Mamta ki Pariksha - 87 books and stories free download online pdf in Hindi

ममता की परीक्षा - 87



"यह तो आपकी विनम्रता है सेठजी ! कहाँ आप और कहाँ हम, लेकिन एक बात है आपने जो कहा है कि आप याचक बन कर आये हैं तो मेरा ये मानना है कि याचक कौन नहीं ? इस दुनिया में सभी याचक हैं। बस फर्क सबमें यही है कि सबकी ख्वाहिशें अलग अलग हैं। कोई तख्तो ताज की ख्वाहिश रखता है तो कोई दो रोटी में ही खुश हो जाने की ख्वाहिश रखता है .और......."
चौधरी रामलाल किसी बड़े बुजुर्ग की तरह जमनादास को समझाने लगे थे कि अचानक रुक गए और फ़िर बोले, " खैर, छोड़ो इस सब को। आप क्या जानना चाहते थे ?"

मंद मंद मुस्कुराते हुए सेठ जमनादास बोले, "चौधरी जी ! बहुत बहुत धन्यवाद आपने मेरी मजबूरी समझी। मैं ये जानना चाहता था कि मास्टर रामकिशुन का क्या हुआ बाद में। गोपाल के पिता सेठ शोभालाल के बंगले के बाहर सेठ अंबादास को मिठाई बाँटते हुए देखकर बड़े आहत से लग रहे थे जब वह मेरे पास आये थे। मुझे बहुत अफसोस है कि मैं उस वक्त उनकी कोई मदद नहीं कर सका था। उनका क्रोधित होना स्वाभाविक ही था सो गुस्से में उन्होंने मुझे बहुत बुरा भला कहा और फ़िर वहाँ से निकल आये थे। मुझे उस समय बुरा तो लगा था लेकिन उनकी स्थिति का ध्यान रखते हुए मैंने सब बरदाश्त किया। मुझे पता था कि गोपाल विदेश में है और उसके साथ क्या हो रहा है, लेकिन मैं चूँकि कुछ कर नहीं सकता था इसलिये खामोश ही रहा।
धीरे धीरे अपनी जिम्मेदारियों में उलझकर मैं सब कुछ भूलता गया... और शायद याद भी नहीं आता कभी लेकिन कहते हैं न कि कुदरत इंसाफ अवश्य करती है... और ये कुदरत के इंसाफ का तरीका ही था जिसने अमर और रजनी को मिला दिया। रजनी को शायद आप नहीं जानते। रजनी, मेरी बेटी है और उसके साथ जब मैं अमर के कमरे पर पहुँचा था उसी समय दीवार पर टँगी साधना की तस्वीर देखकर पूरी कहानी मेरे समझ में आ गई थी। मैंने महसूस कर लिया था कि कुदरत ने साधना के साथ इंसाफ करने का अपना कार्यक्रम शुरू कर दिया है। ये बात तब और सही लगने लगी जब उसी शाम रजनी की तबियत अचानक बहुत अधिक खराब हो गई। डॉक्टरों की कड़ी मेहनत के बाद उसकी जान बचाई जा सकी और वह अभी भी अस्पताल में ही है.....!"

"क्या हुआ है रजनी को ?" उनकी बात बीच में ही काटते हुए अमर अधीरता से बोल पड़ा।

दर्दमिश्रित मुस्कान जमनादास के चेहरे पर फैल गई, "ना ना बेटा ! अब चिंता की कोई बात नहीं है। डॉक्टरों ने कहा है वह खतरे से बाहर है। उसे बेड रेस्ट की जरूरत है बस और कुछ नहीं।" तुरंत ही जवाब दिया था जमनादास ने।
"लेकिन उसे हुआ क्या है ?" अब तक लापरवाही से खड़ा और जमनादास की बातों से अप्रभावित रहने का नाटक करनेवाला अमर अचानक ही चिंतित नजर आने लगा। उसकी व्याकुलता का अनुभव कर जमनादास की अनुभवी निगाहों ने उसके दिल में छिपे रजनी के प्रति प्यार को महसूस कर राहत की साँस ली और बोले, "बेटा, शुक्र है ईश्वर का कि उसे सही समय पर इलाज मिल गया। तुम्हारे बिना उसकी धड़कनों ने सत्याग्रह करने का मन बना लिया था बेटा। दरअसल हल्का दिल का दौरा पड़ा था उसे।"

"ओह, यह जानकर अच्छा लगा कि अब वह ठीक है।" कहने के बाद अमर खामोश हो गया। जमनादास ने भी उसे अभी और कुरेदना उचित नहीं समझा, अतः चौधरी रामलाल की तरफ खामोशी से देखने लगे। उनके खामोश होते ही चौधरी ने बोलना शुरू किया मानो जैसे उन्हें इसी बात का इंतजार था।

