस इस चक्कर उसने कोई भी लेक्चर अटेंड नहीं किया।।
काफ़ी इन्तज़ार के बाद भी वो लड़की वापस ना लौटी ,लेकिन प्रदीप ने भी हार ना मानी और कमर कसकर वही खड़ा रहा,अब उसे प्यास भी लग आई थी और उसने देखा कि एक लड़की उस मोटर की ओर बढ़ी चली आ रही है, तंग सा सलवार कमीज़,गले में फँसा हुइ दुपट्टा,पफ वाला हेयरस्टाइल जो कि चिड़िया के घोसले की तरह लग रहा था,ऊँची ऊँची हाईहील्स पहनकर वो लड़की टक-टक की आवाज के साथ आगें बढ़ रही थीं और जैसे ही वो मोटर का दरवाज़ा खोलने को हुई उसकी नज़र नीचें की ओर मोटर के पहिओं पर पड़ी,पहिओं को देखकर वो गुस्से से उबल पड़ी और मोटर को जोर से पैर से ठोकर मारी,जिससे उसके पैर में चोट लग गई और वो अपना पैर पकड़कर वहीं बैठ गई।।
अब प्रदीप की बारी थीं, उस लड़की के जले पर नमक छिड़कने की,प्रदीप उस लड़की पास पहुँचा और बोला___
क्या हुआ ?मोहतरमा! आप ऐसे जमींन पर क्यों बैठीं हैं।।
ए मिस्टर! तुम कौन होते हो? मुझसे ये पूछने वाले,उस लड़की ने जवाब दिया।।
अब क्या कहूँ? मोहतरमा! मुझसे आपका दुख देखा नहीं जा रहा,इसलिए पूछ बैठा,प्रदीप बोला।।
आपको क्या मतलब़ है? मैं हँसू,रोऊँ या गाऊँ, उस लड़की ने कहा।।
बस,कुछ नहीं, आपका दर्द मुझसे देखा नहीं गया,क्या करूँ? मेरा दिल ही कुछ ऐसा है, किसी को मुसीबत मे देखकर पिघल ही जाता है और आप जैसी कमसिन, नादाँ,को देखकर तो कलेजा मुँह को आ रहा है, ना जाने कौन सा कष्ट है आपको,प्रदीप बोला।।
कुछ नहीं, मेरी मोटर पंचर हो गई है इसलिए गुस्सा आ रहा है, वो लड़की बोली।।
मोटर पंचर हो गई या किसी ने पंचर कर दी,प्रदीप ने उससे पूछा।।
ए मिस्टर! मतलब़ क्या है तुम्हारा?उस लड़की ने कहा।।
कुछ नहीं मैं तो कह रहा था कि अभी कुछ देर पहले तो अच्छी भली खड़ी थी,अचानक पंचर कैसे हो सकती है? प्रदीप बोला।।
ए मिस्टर कहना क्या चाहते हैं ?आप!उस लड़की ने पूछा।।
सुनिए मोहतरमा!बार बार मिस्टर कहकर मत पुकारिए,मेरा नाम प्रदीप हैं... प्रदीप,प्रदीप गुस्से से बोला।।
हाँ तो मिस्टर प्रदीप! क्या आपको पता है?मेरी मोटर पंचर कैसे हुई,उस लड़की ने पूछा।।
हो सकता है मोहतरमा! कि आपकी मोटर ने किसी पर कीचड़ से छींटे डाले हो तो उसने बदला लेने के लिए ऐसा किया हो,प्रदीप बोला।।
तभी उस लड़की की नज़र उसके कपड़ो पर पड़ी जिस पर कीचड़ के छींटों के निशान थे और वो समझ गई कि प्रदीप ने ही उसकी मोटर पंचर की है।।
अच्छा! तो वो शख्स आप ही हैं, जिसने मेरी मोटर पंचर की, उस लड़की ने कहा।।
