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विश्वासघात--भाग(४)


वो कहते हैं कि ना,समय किसी के लिए नहीं रूकता,वो तो निरन्तर अपनी चाल से चलता रहता है और समय ही सबसे बलवान होता है, उसके आगें कभी किसी की नहीं चलती,सब अपनी अपनी पुरानी बातें भूलकर अपनी जिन्द़गी में आगें बढ़ गए, पन्द्रह सालों के बाद सबकी जिन्दगियों ने एक नया मोड़ ले लिया था____
आज मैं बहुत खुश हूँ बेला! कि तुम डाँक्टर बन गई,जमींदार शक्तिसिंह बोले।।
बाबा! ये तो सब आपकी मेहरबानियों का नतीजा है, आप ने उस दिन मुझे डाकू से बचाया और अपने साथ शहर ले गए, मुझे पढ़ा लिखाकर इस काब़िल बना दिया कि आज मैं बेला से डाँक्टर महेश्वरी बन गई, बेला बोली।।
कैसीं बातें करती? हो बेला बिटिया! मेहरबानी कैसी? तुम्हारे सिवाय मेरे पास जीने के लिए कोई बहाना भी तो नहीं था,मेरा नन्हें भी कहीं खो गया था,ऐसे में तुम मुझे मिली तो मन में जीने की एक किरण जाग उठी, सोचा अब तुम्हारे सहारे ही मेरी जिन्द़गी कट जाएगी, मैं सोचा करता था कि जब मेरा ब्याह होगा तो मैं अपनी बेटी का नाम महेश्वरी रखूँगा, लेकिन मैं जिससे ब्याह करना चाहता था उसने ब्याह के लिए मना कर दिया और मेरा ये अरमान अधूरा रह गया लेकिन जब तुम मुझे मिली तो मुझे लगा कि तुम भी तो मेरी बेटी ही हो और मैने स्कूल के लिए तुम्हारा नाम महेश्वरी रख दिया,सक्षात् दुर्गा का रूप,शक्तिसिंह बोले।।
हाँ,बाबा! मुझे सब पता है, सच आपने मुझे माँ बाप दोनों का ही प्यार दिया है, कभी ये महसूस ही नहीं होने दिया कि मैं अनाथ हूँ, बेला बोली।।
बस,बिटिया रहने दे,मेरी गाथा गाना बंद कर,अब ये बता कि शहर के कौन से अच्छे और बड़े अस्पताल में तुझे नियुक्ति चाहिए, मैं अभी बात करता हूँ, शक्तिसिंह बोले।।
हाँ,बाबा! मैं आपसे इस मसले मे ही कुछ बात करना चाहती थी,बेला बोली।।
हाँ,बोल बेटी! शक्तिसिंह बोले।।
पहले आप वादा कीजिए कि आप नाराज नहीं होगें, बेला बोली।।
अच्छा! ना हूँगा नाराज,अब बताएंगी भी कि क्या बात हैं? शक्तिसिंह ने पूछा।।
वो ये है बाबा! कि मैं किसी गाँव जाकर,वहाँ के लोगों की सेंवा करना चाहती हूँ, वैसे भी गाँवों के लोगों को साफ सफाई और स्वच्छता से रहने के तरीकों के बारें में ज्यादा नहीं मालूम,मैं उन्हें ये सब बताना चाहती हूँ, यहाँ शहर में तो डाक्टरों की कमीं नहीं है लेकिन गाँवों के हालात अभी बततर हैं, इसलिए मैने खुद ही एक गाँव के लिए एप्लाई कर दिया था क्योंकि कुछ महीने हो चुके हैं वहाँ के डा्क्टर का रिटायरमेंट हुए और अभी तक वहाँ कोई दूसरा डाक्टर नहीं आया,इसलिए मैने सोचा मैं ही उस गाँव चली जाती हूँ, बेला बोली।।
मुझे गर्व है बिटिया तुम पर और अपनी परवरिश पर भी कि तुम्हारे मन में इतना अच्छा विचार आया,मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है,जाओ और सफलतापूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करो,शक्तिसिंह बोले।।
बस,बाबा! मैं यही चाहती थी,मुझे डर था कि कहीं आप मेरी बात सुनकर नाराज ना हो जाएं, बेला बोली।।
नहीं डाक्टर महेश्वरी! आपसे तो हम सपनों में भी नाराज नहीं हो सकते और इतना कहकर दोनों बाप बेटी के हँसी के ठहाके कमरे मे गूँज गए।।
हाँ,बिटिया! तुमने गाँव का नाम तो बताया ही नहीं, शक्तिसिंह ने पूछा।।
गाँव का नाम चन्दनपुर है, बेला बोली।।
चलो ऐसा करो,जब तक तुम्हारा नियुक्ति पत्र आता है, तब तक तुम अपना सारा समान ठीक कर लो और हाँ, जो दूसरी वाली बड़ी मोटर है, तुम उसमे जाओगी, ड्राइवर तुम्हें छोड़ आएगा, बस के झमेले में मत पड़ना क्योंकि सामान भी ज्यादा हो जाएगा,कहों तो मैं भी चल पडू़गा तुम्हारे संग,शक्तिसिंह बोले।।
ना बाबा! पहले लेटर आ जाएं, फिर प्लानिंग कर लेंगें,तब तक मैं आपके साथ ही सारा वक्त गुजारूँगी,बेला बोली।।
अरे,बिटिया! क्या बुढ़ऊ के संग वक्त बिताओगीं,अब तुम्हें वक्त बिताने के लिए एक साथी ढ़ूढ़ लेना चाहिए, शक्तिसिंह बोले।।
क्या बाबा! फिर से मज़ाक,जाइए मैं आपसे बात नहीं करती,बेला बोली।।
लेकिन अब साथी तो ढूंढ़ना पड़ेगा ना,तेरे हाथ पीले कर दूँ फिर मेरी सभी जिम्मेदारियाँ पूरी,शक्तिसिंह बोले।।
और ऐसे ही दोनों बाप बेटी के बीच बातें चलतीं रहीं.....
