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विश्वासघात--भाग(३)


उधर कृष्णनगर गाँव में___
आइए मालिक! इस बार बहुत दिनों के बाद आपका शहर से गाँव आना हुआ,हरिया ने पूछा।।
अब क्या बताऊँ? तुम से तो कुछ भी छुपा नहीं है, तुम्हें तो मेरी हालत के बारें में सब मालूम है, उस रात जब डाकुओं ने मेरे पेट मे खंजर भोंका तो मुझे लगा कि अब मैं अपने भतीजे विजयेन्द्र प्रताप को खो दूँगा लेकिन भला हो लीला का और दयाशंकर का जो वो दोनों मेरे भतीजे को बचाकर ले भागे और मैं वहाँ काफ़ी देर तक ऐसे ही तड़पता रहा फिर भगवान ने तुम्हें मेरा रक्षक बनाकर भेंज दिया और तुम उस रात मुझे बचाकर अपने घर ले आएं,
रातोंरात वैद्य जी को बुलाकर मेरा इलाज कराया और सुबह होते ही डाँक्टर को बुला लिया तब मेरे प्राण बच सकें,लेकिन मेरे ठीक होने पर जब मैने विजयेन्द्र को खोजने की कोशिश की तो वो ना मिल सका और ना ही नौटंकी की टोली का कोई व्यक्ति मुझे मिल सका जिससे मैं दया और लीला का पता पूछ सकूँ, नौटंकी का मैनेजर भी रात में ही भाग गया था लेकिन अभी कुछ रोज पहले मुझे पता चला कि उस मैनेजर का खून हो गया क्योंकि अखबार मे खब़र छपी थी,तब मुझे पता चला लेकिन बहुत दुःख हुआ जानकर कि उसका खून दयाशंकर करके भाग गया है और दयाशंकर का भी कुछ पता नहीं चला कि वो कहाँ भाग गया,मैं उसके गाँव नन्दपुर भी गया कि शायद कुछ खब़र मिल जाए लेकिन उसका परिवार और लीला गाँव छोड़कर ना जाने कहाँ चलें गए,जमींदार शक्तिसिंह बोले।।
अब मालिक होनी को शायद यही मंजूर था,भाग्य का लिखा कभी कोई ना बदल सका है और अगर आपकी किस्मत मे छोटे जमींदार विजयेन्द्र का मिलना लिखा होगा तो एक ना एक दिन जरूर मिल जाएंगे, हरिया बोला।।
इसलिए तो सूनी हवेली देखकर वहाँ जाने का मन नहीं करता,पुरखों की जमीन जायदाद है इसलिए गाँव आना पड़ता है और फिर तुम लोग भी तो उन्हीं खेतों में काम करके अपना पेट पालते हो,तो तुम लोगों को भी तो खर्चा देने आना पड़ता है, जितने दिन के लिए गाँव में रहता हूँ तो मन्दिर की धर्मशाला मे रह लेता हूँ,हवेली मे रहता हूँ तो ऐसा लगता है कि चारों ओर तनहाई ही तनहाई है,इसलिए हवेली में नहीं रहता,शहर वाला मकान छोटा है और शहर में लाइब्रेरी और क्लब में दिन कट जाता है, कभीकभार गोल्फ खेलने भी चला जाता हूँ,शक्तिसिंह बोले।।
तो हुजूर आज क्या खाएंगे, हरिया ने पूछा।।
वहीं बना लो जो मुझे पसंद हैं, बैंगन का भरता,ज्वार की रोटी,लहसुन हरी मिर्च की चटनी और आलू टमाटर की तरी वाली ढ़ेर सारी धनिया डालकर सब्जी,यहीं आकर तेरे घर का खाना खाकर ही संतुष्टि मिलती है, वहाँ शहर में एक खानसामा रख रखा है जो बेस्वाद बिना मिर्च मसाले का खाना बनाता है, बिल्कुल भी मज़ा नहीं आता खाकर,ऊपर से टेबल कुर्सी पर बैठकर खाना पड़ता है,यहां आराम से जमीन पर बैठकर खाने का मज़ा ही कुछ और है, शक्तिसिंह बोलें।।
जी,मालिक! अभी कहता हूँ रनिया से,अभी फटाफट आपके लिए खाना तैयार कर देंगी,हमारे तो धन्य भाग्य जो आप हम जैसे गरीब आदमी के यहाँ खाना खाते हैं,हरिया बोला।।
गरीब वरीब कुछ नहीं होता हरिया! जिसका दिल बड़ा होता है वहीं सबसे अमीर होता है,अब मुझे ही देख लो मैं क्या करूँ, ऐसी धन दौलत का जहाँ मुझे अपना कहने वाला कोई ना हो,अमीर तो तुम हो हरिया जिसके पास अपना परिवार है बच्चे हैं, भगवान करें कि तुम्हारा परिवार हमेशा ऐसे ही खुश रहे,सही सलामत रहें,शक्तिसिंह बोले।।
