इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - Novels
by Prakash Manu
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Hindi Children Stories
कोई छह सौ वर्ष पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर जगह लोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्याय-प्रियता और प्रजा-वत्सलता के कारण वहाँ प्रजा बहुत खुश थी। राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी आक्रांता की नहीं थी। विदेशी आक्रमणों की आँधी के आगे विजयनगर एक मजबूत चट्टान की तरह खड़ा था। साथ ही वहाँ लोग साहित्य और कलाओं से पे्रम करने वाले तथा परिहास-प्रिय थे।
उन्हीं दिनों की बात है, विजयनगर के तेनाली गाँव में एक बड़ा बुद्धिमान और प्रतिभासंपन्न किशोर था। उसका नाम था रामलिंगम। वह बहुत हँसोड़ और हाजिरजवाब था। उसकी हास्यपूर्ण बातें और मजाक तेनाली गाँव के लोगों को खूब आनंदित करते थे। रामलिंगम खुद ज्यादा हँसता नहीं था, पर धीरे से कोई ऐसी चतुराई की बात कहता कि सुनने वाले हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उसकी बातों में छिपा हुआ व्यंग्य और बड़ी सूझ-बूझ होती। इसलिए वह जिसका मजाक उड़ाता, वह शख्स भी द्वेष भूलकर औरों के साथ खिलखिलाकर हँसने लगता था। यहाँ तक कि अकसर राह चलते लोग भी रामलिंगम की कोई चतुराई की बात सुनकर हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते।
प्रकाश मनु 1 अच्छा, तू माँ से भी मजाक करेगा? कोई छह सौ वर्ष पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर ...Read Moreलोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्याय-प्रियता और प्रजा-वत्सलता के कारण वहाँ प्रजा बहुत खुश थी। राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी
2 राजपुरोहित ताताचार्य का किस्सा धीरे-धीरे समय बीता। रामलिंगम अब युवक हो गया था। उसे लोगों की बातचीत से पता चला कि विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय विद्वानों और गुणी लोगों का बहुत सम्मान करते हैं। उसे पूरा विश्वास ...Read Moreकि एक बार राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पहुँच जाने पर, वह अपनी सूझ-बूझ, लगन और कर्तव्यपरायणता से उन्हें प्रभावित कर लेगा। पर भला विजयनगर के राजदरबार में पहुँचा कैसे जाए? किसी राजदरबारी से भी उसका परिचय नहीं था, जिसके माध्यम से वह राजा कृष्णदेव राय तक पहुँच सके। कुछ दिन बाद रामलिंगम को पता चला कि राजपुरोहित ताताचार्य
3 राजा कृष्णदेव राय के राजदरबार में तेनालीराम की एक बड़ी खासियत यह थी कि बड़ी से बड़ी परेशानी के समय भी उसके चेहरे पर हमेशा हँसी खेलती रहती। राजपुरोहित के यहाँ से लौटकर भी उसकी यही हालत थी। ...Read Moreतो यह है कि तेनालीराम राजपुरोहित द्वारा किए गए अपमान को भूला नहीं था। रात-भर उसके भीतर दुख की गहरी आँधी चलती रही। उसे अफसोस इस बात का था कि राजपुरोहित को उसने कितना ऊँचा समझा था और कितना आदर-मान दिया था। पर उन्होंने तो एकदम स्वार्थी व्यक्ति की तरह आँखें फेर लीं। तेनालीराम का विश्वास जैसे टूट-सा गया था।