इधर विजयेन्द्र भी गाँव के सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गया,उसने बड़ी नौकरी करना मंजूर नहीं किया बोला कि मैं गाँव मे ही रहकर गाँव के बच्चों को शिक्षा दूँगा,शहर जाने का कोई मतलब नहीं बनता और संदीप भी वकालत की पढ़ाई कर रह है उसका आखिरी साल है और प्रदीप भी काँलेज में है, दोनों साथ में ही शहर में कमरा किराए पर लेकर रहते हैं और तीज त्यौहार पर ही घर जाते हैं।।
मंगला ने अपनी मेहनत से अपने दोनों बेटो को सही स्थान पर पहुँचा दिया है लेकिन अभी भी वो अपनी बेटी बेला को नहीं भूली है और ना अपने पति दयाशंकर को ,उसे अब भी यकीन है कि एक ना एक दिन उसकी बेटी उसे जरूर मिल जाएंगी और उसका पति भी निर्दोष है, वो कभी भी किसी के संग विश्वासघात कर ही नहीं सकता।।
वो कभी कभी सोचती कि एक विश्वासघात ने सबकी जिन्दगियों को किस कद़र बदल कर रख दिया सब कहाँ से कहाँ पहुँच गए।।
और उधर लीला के घर में___
क्यों रें ,विजय! ये सब क्या है? पूरे घर में ये पतंगी कागजों की झण्डियाँ क्यों फैला रखीं हैं, लीला ने विजय से पूछा।।
अरे,माँ! वो अगले हफ्ते पन्द्रह अगस्त है ना ! हमारे देश का स्वतन्त्रता दिवस तो उस दिन पाठशाला में सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा,पाठशाला को भी सजाना पड़ेगा ना इसलिए पतंगी कागजों की झण्डियाँ बना रहा था,विजय बोला।।
तू भी ना,अभी भी बच्चा ही है, अच्छा ये सब छोड़ पहले खाना खा लें,लीला बोली।।
क्या है खाने में ? विजय ने पूछा।।
लौकी की सब्जी ,लहसुन की चटनी ,तड़के वाली छाछ और रोटी,लीला बोली ।
तब तो बहुत बढ़िया, चलो माँ!मैं ये सब समेटकर आता हूँ, विजय बोला।।

इधर डाक्टर महेश्वरी का नियुक्ति पत्र आ चुका था और वो अपनी तैयारी करने में लगी थी और उधर शक्तिसिंह जी उदास बैठे थे,बेला ने उन्हें देखा तो पूछ बैठी,आप इतने उदास क्यों हैं बाबा!
बस,बेटी! अकेलेपन से थोड़ा डर लग रहा है, शक्तिसिंह जी बोले।।
बाबा! आप ऐसा कहेंगें तो मैं कैसे जा पाऊँगी, बेला बोली।।
अच्छा ठीक है, तू तैयारी कर मैं भी तेरी मदद करता हूँ, शक्तिसिंह जी बोले।।
और दोनों बाप बेटी ने समान बाँधा और सुबह सुबह बेला गाँव के लिए निकल पड़ी और दोपहर होते होते वो अपने छोटे से सरकारी दवाखाने में पहुँच गई, वहीं उसके रहने के लिए एक क्वार्टर था,जहाँ उसने अपना सामान जमा लिया और ड्राइवर को खाना खिलाकर वापस भेज दिया,एक दिन का खाना तो वो अपने साथ लाई थीं और जो कमियाँ थी,वो वहाँ के अस्पताल के कम्पाउंडर ने पूरी कर दी थी,एक दो दिन में उसका वहाँ मन भी लग गया, वो इसलिए कि कम्पाउण्डर धनीराम की वीबी गुलाबों बहुत दिलचस्प थी,उसकी बातें बहुत ही लच्छेदार हुआ करतीं थीं और वो डाक्टर महेश्वरी का बहुत ख्याल भी रख रही थीं।।
इसलिए दो चार दिन में ही महेश्वरी का मन गाँव में लग गया, अब जो भी उसके पास इलाज के लिए आता वो उसके स्वभाव से खुश होकर ही जाता और उसकी दवा से लोगों को आराम भी लग रहा था और वो जो भी मरीजों को हिदायतें देती,मरीज बिना नानुकुर के खुशी खुशी मान लेते।।
एक दिन डाक्टर महेश्वरी मरीजों को देख रही थी,चूँकि बारिश का समय था इसलिए मरीजों की तादाद ज्यादा थी,लाइन थोड़ी लम्बी थी,महेश्वरी सुबह से मरीजों को देखते देखते थक गई थीं और उसे बहुत जोऱ की भूख लग रही थी और अभी खाना भी बनाना था।।
