नैनं छिन्दति शस्त्राणि - Novels
by Pranava Bharti
in
Hindi Fiction Stories
इस बात को अब तो लगभग 24 वर्ष हो गए हैं जब मैं ‘इसरो’ की सरकारी योजना के अंतर्गत ‘अब झाबुआ जाग उठा’ सीरियल का लेखन कर रही थी | यह पुस्तककार में जयपुर के प्रतिष्ठित ‘बोधि प्रकाशन ‘से ...Read Moreमें प्रकाशित हो चुका था जो आज तक अमेज़ोन पर उपलब्ध है |गुजरात साहित्य परिषद में इसका विमोचन भी बड़े जोशोखरोश से हुआ कारण ? यह मेरा पहला ऐसा उपन्यास था जिससे मुझे थोड़ा संतोष था और इससे पूर्व मैं इसका शीर्षक गीत व लगभग 68/70 एपीसोड्स के संवाद से लेकर कथानक आदि लिख चुकी थी जिनका सीरियल रूप में भोपाल व झाबुआ के लिए प्रसारण भी हो चुका था |
इस उपन्यास का लेखन क्यों और कैसे ? ------------------------------------ इस बात को अब तो लगभग 24 वर्ष हो गए हैं जब मैं ‘इसरो’ की सरकारी योजना के अंतर्गत ‘अब झाबुआ जाग उठा’ सीरियल का लेखन कर रही थी | ...Read Moreपुस्तककार में जयपुर के प्रतिष्ठित ‘बोधि प्रकाशन ‘से 2016 में प्रकाशित हो चुका था जो आज तक अमेज़ोन पर उपलब्ध है |गुजरात साहित्य परिषद में इसका विमोचन भी बड़े जोशोखरोश से हुआ कारण ? यह मेरा पहला ऐसा उपन्यास था जिससे मुझे थोड़ा संतोष था और इससे पूर्व मैं इसका शीर्षक गीत व लगभग 68/70 एपीसोड्स के संवाद से लेकर
2---- ‘समाज से जुड़े बड़े-बड़े क्षेत्रों में ये छोटी - छोटी बातें अक्सर होती रहती हैं ‘ उसे किसी फ़िल्म का एक संवाद अचानक याद आ जाता है और वह इस वाक्य को अपने मन में अपने अनुसार बुन ...Read Moreहै | अक्सर ना चाहते हुए भी हमें कोई ना कोई ऐसी बात याद आती रहती है जिसका कोई औचित्य नहीं होता |बात तो गले में ढोल सा लटकाकर पीटने की ज़रूरत नहीं होती| बड़े समझदार हैं, हम फिर भी गले में ढोल लटकाते भी रहते हैं और पीटते भी रहते हैं | लेखन क्षेत्र से जुड़ी समिधा ने जिंदगी
3--- दामले खूब बातूनी थे, वे एक बार शुरू होते तो अपनी रौ में बोलते ही चले जाते, बिना इस बात को सोचे समझे कि उनके कथन का सुनने वाले पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?छोटे से कद और साँवले ...Read Moreके दामले अपनी बातें इतने मनोरंजन पूर्ण ढंग से सामने वाले से कहते थे कि सुनने वाले के समक्ष तस्वीर बनती चली जाती और उनके शब्द -चित्र सिनेमा की भाँति चलने लगते। "कई वर्ष पुरानी बात है, झाबुआ में एक नया-नया अस्पताल खुला था जिसमें काम करने के लिए शहर से डॉक्टर्स, नर्सेज़ बुलाए गए । अस्पताल के अंदर ही
4— गुजरात की सीमा पार करने के कुछ समय बाद से सपाट इलाका शुरू हो गया जिसमें दूर-दर तक वनस्पति जैसी कोई चीज़ नज़र नहीं आ रही थी।आँखों के सामने केवल रेत ही रेत उड़ रही थी। भागती हुई ...Read Moreमें से सपाट बंजर ज़मीन पर ऊँची -नीची उड़ती रेत छोटे बड़े टीलों सी लगती पर जब गाड़ी उस स्थान पर हुँचती तब पता चलता कि ज़मीन बिल्कुल सपाट है, उड़ती हुई रेत टीले होने का भ्रम पैदा करती। यह भ्रम कभी-कभी बहुत कष्टदायक हो जाता है, समिधा सोच रही थी। यह भ्रम ही तो महाभारत की लीला के प्रमुख
5- “चाय बनाऊँ न मैडम?” “मैडम ! चाय” बना लूँ, पीएंगे न ?” युवक को समिधा से दोबारा पूछना पड़ा था ---समिधा उसकी बात सुन ही नहीं पाई थी, वह न जाने किन विचारों में उलझी हुई थी | ...Read More! चाय ---“तीसरी बार की आवाज़ से समिधा की तंद्रा भंग हुई | “अरे ! हाँ, दामले साहब के लिए भी बना लेना, साह ही लेंगे |”वह वहाँ अकेली नहीं रहना चाहती थी | शायद स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रही थी |तीर से टपकता हुआ रक्त कभी उसके अपने शरीर के भाग का तो नहीं ? ऐसे तो वह
6-- कभी उसे लगता है वह कुछ ‘आसमान्य’ सी है !मानव-मन कितनी और कैसी-कैसी बातों में उलझा रहता है ! सच बात तो यह है, हम जीवन का अधिकांश समय व्यर्थ की बातों में ही गँवा देते हैं | ...Read Moreसोच रही थी और रैम उसके मुख चुगली खाते आते-जाते भावों को पढ़ने की चेष्टा कर रहा था |शायद रैम ने समिधा की बेचैनी ताड़ ली थी, समिधा को अपनी ओर देखते हुए पाकर उसने अपनी दृष्टि दूसरी ओर घुमा ली | “बाहर बैठें ?”समिधा ने रैम से कहा | “ठीक है मैडम, आप चलिए, मैं अभी आता हूँ ---“उसकी
7-- मि.दामले रात कोई नौ बजे के क़रीब होटल से लौटे |तब तक रैम समिधा के साथ बैठकर न जाने कितनी बातें कर चुका था | दोनों में अच्छी मित्रता हो गई थी | “भूखे पेट न होए भजन ...Read Moreमैडम ! आपके लिए –“दामले ने समिधा के हाथ में खाने का पैकेट पकड़ाते हुए कहा और कानों तक एक लंबी मुस्कान खींच ली | “धन्यवाद …. आपने डिनर कर लिया क्या ?” “नहीं, मैं जा रहा हूँ | आप खाकर आराम कर लीजिए | सुबह जल्दी निकलना होगा | समिधा जानती थी अभी दामले का पीने-पिलाने का कार्यक्रम होगा
