Mamta ki Pariksha - 83 books and stories free download online pdf in Hindi

ममता की परीक्षा - 83



रजनी कुछ देर तक फोन को निहारती रही। घंटी लगातार बजकर उसे यह बताने का प्रयास कर रही थी कि कोई उसे पुकार रहा है.. लेकिन कौन ?
कौन है जो इतनी सुबह सुबह उसे याद कर रहा है ? निश्चित ही उसकी जान पहचान का तो नहीं ही होगा, क्योंकि उसकी सहेलियाँ और जानपहचान के सारे लोग तो अभी चिर निद्रा में रजाई में दुबके होंगे।
अनमने ढंग से उसने हाथ बढ़ाकर फोन उठा लिया। स्क्रीन पर कोई अनजान नंबर फ़्लैश कर रहा था। नागवारी का भाव चेहरे पर लिए उसने फोन उठा लिया और कुछ क्रोध में ही बोली, "हेल्लो ! कौन बोल रहा है ?"

"दीदी मैं ...."दूसरी तरफ से कहा गया।

"कौन मैं .....?.. और सुनो मैं किसी की दीदी विदी नहीं हूँ ! अब मैं मैं मत करो और सीधे सीधे अपना नाम बताओ और ये भी बताओ कि फोन क्यों किया है ?" रजनी ने उसकी बात काटते हुए बीच में ही सख्त लहजे में कहा।
"ओह...तो आपने मुझे नहीं पहचाना ? कोई बात नहीं दीदी ...लगता है अभी आपका बात करने का मूड नहीं है ..शायद अभी शहर में सुबह नहीं हुई होगी। गलती मेरी ही है ....मुझे इतनी सुबह सुबह फोन नहीं करना चाहिए था, लेकिन मुझसे ही रहा नहीं गया आपकी तस्वीर अमर भैया के पर्स में देखने के बाद.. लेकिन कोई बात नहीं ......मैं आपसे बाद में बात कर लूँगा ...!" कहने के साथ ही बिरजू ने फोन काट दिया।

तभी दूर से चौधरी रामलाल ने बिरजू को आवाज लगाई, "अरे ओ बिरजू, सुबह सुबह किससे बात कर रहा है ? ..देख, अब तेरे सामने की क्यारी पानी से भर गई है। वहाँ से नाली बंद कर और आगे की क्यारी में पानी बढ़ा।"

"ठीक है बाबूजी !" कहकर बिरजू ने फोन अपनी जेब के हवाले किया और चौधरी के कहे अनुसार उस क्यारी में पानी का रास्ता बंद कर आगे की क्यारी का मुँह खोल दिया। अब नाली का पानी तेजी से आगे की क्यारी में भरने लगा।

इधर अस्पताल में फोन कटते ही रजनी बेचैन सी हो गई थी। उसका दिमाग घूम गया था। वह उस अंजान इंसान द्वारा कहे गए एक एक शब्द को फिर से समझने की कोशिश कर रही थी। सोच रही थी 'एक अंजान आदमी का फोन और उसमें अमर का जिक्र ? आखिर कौन हो सकता है वो ?'

फिर उसके दिल ने कहा, "जो भी हो, वो अमर के बारे में कुछ बताना चाहता था। उससे इस तरह रुखाई से नहीं पेश आना चाहिए था। उससे बात करनी चाहिए थी। शायद वह अमर के बारे में कोई सही जानकारी दे देता।"

"लेकिन फोन भी तो उसी ने काटा था।" उसके दिमाग ने उसे दिलासा देना चाहा।

उसके दिल ने प्रतिरोध किया ,"कौन स्वाभिमानी इंसान तुम्हारे इस रूखे व्यवहार के बाद भी तुमसे बात करना चाहेगा ? अब भी समय है उससे बात करके अमर के बारे में जानकारी पाया जा सकता है। वह भला मानस शायद तुम्हें माफ कर दे और उसकी दी हुई जानकारी हो सकता है तुम्हारे काम आ जाए।"

उसके दिमाग ने भी उसके दिल का समर्थन किया, "हाँ, सही कह रहे हो। आखिर उससे बात करने में नुकसान ही क्या है ?"

