Param Bhagwat Prahladji - Part 2 - Time of Appearance books and stories free download online pdf in Hindi

परम भागवत प्रह्लादजी -भाग2 - आविर्भाव का समय

स्वजनवचनपुष्टयै निर्जराणां सुतुष्टयै
दितितनयविरुष्टयै दाससङ्कष्टमुष्टयै।

झटिति नृहरिवेषं स्तम्भमालम्ब्य भेजे
स भवतु जगदीशः श्रीनिवासो मुदे नः॥

संसार के विशेषकर भारतवर्ष के गौरवस्वरूप, धार्मिक जगत् के सबसे बड़े आदर्श और आस्तिक आकाश के षोडशकलापूर्ण चन्द्रमा के समान, हमारे नायक प्रह्लाद को कौन नहीं जानता ?जिनके चरित्र को पढ़कर सांसारिक बन्धन से मुक्ति पाना एक सरल काम प्रतीत होने लगता है, कराल काल की महिमा एक तुच्छ-सी वस्तु प्रतीत होने लगती है और दृढ़ता एवं निश्चयात्मिका बुद्धि का प्रकाश स्पष्ट दिखलायी देने लगता है। आज हमको उन्हीं परमभागवत प्रह्लाद के आविर्भाव के समय को अन्धकारमय ऐतिहासिक जगत् के बीच से ढूँढ़ निकालना है। जिनकी भगवद्भक्ति की महिमा गाँव-गाँव और घर-घर में गायी जाती है, जिनकी कथा को आस्तिक और नास्तिक दोनों ही प्रेम से पढ़ते और उनके पथानुगामी बनने की चेष्टा करते हैं एवं जिनके वृत्तान्त संस्कृत-साहित्य में, विशेषकर पौराणिक साहित्य की प्रत्येक पुस्तक में अनेक बार आते हैं उन्हीं परमभागवत दैत्यर्षि प्रह्लाद के आविर्भाव का समय आज ऐतिहासिक जगत् के अन्धकार में विलीन-सा हो रहा है— यह कैसे आश्चर्य की बात है?
पश्चिमी सभ्यता से प्रभावान्वित ऐतिहासिक युग में, अनुमान के विमान में बैठ दौड़ लगाने वालों के विचारों से और उन विचारों से, जिनके अनुसार इतिहासों और पुराणों की कौन कहे, अनादि, अकृत एवं अपौरुषेय वेदों तक की रचना का समय ईसवी सन शताब्दियों में निश्चय किया जाता हैं। हमारे चरित्र नायक के आविर्भाव के समय का ठीक-ठीक निश्चय करना सहज काम न होने पर भी असम्भव नहीं है। अतः हम प्रयत्न करेंगे कि, भगवद्भक्तों के हृदय को आह्लादित करने वाले अपने चरित्रनायक परमभागवत दैत्यषि प्रह्लाद के आविर्भाव का ठीक-ठीक समय प्रामाणिक रूप से जहाँ तक सम्भव हो ढूँढ़ निकालेें। इसमें सन्देह नहीं कि, जिसका वृत्तान्त जिस पुस्तक में मिलेगा, उसी पुस्तक के आधार पर निश्चय किया हुआ उसका समय भी सबसे अधिक माननीय और सत्य के समीप होगा। प्रह्लादजी का वृत्तान्त जो अब तक मिलता है, वह पुराणों और महाभारत में ही मिलता है। ऐसी दशा में हमको उनके आविर्भाव का समय भी उन्हीं पुराणों और महाभारत के आधार पर ठीक-ठीक मिल सकता है। अतएव हम अन्यान्य साधनों की ओर समय का अपव्यय न करके तथा भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास की अन्यान्य सामग्रियों की कालकोठरी में न जाकर महाभारत और पौराणिक साहित्य के आधार पर ही प्रह्लादजी के आविर्भाव का समय निश्चय करने की चेष्टा करते हैं।
यह प्रसिद्ध बात है कि, भगवान् श्रीनृसिंह देव का अवतार सत्ययुग में हुआ था। यह भी सत्य है कि, हिरण्यकशिपु के वध करने और प्रह्लाद के वचन को सत्य करने एवं देवताओं की रक्षा करने के लिये ही भगवान् नृसिंह ने अवतार धारण किया था। ऐसी दशा में हमारे चरित्रनायक के आविर्भाव का समय भी सत्ययुग का समय ही मानना होगा। अब विचारणीय बात यह है कि, वह सत्ययुग था कौन-सा ? क्योंकि भारतवासियों के केवल विश्वास और पौराणिक प्रमाणों के आधार पर ही नहीं, प्रत्युत समस्त संस्कृत साहित्य के अनुसार जो कालमान बतलाया गया है, उसका बड़ा विस्तार है। सृष्टि का क्रम अनादि है और प्रत्येक ब्रह्माण्ड की सृष्टियों का क्रम भी अनादि है। ब्रह्माण्ड भी अनन्त हैं और उनमें सृष्टियों के करने वाले ब्रह्मा भी असंख्य हैं। इस ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा अपने एक सौ वर्षों तक रहते हैं और उनके एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में एक सहस्र महायुग होते हैं, जिनको चौदह मन्वन्तरों में बाँटा जाता है । एक-एक मनु का मान इकहत्तर-इकहत्तर युग का होता है और वह युग चार युगों का महायुग कहलाता है। प्रत्येक मनु की सन्ध्या भी होती है जो एक सत्ययुग के मान के बराबर होती है, इसी प्रकार कल्प के आदि में भी सन्ध्या होती है और उसका मान भी सत्ययुग के समान ही होता है। एक महायुग में जो चार युग होते हैं उनके क्रमशः नाम हैंं सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। कलियुग का मान, चार लाख और बत्तीस सहस्र वर्षों का होता है। कलियुग का दूना द्वापर, तिगुना त्रेता और चौगुना सत्ययुग होता है।