8— पूरी रात भर समिधा अर्धसुप्तावस्था में दीवार पर लटके तीर-कमान की चुभन महसूस करती रही थी | एक बार आँखें खुलने पर वह दुबारा नहीं सो सकी, कमरे की खिड़की के सींकचों पर अपनी ढोड़ी अड़ाकर वहखिड़की में ...Read Moreबाहर का नज़ारा देखने लगी परंतु कुछ ही पलों में उसे कमरे की कैद में छटपटाहट होने लगी | धीरे से उसने कमरे का थोड़ा सा दरवाज़ा खोला और उसमें से अपनी गार्डन बाहर की तरफ़ निकाली, चारों ओर नज़रें घुमाईं, ड्रॉइंग रूम में कोई नहीं था |यानि रैम उठ चुका था | उसने धीरे से पूरा दरवाज़ा खोला और
9- कभी-कभी वह बिना सही बात जाने ही निर्णय ले लेती है | रैम के दादा के धर्म परिवर्तन की बात सुनकर वह व्यर्थ ही वाचाल हो गई थी | इंसान की भूख बड़ी है अथवा उसकी जाति व ...Read More?हम क्यों अपने मंदिरों में भगवान को दूध पिला सकते हैं पर गरीब का पेट नहीं भर सकते !उसे तो नहीं लगता कि किसी भी देवता की मूर्ति ने अपने भक्तों से दूध पीने की इच्छा व्यक्त की हो |हम इंसान ही तो इंसान के मुँह से रोटी छीनते हैं और मूर्ति को जबरदासी दूध पिलाते हैं !भूख इंसान को
10--- अब गाड़ी झाबुआ के बाज़ार में से निकलकर अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी | बाज़ार में से गुज़रते हुए समिधा की दृष्टि वहाँ के वातावरण का जायज़ा लेने लगी | उसके पास रैम बैठा था |, ...Read Moreके पास्स मि. दामले और वह युवक जो उनके साथ आया था और पीछे की सीट पर झाबुआ में शोध करने आए हुए दो और युवक बैठे थे | जैसे ही गाड़ी झाबुआ के मेन बाज़ार के बीचोंबीच पहुँची समिधा ने देखा वहाँ पर भी सड़कों पर वैसा ही बाज़ार लगा था जैसा शहरों में सप्ताह में एक विशेष दिन
11 समिधा सोच रही थी करुणा का पात्र यह आदिवासी नहीं बल्कि वह व्यक्ति है जो रात-दिन घुटन में साँस लेता है | वास्तव में अपनी उलझनों में फँसा वह हंसना, मुस्कुराना तक भूल गया है, सहज ठहाकों की ...Read Moreतो उसके लिए चाँद पकड़ने जैसी हो चुकी है | समिधा ने एक युगल को बाज़ार के बीचोंबीच खुलकर हँसते हुए देखकर सोचा | उसे उनका यूँ खुलकर, खिलकर हँसना बहुत अच्छा लग रहा था | गाड़ी सड़क पर चलते हुए लोगों को छोड़कर आगे बढ़ चुकी थी पर समिधा के मस्तिष्क में खिलखिलाते युगल की तस्वीर छपकर रह गई
12 “ये तो बताओ क्यों मारा ? ”समिधा ने घबराहट भारी उत्सुकता से पूछा, उसके भीतर धुकर-पुकर हो रही थी, पेट में जैसे गोले से गोल-गोल चक्कर काटने लगे थे | “वो---ताड़ी का पेड़ है न ? ”कहकर रैम ...Read Moreऔर उस ओर इशारा किया जहाँ बहुत से लोग खड़े थे | समिधा ने ध्यान से देखा वहाँ चारों ओर ही ताड़ी के लंबे-लंबे पेड़ थे | रैम कुछ कहने ही जा रहा था कि समिधा ने देखा मि. दामले के साथ सभी लोग गाड़ी की ओर आ रहे थे, वह चुप हो गया | दामले ने आते ही समिधा
13 उस दिन समिधा बहुत आनमनी रही | कितनी सस्ती है ज़िंदगी यहाँ ? किन आधारों पर जीवन जीते हैं ये लोग ? क्या है इनके जीवन का मंत्र ? क्या जीवन का यही आदि और अंत है? देखा ...Read Moreतो ज़िंदगी है क्या ? एक गुब्बारा? एक धागा ? एक पल? कोई कण ---पता नहीं ? मगर समिधा को यहाँ ज़िंदगी एक धमाके सी लगी । ऊपर से टपकी, नीचे धम्म से गिरी और बस ---फिर दूसरी ओर यह भी लगा यहाँ लोग ज़िंदगी जीते भी हैं तो एक शिद्दत से, मस्ती से जैसे उसने बाज़ार से गुज़रते हुए
14 उस दिन भी समिधा को कुछ ऐसा एहसास हुआ था जो आज पेड़ पर से गिरने वाले युवक के बारे में सोचते हुए हो रहा है, वह बहुत-बहुत आनमनी हो उठी | गाड़ी में एक ज़ोरदार ब्रेक लगा ...Read Moreसमिधा रेल की यात्रा से वर्तमान स्थिति पर आ पहुँची | इस घटना से यूँ तो सभी क्षुब्ध थे | इस समय रैम भी कुछ भी नहीं बोल रहा था जबकि वह इस प्रकार की घटनाओं से आए दिन बबस्ता होता रहता था | गाड़ी रुकने पर मि. दामले उतरे और दरवाज़ा खोलते हुए बोले – “आइए मैडम ! इसी
15 काम अपनी गति से चल रहा था, सुबह ‘लोकेशन’ पर निकल जाना, रास्ते में जो भी मिले चना-चबैना खाकर फिर आगे बढ़ जाना | दो दिन बाद ही शारीरिक तथा मानसिक थकान से समिधा के पुर्ज़े ढीले होने ...Read More| समय भी कम था, दामले की इच्छा थी कि एक लेखिका की हैसियत से समिधा भी उन ‘लोकेशन्स ’को तय करने में ‘टीम ‘का हिस्सा बने | जहाँ-जहाँ वे अपनी सीरियल की शूटिंग करना चाहते थे, वे समिधा को भी साथ चलने का आग्रह करते जबकि उसके जाने की कोई इतनी ज़रूरत भी नहीं थी | काम यहाँ आए
16 समिधा के मन में अनेकों प्रश्न उभरने लगे, उसके प्रश्नों का समाधान कामना ने कर दिया | उसने बताया कि जो कुछ प्रगति वह झाबुआ में देख रही है, वह मात्र 1 / 2 प्रतिशत ही है | ...Read Moreऔर उसके आस-पास के गाँवों में बेहद गरीबी तथा लाचारी पसरी हुई है | सरकार योजनाएँ बनाती है गरीब तबके के लिए और ये अनपढ़ लोग ताड़ी के नशे में गुनाह करके बचने के चक्कर में कहीं भी फँस जाते हैं | उनका लाभ उठाते हैं वकील, सेठ, मंत्री तथा वे सब जिन्हें अवसर मिल जाता है | पैसा चढ़ता