तो आपकी पारखी नज़र ने मुझे पहचान ही लिया,प्रदीप बोला।।
शर्म नहीं आती आपको! ऐसी ओछी हरक़त करते हुए,आखिर आप ख़ुद को समझते क्या है?उस लड़की ने कहा।।
और मोहतरमा! आपको शरम नहीं आती ऐसी हरकत करते हुए , किसी गरीब आदमी पर अपनी मोटर से ऐसे छींटे डालते हुए, मालूम होता है कि दौलत का बहुत नशा चढ़ा है आप पर,प्रदीप बोला।।
मिस्टर प्रदीप!जुबान सम्भाल कर बात कीजिए, आप तो मुझे निहायती बतमीज मालूम होतें हैं, आपको ये भी नहीं मालूम कि किसी लड़की से कैसे बात की जाती है, वो लड़की बोली।।
तो आप ही मुझे सलीका क्यों नहीं सिखा देती की लड़कियों से कैसे बात की जाती है? प्रदीप बोला।।
हाँ,आपको स़लीका सीखने की बहुत जुरूरत है,उस लड़की ने कहा।।
स़लीका आपको ज्यादा सीखने की जुरूरत है, नशा आप पर चढ़ा है दौलत का,जिसकी वज़ह से आप लोगों की इज्जत करना भूल गईं हैं, प्रदीप बोला।।
ए मिस्टर! बहुत हो गया,पता है मैं कौन हूँ इस काँलेज के ट्रस्टी की बेटी,नटराज इण्डस्ट्री के मालिक हैं मेरे डैडी ,इस शहर के जाने माने बिजनेसमैन हैं वो,उस लड़की ने कहा।।
कमाल है! ओह ,ट्रस्टी,नटराज इण्डस्ट्री के मालिक और बिजनेस मैन,तभी आप ऐसी हैं, प्रदीप बोला।।
आपकी बतमीजी हद से आगें बढ़ रही है और इसका खामियाजा आपको जुरूर भुगतना पड़ेगा,वो लड़की बोली।।
तभी उस लड़की की सहेली काँलेज से निकलकर गेट तक आई और उसने पूछा___
क्या हुआ मधु! यहाँ ऐसे क्यों खड़ी हो?
यार, किसी ने मोटर पंचर कर दी,मधु बोली।।
तो चल ,मैं तेरे घर तक तुझे अपनी मोटर पर छोड़ देती हूँ, ड्राइवर आकर तेरी गाड़ी ले जाएगा, मधु की सहेली बोली।।
अच्छा चल! तू आ गई वरना, आज तो मैं इन जनाब़ को छोडने वाली नहीं थी,मधु बोली।।
जाइए....जाइए..आप अपने घर जाइए,मुझे आप जैसी नकचढ़ी लड़कियों से उलझने का कोई शौक नहीं है, प्रदीप बोला।।
वो तो वक्त ही बताएगा, मिस्टर प्रदीप! मैं आसानी से दुश्मनी भूलती नहीं हूँ और इसका बदला मैं जुरूर लेकर रहूँगी, जाते जाते मधु बोली।।
हाँ,जाइए,जो होगा देखा जाएगा,मैं भी किसी से डरता नहीं हूँ, प्रदीप बोला।।
वो तो वक्त ही बताएगा, मिस्टर प्रदीप! और इतना कहकर मधु चली गई।।

मधु अपनी सहेली के संग घर पहुँची और भागकर बँगले में भीतर घुसते ही ड्राइवर से बोली कि मोटर काँलेज में पंचर पड़ी है, किसी मैकेनिक को वहाँ ले जाकर,मोटर को ठीक कराके घर ले आओ,ड्राइवर मधु की बात सुनकर चला गया।।
इधर मधु अपने डैडी को ढूढ़ते हुए उनके पास जा पहुँची___
डैडी.... डैडी... मुझे आपसे कुछ बात करनी हैं, कहाँ है आप?