4 रात को सपने में दिखाई दी वह मूरत राजा कृष्णदेव राय ने विजयनगर में बहुत-से भव्य मंदिर बनवाए। कई पुराने जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का भी उद्धार किया। जब भी उन्हें किसी प्राचीन मंदिर का पता चलता, वे स्वयं वहाँ ...Read Moreउसके जीर्णोद्धार का काम करवाते। फिर पूजा करके देवताओं का आशीर्वाद भी ग्रहण करते। एक बार की बात, विजयनगर में खुदाई के समय राजा कृष्णदेव राय को एक प्राचीन मंदिर का पता चला। पता चला कि कई पीढ़ी पहले उनके पूर्वजों ने इसे बनवाया था। मंदिर काफी जीर्ण हालत में था। राजा ने उस मंदिर की जगह नया भव्य मंदिर
5 आया बीच में पहाड़ विजयनगर सम्राट राजा कृष्णदेव राय बड़े वीर और प्रतापी राजा थे। उनकी वीरता का डंका दूर-दूर तक बजता था। कहा जाता है कि उनके धनुष की टंकार से दिशाएँ काँपती थीं। पर पड़ोसी देश ...Read Moreभी निर्लज्जता से कुछ न कुछ उत्पात करते रहते थे। वे राजा कृष्णदेव राय की की कीर्ति और यश को सहन नहीं कर पाते थे। इसलिए मन ही मन उनसे ईर्ष्या करते थे और जब-तब उन्हें परेशान करने का कोई न कोई मौका खोज ही लेते थे। राजा कृष्णदेव राय इससे चिंतित रहते थे। एक बार की बात है, सीमा
6 कौन है असली, कौन है नकली? राजा कृष्णदेव राय बहुत बुद्धिमान और कलाप्रिय राजा थे। उन्होंने खुद भी बड़े उत्तम कोटि के ग्रंथों की रचना की थी। इसलिए वे लेखकों, कलाकारों और विद्वानों का हृदय से सम्मान करते ...Read Moreइसलिए विजयनगर ही नहीं, दूर-दूर के राज्यों के प्रसिद्ध विद्वान और कलावंत भी राजा कृष्णदेव राय के दरबार में आकर खुद को धन्य मानते थे। यहाँ तक कि देश-विदेश के ऐसे कवि, लेखक और कलाकार भी, जिन्हें दुख था कि उनकी प्रतिभा को किसी ने समझा-परखा नहीं, बड़ी आशा लेकर विजयनगर आते थे और राजा कृष्णदेव राय का व्यवहार देखकर
7 जब मंत्री ने खुदवाए जादू वाले कुएँ एक बार की बात, मौसम सुहावना था। न ज्यादा सर्दी न गरमी। सर्दियों का मौसम तो चला गया था, पर गरमी अभी तेज नहीं हुई थीं। बीच-बीच में दो-एक बार बारिश ...Read Moreहो चुकी थी। आसमान में हलके ऊदिया बादल थे और मन को खुश कर देने वाली ठंडी हवा चल रही थी। राजा कृष्णदेव राय बोले, “आज को दिन कुछ अलग सा है। इसे कुछ अलग ढंग से बिताना चाहिए।” मंत्री ने कहा, “महाराज, बढ़िया मौसम की खुशी में आज एक बढ़िया दावत हो जाए, तो सबको अच्छा लगेगा।” सेनापति गजेंद्रपति
8 दिखाया तीतर ने कमाल राजा कृष्णदेव राय के दरबार में बड़े-बड़े विद्वानों के साथ ही अनेक विद्याओं के जानकार और कलावंत लोग भी आया करते थे। राजा उनका सम्मान करते थे और उन्हें कीमती पुरस्कार देकर विदा करते ...Read Moreइसी तरह वे तरह-तरह के घोड़ों और पशु-पक्षियों के भी बड़े शौकीन थे। अच्छी नस्ल के घोड़ों और तरह के पशु-पक्षियों की उन्हें बहुत अच्छी जानकारी थी। अगर कोई सुंदर पशु-पक्षी लेकर दरबार में आता तो राजा खुश हो जाते थे। लाने वाले को उचित मूल्य देकर वे उन पशु-पक्षियों को अपने दरबार में रख लेते थे। फुर्सत के क्षणों
