mahakavi bhavbhuti book and story is written by रामगोपाल तिवारी in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. mahakavi bhavbhuti is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
महाकवि भवभूति - Novels
by रामगोपाल तिवारी
in
Hindi Fiction Stories
महाकवि भवभूति भारतीय साहित्य एवं संस्कृति की अमर विभूति हैं। उनका साहित्यिक अवदान न केवल एक कवि एवं नाटकार के रूप में वरन् एक महान प्रेरक के रूप में भी हमारे स्वर्णिम इतिहास का अविस्मरणीय अध्याय है।
भवभूति अपने युग के एक कुशल कल्पनाकार, समाजशिल्पी, प्रयोगधर्मी रंगकर्मी एवं उत्कृष्ट नाटककार हैं। अपने समय के एक क्रान्तधर्मी युगदृष्टा की तरह उन्होंने एक सम्पूर्ण युग जिया। राजाश्रय परम्परा में उनका विश्वास न था, उन्होंने अपने नाटकों का सृजन एवं उनका मंचन जनता के बीच शुरू किया। जनहृदय के साथ अपनी पीड़ा का तादात्म्य स्थापित कर उन्होंने करुणरस को जो ऊँचाईयाँ प्रदान की, उसकी अनुकृति साहित्य-जगत् में अन्यत्र कम ही देखने को मिलती है।
भवभूति की जीवनगाथा को उपन्यास के ताने-बाने में बुनकर श्री रामगोपाल भावुक ने अपनी कल्पना शक्ति की छटा का श्रेष्ठ परिचय प्रस्तुत किया है। भावुक ने भवभूति के समय को यहाँ साकार कर दिया, जो पात्र और चरित्र कथानक की विकास-यात्रा से यहाँ जुड़ते चले गये हैं। वे कागज की सतह पर सजीव हो उठे हैं।
महाकवि भवभूति उपन्यास लेखक रामगोपाल भावुक 000 संपर्क000 संपर्कः कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला गवालियर (म0प्र0) पिन- 475110 मोबा- 09425715707जपूंतप तंउहवचंस 5/हउंपण्बवउ सम्पादकीय भारतीय ...Read Moreवाड़्मय की विश्व फलक पर अपनी एक पृथक् पहचान है, जिसमें संस्कृत-साहित्य एवं मनीषियों को विलोपित कर दिया जाए, तो इसका उद्गम स्रोत खोज पाना असंभव हो जाएगा। संस्कृत-साहित्य की विविध विधाओं नाट्य, काव्य, पद्य, गद्य, चम्पू, रूपक, प्रहसन, भाण आदि की विस्तृत परम्परा तथा विपुल साहित्य भण्डार प्राप्य है। इनमें भी खयतनामा हस्ताक्षरों का नाम लिया जाए, तो हमें अत्यन्त गर्व होता है कि इनकी एक
युगदृष्टा पद्मावती सिन्धु और पारा नदी के संगम के पूर्वोत्तर की ओर पद्मावती नगरी का यह एक ऐसा स्थल है ,जो भारतवर्ष के राजमार्ग से जुड़ा हुआ है। इसीलिये यहाँ आने-जाने ...Read Moreका जमघट बना रहता है। इस स्थल पर हमेंशा कुछ राहगीर विरमाते मिल जायेंगे। जन सामान्य को इस नगर से कोई संदेश कहीं भी भेजना हो तो इस स्थल पर कोई न कोई ऐसा सूत्र मिल जायेगा कि आप वहाँ से संतुष्ट होकर ही लौटेंगे। यों लम्बे समय से सन्देश भेजने की परम्परा इस स्थल से जुड़ गई है। उसी स्थल पर ग्रीष्म की
महाकवि भवभूति 3 भवभूति उवाच ...Read Moreमेरा चित्त उद्धिग्न होता है, मुझे सिन्धु नदी के उसी शिलाखण्ड पर विराम मिलता है। फिर रात बिस्तर पर लेटते ही उन्हीं विचारों में खोया रहा- आज मुझे अपने वचपन की याद आ रही है। मैं भवभूति के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध होता जारहा हूँ। मेरे बाबाजी भटट गोपाल इसी तरह सम्पूर्ण विदर्भ प्रान्त में अपनी विद्वता के लिये जाने जाते थे। मैं अपनी जन्मभूमि में श्रीकण्ठ के नाम से चर्चित होता जा रहा था। मेरे बाबाजी ने शायद मेरे सुरीले स्वर को पहचान कर मेरा नाम श्रीकण्ठ रखा था। मेरे
महाकवि भवभूति 4 कांतिमय गुरुकुल विद्याविहार भोर का तारा उदय ...Read Moreभवभूति अपने साथियों के साथ नवचौकिया (नौचंकी) के पास स्नान करने पहँुच जाते। इसी स्थान पर जल ऊपर से नीचे गिरता है। धुआंधार का मनोरम दृश्य देखकर सहृदय जन भाव विभोर हुये बिना नहीं रह सकते। वर्षा के मौसम मैं यहाँ खड़े होकर इन्द्रधनुष के दर्शन भी किए जा सकते हैं। ऐसे मनोहारी दृश्य का आनन्द लेने के बाद सभी भगवान कालप्रियनाथ के मंदिर पहुँच जाते। वे धारणा-ध्यान की साधना में लग जाते। इस तरह मंदिर के गर्भगृह में उनका यह कार्य दो-तीन घड़ी तक
महाकवि भवभूति 5 अपना वैभव कहती पद्मावती सूर्य के उगते ही अंधकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। ठीक उसी तरह जब हमारा चित्त ...Read Moreहो उठता है, तब चेतना उत्कृष्ट होकर जन-जन का उपकार करने लगती है। इस तरह जाने क्या-क्या सोचते हुये महाकवि भवभूति की पत्नी दुर्गा मछलियों को चुँगा डालने से निवृत्त होकर घर चल दीं। पथ में बबूल के पेड़ की उथली छाया में सुमंगला चीटियों को मिष्ठान से भरपूर आटा डाल रही थीं। दुर्गा पास जाकर उनका ध्यान भंग करते हुये बोली- ‘सुमंगला दीदी, आप तो प्रातः से साँय तक इसी