यहाँ हूँ बेटी! बोलो क्या बात है? मधु के पिता ने जवाब दिया।।
डैडी! मुझे आज काँलेज में एक लड़के ने बहुत तंग किया,मुझे उससे बदला लेना है, मधु बोली।।
तो लो बदला,तुम्हें किसने रोका है?मधु के डैडी ने कहा।।
तो आप काँलेज के प्रिंसिपल से कहकर उसे काँलेज से निकलवा दीजिए, मधु बोली।।
ऐसा नहीं होता बेटा! ये तुम्हारी लड़ाई है, उसे अपने तरीके से लड़ो,तभी तो तुम मुश्किलों का सामना करना सीखोगी,मधु के पिता बोले।।
ठीक है तो,बाद में मुझे मत डाँटिएगा,मधु बोली।।
मै कुछ नहीं कहूँगा,मधु के पिता बोले।।
ठीक है तो आप देखते जाइए कि अब मैं करती हूँ, मधु बोली।।

उधर प्रदीप भी गुस्से से कमरे लौटा और बिना खाना खाए ही लेट गया कुछ देर में संदीप भी आ पहुँचा, उसने प्रदीप का चेहरा देखा तो समझ गया कि कोई ना कोई बात जुरूर है और उसने प्रदीप से इसका कारण जानना चाहा____
क्या हुआ रे! तेरा चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों हैं?संदीप ने पूछा।।
अब क्या बताऊँ भइया! एक नकचढ़ी लडकी ने मेरे नए कपड़ो पर अपनी मोटर से कीचड़ के छींटे डाल दिए तो मैने उसकी मोटर पंचर कर दी और फिर वो जो घमासान बहस हुई,कह रही थी कि वो नटराज इण्डस्ट्री के मालिक की बेटी है, उसका बाप वो है,उसका बाप ये है लेकिन मैं भी पीछे नहीं हटा,मैने भी उसे धूल चटा दी,प्रदीप बोला।।
तू भी ना बिल्कुल पागल है, अभी तेरा बचपना गया नही और वो लड़की अगर नटराज की बेटी है तो सम्भलकर रहना,उसका बाप एक नम्बर का बेईमान और धोखेबाज है, ना जाने कितनो का खून करके वो इतना आगें पहुँचा है,कोई भी काला धन्धा उससे बचा नहीं है, बेईमानी के बल पर ही वो कुछ सालों में इतना बड़ा आदमी बन गया,ना जाने कितनों का खून बहाकर वो इस मुकाम तक पहुँचा है,संदीप बोला।।
अच्छा तो ये बात है, तभी उसकी बेटी ऐसी खड़ूस है,प्रदीप बोला।।
और दोनों भाइयों के बीच ऐसे ही बातें चलती रहीं।।

एक दिन दयाशंकर बगीचे में काम कर रहा था तो एक बड़ी सी मोटर बंगले के गेट पर रूकी,उस मोटर से ड्राइवर ने उतर दयाशंकर से पूछा____
क्या जमींदार शक्तिसिंह का बँगला यही है? नेमप्लेट पर तो यही लिखा है।।
हाँ,यही है, दयाशंकर ने इतना जवाब दिया और अपना काम करने लगा,उस मोटर में से नटराज उतरा और भीतर चला गया,दयाशंकर को शक़ हुआ कि ये तो नटराज है और इतना बड़ा आदमीं कैसे बन गया लेकिन उस समय उसने कुछ नहीं कहा और बगीचे की झाड़ियों के बीच छुपकर नटराज के वापस आने का इंतजार करने लगा,कुछ देर बाद नटराज और शक्तिसिंह बाहर निकले , नटराज ने शक्तिसिंह से जाने की इजाजत ली और मोटर मेँ बैठकर चला गया।।
उसके जाने के बाद दयाशंकर ने शक्तिसिंह से पूछा___
जमींदार साहब! ये शख्स कौन थे?
ये नटराज सिंघानिया थे,नटराज इण्डस्ट्री के मालिक,बहुत अमीर आदमी है, शहर में एक नया कारखाना खोला है, उसके शुभारंभ का न्यौता देने आए थे, जमींदार साहब बोले।।
लेकिन ये तो नटराज है, इसकी वजह से ही सालों से मैं विश्वासघात का कलंक लेकर घूम रहा हूँ, दयाशंकर बोला।।
दयाशंकर की बात सुनकर जमींदार शक्तिसिंह गहरी सोच में पड़ गए।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___