9 नन्हे दीयों की खिलखिलाहट राजा कृष्णदेव राय के दरबार में दीवाली का उत्सव बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता था। दीवाली पर राजमहल ही नहीं, पूरे विजयनगर में ऐसी भव्य सजावट और ऐसी अद्भुत जगर-मगर होती के लोग ...Read Moreसाल भर उसे याद करते और सराहते। राजधानी में जगह-जगह कदली पत्रों से तोरण-द्वार बनते। रंग-बिरंगी झंडियों से बंदनवार सजाए जाते। कभी-कभी राजा कृष्णदेव राय पड़ोसी राज्यों के भूपतियों को भी इस भव्य आयोजन में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते। ऐसे अवसरों पर तो विजयनगर का दीवाली उत्सव सचमुच दर्शनीय हो जाता। अतिथि राजा भी राजा कृष्णदेव राय की
10 पोलूराम की खुली पोल राजा कृष्णदेव राय का न्याय ऐसा था कि दूध का दूध, पानी का पानी हो जाता था। कोई कितना ही होशियार, छल-बल वाला या तिकड़मी क्यों न हो, दरबार में राजा कृष्णदेव राय के ...Read Moreऔर बुद्धिमत्तापूर्ण न्याय के आगे उसकी बोलती बंद हो जाती थी। जो सच्चे और ईमानदार होते, उनके चेहरे खिल उठते। थोड़ी ही देर में सभी के मुँह से निकलता—“सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुँह काला!” यों अकसर नेक और भले लोग राजा के दरबार में परेशान होकर आते, मगर हँसते हुए जाते थे। एक बार की बात, राजा कृष्णदेव
11 उड़ाइए महाराज, अब इन्हें भी उड़ाइए एक बार की बात है, विजयनगर राज्य का स्थापना दिवस निकट था। इसलिए पूरे राज्य में आनंद और उत्साह का वातावरण था। प्रजा मन ही मन अनुमान लगा रही थी, “देखें भला ...Read Moreबार राजा कृष्णदेव राय किस रूप में इसे मनाते हैं? जरूर इस बार भी कोई न कोई अपूर्व और यादगार कार्यक्रम होगा।” राजा कृष्णदेव राय ने प्रमुख दरबारियों की एक सभा बुलाई। कहा, “आप लोगों को पता ही है, विजयनगर का स्थापना दिवस हम हर वर्ष धूमधाम से मनाते हैं। इस अवसर पर ऐसे कार्यक्रम होते हैं, जिन्हें प्रजा बड़े
12 खाओ-खाओ, लो तुम भी खाओ राजा कृष्णदेव राय बड़े विद्वान थे, कलाप्रेमी थे, पर साथ ही वे परिहास-प्रिय भी थे। राजदरबार की अतिशय व्यस्तता में भी विनोद और हास-परिहास के मौके ढूँढ़ लेते। दरबारियों की चुटीली बातों पर ...Read Moreखुलकर हँसते थे और कभी-कभी तो ठहाके भी लगाते थे। इससे दरबार का वातावरण सरस बना रहता था। दरबारियों को भी सारा तनाव भूलकर खुलकर हँसने और ठिठोली करने का मौका मिल जाता। इससे समय का कुछ पता ही नहीं चलता था। रोज ही राजदरबार में कोई न कोई ऐसी बात होती कि सब दरबारियों के चेहरे पर हँसी छलछलाने
13 जब तेनालीराम को मिला देशनिकाला राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम को जी-जान से चाहते थे। पर कई बार बड़ी अटपटी स्थितियाँ हो जाती थीं। असल में राजा कृष्णदेव राय के दरबार में चापलूसी करने वाले और चुगलखोर दरबारियों की ...Read Moreकोई कमी नहीं थी। उन्हें मंत्री और राजपुरोहित ताताचार्य की भी शह मिल जाती। राजा ऐसे चुगलखोर दरबारियों को पसंद नहीं करते थे, पर कभी-कभी उनके प्रभाव में भी आ जाते थे। एक बार ऐसा ही कुछ अजीब किस्सा हुआ, जिसमें तेनालीराम को बिना बात राजा का कोपभाजन बनना पड़ा। हुआ यह कि तेनालीराम के गाँव में एक गरीब युवक
