Param Bhagwat Prahlad ji book and story is written by Praveen kumrawat in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Param Bhagwat Prahlad ji is also popular in Spiritual Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
परम भागवत प्रह्लाद जी - Novels
by Praveen kumrawat
in
Hindi Spiritual Stories
भारतवर्ष के ही नहीं, सारे संसार के इतिहास में सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वंश यदि कोई माना जा सकता है, तो वह हमारे चरित्रनायक परमभागवत दैत्यर्षि प्रहलाद का ही वंश है। सृष्टि के आदि से आजतक न जाने कितने वंशों का विस्तार पुराणों और इतिहासों में वर्णित है किन्तु जिस वंश में हमारे चरित्रनायक का आविर्भाव हुआ है, उसकी कुछ और ही बात है। इस वंश के समान महत्त्व रखने वाला अब तक कोई दूसरा वंश नहीं हुआ और विश्वास है कि भविष्य में भी ऐसा कोई वंश कदाचित् न हो।
जिस वंश के मूलपुरुष नारायण के नाभि-कमल से उत्पन्न जगत्स्रष्टा ब्रह्माजी के पौत्र और महर्षि' मरीचि' के सुपुत्र स्थावर-जंगम सभी प्रकार की सृष्टियों के जन्मदाता ऋषिराज 'कश्यप' हों, उस वंश के महत्त्व की तुलना करनेवाला संसार में कौन वंश हो सकता है? क्या ऐसे प्रशंसित वंश के परिचय की भी आवश्यकता है? फिर भी आज हम इस वंश का परिचय देने के लिये जो प्रयत्न करते हैं, क्या यह अनावश्यक अथवा व्यर्थ है ? नहीं इस वंश का परिचय देना परम आवश्यक और उपादेय है।
भारतवर्ष के ही नहीं, सारे संसार के इतिहास में सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वंश यदि कोई माना जा सकता है, तो वह हमारे चरित्रनायक परमभागवत दैत्यर्षि प्रहलाद का ही वंश है। सृष्टि के आदि से आजतक ...Read Moreजाने कितने वंशों का विस्तार पुराणों और इतिहासों में वर्णित है किन्तु जिस वंश में हमारे चरित्रनायक का आविर्भाव हुआ है, उसकी कुछ और ही बात है। इस वंश के समान महत्त्व रखने वाला अब तक कोई दूसरा वंश नहीं हुआ और विश्वास है कि भविष्य में भी ऐसा कोई वंश कदाचित् न हो। जिस वंश के मूलपुरुष नारायण के
स्वजनवचनपुष्टयै निर्जराणां सुतुष्टयैदितितनयविरुष्टयै दाससङ्कष्टमुष्टयै।झटिति नृहरिवेषं स्तम्भमालम्ब्य भेजेस भवतु जगदीशः श्रीनिवासो मुदे नः॥संसार के विशेषकर भारतवर्ष के गौरवस्वरूप, धार्मिक जगत् के सबसे बड़े आदर्श और आस्तिक आकाश के षोडशकलापूर्ण चन्द्रमा के समान, हमारे नायक प्रह्लाद को कौन नहीं जानता ?जिनके ...Read Moreको पढ़कर सांसारिक बन्धन से मुक्ति पाना एक सरल काम प्रतीत होने लगता है, कराल काल की महिमा एक तुच्छ-सी वस्तु प्रतीत होने लगती है और दृढ़ता एवं निश्चयात्मिका बुद्धि का प्रकाश स्पष्ट दिखलायी
[ पूर्वजन्म की कथा ]सृष्टि के आरम्भकाल की कथा है कि, ब्रह्माजी के मानसपुत्र योगिराज सनक आदि चारों भाई, एक समय भगवद्भक्ति के समुद्र में गोते लगाते हुए तीनों लोक और चौदहों भुवन में भ्रमण करते हुए, आनन्दकन्द भगवान् ...Read Moreकी लीलामय अपार शोभासमन्विता ‘वैकुण्ठपुरी' में जा पहुँचे। यद्यपि वैकुण्ठपुरी की शोभा और सुषमा का वर्णन पुराणों और पाञ्चरात्र ग्रन्थों में विस्तार से किया गया है, तथापि उसकी शोभा एवं सुषमा वर्णनातीत है। उसकी न तो तुलना हो सकती है और न उसके अलौकिक विषयों का वर्णन लौकिक शब्दों में किया ही जा सकता है। अतः वैकुण्ठपुरी की शोभा एवं
[गर्भ और जन्म]जिस समय महर्षि कश्यप की अदिति आदि अन्यान्य सभी धर्मपत्नियों में आदित्य आदि देवताओं की उत्पत्ति हो चुकी थी और उनके प्रताप से सारा जगत् उनका ही अनुचर हो रहा था, उस समय जैसा कि हम पहले ...Read Moreआये हैं चाक्षुष नामक छठवाँ मन्वन्तर था और उसके अन्तर्गत था सत्ययुग। भगवद इच्छा बड़ी प्रबल है। युग और मन्वन्तर उसके अनुचर हैं। इसलिये सत्ययुग में और महर्षि कश्यप-जैसे परम तपस्वी महर्षि के आश्रम में भी सत्ययुग के अनुरूप नहीं, कलियुग के अनुरूप घटना घट गयी। भगवान् के पार्षदों को 'जय' और 'विजय' को— ब्रह्मशाप हो चुका था और वे
जिस समय सारे जगत् में तीनों लोक और चौदहों भुवन में देवताओं की तूती बोल रही थी, देवराज इन्द्र का आधिपत्य व्याप्त था और असुरों का आश्रयदाता कोई नहीं था उसी समय भगवान् की माया की प्रेरणा से देवराज ...Read Moreको अभिमान हुआ और उनका विवेक और उनकी बुद्धि अभिमान के वशीभूत होकर अविवेकिनी बन बैठी। जिस हृदय में अभिमान का आवेश हो जाता है, उस हृदय में शील टिक नहीं सकता और जिस हृदय में शील नहीं होता, उसको सत्य, धर्म, लक्ष्मी आदि सद्गुण-पूर्ण समस्त ऐश्वर्य परित्याग कर देते हैं। इसी कारण से अभिमानी देवराज इन्द्र को राज-लक्ष्मी उनके