17 पता नहीं क्यों समिधा को उसके शब्द कुछ सहमे से हुए लगे, वह बिना कुछ उत्तर दिए चुपचाप बाहर की ओर चल पड़ी | जहाँ यह काफ़िला ठहरा हुआ था उसी बँगले के सामने एक नाला खोदा जा ...Read Moreथा जहाँ दस/पंद्रह मज़दूर काम कर रहे थे | समिधा ने उन्हें पहले भी देखा था परंतु चाहते हुए भी अभी तक उनसे बात नहीं कर पाई थी | यदि किसी भी स्थान की वास्तविकता से अवगत होना हो तो वहाँ के पुराने निवासियों तथा निचले तबके के लोगों के पास जाना चाहिए | इनसे ही स्थान विशेष की संस्कृति
18 अब तक तीन बज चुके थे, समिधा को भी पेट में घुड़दौड़ महसूस होने लगी थी | वह बँगले की तरफ चल दी | रैम फ़र्श पर लेटा हुआ था | “हो---मैडम !कितना देर कर दिया ?” समिधा ...Read Moreमहसूस किया, भूख से उसकी आँतें कुलबुला रही थीं जो उसके चेहरे पर पसरकर चुगली खाने लगीं थीं | “तुम्हें खाना खा लेना चाहिए था अब तक, कहकर नहीं गई थी –खा लेना !” समिधा ने रैम से शिकायती अंदाज़ में कहा | “आप भी तो नहीं खातीं मैडम, मेरे बिना –“ रैम ने समिधा पर अपना सारा बोझ लाद
19 “ज़िंदगी केवल वहीं नहीं होती जहाँ तुम रहती हो, ज़िंदगी तुम्हारे दायरे से निकलकर चारों तरफ फैली हुई है और सबको अलग-अलग सबक सिखाती-पढ़ाती रहती है ! मैंने तुम्हें पहले भी कितनी बार समझाया है, जिंदगी है, इसे ...Read Moreसीखो | वो बेचारा तुम्हारा शरीफ़ पति तुम्हारी चिंता में आधा हुआ जा रहा है | अब हम अगर ज़रा ज़रा सी बातों पर मस्ती छोड़ दें तो बस, जी लिए !मैं जीता-जागता उदाहरण हूँ तुम्हारे सामने, इतनी परेशानियाँ झेलकर भी किसीके सामने रोता हूँ क्या?” झाबुआ से लौटने के बाद जब समिधा ने सारांश तथा सान्याल से झाबुआ के
20 सारांश जानते थे समिधा अपने मन से कुछ भी कह व कर सकती है पर किसी के बाध्य करने पर कुछ भी नहीं | फिर भी उन्होंने पत्नी को मनाने का प्रयत्न किया | “करवा दो न भाई, ...Read Moreपूरा---“ ये वही सारांश थे जो उसे परेशान देखकर इस योजना को छोड़ने के लिए उसे बाध्य कर रहे थे ! कमाल है सारांश भी! कभी अट्ट, कभी पट्ट !! वैसे तो इतने अवरोध डाले बीच में, अब जब वह काम करना चाहती है और अब जब वह जाना नहीं चाहती तब दामले की सिफ़ारिश कर रहे हैं ! कहीं
21 “समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अंताक्षरी लेकर प्रभु का नाम | ” गाड़ी में अंताक्षरी शुरू हो गई | नई-पुरानी फिल्मों के गीत !सुरीली, बेसुरी आवाज़ें !तालियों की थाप, गाड़ी के साइड पर ...Read Moreबजाते, खिलखिल करते शाम के साढ़े पाँच बजे सब झाबुआ पहुँचे | अब तक यह काफ़िला एक परिवार में तब्दील हो चुका था | बंसी ने झाबुआ के ‘बाइपास’ पर गाड़ी रोक दी थी और झौंपड़ीनुमा छोटी सी दुकान पर चाय-पकौड़ों का ऑर्डर दे दिया गया था | गाड़ी से उतरकर सब अपने हाथ-पैर सीधे करने में लगे थे, दामले
22 अब लगभग शाम के सात बज रहे थे | सूर्यदेव थके-माँदे अपने निवास की ओर प्रस्थान करने के लिए कदम बढ़ा चुके थे | कहीं कहीं उनके अवशेष दिखाई दे रहे थे, गोधूलि का झुटपुटा वातावरण में पसरने ...Read Moreथा | लगभग दसेक मिनट में ही झाबुआ का विस्तार पाकर गाड़ी किसी दूसरी दिशा की ओर मुड़ गई | सब चुप थे और वातावरण के अंधकार में घिरते हुए उस अंधकार को अपनी-अपनी दृष्टि से नापने का प्रयत्न कर रहे थे | अपने-अपने विचार, अपनी-अपनी सोच ! गाड़ी में बैठे हुए मुसाफ़िर कई---जिनकी मंज़िल एक –चिंतन भिन्न ! एक
23 अब पीं-पीं करती हुई पुलिस की एस्कॉट-वैन ने उनकी गाड़ी के सामने से निकलकर आगे आकर एक टर्न ले लिया था और तेज़ी से भागने लगी थी | उस वैन के पीछे शूट की दो गाड़ियाँ थीं और ...Read Moreपीछे संभवत: अब तक बीस-पच्चीस गाड़ियों का एक कारवाँ चलना शुरु हो गया था | घना अंधकार—केवल गाड़ियों की आगे-पीछे की बत्तियों की रोशनी उस घने अंधकार को चीरती हुई आगे की ओर बढ़ती जा रही थी | पुलिस की गाड़ी इतनी तेज़ी से ऊपर–नीचे टीलों वाले मार्ग पर न जाने पल भर में कहाँ की कहाँ पहुँच गईं थीं
24 गाड़ी में सहज मौन पसरा रहा और लगभग दस मिनट पश्चात गाड़ी अलीराजपुर के ‘बैस्ट’ होटल के सामने जाकर रुक गई | अँधकार में आँखें गड़ाने पर समझ में आया कि होटल किसी बाज़ार में स्थित था | ...Read Moreचाय व पैन की दुकानें अभी खुली थीं जहाँ आदिवासी युवा लड़के मदिरा की झौंक में, बीड़ियों से वातावरण को प्रदूषित करते हुए ‘ही—ही, हो-हो’कर रहे थे | रेडियो पर सन्नाटे को चीरता हुआ ‘आजा सनम, मधुर चाँदनी में हम–तुम मिले तो वीराने में भी आ जाएगी बहार‘ बज रहा था | होटल पर भी एक छोटा सा बल्ब टिमटिमा