14 पाताल लोक की रहस्यपूर्ण मूर्ति राजा कृष्णदेव राय साधुओं और विद्वानों का बहुत सम्मान करते थे। इसलिए दूर-दूर से साधु-महात्मा उनसे मिलने आते थे। राजा कृष्णदेव राय उनसे बात करके खुद को धन्य महसूस करते। एक जिज्ञासु की ...Read Moreआत्मा, परमात्मा, जीव-जगत और सृष्टि के विविध रूपों के संबंध में तरह-तरह के प्रश्न पूछते और उनका निदान हो जाने पर बड़ी प्रसन्नता महसूस करते थे। इतना ही नहीं, वे विजयनगर की प्रजा को भी साधु-महात्माओं के सत्संग-लाभ के लिए उत्साहित करते। राजा कृष्णदेव राय शाही अतिथिशाला में उनके आतिथ्य की बड़ी सुंदर व्यवस्था करते और उसका प्रबंध स्वयं देखा
15 होली की रंगों भरी ठिठोली राजा कृष्णदेव राय होली पर पूरी तरह आनंदविभोर होकर फाग के रंगों में रँग जाते। लिहाजा विजयनगर में होली के अवसर पर धूमधाम देखते ही बनती थी। कई दिन पहले से फाग की ...Read Moreशुरू हो जातीं। तरह-तरह की मिठाइयाँ और पकवान बनते। राजदरबार में आकर होली मनाने वाले खास मेहमानों के लिए मिठाई के साथ-साथ केवड़ा मिली खुशबूदार ठंडाई का इंतजाम होता। फागुन की बहार आते ही पूरा शहर रंग-बिरंगी झंडियों से सज जाता। दूर-दूर के गाँवों से लोकगायक और लोकनर्तक राजधानी आकर अपने रंग-रँगीले कार्यक्रम पेश करते। इस अवसर पर विदूषकों की
16 आप कहें तो पूरी नाँद पी जाऊँ! फिर ऐसा ही एक मौका और भी आ गया। असल में, विजयनगर साम्राज्य का स्थापना दिवस पास ही था। इसलिए बहुत दिनों से बड़े जोर-शोर से तैयारियाँ चल रही थीं। राजा ...Read Moreराय का मन था कि इस बार स्थापना दिवस पर मित्र देशों के राजाओं को भी आमंत्रित किया जाए। साथ ही देश-विदेश के विद्वानों और कलावंतों को बलाकर उनका सम्मान किया जाए, जिससे दूर-दूर तक विजयनगर साम्राज्य की कीर्ति की गूँज पहुँच जाए। लोग यहाँ आकर विजयनगर की सुंदरता, कला और स्थापत्य देखें और अपने-अपने राज्यों में जाकर दूसरों को
17 सबसे सुंदर दीए किस के? राजा कृष्णदेव राय दीवाली का पर्व बड़े आनंद-उल्लास के साथ मनाते थे। इस अवसर पर विजयनगर की प्रजा का उत्साह भी देखते ही बनता था। घर-घर मंगल दीप जलते। नगर में जगह-जगह फूल-पत्तों ...Read Moreरंग-बिरंगी झंडियों से बंदनवार सजाए जाते। राजधानी के प्रमुख राजमार्गों और चौराहों को भी रंग-बिरंगी अल्पनाओं और दीपमालिकाओं से सुशोभित किया जाता। मृदंगम लिए गायकों की टोलियाँ हर तरफ घूमती हुई रामकथा के साथ-साथ विजयनगर के गौरवपूर्ण इतिहास को भी मोहक गीत-संगीत में ढालकर प्रस्तुत करतीं तो सुननेवालों की भीड़ लग जाती। हर बार दीवाली पर विजयनगर की एक अलग
18 होलिका दरबार हास्य नाट्यम राजा कृष्णदेव राय हर साल होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाते थे। और यह उत्सव एक दिन नहीं, कई दिन चलता था। इस अवसर पर गाने-बजाने और नृत्यों के साथ हास्य रस के ...Read Moreएक से एक मजेदार कार्यक्रम होते थे। हास्यगीत, गीतिकाओं और मनोरंजक नाटकों का जोर रहता था। गाँव वाले रास-रंग से भरपूर लोकनृत्य पेश करते तो समा बँध जाता। उधर पहलवानों के अखाड़ों की धूम अलग। नट, बाजीगर और तमाशे वाले भी कोई न कोई नया रंग, नया करतब लेकर आते। पूरे विजयनगर में आनंद और उल्लास का वातावरण छा जाता
