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इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - Novels
by Prakash Manu
in
Hindi Children Stories
कोई छह सौ वर्ष पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर जगह लोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्याय-प्रियता और प्रजा-वत्सलता के कारण वहाँ प्रजा बहुत खुश थी। राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी आक्रांता की नहीं थी। विदेशी आक्रमणों की आँधी के आगे विजयनगर एक मजबूत चट्टान की तरह खड़ा था। साथ ही वहाँ लोग साहित्य और कलाओं से पे्रम करने वाले तथा परिहास-प्रिय थे।
उन्हीं दिनों की बात है, विजयनगर के तेनाली गाँव में एक बड़ा बुद्धिमान और प्रतिभासंपन्न किशोर था। उसका नाम था रामलिंगम। वह बहुत हँसोड़ और हाजिरजवाब था। उसकी हास्यपूर्ण बातें और मजाक तेनाली गाँव के लोगों को खूब आनंदित करते थे। रामलिंगम खुद ज्यादा हँसता नहीं था, पर धीरे से कोई ऐसी चतुराई की बात कहता कि सुनने वाले हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उसकी बातों में छिपा हुआ व्यंग्य और बड़ी सूझ-बूझ होती। इसलिए वह जिसका मजाक उड़ाता, वह शख्स भी द्वेष भूलकर औरों के साथ खिलखिलाकर हँसने लगता था। यहाँ तक कि अकसर राह चलते लोग भी रामलिंगम की कोई चतुराई की बात सुनकर हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते।
प्रकाश मनु 1 अच्छा, तू माँ से भी मजाक करेगा? कोई छह सौ वर्ष पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर ...Read Moreलोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्याय-प्रियता और प्रजा-वत्सलता के कारण वहाँ प्रजा बहुत खुश थी। राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी
2 राजपुरोहित ताताचार्य का किस्सा धीरे-धीरे समय बीता। रामलिंगम अब युवक हो गया था। उसे लोगों की बातचीत से पता चला कि विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय विद्वानों और गुणी लोगों का बहुत सम्मान करते हैं। उसे पूरा विश्वास ...Read Moreकि एक बार राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पहुँच जाने पर, वह अपनी सूझ-बूझ, लगन और कर्तव्यपरायणता से उन्हें प्रभावित कर लेगा। पर भला विजयनगर के राजदरबार में पहुँचा कैसे जाए? किसी राजदरबारी से भी उसका परिचय नहीं था, जिसके माध्यम से वह राजा कृष्णदेव राय तक पहुँच सके। कुछ दिन बाद रामलिंगम को पता चला कि राजपुरोहित ताताचार्य
3 राजा कृष्णदेव राय के राजदरबार में तेनालीराम की एक बड़ी खासियत यह थी कि बड़ी से बड़ी परेशानी के समय भी उसके चेहरे पर हमेशा हँसी खेलती रहती। राजपुरोहित के यहाँ से लौटकर भी उसकी यही हालत थी। ...Read Moreतो यह है कि तेनालीराम राजपुरोहित द्वारा किए गए अपमान को भूला नहीं था। रात-भर उसके भीतर दुख की गहरी आँधी चलती रही। उसे अफसोस इस बात का था कि राजपुरोहित को उसने कितना ऊँचा समझा था और कितना आदर-मान दिया था। पर उन्होंने तो एकदम स्वार्थी व्यक्ति की तरह आँखें फेर लीं। तेनालीराम का विश्वास जैसे टूट-सा गया था।
4 रात को सपने में दिखाई दी वह मूरत राजा कृष्णदेव राय ने विजयनगर में बहुत-से भव्य मंदिर बनवाए। कई पुराने जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का भी उद्धार किया। जब भी उन्हें किसी प्राचीन मंदिर का पता चलता, वे स्वयं वहाँ ...Read Moreउसके जीर्णोद्धार का काम करवाते। फिर पूजा करके देवताओं का आशीर्वाद भी ग्रहण करते। एक बार की बात, विजयनगर में खुदाई के समय राजा कृष्णदेव राय को एक प्राचीन मंदिर का पता चला। पता चला कि कई पीढ़ी पहले उनके पूर्वजों ने इसे बनवाया था। मंदिर काफी जीर्ण हालत में था। राजा ने उस मंदिर की जगह नया भव्य मंदिर
5 आया बीच में पहाड़ विजयनगर सम्राट राजा कृष्णदेव राय बड़े वीर और प्रतापी राजा थे। उनकी वीरता का डंका दूर-दूर तक बजता था। कहा जाता है कि उनके धनुष की टंकार से दिशाएँ काँपती थीं। पर पड़ोसी देश ...Read Moreभी निर्लज्जता से कुछ न कुछ उत्पात करते रहते थे। वे राजा कृष्णदेव राय की की कीर्ति और यश को सहन नहीं कर पाते थे। इसलिए मन ही मन उनसे ईर्ष्या करते थे और जब-तब उन्हें परेशान करने का कोई न कोई मौका खोज ही लेते थे। राजा कृष्णदेव राय इससे चिंतित रहते थे। एक बार की बात है, सीमा