25 “क्या है, सोने दो न दीदी ?”पुण्या ने करवट बदलनी चाही लेकिन पूरी रात भर गर्दन कुर्सी पर टँगी रहने के कारण उसकी गर्दन ऐंठ गई थी | “कितनी बदबू में सोई हो, उठो न ---“समिधा थोड़ी घबरा ...Read Moreथी, कहीं कोई ऊपर आ गया तो अकेली क्या करेगी ? दूसरे सारे तो निद्रा देवी की गोद में अचेतन पड़े थे, तो कम से कम पुण्य तो जग जाए –एक और एक ग्यारह ---!! पुण्या को मानो नंगा तार छू गया –उसकी आँखें तो मानो खुलने के लिए तैयार ही नहीं थीं | समिधा की आवाज़ से जैसे अचानक
26 पुण्या ने दो-तीन बार डोर-बैल बजाई परंतु उधर से कोई उत्तर नहीं मिला | समिधा ने उसको चिढ़ाती हुई दृष्टि से देखा, मानो कह रही हो ‘मिलेगी तुम्हें चाय यहाँ –चलो अब वापिस ‘और वह चारों ओर नज़र ...Read Moreलगी | जेल का वातावरण शांत, सुंदर स्वच्छ लग रहा था | पीछे की ओर वे एक बड़ा सा ‘गेट’ छोड़कर आए थे जो उसके अनुसार जेल के भीतरी भाग में खुलना चाहिए था | चारों ओर नज़र घुमाते-घुमाते समिधा की दृष्टि फिर से दरवाज़े पर आकर चिपकी दरवाज़े पर लगी नाम-पट्टिका पर, जिस पर लिखा; एस. पी. वर्मा जेलर,
27 आनन–फ़ानन में जेल से जीप भेजकर होटल से उनका सामान मँगवा लिया गया | मुक्ता ज़िद कर रही थी कि वे दोनों उसके पास ही ठहरें पर उन्होंने समझाया कि पास वाले बँगले में ही तो इंतज़ाम किया ...Read Moreरहा था, मुक्ता कभी भी उनसे बात करने आ सकती थी | होटल से उनका सामान लाने वाले ड्राइवर ने बताया कि अहमदाबाद से आई हुई पार्टी अभी तक सोई है | जेलर ने होटल के मालिक महेश को फ़ोन करके स्थिति से अवगत कार्वा दिया था | “कमाल हैं मैडम आप लोग भी –“हड़बजेलर वर्मा ने उन्हें ड़ करते
28 थकान के कार्न दोनों स्त्रियों में किसी का ध्यान भी कमरे में रखे फ़ोन पर नहीं गया था | कुछ देर पश्चात उजाला खिड़कियों से भीतर भरने लगा पर दोनों बेहोशी की नींद में थीं | फ़ोन की ...Read Moreसुनकर समिधा हड़बड़ाकर उठा बैठी | मिचमीची आँखों से उसने इधर-उधर दृष्टि घुमाई | अरे!फ़ोन तो उसकी बगल में ही एक छोटी सी तिपाई पर रखा था | कमरे में अब तक उजाला भर उठा था और रोशनी से भरे कमरे में अब सब कुछ साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था | “आप लोग ठीक हैं दीदी ?” फ़ोन पर मुक्ता
29 उन्होंने ऑफ़िस से बाहर निकलकर देखा, कुछ पुलिस वाले इधर-उधर टहल रहे थे | यह शायद उनका प्रतिदिन का कार्यक्रम होगा | वे दोनों आगे की ओर बढ़ चलीं, काफ़ी बड़ा स्थान था | जगह-जगह ऊँचे और सफ़ेद ...Read Moreआधी बाहों के कुर्ते तथा सफ़ेद टोपी पहने क़ैदी इधर से उधर घूम रहे थे| यह बड़ा सा स्थान जेल का भीतरी भाग था | इसी लाइन में आगे जाकर एक और ‘गेट’था, बिलकुल वैसा ही सींखचों वाला दरवाज़ा था जैसे बहुधा जेलों का होता है| इसके अतिरिक्त एक और भी लोहे का पूरा बंद दरवाज़ा था जो भीतर की
30 पाँच-सात मिनट में ही जेलर साहब ने अपने सभी अतिथियों के लेकर अपने ऑफ़िस में इस अंदाज़ में प्रवेश किया मानो कुछ भी नहीं हुआ था | दोनों महिलाओं को हाथों में पानी के ग्लास थामे देखकर वे ...Read Moreउठे ; “अरे ! मैडम, आप लोग इतने शांत क्यों हैं ?पीजिए पानी-वानी !अरे भाई शंकर जी, बाहर से कुछ ठंडा-वंडा मँगवाओ ---“ “आइए, सर बैठिए –“जेलर ने दामले से कहा व स्भीकों बैठने का इशारा किया | कितने सहज थे सब लोग ! समिधा का सिर चकराने लगा | “कोई –एक औरत को इतनी बुरी तरह मार सकता है
31 सरकारी योजना के अंतर्गत होने के कारण दामले जी सारे आज्ञा-पत्र आदि पहले से ही जमा करवा चुके थे | वे अपने काम को बहुत सुघड़ता से अंजाम देते थे, बहुत पुख़्ता होता था उनका काम-काज ! जेल ...Read Moreअंदर के भाग में जाने की तथा शूटिंग करने की आज्ञा लेकर पूरा काफ़िला उस लोहे के मज़बूत तथा छोटे दरवाज़े की ओर बढ़ चला जिसके आगे से समिधा तथा पुण्या एक बार निकलकर आ चुकी थीं | जेलर वर्मा ने ‘गेट’ तक आए तथा अंदर खड़े संतरियों को उनका ध्यान रखने की हिदायत दी | संतरियों ने एक ज़ोरदार
32 लगभग एक घंटे तक नृत्य चलता रहा और कैमरों में कैद होता रहा | बाद में सबको पंक्ति में बैठाकर कुछ मिष्ठान बाँटा गया और प्रश्नोत्तरी शुरू की गई | समिधा का मन उन बंद सींकचों के कैदियों ...Read Moreओर बार -बार जा रहा था | उसने देखा उन सबको भी कागज़ की पुड़ियों में मिष्ठान दिया गया था जिसे लेते हुए उनके चेहरों पर किसी बेचारगी का भाव नहीं था | समिधा उन पर दृष्टि चिपकाए बैठी थी | कागज़ की पुड़िएँ पकड़ते हुए भी उन्हें कोई शर्म या झिझक महसूस नहीं हो रही थी | वे अपनी
33 जेल में समिधा जो देखकर आ रही थी, असहज करने के लिए पर्याप्त था | ज़िंदगी यूँ किस प्रकार घिसटती है? क्या-क्या खेल दिखाती है, किस प्रकार के काम करवाती है? क्या नाटक करवाती है? शेक्सपीयर की लिखी ...Read Moreउसके ज़ेहन में गहरे समाई हुई थी | ’जीवन नाटक है ‘उस नाटक में भी न जाने कैसे-कैसे नाटक आदमी को खेलने व झेलने पड़ते हैं | उसका मन बेचारगी से भर उठा –कैदियों के लिए । उस पीटने वाली औरत के लिए, रौनक के लिए, उसके स्वयं के लिए या फिर जीवन से जुड़ी हर बात के लिए ?