19 दूर देश से आया निशानेबाज राजा कृष्णदेव राय कलाकारों और हुनरमंदों की बहुत इज्जत करते थे। इसलिए दूर-दूर से सैकड़ों कलावंत विजयनगर के राजदरबार में अपनी कला और कौशल का प्रदर्शन करने के लिए आते थे। राजा कृष्णदेव ...Read Moreदरबारियों के साथ बैठकर उनकी अनोखी कला और हस्तलाघव का आनंद लेते। साथ ही खूब इनाम भी देते थे। जो भी कलाकार और हुनरमंद अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए विजयनगर आता, वह राजा कृष्णदेव राय की उदारता से गद्गद होकर जाता। दूर-दूर तक विजयनगर के महान राजा की कलाप्रियता का गुणगान करता। एक दिन की बात, राजा के
20 बूढ़े किसान की गन्ने जैसी मीठी बात एक बार की बात है, राजा कृष्णदेव राय के राजदरबार में गरीब किसानों की समस्याओं की चर्चा हो रही थी। तेनालीराम ने गाँव के गरीब लोगों के दुख और किसानों की ...Read Moreका ऐसा चित्र खींचा कि राजा एकाएक गंभीर हो गए। कुछ देर तक वे चुप रहे। फिर कहा, “ठीक है, मैं अब हर महीने कम से कम एक बार गाँवों में जाकर अपनी प्रजा से मिलूँगा। खुद उनका हालचाल पता करूँगा। इससे जनता का असली सुख-दुख पता चलेगा।” सुनकर मंत्री और उसके चाटुकार दरबारियों का रंग उड़ गया। पर वे
21 मेरे पास है अमर होने का नुस्खा! राजा कृष्णदेव राय साधु-महात्माओं की बड़ी इज्जत करते थे। इसलिए अकसर पहुँचे हुए साधु और महात्मा भी उनके दरबार में आकर, उन्हें आशीर्वाद देते थे और प्रजा के कल्याण के लिए ...Read Moreकामना करते थे। इससे राजा ही नहीं, प्रजा भी प्रभावित होती थी। कभी-कभी राजा धार्मिक रीतियों से यज्ञ भी करते थे, जिसमें प्रजा भी उत्साहपूर्वक शामिल होती थी। इससे दूर-दूर तक विजयनगर की कीर्ति एक सांस्कृतिक नगरी के रूप में थी। एक बार की बात, राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक तांत्रिक आया। वह देखने में बड़ा भव्य और
22 इत्रफरोशों की पहचान तो तुम्हीं को है! राजा कृष्णदेव राय वीर योद्धा थे, प्रजावत्सल थे, राजनय और कूटनीति के मर्मज्ञ भी। पर इसके साथ ही वह सौंदर्य-प्रेमी भी थे। उन्हें अच्छे और रुचिकर परिधान पहनने का शौक था। ...Read Moreके सुंदर वस्त्रों और कलात्मक आभूषणों की उन्हें बहुत अच्छी परख थी, तो साथ ही साथ वे इत्र-फुलेल के भी शौकीन थे। वे दूर से ही सूँघकर बता देते थे कि यह इत्र कहाँ का बना हुआ है और कितना कीमती है। अजमेर के इत्र के तो वे बहुत प्रशंसक थे। अगर राज्य का कोई सभासद या व्यापारी उस दिशा
23 यह हँसता गुलाब यहीं खिलेगा, महाराज एक बार राजा कृष्णदेव राय दरबार में आए, तो कुछ गंभीर दिखाई दिए। हमेशा की तरह दरबारियों ने हँसकर अभिवादन किया, पर राजा पहले की तरह न हँसे, न मुसकराए। किसी को ...Read Moreराजा कृष्णदेव राय कुछ चिंतित हैं। किसी को लगा, राजा मन ही मन किसी गहन विचार-विमर्श में लीन हैं। किसी-किसी को यह भी लगा कि वे किसी अधिकारी या दरबारी से नाखुश हैं और जल्दी ही उसकी शामत आने वाली है। पर असल में बात क्या है, किसी को पता न चली। और राजा कृष्णदेव राय इतने गंभीर थे, तो
