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विश्वासघात--भाग(६)


शाम का समय था___
क्यों रे प्रदीप ! मंदिर चलेगा,संदीप ने पूछा।।
ना भइया! मै सोच रहा हूँ कि खाना बनाने के बाद पढ़ने बैठ जाऊँ, इम्तिहान आने वाले हैं, आप का मन है तो आप चले जाओ,प्रदीप बोला।।
अच्छा, ठीक है तो मैं हो आता हूँ मंदिर,ऐसा कहकर संदीप मंदिर चला आया ,उसने भगवान के दर्शन किए प्रसाद लिया और मंदिर के बाहर आया , देखा तो वहाँ कुछ चिल्लमचिल्ली मचीं हुई है, भीड़ के बीच में घुसकर उसने देखा कि मंदिर के पुरोहित जी एक बूटपाँलिश वाले को जोर से डाँट रहे थे और बूटपाँलिश वाले का बचाव कोई लड़की कर रही थीं और पुरोहित जी किसी की सुनने को तैयार नहीं थे।।
तभी संदीप को लगा कि कोई बड़ी बात है जिसे लेकर पुरोहित जी इतना परेशान हो रहे हैं और उसने पुरोहित से पूछा कि आखिर बात क्या है?
अरे,कुछ नहीं भाई! ये बूढ़ा बूटपाँलिश वाला रोजाना ही शाम के समय अपनी बेटी को मंदिर लेने चला आता है, दिनभर ना जाने किस किस के जूते छूकर पाँलिश करता होगा और शाम को मंदिर को अपवित्र करने चला आता है और इसकी ये बेटी दिनभर यहाँ फूल बेचती,इसे यहाँ फूल बेचने के लिए मैं मना नहीं करता कि गरीब है बेचारी लेकिन अपने बाप को लेकर मुझसे ही जुबान लड़ा रही है, पुरोहित जी बोले।।
अरे,जाने दीजिए पुरोहित जी,हो गई गलती अब ना करेगी ऐसा,संदीप बोला।।
अरे,साहब! भलाई को तो जमाना ही नहीं है,पुरोहित जी बोले।।
पुरोहित जी! मेरा बापू तुम्हारे मंदिर में आकर किसी को लूटता नहीं है तुम्हारी तरह,जो तुम लोगों से झोली भर भर के दक्षिणा लेते हो और उनके कष्ट निवारण के झूठे उपाय बताते रहते हो,दिनभर धूप में में कड़ी मेहनत करता है तब जा के दो रोटी नसीब होती है, तुम्हारी तरह मुफत की दूध मलाई नहीं खाता,बूढ़े बूटपाँलिश की बेटी गुस्से से बोली।।
देखा भाई तुमने...देखा ना! इस लड़की की जुबान कैसे कैंची की तरह चलती है, दोनों बाप बेटी गलती कर रहे हैं और गलत भी मुझी को ठहरा रहे हैं, पुरोहित जी बोले।।
अरे,जाने दीजिए ना पुरोहित जी! लड़की नादान है, आप भी समझदार होकर किस अल्हड़ की बातों में आ रहें हैं, संदीप बोला।।
सुनो बाबूजी! मैं अल्हड़ नहीं हूँ ये पुरोहित चोर है, वो लड़की बोली।।
ठीक है फूलवाली तुम बहुत समझदार हो,मैं अल्हड़ हूँ, अब ठीक है ना ,संदीप बोला।।
अरे भाई! किसके मुँह लग रहे हो? ये बहुत ही पागल छोकरी है, आए दिन ग्राहकों से लड़ती रहती है, पुरोहित जी बोले।।
अच्छा! तो मैं लड़ती हूँ, कोई मुझसे बतमीजी करेगा,फालतू की बकवास करेगा और मैं चुप रहूँ, वो लड़की बोली।।
चल कुसुम! बहुत हो गया,अब घर चल,साँझ होने को आई है, हम गरीब है बिटिया! हमारे जैसों की कहीं सुनवाई नहीं होती,बूढ़े बूटपाँलिश वाले ने कहा।।
नहीं बाबा! ऐसा नहीं है, आपको जो परेशानी है, आप मुझसे कह सकते हैं, संदीप ने उस बूढ़े से कहा।।
ना बेटा! हम गरीबों की कौन सुनता? ना यहाँ ना वहाँ, बूटपाँलिश वाला बोला।।
कोई परेशानी हो तो बताइए,संदीप बोला।।
भाई तुम लोग आपस में निपटाते रहो,लो मै तो चला ,लेकिन भाई इतनी जल्दी किसी पर भरोसा मत करो,ऐसा ना हो कि ठगे जाओ और इतना कहकर पुरोहित जी चले गए।।
ना बेटा! तुम अन्जान से क्या अपना दुखड़ा रोऊ,जब ऊपर वाले ने नहीं सुनी,बूढ़े ने कहा।।