34 मुक्ता को अस्थमा था अत: वह बहुत अधिक काम नहीं कर पाती थी | हाँ, अपनी देख-रेख में उन कैदियों से काम करवाती रहती थी जिन्हें घर में आने की आज्ञा थी, उन सबका लीडर रौनक था | ...Read Moreअपने मधुर व्यवहार से सबका मन जीत रखा था | मालूम नहीं उससे कैसे इतना बड़ा अपराध हो गया था ? जितना समिधा अभी तक रौनक को समझ सकी थी, उससे वह यह तो समझ गई थी कि मूल रूप से रौनक अपराधी प्रवृत्ति का नहीं था | तब क्या भूख ही उसके अपराध की जिम्मेदार थी ? मुक्ता इन
35 लड़ते-भिड़ते, झख मारते दोनों चाट की दुकान से घर तक आ गईं थीं | किन्नी जानती थी, सुम्मी उसके साथ खेलने नहीं आई थी और उसे घर पर न पाकर वह समझ गई थी कि वह कहाँ होगी? ...Read Moreभी क्या करे ? जाटनी खुद तो चाट खाती नहीं थी, उसके पीछे किसी जासूस की तरह लगी रहती थी | एक के बाद एक पृष्ठ खुलते रहे –और समिधा अपने अतीत की गलियाँ पार करती रही | पुण्या न जाने कब आकर गहन निद्रा में लीन हो चुकी थी | कुछ दिन पहले ख़बर मिली थी कि किन्नी की
36 बड़े होने पर समिधा इन सब बातों को लेकर बहुत हँसती थी और सारांश को बताती कि अब ऐसा लगता है जैसे हम कोई प्रेमी-प्रेमिका हों और आँखों के इशारे से एक-दूसरे के मिलन-स्थल के बारे में सांकेतिक ...Read Moreका प्रयोग करते हों | तब तक दोनों अनजान और मासूम थीं, उन्हें तो बस खेलने में रमना आता था | हाँ, घर-परिवेश से अब परिचित होने लगीं थीं | भविष्य कुछ होता है, इसके बारम्बार दोहराए जाने पर कभी-कभी उसके बारे में भी दोनों के बीच अर्थहीन चर्चाएँ होतीं, फिर विचारों के गुब्बारे हवा में उड़ जाते और वे
37 उनकी मूल दुकान में बनने वाली किसी मिठाई में न जाने क्या गड़बड़ हुई कि जिन लोगों ने मिठाई खाई उन्हें वमन शुरु हो गई | पेट में भयंकर दर्द तथा ऐंठन होने लगी | इस सीमा तक ...Read Moreमिठाई खाने वाले लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा | दीपावली का बड़ा उत्सव और अस्पताल के चक्कर ! मिठाई खाने से भयंकर ‘फूड-प्वायज़न’ होने से वातावरण में घबराहट पसर गई | जब तक पता चलता कि मामला कहाँ गड़बड़ है, किस प्रकार इसमें रोक-थाम हो सकती है?तब तक तो चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई थी | परिस्थिति उनके
38 किन्नी की बीबी एक दिन यूँ ही अपना मन हल्का करने समिधा की माँ के पास आकर बैठ गईं थीं | आजकल उनके मुख से प्रसन्नता की जगम्गाहट कहीं दूर जा छिपी थी जैसे खुशी उनके साथ आँख-मिचौनी ...Read Moreरही हो | कुछ दिनों पहले तक तो परिवार के प्रत्येक सदस्य के मुख पर प्रसन्नता झलकती रहती थी परंतु अब—सपाट और सूनी आँखों में ढेरों प्रश्न भरे दिखाई देते | अब उनके पास चर्चा का विषय केवल उनके पति की बीमारी व बच्चों का लालन-पालन ही होता था | वे दया से इसी बात की चर्चा कर रही थीं
39 कुछ पलों में ही दया एक हाथ में सुम्मी की गुल्लक तथा दूसरे में गुल्लक की चाबी लेकर बाहर आई | चारपाई पर बैठते हुए बोली ; “चलो, उठो –हमारे पास काम शुरू करने के लिए पैसे हैं ...Read Moreकोई ज़रूरत नहीं है कड़े रखने की !” राजवती एक झटके से उठकर बैठ गईं | “कहाँ हैं हमारे पास पैसे ?” “ये क्या हैं ? चलो गिनते हैं | ”दया ने पास पड़े एक तौलिए पर गुल्लक खोलकर ख़ाली कर दी जिसमें छुट्टे पैसों के साथ एक-एक रुपयों के भी कई नोट दिखाई दे रहे थे | “ये तो
40 घर की व बीमार पति की ज़िम्मेदारी थी ही | बच्चे पढ़ रहे थे, उन्हें खाने से लेकर समय पर हर चीज़ मुहैया कराना उनका कर्तव्य था | गर्ज़ ये कि बीबी ने अपने जीवन के प्रत्येक क्षणको ...Read Moreकर दिया था, जिसका उन्हें कोई मलाल न था | बस वे जितना संभव हो उतनी ही शीघ्रता से अपनी इस ‘बेचारगी’से उबरना चाहती थीं जिसमें उन्हें समय ने जकड़ दिया था | उनका पूरा विश्वास व श्रद्धा थी कि इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता –बस, उसे अपनी भीतरी शक्ति को पहचानने की देरी होती है | कभी-कभी
41 समिधा बीती बातों की डोर में उलझकर रह गई थी, अनेक अनुत्तरित उलझे प्रश्नों ने उसके मस्तिष्क की तमाम नसों को उलझाकर मकड़ी के जाले में कैद कर दिया था | पूरी रात भर वह एक ही स्थिति ...Read Moreपड़ी रही | पुण्या ने उसे उठाने का प्रयास किया परन्तु वह नहीं उठ पाई | उसके शरीर की चुस्ती, फुर्ती, ऊर्जा मानो भीतर ही चूस ली गई थी | उसकी सुबकियों ने पुण्या को बेचैन कर दिया था और वह अनचाहे करवटें बदलते हुए अपनी पिछली तस्वीरें खोलकर उन्हें उलट-पुलट करने लगी थी | अभी उसकी तस्वीरें इतनी धुंधली
42 वैसे यह बात करने का सही समय नहीं था परंतु दोनों स्त्रियों के दिल इतने भारी थे कि उनके भीतर की असहनीय संवेदना बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगी | ऐसी घनी पीड़ा सारांश में नहीं उँड़ेली जाती, ...Read Moreविस्तार होते हैं, उनमें आहें होती हैं, आँसू होते हैं, सिसकियाँ होती हैं, गिले-शिकवे होते हैं –और भी बहुत कुछ होता है –और उसके बाद होती है सहानुभूति, संवेदनात्मकता और संबल का एहसास व विश्वास !पुण्या ने अपना दिल हल्का करने के लिए समिधा को जो बातें बताईं उनकी कल्पना मात्र से ही समिधा सिहर उठी | कैसा नर्क झेलकर
43 कुछेक मिनट में जेलर वर्मा डॉक्टर को लेकर पहुँच गए | फ़र्श पर फैले रक्त को देखकर उनके चेहरे पर भी चिंता झलक उठी | डॉक्टर ने अपना दवाइयों का बक्सा खोलकर पुण्या के पैर का इलाज़ शुरू ...Read Moreदिया था | काँच निकल जाने से पुण्या की आधी पीड़ा कम हो गई थी | जेलर साहब ने दामले से पूछा कि दुर्घटना कैसे हुई ? जिसका उत्तर दमले के पास नहीं था, वे स्वयं भी यही जानना चाहते थे | “यह मेरी वजह से हुआ है | ”समिधा के शब्दों में शर्मिंदगी थी | “क्या-- दीदी ! लगनी