वह बोले, "सेठ जी, माना कि आप उस परिस्थिति में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे लेकिन मास्टर रामकिशुन को सच्चाई से अवगत तो करा ही सकते थे। मास्टर रामकिशुन के मन में यह गाँठ तो नहीं पड़ती न कि आप भी सेठ शोभालाल से मिले हुए हो। ..खैर, ईश्वर ने आपको जैसी बुद्धि दी,आपने किया। देखा जाए तो आपका भी क्या दोष ? अब मैं आपको बताता हूँ कि मास्टर रामकिशुन के आपके यहाँ से वापस आने के बाद क्या हुआ ? "

खटिये पर बैठे बैठे ही पहलू बदलते हुए चौधरी रामलाल ने कहना शुरू किया, "तुम्हें तो याद ही होगा, उन दिनों सर्दियाँ शुरू हो गई थीं जब मास्टर रामकिशुन आख़िरी बार शहर गए थे और आपसे मिले थे। शायद दोपहर में आपसे मिले थे। खेतों में धान की फसल कटने के बाद मैं अपने पिता जी सहित गेहूँ की बोआई में व्यस्त था। उस दिन हल्का अँधेरा घिर चुका था जब हम दोनों बाप बेटा अपने घर पहुँचे थे। दूर से ही मास्टर के घर के सामने जमा हुई भीड़ देखकर हमारा माथा ठनका, 'ये अचानक ऐसा क्या हो गया है जो मास्टर काका के घर के सामने इतनी भीड़ खड़ी है।" कहते कहते चौधरी मानो कहीं खो से गए। उनकी निगाहें कहीं शून्य में स्थिर सी हो गईं और जुबान चलती रही मानो कोई चलचित्र देख रहे हों और बयान कर रहे हों ..........

खेतों में से आते हुए चौधरी श्यामलाल ने दूर से ही मास्टर के घर के सामने जमा भीड़ देखकर अपने युवा पुत्र रामलाल से जो कि उनके साथ ही चल रहा था कहा, "बेटा, मास्टर के घर के सामने काफी भीड़ दिख रही है। मैं तेज नहीं चल सकता। जरा तेज कदमों से जल्दी पहुँच कर देख क्या माजरा है ? और अगर उन्हें किसी भी सहायता की जरूरत है तो बेहिचक जो भी करना पड़े करना लेकिन उन्हें कोई खतरा नहीं होना चाहिए।"

"ठीक है बाबूजी !" कहकर तुरंत ही लगभग दौड़ने का प्रयास करते हुए रामलाल गाँव की तरफ तेजी से बढ़ गया।

शीघ्र ही वह मास्टर रामकिशुन के घर के सामने था। अन्य गाँववालों के साथ ही उसकी दादी और माँ भी औरतों की भीड़ में शामिल साधना को घेरे हुए थीं। साधना का रो रो कर बुरा हाल था। गाँव की ही किसी महिला के हाथ में नन्हा अमर बिलख रहा था और वह महिला जबरदस्ती उसे अपना दूध पिलाकर चुप कराने का प्रयास कर रही थी लेकिन असफल रही थी। दालान में एक खटिये पर मास्टर रामकिशुन चित्त लेटे हुए गहरी गहरी साँसें ले रहे थे। एक हाथ से अपने सीने को दबाने का प्रयास करते हुए वह होठों को भींच कर तीव्र दर्द को पीने का प्रयास कर रहे थे। उनकी आँखें लाल सुर्ख होकर अँगारे की मानिंद दहक रही थीं। दो बुजर्ग उनके ऊपर झुककर तेज तेज उनके सीने की मालिश कर रहे थे।

रामलाल ने पड़ोस के एक बुजुर्ग से पूछा, "काका, ये क्या हो गया मास्टर काका को अचानक ?"

उसने रामलाल की तरफ देखा और धीरे से बोला, "मास्टर अभी थोड़ी देर पहले शहर से , साधना से कुछ बात किया और फिर अचानक खटिये पर गिरकर तड़पने लगा। पता नहीं का हुआ है लेकिन उसको दर्द बहुत हो रहा है यह तो दिख ही रहा है । साधना बिटिया के रोने की आवाज सुनकर हम सब लोग जमा हुए हैं। वह भी पूछने पर कुछ नहीं बता रही है बस रोये जा रही है। हमने गाँव के नुक्कड़ पर डॉक्टर को बुलाने के लिए भेज दिया है। डॉक्टर भी मास्टर का बहुत इज्जत करते हैं, सुनते ही दौड़े चले आएँगे।"

क्रमशः