सब आपकी कृपा है मालिक है, हरिया बोला।।
तुम्हारा बहुत बड़ा एहसान है मुझ पर जो तुमने उस रात मेरे प्राण बचाएं, नहीं तो मैं आज तुम्हारे सामने ना होता ,शक्तिसिंह बोले।।
मालिक! हम कौन होते हैं बचाने वाले,ये तो सब ऊपरवाले की मरजी थी,तो हमे भेज दिया आपकी मदद के लिए,रचता तो वो है, हम तो सिर्फ़ कर्म करते हैं हुजूर, हरिया बोला।।
शायद तुम ठीक कहते हो,अच्छा! मैं थोड़ा और भी गाँववालों से मिलकर आता हूँ, तब तक तुम खाना तैयार करवाओं,शक्तिसिंह बोलें।।
ठीक है मालिक,हरिया बोला।।
और शक्तिसिंह और भी लोगों से मिलने गाँव पहुँचे, तब उन्हें पता चला कि एक बाघिन है जो जंगल से गाँव की ओर आती है और अब तक कई लोगों को अपना शिकार बना चुकी है, कई औरतें भी उसका शिकार बन चुकीं हैं,गाँव के लोगों ने वन विभाग वालों से कहा तो उन्होंने कहा कि उससे निपटने के लिए हम अपनी जान का जोखिम नहीं उठा सकते।।
तब शक्तिसिंह बोलें, कोई बात नहीं अगर वन विभाग वाले नहीं सुन रहें हैं, कल हम सब उस बाघिन का शिकार करने जंगल चलते हैं,सब कुछ ना कुछ हथियार साथ ले लो,सिर्फ़ नौजवान ही होगें हमारी टोली में,कुछ मशालें और एक जाल लेकर चलते हैं।।
सबने शक्तिसिंह की बात पर अपनी अपनी रजामंदी जताई और शक्तिसिंह खाना खाने आ पहुँचे और खाना खाकर उन्होंने हरिया को बताया कि वो कल शिकार पर जाएंगे।।
दूसरी दिन रात के समय योजना के अनुसार सब कार्य किया गया और सबकी सहायता पाकर शक्तिसिंह बाघिन को मारने में सफल हुए,इस तरह गाँववाले अब बाघिन के डर से निश्चिंत हो गए थे,गाँववाले तो लौट आएं लेकिन शक्तिसिंह को जंगल की खामोशी भा गई और उन्होंने दो चार लोगों को अपने साथ जंगल में रोक लिया और बोले ,यही एक दो दिन और रूककर फिर चलेंगें।।

इधर मंगला ने अपने मायके जाने की सोची लीला और बच्चों के साथ, क्योंकि अब मायके के सिवाय रहने का उसे और कोई ठिकाना नज़र नहीं आ रहा था और वैसे भी मायके के नाम पर उसके बूढ़े माँ बाप ही थे,उन सबने वहीं जाने के लिए बस पकड़ी,बस ने गाँव के पक्के रोड तक उन्हें उतार दिया,अब उन्हें चार पाँच किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय करना था और सब चल पड़े,रास्तें में थोड़ा जंगल भी पड़ता था लेकिन अब क्या करें,गाँव तो पहुँचना ही था।।
सब चले जा रहे थे भूखे प्यासे किस्मत के मारें और शाम भी हो चली थी,तभी सबको कुछ घोड़ो के टापों की आवाज़े सुनाई दी,लीला को शक़ हो गया कि हो ना हो ये डाकू हो सकते हैं और उसने सबको सावधान करके झाड़ियों के पीछे छुपने को कह दिया,सब डर के मारे झाड़ियों मे छुप गए,सब बच्चे बड़े थे इसलिए चुप रहे लेकर प्रदीप सबसे छोटा था,उसे तो कुछ भी पता नहीं था कि क्या हो रहा है और वो जोर जोर से रोने लगा,तभी डाकुओं को उनके वहाँ छुपे रहने की भनक लग गई।।
वे तीन डाकू थे,उन्होंने जब उनसे पैसे रूपए माँगें तो उन्होंने अपनी सारी दशा कह सुनाई लेकिन उनमें से एक को तो कुछ ना कुछ चाहिए था इसलिए वो बेला हम इस लड़की को उठा कर ले जाएंगे, बाक़ी के दो बोले,नहीं ये नहीं हो सकता,ये किसी की बेटी है किसी की इज्जत है,तुम ऐसा नहीं कर सकते और हम ऐसा नहीं होनें देंगें लेकिन वो नहीं माना और उसने अपने दोनों साथियों को गोली मारी और बेला को घोड़े पर बैठाकर ना जानें कहाँ ले गया।।