44 पुण्या का ज़ख्म अभी काफ़ी गहरा था परंतु उसने आज पूरा दिन काम किया था सो पीड़ा अधिक बढ़ गई थी | ’शूट’ से लौटकर वह दवाई खाकर बिस्तर पर लेट गई | खाना पूरी यूनिट ने बाहर ...Read Moreखा लिया था | सभी थके हुए थे, समिधा व पुण्या के भीतर तो कोई और ही जंग छिड़ी हुई थी | कितना कठिन होता है मन से संवेदनाओं का बाहर निकालकर बाहर फेंक देना, वे मन में चिपक ही तो जाती हैं | हम सब मुखौटे या खोल पहनकर जीते रहते हैं, ऐसे मुखौटे जिनमें कभी-कभी साँस लेना भी
45 अलीराजपुर से लौटने के पश्चात समिधा का मन न जाने कितने टुकड़ों में बँटा रहा | घर लौटकर भी वह काफ़ी दिनों तक घर में नहीं थी | अजीब से अहसासों की चिंदी-चिंदी उसके दिमाग़ में उड़ती रहतीं ...Read Moreजब तक प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ दूरदर्शन में पुण्या से बार-बार मिलना होता | पुण्या से मिलकर वह स्मृतियों की गलियों में घूमने लगती और घर पर भी कभी अपने पीछे घूमते सायों में या फिर मुक्ता की स्थिति के बारे में सोचती रहती | सच तो यह था कि उसके काम में अवरोध बढ़ता ही जा रहा था |
46 समिधा की सास इंदु भारतीय तथा अँग्रेज़ी रक्त से सिंचित एक बेहद खूबसूरत खिला हुआ गुलाबी रंग का फूल थीं | वे मन की गहराइयों से भारतीय संस्कारों में रची-बसी संस्कारी तथा विदुषी महिला थीं | जिन दिनों ...Read Moreका घर से निकलना चर्चा का विषय बन जाता था उन दिनों वे कत्थक नृत्य और अपनी माँ के साथ घर पर पंडित जी से शास्त्रीय संगीत सीख रही थीं | विलास का युवा मन इंदु की कलाप्रियता व माता-पिता के संस्कारों से इतना प्रभावित हुआ कि इलाहाबाद आकर भी उसके भीतर बनारस की ओर से आने वाली पवन हिलोरें
47 विलास व इंदु का विवाह बिना किसी टीमटाम के आर्य समाज रीति से संपन्न हो गया | विलास व उसकी माँ पहले ही स्पष्ट कर चुके थे की वे लड़की को अपने घर केवल पहने हुए कपड़ों में ...Read Moreलेकर आएँगे | विलास की माँ अपने स्मृद्ध पिता की दौलत छोड़कर अचानक पड़ी विपदा को सहते हुए पति की अनुपस्थिति में अपने पैरों पर खड़े रहकर पूरे सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रही थीं | उन्होंने अपनी शिक्षा का सही उपयोग अपने घर व समाज को बेहतरीन बनाने में किया था | ऐसे वातावरण की उपज विलास
48 कॉलेज में शिक्षा के प्रति गंभीर छात्र बहुत कम थे | कॉलेज नाम भर के लिए जाना एक फ़ैशन सा होने लगा था | गाँवों से आकर कॉलेज में प्रवेश लेने वाले लड़के दिल्लगी करने, मस्ती करने के ...Read Moreआते थे | इनमें अधिकतर ऐसे उद्दंड व बिगड़े हुए लड़के होते थे जिनके संरक्षकों के पास गाँव में बहुत ज़मीन-जायदाद थी पर शिक्षा के नाम पर मस्तिष्क की कोरी स्लेट ! माता-पिता चाहते थे कि उनका जीवन तो जैसे-तैसे व्यतीत हो ही गया है अब उनके सुपुत्र शहर में जाकर सही मायनों में शिक्षा प्राप्त करें जिससे वे अपनी
49 मोहनचंद खन्ना ‘खन्ना गुड भंडार’ के मालिक लखपति रमेशचंद खन्ना का एकमात्र सुपुत्र था | कुछ दिनों से मोहन की शिकायतें आ रहीं थीं कि वह गुंडों की जमात में शामिल हो गया है | मोहन से बड़ी ...Read Moreबहनें थीं जो विलास की माता जी के कन्या कॉलेज में पढ़तीं थीं | खन्ना जी भारद्वाज परिवार का बहुत सम्मान करते थे | रमेश जी की दोनों बेटियाँ अब इंदु के पास कत्थक नृत्य की शिक्षा लेने आतीं थीं | अचानक एक दिन शहर में हा –हाकार माच गया | मोहन ने आत्महत्या कर ली थी | पिछले दिन
50 सुम्मी व माँ के दिल की धड़कनें हफ़्ते भर तक कैसी धुकर-पुकार करती रहीं थीं !असहज हो गए थे दोनों माँ –बेटी ! एक सप्ताह तक परिणाम की प्रतीक्षा की प्रतीक्षा करना उन दोनों के लिए एक लंबी ...Read Moreकी सज़ा थी | ऊपर से पापा के नकारात्मक संवाद घर भर को बोझिल करते ---सो अलग !एकसुम्मी की सफ़लता पर माँ, बेटी पड़ौसन सूद आँटी ही थीं जो ‘लेडी विद द लैंप’सी माँ-बेटी के अंधकार में रोशनी भरती रहतीं | आखिरकार परिणाम सामने आ गया | डेढ़ सौ प्रत्याशियों में से केवल दो का चयन किया गया था |
51 समिधा के जीवन में जो खालीपन आ गया तब उस स्थान को केवल काम ही नहीं भर सकता था | कुछ रिश्ते, कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो ताउम्र मस्तिष्क की दीवार पर चिपकी रह जाती हैं | ...Read Moreबंद करती तो माँ, पापा के साथ बिताए चंद खूबसूरत दिन उसकी पलकों पर तैरने लगते और वह अपने बिस्तर पर पड़े खाली तकिये को आँखों पर रखकर फफक पड़ती | कई दिनों तक बोस दंपति ने उसे उसके घर में अकेले नहीं सोने दिया था, ज़िद करके दोनों उसे अपने साथ अपने घर में ही सुलाते थे | खाने-पीने
52 रोज़ी और समिधा की अच्छी मित्रता हो गई थी | दोनों एक-दूसरे का सुख –दुख बाँटने लगीं | र्प्ज़ी बहुत पहले से नृत्य सीखना चाहती थी परंतु माता-पिता के अभाव मेन उसका पूरा जीवन ही अभावग्रस्त रहा था ...Read Moreऐसी स्थिति में रहकर उसने बचपन को बहुत नज़दीक से देख लिया था, उसकी न्श्वरता समझ ली थी और बचपन में ही वह बड़ी बन गई थी| बंबई आए हुए उसे केवल ढ़ाई वर्ष ही हुए थे, समिधा के साथ उन्हें दो नहीं, एक और एक ग्यारह बना दिया था | अब उसे अवसर मिला था कि वह अपने शौक
53 मुँह घुमाने से या परिस्थितियों का पीछा छुड़कर भाग जाने से कोई कब तक बच सकता है ? इंसान को अपने सामने आई हुई परिस्थिति का सामना करना ही पड़ता है और वह जितनी जल्दी स्थिति को समझकर ...Read Moreनियति स्वीकार कर ले, उतना ही उसके लिए अच्छा होता है अन्यथा उसका चाइनोकरार चला जाता है | सबने अपने –अपने हिस्से के रंजोगम को, स्थिति को झेला था, परिस्थितियों को स्वीकार करके दुख-सुख अपना लिए थे | तीनों मित्र अपने-अपने जीवन के बारे में चर्चा करते हुए कभी मुरझा जाते तो कुछ समय बाद तीनों के चेहरों पर मुस्कुराहट
54 अचानक ! समिधा पाशोपेश में पद गई | उसने तो कुछ सोचा ही नहीं था इस बारे में ! हाँ, वह सारांश को एक अच्छे इंसान की, एक अच्छे मित्र की हैसियत से पसंद करती थी पर --- ...Read Moreको भौंचक्की देखकर रोज़ी खिलखिलाकर हँस पड़ी | “हाँ, मैं समिधा के साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहता हूँ | ”सारांश ने अब खुलकर कहा | समिधा अचकचा उठी और कुछ अजीब सी दृष्टि से उसने सारांश की ओर देखा | उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सारांश इतनी आसानी से उसके सामने अचानक यह सब कुछ परोस
55 इस सप्ताह समिधा व रोज़ी का कार्यक्रम काफ़ी व्यस्त था, सारांश भी व्यस्त था परंतु वह जैसे ही काम से ख़ाली होता उसे अकेलापन कचोटना लगता | उसे अपनी इन मित्रों के साथ अपनी शामें बिताने की आदत ...Read Moreगई थी अत: इस बार उसने अकेलापन महसूस किया | अपने ऊपर सारांश को हँसी आई, पहले भी तो वह अकेला ही घूमता रहता था, अब उसे इन मित्रों की आदत पड़ गई थी | इस ख़ाली व अकेले समय में उसने अपने व समिधा के बारे में गंभीरता से सोचा | फ़ोन पर माँ से बात करके समिधा के
56 कई दिनों से वह समिधा से नहीं मिल सका था | उस दिन रविवार था और दफ़्तर का आधा दिन ! माँ से सुबह ही बात हुई थी माँ ने उसे समिधा से स्पष्ट बात करने के लिए ...Read Moreथा | सारांश ने समिधा की सारी परिस्थिति से उन्हें अवगत करा दिया था | इंदु समझ गई थी मातृविहीन कन्या का लालन-पालन किस परिवेश में हुआ होगा, उसमें पिता से उसके लिए अपने प्रेम की बात करना सरल नहीं था | उसने सारांश को आश्वासन दिया और कहा कि सबसे पहले उनके रिश्तों की स्पष्टता भी आवश्यक थी |
57 सारांश की माँ इंदु बहुत चुस्त निकलीं, उन्हें अपने पुत्र के विवाह की बड़ी शीघ्रता थी | उन्होंने पुत्र से बात करने के दूसरे दिन ही समिधा के पिता तथा श्रीमती सूद से बात करके उन्हें बता दिया ...Read Moreकि वे अपने बेटे सारांश के लिए उनकी बेटी का हाथ माँगना चाहती हैं | इंदु ने पहले श्रीमती सूद से बात की, उन्हें बताया कि वे जानती हैं कि समिधा अपनी माँ के समान ही उन्हें आदर देती है | अत: वे समिधा के पिता से आसानी से बात कर सकेंगी | श्रीमती सूद को बहुत आश्चर्य हुआ, उनका
58 इंदु के व्यक्तित्व की पारदर्शिता से समिधा के पिता तथा सूद अंकल-आँटी प्रभावित हुए, उनकी बेटी को सारांश जैसा सुयोग्य तथा उच्च शिक्षित परिवार मिलेगा, इसकी उन्होंने कल्पना तक न की थी | वैसे उनके जीवन में सुख ...Read Moreदुख दोनों अचानक तथा अकल्पनीय ही तो आते रहे हैं| इंदु की सरलता तथा भद्रता देखकर वे अपनी बेटी से यह पूछना भी भूल गए कि उसका तथा सारांश का रिश्ता कैसे तथा किन परिस्थितियों में शुरू हुआ था ? उन्होंने अपने घर की परिस्थिति एवं स्थिति के बारे में इंदु को स्पष्ट रूप से बताया | इंदु पहले ही
59 बिना किसी टीम-टाम के दोनों शादियाँ सम्पन्न हो गईं | समिधा के पिता, सूद आँटी-अंकल, बोस पति –पत्नी, दूरदर्शन के कुछ साथी, रोज़ी, जैक्सन व उसके माता-पिता -----बस, इतने लोग दोनों शादियों में सम्मिलित हुए| जैक्सन तो अभी ...Read Moreआया था, उसका कोई मित्र यहाँ नहीं था |आर्य-समाज व चर्च, दोनों शादियों में वही लोग थे | दोनों समय सबने एकअच्छे होटल में भोजन किया, आनंद किया और दोनों जोड़ों को शुभकामनाएँ प्रदान कीं | इंदु को अगले ही दिन सुबह वापिस लौट जाना था अत: वह समिधा को अपने पुत्र के घर प्रवेश करवाकर जाना चाहती थी |
60 उस दिन मौसम कुछ खुशगवार सा था, आकाश पर बदली छने के कारण वातावरण में अभी रोशनी नहीं भारी थी | विलास व इंदु दोनों बाग की ओर जाने वाले मार्ग पर चलने के आदी हो चुके थे ...Read Moreउन्हें हल्के अँधेरे में बाग तक पहुँचने में कोई परेशानी नहीं हुई | दोनों अपने प्रतिदिन के स्थान पर पहुँचे ही थे कि पेड़ों के झुरमुट से कदमों की कुछ आहटें सुनाई दीं | होगा कोई उनके जैसा प्रात: भ्रमण का शौकीन ! दोनों बातें करते हुए बाग में घूमते रहे | अचानक बारिश ने ज़ोर पकड़ लिया और वे
61 जहाज रन-वे पर उतरने वाला था, पेटी बाँधने की घोषणा होने पर इंदु के पास बैठे युवक ने उसे हिलाया, वह तंद्रा से जागी | “थैंक्स” उसके मुख से मरी हुई आवाज़ निकली | विकास ने गाड़ी भेज ...Read Moreथी, वो घर पर ही थे | गाड़ी की आवाज़ सुनते ही वे लपककर बाहर आए, इन्दु ने उनकी उत्सुकता भाँप ली थी | विलास का चेहरा देखकर उसे सुकून मिला | विलास ने हर बार की भाँति पत्नी को एक ठंडा आलिंगन दिया | “सब ठीक से हो गया ?” “हूँ –” विलास ने बहादुर को चाय बनाने की
62 इंदु विलास के चेहरे पर देखती आई थी, उसने बहुत बार विलास को उस कठिन स्थिति से उबारने के प्रयास में अपनी नारी-सुलभ सीमाएँ भी पार करीं थीं | परंतु पत्नी के समीप आते-आते वर्षों पीछे छूट गया ...Read Moreविलास की दृष्टि के समक्ष पुन: खुल जाता और वह अचानक शिथिल हो जाता | इंदु के समीप पहुँचने की स्थिति में पहुँचता, उसका शरीर निढाल होने लगता | इंदु के तन व मन की अतृप्त प्यास की स्थिति समझे बिना वह लंबी-लंबी साँसें लेते हुए इंदु को अधर में लटकता छोड़ देता और करवट बदलकर सिकुड़ जाता | अपनी
63 अगले ही दिन रोज़ी व जैक्सन का भी आरक्षण हो गया और दो दिन बाद वे सब दिल्ली थे | समिधा विवाह के बाद पहली बार पापा के पास आई थी, वह भी बिना बताए | पापा के ...Read Moreका ठिकाना न था | उन्होंने अपनी बेटी-दामाद के साथ रोज़ी और जैक्सन का भी वैसा ही सत्कार किया जैसा अपने बेटी-दामाद का किया था | समिधा व सारांश को देखकर सूद आँटी इतनी प्रसन्न हो उठीं जैसे उनकी अपनी बेटी पहली बार ससुराल से आई हो | उनसे पूछकर पापा ने जो बेटियों को लेना-देना होता है, वह सब
64 इंदु कभी भी अपने में खोने लगती, उसकी आँखों की कोर गीली हो जातीं फिर किसी की ज़रा सी भी आहट सुनते ही उसकी मुस्कान कानों तक खिंच जाती, अचानक सूखे गुलशन में जैसे बाहर आ जाती | ...Read Moreमुस्कान कितनी प्यारी है } उदासी आप पर अच्छी नहीं लगती | ” “पर –मैं उदास कैसे रह सकती हूँ भला, इतने प्यारे बच्चे हैं मेरे !”इंदु दुलार से समिधा पर ममता बरसा देती| सब एक-दूसरे की पीर पहचानते थे पर सब गुम थे, आख़िर है क्या इस ज़िंदगी का मसला ? जो कभी न तो हल हुआ है और
65 अभी इंदु पचास की भी नहीं हुई थी कि उसे दादी बनने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला था | उसका मन अब भी अपने हिस्से की सौंधी धूप की प्रतीक्षा कर रहा था | सूरज की प्रात:कालीन रश्मियाँ ...Read Moreके मन में कैसा उत्साह, कैसा उजियारा भर देती हैं ! यह धूप इंदु के जीवन में भी आई, झुलसा देने वाली धूप ! अंतर को झुलसा देने वाली धूप !उसके अंतर की चीर ने बार-बार उसे ऐसे स्थान पर ला खड़ा किया जहाँ वह गुमसुम हो कई बार अजनबी रास्ते पर भी चल पड़ी थी फिर न जाने कौनसी
66 आँसुओं की नमी ने विलास की बंद आँखों में हलचल पैदा कर दी | धीरे से आँखें खोलकर उन्होंने इंदु पर एक स्नेहयुक्त मुस्कान डालने की चेष्टा की | “आ गईं तुम ? मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर ...Read Moreथा | ”विलास के क्षीण स्वर इंदु के कानों से टकराए | उसकी अश्रुपूरित बंद आँखें खुलीं | वह विलास के वक्ष से ऐसी बेल की भाँति लिपट गई जो टूटने की स्थिति में तत्पर हो | “इंदु ! मुझे माफ़ करना, मैं तुम्हारा साथ नहीं निभा पाया ---” स्वर टूट गए ।प्रिय से मिलन की प्यासी इंदु ने विलास
67 जब समिधा के पिता इलाहाबाद गए थे तब से ही प्रोफ़ेसर पति-पत्नी की आकस्मिक दुर्घटना को देखकर उनका हृदय विक्षिप्त हो उठा था | प्रोफ़ेसर व इंदु के पार्थिव शरीरों को देखकर वे जड़ हो गए थे | ...Read Moreसूद परिवार का बहुत सहारा था, यह परिवार प्रत्येक मोड़ पर उनके साथ खड़ा था और हमेशा एक पड़ौसी का धर्म बखूबी निभाता रहा था | उन्होंने हर समय उनका ध्यान रखा था, यहाँ तक कि विलास व इंदु की मृत्यु के समय भी सूद साहब उनके साथ इलाहाबाद गए थे | इलाहाबाद से आकर वे काफ़ी बेचैनी में रहने
68 भाग्यवश बहादुर को एक नेपाली लड़का मिल गया था जिसे उसने कैंटीन का काम बढ़ जाने के कारण सारांश से पूछकर अपने पास रख लिया था | बातों-बातों में बहादुर ने उसकी जन्मपत्री पढ़ डाली थी और नेपाल ...Read Moreउसके खानदान का पता चलते ही वह उस पर लट्टू हो गया था | उसका नाम विजय था और वह नेपाल के राजा के किसी कर्मचारी के दूर के रिश्तेदार का नाते-रिश्ते में कुछ लगता था | वह यहाँ पर बचपन से ही अपने फूफा के पास पढ़ने आ गया था और अब बी. ए में था| उसे अपने अध्ययन
69 झाबुआ की घटनाओं ने समिधा के जीवन में फिर से ऐसे कई अनुत्तरित प्रश्न खड़े कर दिए जिनके बारे में उसने सोचना छोड़ दिया था | अपने मित्र सान्याल के अचानक इस संसार से विलुप्त हो जाने पर ...Read Moreके मन में उगे हुए उलझे प्रश्नों को सारांश के अतिरिक्त कोई समझने वाला नहीं था | वह बहुत व्यस्त रहने लगा था | समय इस द्रुत गति से भाग रहा था मानो सबको अपने पीछे भगाना ही उसका मकसद हो, होता भी यही है | बच्चे अपने में समर्थ होने लगे, सुमित्रा का उनका ध्यान रखना पर्याप्त था |
70 आज सतपाल वर्मा ने पत्नी का हाथ पकड़कर उसे खुले आसमान के नीचे घर के सहन में लाकर खड़ा कर दिया था | अपने सारे जीवन चारदीवारी में कैद रही मुक्ता एक अजीब सी मनोदशा में थी | ...Read Moreको स्नेहमयी दृष्टि से निहारते हुए वह चारों ओर के वातावरण को लंबी-लंबी साँसें खींचकर अपने भीतर उतारने का प्रयास करने लगी | साफ़-सुथरा वातावरण, फल-फूल, बेलों से सज्जित बँगले से बाहर का छोटा सा किंतु सुंदर बगीचा ! पवन के नाज़ुक झौंकोरों के साथ बड़ी नज़ाकत से हिलते-डुलते पुष्प गुच्छ और पत्ते, लहलहाती कोमल टहनियाँ, इतराती पेड़ों से लिपटी
71 साँझ होने लगी थी लेकिन मन वैसा ही बना हुआ था | मुक्ता ने प्रयासपूर्वक मुस्कुराने का सिलसिला ज़ारी रखा | वह उठकर जाने ही लगी थी कि सतपाल ने उसे प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया – “अब ...Read Moreबनाने मत चल देना, बाहर ही चलेंगे | लालजी बता रहा था कि हमारे शहर में एक बहुत सुंदर रेस्तरां खुला है | ” पत्नी को आलिंगन से मुक्त करके वे आगे बढ़ गए, अलमारी खोलकर उन्होंने नई साड़ी और मोतियों का सैट निकाला और मुस्कुराते हुए मुक्ता से पहनने का अनुरोध किया | सतपाल मुक्ता को लेकर फिल्म देखने
72 कितने वर्षों के पश्चात वह अपनी मातृभूमि की रज छूने जा रही थी, समिधा का मन लरजने लगा | बीबी के घर तक पहुँचने तक वह खोई रही स्मृतियों में | पवन उड़ती रही जाने कहाँ –कहाँ ?वह ...Read Moreमें आँख-मिचौनी खेलती रही किन्नी के साथ !न जाने वह कैसे आ गई थी ?जब अचानक कार उसके निर्देशित स्थान पर रुकी तब वह चौंकी उतरकर उसने वहाँ की रज उठाई और अपने माथे पर लगा ली | यह उसकी जन्मभूमि थी | स्वाभाविक था, घर बंद पड़ा था –पड़ौस की चौबे पंडताइन उसे पहचानकर फूट-फूटकर रोने लगीं | काफ़ी