ना बाबा! मैं तुम्हारे बेटे के समान हूँ, जो कहना हो तो दिल खोलकर कहो,संदीप बोला।।
पता है बेटा! आज कोठरी का किराया देने का आखिरी दिन है लेकिन पूरा किराया आज भी नहीं जुटा पाया और अगर मकानमालिक ने कोठरी खाली करवा ली तो कहाँ जाऊँगा, सयानी बिटिया को लेकर और फिर ये मेरी बेटी भी नहीं है करीब दस साल पहले इसका बाप भी बूटपाँलिश किया करता था,मेरा अच्छा दोस्त बन गया था वो,दिमागी बुखार हो गया,उसकी बीवी तो पहले ही मर चुकी थी,इस लड़की को व़ो ही अकेले पाल रहा था,दिमागी बुखार इतना ज्यादा हो गया कि उसने बिस्तर पकड़ लिया और हफ्ते दो हफ्ते में चल बसा,इस लड़की को इसके कोई भी रिश्तेदार अपनाने को तैयार नहीं थे,लेकिन मुझे दया आ गई इस पर और मैने रख लिया इसे अपने साथ,तब से ही ये मेरे साथ है और मुझे ही अपना बापू मानती है, उस बूढ़े ने कहा।।
कोई बात नहीं बाबा! मुझे बताओं कितने रूपए कम पड़ रहे हैं, उधार समझकर रख लो,जब हो जाएं त़ो चुका देना,संदीप बोला।।
बेटा! तुम मुझे जानते भी नहीं हो और इतना भरोसा, बूढ़े ने कहा।।
बाबा! इंसान ही तो इंसान के काम आता है और भरोसे पर ही तो दुनिया कायम है, मेरे इंसान होने का क्या फायदा जब किसी इंसान के काम ना आ सकूँ, संदीप बोला।।
भगवान तुम्हारा भला करें बेटा! दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करो,बूटपाँलिश वाले बूढ़े ने कहा।।
और संदीप ने बूढ़े को बाक़ी के रूपए दिए और आने लगा तभी कुसुम ने उसे टोकते हुए कहा___
ठहरो बाबू! ये आखिरी माला बची थी,तुम इसे लेते जाओ,कुसुम बोली।।
मैं क्या करूँगा इसका,संदीप ने पूछा।।
अपने भगवान पर चढ़ा देना,तुम्हारे जैसे देवता इंसान कम ही होगें दुनिया में,मै समझूँगी कि ये फूलमाला मैने भी देवता पर चढ़ा दी,कुसुम बोली।।
कैसीं बातें कर रही हो कुसुम!संदीप ने कहा।।
सच ही तो कह रही हूँ बाबू! कुसुम बोली।।
अच्छा! ठीक है, अब मैं चलता हूँ,संदीप बोला।।
अच्छा बाबू! कभी कभी तो आओगें ना मन्दिर में,तुम्हारा उधार जो चुकाना है, कुसुम बोली।।
हाँ,मैं अक्सर आता रहता हूँ,अब मैं जाता हूँ और अब की बार टोकना मत और इतना कहकर संदीप अपने कमरे चला गया और उस हार को भगवान की अलमारी में रख दिया।।
और उधर कुसुम और उसके बापू की बीच बातें जारी रही___
कितना भला इंसान है,बिना जान पहचान के पैसे देकर चला गया,बुटपाँलिश वाले ने कहा।।
हाँ बापू! आजकल के जमाने में कोई जान पहचान वाले की मदद नहीं करता और उसने हम अंजान गरीबों की मदद की,कुसुम बोली।।
सही कहती हो बिटिया! अच्छा अब चल,कुछ तरकारी खरीद ले,अभी खाना भी तो बनाएगी, तू कोठरी में चल,मै मकान मालिक के घर किराया देकर आता हूँ, बूटपाँलिश वाले ने कहा।।
ठीक है बापू,कुसुम बोली और दोनों अपने अपने रास्ते चले गए।।

शक्तिसिंह के कोई पुराने मित्र थे,उनके बेटे ने एक थ्री स्टार होटल बनाया उसका शुभारंभ था,शक्तिसिंह भी उसमें आमंत्रित थे,सड़क के किनारे शक्तिसिंह जी के ड्राइवर ने इम्पाला रोकी , शक्तिसिंह जी इम्पाला से उतरे ही थे,उन्होंने ये नहीं देखा कि नीचे पानी से भरा छोटा सा गड्ढा है , उनका एक पैर उस पानी से भरें गड्ढे में पड़ गया और उनके एक पाँव का जूता गंदा हो गया,उन्होंनें ड्राइवर से कहा कि अब क्या करूँ, ऐसा गंदा जूता लेकर इतने सारे लोगों के बीच कैसे जाऊँ, लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे?