इधर मंगला को काटो तो खून नहीं, उसकी इकलौती बेटी को कोई ऐसे उठा कर ले गया,उसे तो अब भी भरोसा नहीं हो रहा था,लीला ने उसे बहुत समझाया बोली,हम औरतें है मंगला भाभी!चाहें तो तब भी नहीं मर सकतीं,तुम्हें अपने इन दोनों बच्चों की खातिर तो जीना ही पड़ेगा,समझ लो तुम्हारी बेटी की उम्र इतनी ही थी।।
कैसे समझ लूँ जीजी! कि मेरी बेटी की उम्र इतनी ही थी,मैने उसे नौ महीने पेट में रखा था,कितनी तकलीफ़ झेली उसे जन्म देते हुए,वो मेरी पहली सन्तान थी,उसी ने ही तो मुझे पहली बार ममता का एहसास कराया था,मंगला बोली।।
चुप हो जाओ भाभी! किस्मत का लेखा कोई नहीं बदल सकता और जब मुसीबत आती है तो सब तरफ से आती है, सम्भालों अपने आप को,गाँव चल कर लोगों से मदद माँगते हैं, शायद हमारी बेला का कुछ पता चल सकें,लीला बोली।।
और सब गाँव की ओर बढ़ चले,वहाँ पहुँच कर उन्होंने ना जाने किससे किससे नहीं पूछा और ना जाने कहाँ कहाँ नहीं ढ़ूढ़ा लेकिन उन्हें बेला की कोई खबर ना मिल सकी और इधर बेला की वजह से विजय भी उदास सा रहने लगा।।
उधर जंगल में एक जगह डाकू रूका,बेला जब तक नींद में थी तो चुप रही लेकिन जब सोकर उठी और अपनी माँ और भाइयों को अपने पास ना देखकर रोना शुरू कर दिया,डाकू ने उसे चुप कराने की कोशिश की लेकिन वो चुप ना हुई और उसने और भी शोर मचाना शुरु कर दिया।।
तभी जंगल में शक्तिसिंह को किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी और वे उस ओर दो चार लोगों के साथ गए, उन्होंने बच्ची को देखा और समझ गए कि ये डाकू उसे उठाकर लाया है और तभी बच्ची इतना रो रही है, शक्तिसिंह ने सबकी मदद से उस डाकू को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया और बच्ची को अपने साथ ले आएं।।
उन्होंने बच्ची से पूछा भी कि वो वहाँ कैसे आई लेकिन बच्ची ने अपने माँ बाप का और गाँव का नाम बताया और कहा कि उन्हें गाँव छोड़ना पड़ा लेकिन उसे अपने ननिहाल के गाँव का नाम पता नहीं है क्योंकि वो वहाँ पहली बार जा रही थी हमेशा उसके नाना ही उससे मिलने आते थे।।
अच्छा तो तुम दयाशंकर की बेटी हो,शक्तिसिंह ने पूछा।।
हाँ,बेला बोली।।
और लीला को जानती हो,शक्तिसिंह ने पूछा।।
हाँ,वो तो हमारे पड़ोस की बुआ हैं और हम उन्हीं के साथ जा रहे थे,लीला बोली।।
अच्छा, ये बताओ बिटिया! क्या उनके साथ कभी तुमने किसी बच्चे को देखा,शक्तिसिंह ने पूछा।।
हाँ,विजय नाम है उसका,वो तो उन्हीं के ही साथ है, बेला ने भोलेपन से उत्तर दिया।।
शक्तिसिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा,ये जानकर कि विजयेन्द्र सकुशल है और अगर भगवान ने चाहा तो वो एक ना एक दिन मुझे जरूर मिल जाएगा,उन्होंने मन में सोचा।।
बहुत ढ़ूढ़ने के बाद भी बेला का परिवार उन्हें ना मिला और वे बेला को अपने साथ शहर ले गए और वहीं उसका एडमिशन एक अच्छे स्कूल मे करा दिया।।
उधर दयाशंकर एक गाँव में मंदिर के नीचें बैठकर भीख माँगने लगा ताकि उसे कोई पहचान ना पाएं, इधर मंगला भी धीरे धीरे बेटों को पालते पालते बेटी का ग़म भूल गई, कुछ सालों बाद मंगला के माँ बाप भी चल बसे,लीला और मंगला ने अब उनके खेत सम्भाल लिए थे दोनों जमकर खेतों में मेहनत करके तीनों बच्चों को पढ़ा रहीं थीं और इधर बेला क्रिस्चियन सकूल में पढ़के अंग्रेज़ी सीख रही थी।।
सब की जिन्दगियाँ अपने अपने भाग्य के भरोसे चल रहीं थीं,सब बच्चे धीरे धीरे बड़े हो रहे थे।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___