वर्तमान ब्रह्मा की आयु का पूर्वार्ध अर्थात् उनके पचास वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और उत्तरार्ध के वर्ष का इस समय पहला दिन है। पहले दिन के चौदह मनुओं में इस समय तक छः मनु भी व्यतीत हो चुके हैं और सातवें वैवस्वत मनु के सत्ताईस चतुर्युग भी व्यतीत हो चुके हैं। अट्ठाईसवे चतुर्युग के सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग भी व्यतीत हो चुके हैं तथा वर्तमान कलियुग के भी ५०३१ वर्ष (संवत् १९८७ विक्रमीय में) व्यतीत हो चुके हैं।ऐसी दशा में, हमारे चरित्रनायक के आविर्भाव का सत्ययुग कौनसा सत्ययुग था यही विचारणीय विषय है। हमारे चरित्रनायक प्रह्लाद के पुत्र का नाम विरोचन था और विरोचन के पुत्र का नाम था 'बलि'। राजा बलि के पुत्र का नाम 'वाण' था जो हमारे चरित्रनायक के प्रपौत्र थे। रामायण की कथा से यह पता चलता है कि वाण और रावण दोनों पराक्रमी योद्धा थे और समकालीन थे। वर्तमान वैवस्वत मनु के चौबीसवें त्रेता में भगवान् श्रीरामचन्द्रजी का अवतार हुआ था। अतएव श्रीमद्वाल्मीकि रामायण के मतानुसार यह सिद्ध होता है कि, हमारे चरित्रनायक का आविर्भाव वर्तमान मनु के चौबीसवें सत्ययुग से पीछे नहीं हुआ। श्रीमद्भागवत सप्तम स्कन्ध के दशवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक से पता चलता है कि, भगवान् नृसिंह ने दैत्यर्षि प्रह्लाद को जो वर दिया था, उसके अनुसार उन्होंने तत्कालीन मनु के समय पर्यन्त राजभोग किया था और महाभारत से यह भी विदित होता है कि, द्विजवेषधारी इन्द्र के द्वारा शीलदान के पश्चात् हमारे चरित्रनायक के राजभोग का अन्त भी हो चुका है। अतएव यह सिद्ध होता है कि दैत्यर्षेि प्रह्लाद के आविर्भाव का समय, कम-से-कम वर्तमान वैवस्वत मनु के प्रथम, किसी दूसरे मन्वन्तर के किसी सत्ययुग का है। पुराणों के द्वारा देवासुर संग्राम का समय, वर्तमान कल्प के छठे मन्वन्तर में, जिनका चाक्षुष नाम था, सिद्ध होता है। देवासुर संग्राम, समुद्र मन्थन के पश्चात् हुआ था और उस समय हमारे चरित्रनायक के पौत्र राजा बलि का शासन-काल था। इस प्रकार दैत्यर्षि प्रह्लाद के आविर्भाव का समय चाक्षुष मनु के समय में निष्पन्न होता है और 'इति षष्ठेऽत्र चत्वारो नृसिंहाद्याः प्रकीर्तिताः' अर्थात् इस छठे (चाक्षुष) मन्वन्तर में नृसिंह, कूर्म, धन्वन्तरि और मोहिनी ये चार अवतार हुए। इस वचन के अनुसार यह निश्चय हो जाता है कि आज से बहुसंख्यक युगों के पूर्व चाक्षुष नाम के मन्वन्तर में और समुद्र मन्थन के पूर्व किसी सत्ययुग में हमारे चरित्रनायक परमभागवत दैत्यर्षि प्रह्लाद का पवित्र आविर्भाव और भक्तवत्सल भगवान् का नृसिंहावतार हुआ था।
आधुनिक युग के पाश्चात्य विद्वान् तथा उनके ही प्रभाव से
प्रभावित हमारे इतिहास प्रेमी भारतीय विद्वान् भी, सम्भव है हमारे निकाले हुए भक्तशिरोमणि प्रह्लाद के आविर्भाव-समय को सन्देह की दृष्टि से देखें और इस पर विश्वास न करें किन्तु आस्तिक भारतवासियों के सामने कोई ऐसा कारण नहीं है कि, वे उस काल पर—जो उन्हीं ग्रन्थों के आधार पर अवलम्बित है, जिनके आधार पर चरित्रनायक का पुनीत चरित्र—सन्देह करें। हम आशा करते हैं कि, 'अर्धजरतीयन्याय' को छोड़, लोग एक दृष्टि से विचार करेंगे और पौराणिक साहित्य की कथाओं के समय का निर्णय जब तक उसके विरुद्ध कोई पुष्ट प्रमाण न मिले, पौराणिक प्रमाणों के आधार पर ही मानेंगे।