तभी ड्राइवर ने इधर उधर देखा और बोला____
कोई बात नहीं मालिक! देखिए उधर पेड़ के नीचे बूटपाँलिश वाला है, वो आपका जूता अच्छे से पाँलिश कर देगा।।
सही कहते हो,राधेश्याम! मैं अभी उसके पास होकर आता हूँ,शक्तिसिंह बोले।।
और शक्तिसिंह उस बूटपाँलिश वाले के पास पहुँचे,उन्होंने अपने जूते पाँलिश कराते कराते बूटपाँलिश को ध्यान से देखा और अचानक ही बोल पड़े...दयाशंकर.... तुम दयाशंकर ही हो ना!बोलो भाई....बताओ ना! तुम दयाशंकर ही हो ना।।
उस बूटपाँलिश वाले ने अपना नाम सुना तो चौंक पड़ा और उसने भी शक्तिसिंह जी को बड़े गौर से देखा और बोला,मै किस मुँह से कहूँ कि मैं दयाशंकर हूँ।।
ऐसा क्या हुआ भाई! कुछ बताओगे मुझे, कितना ढ़ूढ़ा मैने तुम्हें और लीला को लेकिन मुझे तुम लोग कहीं नहीं मिले,मेरा भतीजा....मेरा नन्हें कहाँ है? शक्तिसिंह ने दयाशंकर से पूछा।।
सब बताता हूँ, जमींदार साहब!और दयाशंकर ने अपनी सारी आपबीती शक्तिसिंह जी को कह सुनाई।।
तो मेरा नन्हें अभी लीला के पास है, शक्तिसिंह जी ने पूछा।।
हाँ,जमींदार साहब! मैने भी तो अपने बच्चों को सालों से नहीं देखा,उस हत्यारे नटराज ने सबकुछ किया और
मेरे ऊपर विश्वासघात का कलंक लगा दिया,दयाशंकर बोला।।
मुझे तुम पर पूरा भरोसा है और आज से तुम ये काम नहीं करोगें, तुम मेरे बंगले में आकर कोई भी काम कर लो,लेकिन अब ये छोड़ो,तुम मेरे साथ रहोगे तो शायद कोई ना कोई रास्ता मिल जाएं,तुम्हें बेकसूर साबित करने का और एक बात बताना तो मै भी भूल गया कि तुम्हारी बेला मेरे पास आ गई थी,कोई डाकू उसे ले जा रहा था,जंगल मे मुझे मिल गई,अब वो डाक्टर बन गई हैं,शक्तिसिंह जी बोले।।
ये सुनकर दयाशंकर की खुशी का ठिकाना ना रहा और उसने पूछा क्या ये सच हैं,जमींदार साहब।।
हाँ,दयाशंकर बिलकुल सच है और अब मेरे बँगलें चलकर सारी बातें करते हैं,शक्ति सिंह बोले।।
लेकिन मेरे साथ कुसुम भी है, अनाथ थी बेचारी तो मैने उसे अपनी बेटी समझकर पाल लिया,दयाशंकर बोला।।
कोई बात नहीं भाई! वो घर की रसोई बना दिया करेंगी,शक्तिसिंह जी बोले।।
तुम यहाँ थोड़ी देर ठहरना,यहाँ से कहीं मत जाना,मैं बस आधे घंटे में आता हूँ, अपने दोस्त से मिलकर और कुछ देर के बाद शक्तिसिंह लौटे और दयाशंकर और कुसुम को अपने बंगले ले गए, वहाँ दयाशंकर ने माली का काम शुरू कर दिया,बगीचा बहुत बड़ा था,दयाशंकर को वही काम भाया,कुसुम ने बंगले की रसोई सम्भाल ली और दोनों बगीचे के पास बनें सर्वेन्ट क्वार्टर में रहने लगें और बेला के गाँव से लौटने का दयाशंकर बेसब्री से इंतज़ार करने लगा कि कब मैं अपनी बेटी को देखूँ।।
इधर शाम को संदीप मंदिर पहुँचा और कुसुम को ना देखकर उदास हो बैठा,उसने पुरोहित जी पूछा भी कि अब फूलवाली नहीं बैठती तो वो बोले___
कौन सी दुनिया मे जी रहें हो साहब! दोनों बाप बेटी तुम्हारा पैसा लेकर फरार हो गए, मैने तो पहले ही कहा था कि उन पर भरोसा मत करो,देख लिया भलाई का नतीजा,दोनों धोखेबाज निकले ना,उस दिन के बाद से तो मुझे भी दोनों यहाँ नहीं दिखें,पुरोहित जी बोले।।