"ओके, ओके !" कहते हुए रजनी कुछ पल के लिए सिर थाम कर बैठ गई और स्वयं को संयत करने का प्रयास करने लगी।
कुछ पल के बाद उसने मोबाइल पर उसी नंबर से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन ' नॉट रिचेबल ' का रटारटाया वाक्य सुनकर उसने गुस्से से मोबाइल बेड पर दे मारा।
गम और बेबसी दोनों ही उसपर हावी हो चुके थे। मन अचानक अशांत हो गया था। मस्तिष्क में बस अमर ही छाया हुआ था।

'आखिर कहाँ होगा अमर ? किस हाल में होगा ? और वो कौन है जिसने अमर के बारे में उससे बात की थी ?' तभी उसके दिमाग ने सरगोशी की 'कहीं ऐसा तो नहीं कि अमर ने खुद ही किसीसे फोन कराया हो ? आखिर तकलीफ उसे भी तो हो रही होगी ? दिल तो उसका भी रो रहा होगा ?'
'
उसका मन प्रतिरोध कर उठा, "नहीं, अमर ऐसा नहीं है। वह किसी से फोन क्यों कराएगा ? उसे बात करना होता या खुद के बारे में बताना होता तो खुद ही बताता।"

सोचते हुए उसने एक बार फिर उसी नंबर पर सम्पर्क साधने की कोशिश की। इस बार तुरंत ही फोन की घंटी बजने लगी। रजनी धैर्य से रिंग की आवाज सुनती रही और दुसरी तरफ से किसी के बोलने की प्रतीक्षा करती रही।
दुसरी तरफ से आवाज आई, "हेल्लो ! दीदी, मैं बिरजू बोल रहा हूँ।"
आश्चर्य मिश्रित आवाज निकली थी रजनी की, " अरे बिरजू तुम ! कैसे हो ? पहले बताया क्यों नहीं ?'
रजनी ने एक ही साँस में सवालों की झड़ी लगा दी।

उधर खेतों में खड़ा बिरजू मुस्कुराते हुए उसकी अवस्था का अंदाजा लगाकर मजे ले रहा था, "लेकिन दीदी मैं तो अपना नाम बताने ही जा रहा था लेकिन आपने बताने ही नहीं दिया। इसमें मेरी क्या गलती है ? आप ने तो डपट ही दिया था मुझे,...लेकिन आपकी डाँट भी मुझे आशीर्वाद जैसी ही लगी। आखिर आप दीदी हैं मेरी।"

अंतिम वाक्य कहते हुए बिरजू की हँसी छूट गई। उसने आगे कहना जारी रखा, " दीदी, फोन करने के बाद मुझे समझ में आया कि आखिर गलती मेरी ही थी। सुबह सुबह फोन करने से पहले मुझे सोचना चाहिए था।... लेकिन क्या करता, बात ही ऐसी थी कि खुद पर काबू नहीं रख पाया। मुझे माफ़ कर दो दीदी सुबह सुबह अपनी नींद में खलल डालने के जुर्म से।"

" इट्स ओके ! कोई बात नहीं, ..और कोई गलती नहीं। तुम मुझे कभी भी फोन कर सकते हो। माफी की तो कोई बात ही नहीं, क्योंकि मेरी नींद में कोई खलल पड़ी ही नहीं।..........हाँ घर पर होती तो शायद इस समय भी सो रही होती लेकिन यहाँ इस अस्पताल में ये कमबख्त नींद भी तो मरीजों से दूर ही भागते रहती है।" कहते हुए रजनी चहक उठी थी।

बिरज से बात करना उसे बहुत अच्छा लग रहा था।

" खैर छोड़ो ! ......"अभी वह आगे कुछ कहने जा ही रही थी कि उसकी बात बीच में ही काटते हुए बिरजू चिंता भरे स्वर में कह उठा, "अस्पताल ? ....आप अस्पताल में हो ? क्या हुआ है ? अब कैसी तबियत है आपकी ?"

रजनी ने उसे दिलासा देते हुए बताया, "चिंता की कोई बात नहीं। तबियत मामूली सी खराब हो गई थी, लेकिन अब ठीक है। बिल्कुल भली चंगी तुमसे बात कर रही हूँ।"

"तब ठीक है दीदी, फिर भी आप अपना ध्यान रखिएगा और......।" बिरजू ने सहानुभूति पूर्वक उसे अपने ज्ञान का एक डोज दे दिया था।

रजनी व्यग्रता से उसकी बात बीच में काटते हुए बोली, "लेकिन तुम बताना क्या चाहते थे जिसके लिए इतने उतावले थे ?"

क्रमशः