24 चिक-चिक बोले काठ की चिड़िया विजयनगर में हर साल राजा कृष्णदेव राय का जन्मदिन खूब धूमधाम से मनाया जाता था। इस बार भी राजा का जन्मदिन आया, तो हर तरफ चहल-पहल थी। जगह-जगह सुंदर बंदनवार लगाए गए। घरों, ...Read Moreऔर बाजारों में केले के पत्तों, रंग-बिरंगी झंडियों और दीपमालाओं से सजावट की गई। राजधानी में जगह-जगह फूलों के द्वार बनाए गए, जिन पर फूलों की पंखुड़ियों से ही राजा का प्रशस्तिगान करते हुए, शुभकामनाएँ दी गई थीं। बीच में बड़े-बड़े सुनहरे अक्षरों में लिखा था, “विजयनगर को स्वर्ग के समान सुंदर और खुशहाल बनाने वाले, राजाओं के राजा कृष्णदेव
25 लेकिन इतने भिखारी आए कहाँ से? राजा कृष्णदेव राय का दरबार लगा था। राज्य की समस्याओं पर गंभीरता से विचार हो रहा था। दरबारी प्रजा की परेशानियों और उन्हें दूर करने के उपायों की चर्चा कर रहे थे। ...Read Moreआपस में तर्क-वितर्क भी होने लगता। राजा कृष्णदेव राय मुसकराकर इसका आनंद लेते। वे चाहते थे कि सभी दरबारी खुलकर अपनी बात कहें, ताकि सही निर्णय हो सके। शाम होने को थी। राजा कृष्णदेव राय दरबार खत्म करना चाहते थे, पर कुछ सोचकर बोले, “अभी थोडा समय है। अगर आप लोग किसी और समस्या की चर्चा करना चाहें, तो उसका
26 शिव की नगरी से प्रसाद लाया हूँ राजा कृष्णदेव राय साधु-संतों की बहुत इज्जत करते थे। इसलिए दूर-दूर से साधु-महात्मा विजयनगर में आते। राजा कृष्णदेव राय उनकी खूब सेवा-सत्कार करते थे। इसलिए सभी वहाँ से प्रसन्न होकर लौटते ...Read Moreएक बार की बात, राजा कृष्णदेव राय के दरबार में लंबी, सफेद दाढ़ी वाले एक साधु बाबा आए। वे बहुत बूढ़े और कृशकाय थे, पर चेहरे पर दिव्य तेज। आते ही उन्होंने दोनों आँखें बंद कर, कुछ देर ‘ओम नमः शिवाय’ का पाठ किया। फिर आँखें खोलकर प्रसन्न भाव से बोले, “महाराज, शिव आप पर प्रसन्न हैं। उनकी कृपा से
27 यह है मेरे परदादा का हाथी राजा कृष्णदेव राय के समय में विजयनगर की कार्ति-पताका दूर-दूर तक लहराने लगी थी। विजयनगर राज्य की कलाओं और धन-धान्य का कोई जवाब न था। इसलिए लोग ‘धरती की अमरावती’ कही जाने ...Read Moreविजयनगर की राजधानी को एक बार अपनी आँखों से देखने के लिए तरसते थे। राजा कृष्णदेव राय भी चाहते थे कि लोग विजयनगर की समृद्धि और कलाओं के बारे में जानें। इसलिए हर साल विजयनगर राज्य का स्थापना दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता था। इस अवसर पर पूरे विजयनगर में भव्य समारोह मनाया जाता था, जिसमें कलाकार अपनी सुंदर
28 हमारे राजा तो बहुत अच्छे हैं पर...! राजा कृष्णदेव राय के दरबारियों में तेनालीराम को राजा जितना चाहते थे, प्रजा भी उतना ही पसंद करती थी। बाकी दरबारी तो अपनी शान-शौकत और कद बढ़ाना चाहते थे, पर तेनालीराम ...Read Moreप्रजा की भलाई की बात सोचता था। इसलिए प्रजा उसे जी-जान से चाहती और प्यार करती थी। लेकिन इसी कारण वह दूसरे दरबारियों की आँख की किरकिरी भी बन गया था। कई बार तो बड़ी अजीबोगरीब घटनाएँ हो जातीं। यहाँ तक कि तेनालीराम को अपमान का घूँट भी पीना पड़ता। पर फिर भी वह अपनी चतुराई से कोई न कोई