ऐसा नहीं हो सकता, वो दोनों धोखेबाज नहीं हो सकते,हो सकता है कि दोनों की कोई मजबूरी हो जो यहाँ ना आ पा रहे हो,संदीप बोले।।
बहुत भोले हो भाई! ये दुनिया ऐसी ही है,मै तो चला,तुम ढ़ूढ़ते रहो दोनों को,पुरोहित जी बोले।।
और संदीप उस शाम मंदिर से उदास होकर लौट आया।।

उधर कुसुम ने एक दिन दयाशंकर से कहा____
बापू! उस दिन मंदिर में उन बाबू जी ने हमारी मदद की थी,उनका पैसा भी तो चुकाना है, सोचती हूँ आज शाम को मंदिर चली जाऊँ।।
हाँ...हाँ...बिटिया! मैं भी यही सोच रहा था कि उधारी तो वैसे भी किसी कि ज्यादा दिनों तक नहीं रखनी चाहिए, वो भी बेचारा ना जाने क्या सोच रहा होगा कि हम धोखेबाज निकलें, मंदिर भी गया होगा तो तुझे वहां ना पाकर यही सोचता होगा कि दोनों बाप बेटी पैसे लेकर भाग गए, दयाशंकर बोला।।
हाँ,बापू! वो पक्का यही सोच रहा होगा,कुसुम बोली।।
तू आज ही उधार चुका दे,दयाशंकर बोला।।
लेकिन वो मंदिर ना आया तो,कुसुम बोली।।
तू अपना काम कर,बाकी़ उस ऊपरवाले पर छ़ोड़ दे,दयाशंकर बोला।।
उस शाम कुसुम मंदिर गई लेकिन संदीप उसे वहाँ ना मिला और वो दुखी होकर वहाँ से लौटी और ये सिलसिला जारी रहा,जिस दिन संदीप मंदिर जाता उस दिन कुसुम ना जाती और जिस दिन कुसुम मंदिर जाती उस दिन संदीप ना आता,थकहार कर कुसुम पुरोहित से कहने गई कि बाबू जी आए तो मेरा संदेशा उस तक पहुँचा दे कि मैं उनकी उधारी भूली नहीं हूँ और जिस दिन संदीप मंदिर पहुँचा तो पुरोहित जी ने कुसुम का संदेशा संदीप को दे दिया,संदीप ये सुनकर बहुत खुश हुआ और पुरोहित जी से बोला___
मैं ना कहता था कि वो धोखेबाज नहीं है, उसकी कोई मजबूरी होगी।।
लेकिन भाई तुम तो ऐसे खुश हो रहे हो कि जैसे कोई खजाना मिल गया हो,पुरोहित जी बोले।।
खजाना ही मिल गया है, आप नहीं समझेंगे, संदीप बोला।।
क्यों नहीं समझेंगे भाई! आखिर जवानी हम पर भी आई थी,हम भी जवान हुए थे,हम सब समझ गए, आखिर मामला क्या है? पुरोहित जी बोले।।
ऐसा कुछ नहीं है, पुरोहित जी!संदीप बोला।।
ठीक है तो अब की बार वो आएगी तो उससे कह दूँगा कि पैसे मुझे देदो मै उधार चुका दूँगा, अब से मंदिर आने की जरूरत नहीं है,पुरोहित जी बोले।।
नहीं ऐसा मत कीजिएगा, संदीप बोला।।
आ गई ना दिल की बात जुबान पर,पुरोहित जी बोले।।
तभी उस शाम कुसुम भी मंदिर आ पहुँची और उसका बदला हुआ रंगरूप देखकर संदीप अपनी नज़रें ना हटा पाया, कुसुम ने आज सलीके से साड़ी पहनी थी और उस दिन की अपेक्षा ज्यादा साफ सुथरी लग रही थी,कुसुम ने आते ही संदीप से माँफी माँगी और बोली___
बाबू! उस दिन के बाद इसलिए नहीं मिल पाई कि अब हमे दूसरा काम मिल गया ,हम कहीं और रहने लगे है, उस दिन के बाद मौका ही नहीं मिला तुमसे बात करने का और ये रहें तुम्हारे रूपए, गिन लो पूरे हैं कि नहीं,कुसुम बोली।।
अच्छा! ठीक है, मुझे ऐसा ही कुछ लगा था,संदीप बोला।।
और उधर मुझे लग रहा था कि कहीं तुम मुझे गलत ना समझ बैठो,कुसुम बोली।।
ऐसे ही दोनों की बातें होतीं रहीं और दोनों खुशी खुशी घर आ गए, आज दोनों बहुत ही खुश थे,एकदूसरे से मिल के....

क्रमशः___
सरोज वर्मा___