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मायामृग - Novels
by Pranava Bharti
in
Hindi Love Stories
यूँ तो सब ज़िंदगी की असलियत से परिचित हैं, सब जानते हैं मनुष्य के जन्म के साथ ही उसके जाने का समय भी विधाता ने जन्म के साथ ही जाने का समय भी लिखकर भीतर कहीं पोटली में रख दिया गया है कैसी है न यह पोटली जो अंतिम क्षण तक खुलती ही तो नहीं कितनी मज़बूत गाँठें लगाई होंगी न रचनाकार ने और कितनी सारी भी जो ताउम्र उसे अपने भीतर समेटे एक नीम-बेहोश हालत में जीते हैं हम ! उसके साथ बहुत वर्षों से यह हो रहा है, एक अजीब सी गफ़लत उसे घेरे चलती रही है खूब-खूब प्रसन्न व आनंद में है किन्तु जब सड़क पर लोगों को चलते हुए देखती है यकायक शेक्सपियर याद आ जाते हैं
यूँ तो सब ज़िंदगी की असलियत से परिचित हैं, सब जानते हैं मनुष्य के जन्म के साथ ही उसके जाने का समय भी विधाता ने जन्म के साथ ही जाने का समय भी लिखकर भीतर कहीं पोटली में रख ...Read Moreगया है कैसी है न यह पोटली जो अंतिम क्षण तक खुलती ही तो नहीं कितनी मज़बूत गाँठें लगाई होंगी न रचनाकार ने और कितनी सारी भी जो ताउम्र उसे अपने भीतर समेटे एक नीम-बेहोश हालत में जीते हैं हम ! उसके साथ बहुत वर्षों से यह हो रहा है, एक अजीब सी गफ़लत उसे घेरे चलती रही है खूब-खूब प्रसन्न व आनंद में है किन्तु जब सड़क पर लोगों को चलते हुए देखती है यकायक शेक्सपियर याद आ जाते हैं
सुधरना इतना आसान होता तो बात ही क्या है ? ” यह फुसफुसाहट उसके मन की भीतरी दीवारों पर सदा से टकराती रही है और वह सोचती रही है आखिर ये है कौन और क्यों उसे टोकती रहती है? ...Read Moreशिक्षित शुभ्रा पूरी उम्र इस फुसफुसाहट का अर्थ समझ पाने में असमर्थ रही जबकि वह उसे सदा चेताती रही थी जो कुछ भी उसके जीवन में घटित हुआ संभवत: न होता यदि उसने इसके भीतर छिपे गूढ़ अर्थ को समझ लिया होता किन्तु कैसे होता ? जब हम यह जान लेते हैं कि प्रत्येक घटना का होना सुनिश्चित है तब परिस्थितियों से उपजे संत्रास को तथा स्वयं को कोसना बंद कर देने में ही समझदारी लगती है
उदय के बड़े भाई साहब जब विदेश गए थे तब ऐसा हंगामा उठा मानो विदेश में कहीं राष्ट्रपति बनकर गए हों इतना दिखावा कि बस खीज आने लगती शुभ्रा को, चाहे विदेश में जाकर मजदूरी ही करते ...Read Moreलोग लेकिन विदेश में जाकर बसना ---यानि गधे के सिर पर सींग उग आना वैसे बड़े भाई साहब तो ‘व्हाइट कॉलर जॉब’ पर गए थे जबकि विदेश जाने के लिए उन दिनों लोग कितनी-कितनी परेशानियाँ झेलने के लिए तैयार होते थे और मेहनत–मज़दूरी करने के लिए तैयार रहते, कहीं न कहीं से पैसे का इंतजाम करते, चाहे ज़मीन-जायदाद क्यों न बेचनी पड़ जाए
बुखार भर से उनका इस प्रकार उठ जाना किसी के लिए भी पचा पाना कठिन था जीवन को बहुत नाप-तोलकर जीने वाले उदय की दूरदृष्टि बहुत पैनी थी इसी कारण जब उन्हें पता चला था कि उनका ...Read Moreउदित एक गुजराती लड़की के पीछे पगला गया है, वे बहुत असहज हो उठे थे उम्र का यह दौर बहुत नाज़ुक होता है, न किसीको मना किया जा सकता है, न कोई प्रतिबन्ध ही लगाया जा सकता है और तुरंत स्वीकारने में भी अड़चन ही आ जाती है वैसे उदय कोई बहुत संकुचित विचारों के भी नहीं थे पर जिस परिवार में उदित शादी करने की बात कर रहा था, वह परिवार कुछ विवादित था जिसके बारे में उदय अपने विवाह से पहले जानते थे और परिवार के बारे में कुछ अधिक अच्छे विचार नहीं बना पा रहे थे
गांधारी ने तो पति के कारण पट्टी बांधी थी यहाँ तो माँ ने अपनी आँखों पर बेटे के मोह में पट्टी बांधी थी और पिता की आँखों पर भी भ्रम के जाले लगवा दिए थे वैसे कोई ...Read Moreबात तो है नहीं यह पट्टी तो अधिकतर हरेक माँ-बाप की आँखों पर बंधी रहती है किया भी क्या जा सकता है ? मनुष्य को परिस्थिति के अनुसार ही निर्णय लेने पड़ते हैं, उसीमें ही समझदारी होती है आज के दौर में यह नाज़ुक स्थिति अधिकांशत: प्रत्येक माता-पिता के समक्ष आ ही जाती है जिसमें निर्णय ‘हाँ’ अथवा ‘न’ दोनों ही बहुत शीघ्र नहीं लिए जा सकते