तभी एक मरीज़ आकर बैठ गया,महेश्वरी ने उसे देखें बिना ही पूछ लिया कि कहिए क्या तकलीफ़ है आपको?क्योंकि वो कुछ दवाओं की पुड़ियाँ बना रही थी॥
जी,मुझे तकलीफ़ तो कोई नहीं है, मरीज़ बोला।।
जब आपको कोई तकलीफ़ नहीं है तो फिर यहाँ तशरीफ़ क्यों लाएं हैं?महेश्वरी ने पूछा।।
आप तो खामख्वाह में नाराज़ हो रहीं हैं, डाक्टरनी साहिबा? उस शख्स ने कहा।।
जी,तो फिर आप यहाँ तशरीफ़ क्यों लाएं हैं, एक तो सुबह से मैने कुछ खाया नहीं है, बहुत जोर की भूख लग रही है और अभी खाना भी बनाना है और आप हैं कि यहाँ मेरा वक्त जाया कर रहे हैं, महेश्वरी बोली।।
जी,माफ़ कीजिए डाक्टरनी साहिबा,मै तो आपको पन्द्रह अगस्त के लिए इनवाइट करने आया था हमारी पाठशाला के लिए क्योंकि जो पुराने डाक्टर साहब थे वो ही हमेशा ध्वजारोहण किया करते थे और उनकी जगह पर अब आप आ गई हैं तो मैने सोचा आप हमारी पाठशाला आएंगी ध्वजारोहण में तो हमारी पाठशाला की शोभा बढ़ जाएंगी,शख्स बोला।।
तो ऐसा कहिए ना! जी मैं जुरूर आऊँगी, महेश्वरी बोली।।
ठीक है तो मैं जाता हूँ, आपको तकलीफ़ दी उसके लिए माफ़ करें जी,धन्यवाद और वो शख्स चला गया लेकिन कुछ देर बाद वो कुछ सामान लेकर दोबारा आया और बोला___
डाक्टरनी साहिबा! ये रहा आपके लिए खाना और बिना देर करें खा लीजिए।।
लेकिन आपनें क्यों तकलीफ़ की,मैं बना लेती,महेश्वरी बोली।।
वो तो ठीक है लेकिन आपके मरीज भी तो जरूरी हैं और मरीज़ो के लिए आप जरूरी हैं, इसलिए आपका ख्याल रखना हम सब गाँव वालों का फर्ज बनता है,जल्दी कीजिए और फौऱन खाना खा लीजिए, मैं अभी जाता हूँ और वो शख्स इतना कहकर चला गया।
महेश्वरी ने जल्दी से खाना खतम किया और फिर से काम में लग गई, उधर लीला ने विजय से पूछा____
क्यों रे! खाना किसके लिए ले गया था।।
अरे,माँ डाक्टरनी साहिबा के लिए,बहुत भूखी थी बेचारी,सुबह से मरीजो को देखने मे लगी थी और खाना भी नही बना पाई थी,इसलिए दे आया,विजय बोला।।
अच्छा किया,आखिर वो हम सब गाँववालों की सेवा ही तो कर रही है, लीला बोली।।
माँ! बहुत ही भली लड़की है, अभी नई नई डाक्टरनी बनी है, चाहती तो शहर के अस्पताल में भी जा सकती थी लेकिन उसने सेवा के लिए गाँव चुना,विजय बोला।।
अच्छी बात है,बेटा! लगता है तेरी ही तरह भली है, लीला बोली।।
और उधर शहर में दयाशंकर बूटपाँलिश करके अपना पेट पालता है, एक गन्दी सी बस्ती में अँधेरी कोठरी में रहता है, सस्ते से ढ़ाबे में खाना खा लेता है और ऐसे ही जिन्द़गी काट रहा है वो उस पाप की सजा भुगत रहा है जो उसने किया ही नहीं, उसे अब लगने लगा है कि लगता है सारी उम्र भर विश्वासघात का कलंक ढ़ोना पड़ेगा।।
पन्द्रह अगस्त का दिन,पाठशाला में सांस्कृतिक कार्यक्रम और ध्वजारोहण है, सभी बच्चे खुश थे क्योंकि आज तो लड्डू भी बँटेगें।।
तभी डाँक्टर साहिबा पाठशाला में पधारीं और बच्चों ने उन्हें फूलों की माला पहनाकर उनका स्वागत किया और डाँक्टर महेश्वरी ने ध्वजारोहण किया इसके बाद सारे बच्चों को लड्डू बाँटें गए और फिर सबने सांस्कृतिक कार्यक्रम का मजा लिया और उसके बाद बच्चों को ईनाम बाँटे गए।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा____