Nainam Chhindati Shasrani - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 28

28

थकान के कार्न दोनों स्त्रियों में किसी का ध्यान भी कमरे में रखे फ़ोन पर नहीं गया था | कुछ देर पश्चात उजाला खिड़कियों से भीतर भरने लगा पर दोनों बेहोशी की नींद में थीं | फ़ोन की घंटी सुनकर समिधा हड़बड़ाकर उठा बैठी | मिचमीची आँखों से उसने इधर-उधर दृष्टि घुमाई | अरे!फ़ोन तो उसकी बगल में ही एक छोटी सी तिपाई पर रखा था | कमरे में अब तक उजाला भर उठा था और रोशनी से भरे कमरे में अब सब कुछ साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था | 

“आप लोग ठीक हैं दीदी ?” फ़ोन पर मुक्ता थी | 

“जी, बिलकुल, कहिए –“उसने उबासी लेते हुए पूछा | 

“मैं आपके लिए चाय लेकर आ रही हूँ, आप पीछे का दरवाज़ा खोल दीजिए | ”

समिधा ने पुण्या को हिलाया और फिर एक बार चारों ओर निगाह घुमाई | जिस कमरे में उनका पलंग उससे सटा हुआ दूसरा कमरा था जो खुला हुआ था, उस कमरे से लगी एक गैलरी थी, उसके बाद वहीं से सहन और उसमें एक बंद दरवाज़ा दिखाई दे रहा था | 

उसने एक बार फिर पुण्या को हिलाया और पैरों में स्लीपर डालकर दरवाज़े की ओर बढ़ गई | कोई दरवाज़ा खटखटा रहा था | दरवाज़ा खोलने पर समिधा ने देखा मुक्ता अपने सुबह वाले क़ैदी को लेकर खड़ी थी | उसके हाथ में एक ट्रे थी जो जालीदार कपड़े से ढकी हुई थी | 

“मि. दामले और आपकी यूनिट के सारे लोग भी आ चुके हैं, आप लोगों की वेट कर रहे हैं | ”कहते हुए वह अंदर आ गई | 

“यह रौनक है, आपको जो भी चाहिए इसे बुला लीजिएगा | यह अक्सर घर पर ही काम करता रहता है | आप घंटी बजाएंगी तो यह आ जाएगा | हमारा घर ठीक इससे साता हुआ ही है न ?”मुक्ता ने इशारे से दीवार पर लगी घंटी दिखाई | 

मुक्ता लौट गई और पीछे-पीछे रौनक भी !समिधा दरवाज़ा बंद करने गई, लौटकर आई तो देखा पुण्या मस्ती में तकियों के सहारे बैठकर चाय का आनंद ले रही थी | 

“उठो भई, बहुत हो गया आराम –अब काम का समय आ गया है | ”

“बहुत अच्छे दीदी !खुद चाय कप में दाल रही हैं और मुझे तैयार होने को कह रही हैं—“पुण्या ने मुस्कुराकर कहा | 

“हाँ, देखो—मैं तो ये तैयार हुई फटाफट –“

थकान काफ़ी हद तक उतार चुकी थी | थोड़ी सी देर की झपकी ने दोनों को फ़्रेश कर दिया था | जल्दी से तैयार होकर वे पीछे के दरवाज़े से निकल गईं | मुक्ता ने बताया था कि उन्हें पीछे दरवाज़े में ताला लगाने की ज़रूरत नहीं होगी | 

यह एक काफ़ी बड़ा स्थान था जिसके एक ओर लाइन में कई कमरे बने हुए थे | बाईं ओर कर्मचारियों के क्वाटर्स थे | क्वार्टर्स के बाहर कुछ बान की चारपाइयाँ पड़ी हुईं थीं | दो-एक चारपाइयों पर कुछ औरतें बैठी हुईं थीं | एक चारपाई के चारों ओर कुछ बच्चे शोर मचाते हुए उछल-कूद कर रहे थे| उसी लाइन में एक लंबे बरामदे में चिक पड़ी थी | चिक के बाहर दो बड़े थंबले थे जिनमें एक पर काफ़ी बड़े अक्षरों में ‘जेलर’नाम की पट्टिका चिपका दी गई थी | दोनों महिलाएँ उस ओर बढ़  चलीं | 

पचासेक कदम चलकर उन्होंने चिक उठाकर बरामदे में प्रवेश किया | सामने ही एक बड़ा सा कमरा दिखाई दे रहा था परंतु जेलर साहब की तथा अन्य कुर्सियां खाली पड़ी थीं | एक तरफ़ एक युवा टाइपिस्ट बैठा बहुत गंभीरता से कुछ काम कर रहा था | अपने समक्ष दो भद्र महिलाओं से कुछ कम कर रहा था | अपने समक्ष दो भद्र महिलाओं को देखकर वह खड़ा हो गया | 

“जी –कहिए “उसकी भाषा बहुत साफ़-सुथरी थी | 

“जेलर साहब और कुछ मेहमान थे यहाँ ?”

“जी—वो लोग ज़रा बाहर चक्कर मारने निकले हैं, शायद पीछे की तरफ़ होंगे, आप तशरीफ़ रखिए | ”

दोनों महिलाओं ने एक-दूसरे की ओर देखा, पुण्या ने उस क्लर्क लगने वाले आदमी से कहा ;

“हम लोग भी ज़रा चक्कर काटकर आते हैं –“

आदमी ने कुछ इस प्रकार गर्दन हिलाई मानो कोई डुगडुगी वाला बंदर की गर्दन में पड़ी डोरी खींच रहा हो और बंदर की गर्दन उस डोरी के साथ हिल रही हो | 

शैतान पुण्या के चेहरे पर मुस्कुराहट की रेखा खिंची देखकर समिधा शीघ्रता से बाहर निकाल आई | पुण्या का कोई भरोसा नहीं था न जाने कब वहीं खिल-खिल करके हँस पड़े | समिधा ने लंबी यात्रा के दौरान उसके भीतर के शैतान, चुलबुले बच्चे को पहचान लिया था |