29 लेकिन कौन संन्यास ले रहा है? राजा कृष्णदेव राय के दरबारी तेनालीराम को नीचा दिखाने की कोशिश करते थे, पर तेनालीराम की चतुराई के कारण हर बार उन्हें मुँह की खानी पड़ती। आखिर हारकर उन्होंने महारानी के कान ...Read Moreएक पुराने दरबारी रंगाचार्य का गाँव की रिश्तेदारी के नाते महारानी से कुछ परिचय था। बस, उसे तेनालीराम से अपनी खुंदक निकालने का अच्छा मौका मिल गया। देर तक वह महारानी से तेनालीराम को लेकर बहुत कुछ उलटा-सीधा कहता रहा। फिर बोला, “महारानी जी, तेनालीराम अपने सामने किसी को नहीं गिनता। कह रहा था, राजा तो मुझे इतना चाहते हैं
30 और चिड़ियों ने जी भरकर खाया एक बार की बात, राजा कृष्णदेव राय के दरबार में ज्यादा काम नहीं था। फुर्सत के क्षणों में राजा कृष्णदेव राय दरबारियों से गपशप कर रहे थे। दरबारी भी बीच-बीच में किसी ...Read Moreसे अपनी काबलियत और स्वामिभक्ति का बखान कर रहे थे। कुछ ने चाटुकारिता भी शुरू कर दी थी, पर तेनालीराम चुप बैठा था। उसे भला अपने बारे में कहने की क्या जरूरत थी? मंत्री तथा कुछ और दरबारियों ने तेनालीराम की ओर देखकर छींटाकशी की कोशिश की। पर तेनालीराम तब भी कुछ नहीं बोला। वहीं बैठा चुप-चुप मुसकराता रहा। इस
31 लाभचंद ने क्यों सिलवाई थैली? राजा कृष्णदेव राय जितने उदार हृदय के थे, उतने ही न्यायप्रिय भी। गरीब प्रजा को न्याय दिलाने के लिए कई बार उन्हें कठोर निर्णय लेने पड़ते थे। इसलिए प्रजा उनका जय-जयकार करती थी। ...Read Moreराजा खुद सारे मामलों की सुनवाई करते थे, पर कभी कोई ज्यादा पेचीदा मामला आ जाता तो वे तेनालीराम की मदद लेते थे। तेनालीराम की चौकन्नी निगाहों से कोई अपराधी बच नहीं पाता था। वह न्याय करने बैठता तो दूध का दूध, पानी का पानी कर देता। इस कारण प्रजा तो उसे चाहती ही थी, दरबारियों की निगाह में भी
32 चल नहीं पाया बहुरूपिए का जादू विजयनगर में अपनी-अपनी विलक्षण कला का प्रदर्शन करने वाले कलावंत अकसर आया करते थे। राजा कृष्णदेव राय उनकी काफी कद्र करते थे और उन्हें उचित पुरस्कार देकर विदा करते थे। पर कभी-कभी ...Read Moreअजीबोगरीब घटनाएँ भी घट जाती थीं। विजयनगर की प्रजा उन्हें भूलती नहीं थी। लोग बार-बार उन किस्सों को एक-दूसरे को तथा दूसरे राज्यों से आने वाले मेहमानों को सुनाया करते थे। एक बार ऐसा ही एक मजेदार किस्सा हुआ, जिसे याद करके बाद में भी राजा कृष्णदेव राय और दरबारियों को हँसी आ जाती थी। हुआ यह कि एक बार
33 कितना अजब था वह विदूषक तेनालीराम का जीवन यों ही चलता रहा। राजा कृष्णदेव राय तो पूरी तरह उसके मुरीद हो गए थे। विजयनगर ही नहीं, दूर-दूर के राज्यों में भी उसकी कीर्ति फैल गई। वह बेशक अपने ...Read Moreका सबसे बुद्धिमान शख्स था। पर अंत तो सभी का आता है। और एक दिन तेनालीराम पर भी हम समय की काली छाया को मँडराते देखते हैं। हुआ यह कि एक दिन तेनालीराम अपने घर के सामने वाले बगीचे में टहल रहा था। तभी अचानक एक झाड़ी के नीचे से विषैला साँप निकला। तेनालीराम कुछ समझ पाता, इससे पहले ही