Shakunpankhi book and story is written by Dr. Suryapal Singh in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Shakunpankhi is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
शाकुनपाॅंखी - Novels
by Dr. Suryapal Singh
in
Hindi Moral Stories
यह इक्कीसवीं शती का प्रारंभ है। पूर्व और पश्चिम की विकास यात्रा में नव उदारीकरण की लहलहाती फसल के बीच इंच इंच घिसटती मानवता । उद्यमिता के नए प्रारूपों के बीच व्यष्टि की बंधक होती हनक । बाज़ार भरे हुए, ग्राहकों की जेबें टटोलते, भीड़ के बीच आदमी का अकेलापन । समाज जिसे बहुध्रुवीय, बहुलतावादी होने का मुगालता था एकरूपता की मार से कराहता हुआ ।
धर्म और नस्ल के नए नए प्रयोग हित अनहित के प्रश्नों को निबटाते हुए। सत्ता के लिए इनका सटीक उपयोग मानवमन के बीच भयानक द्वन्द्वका सृजन करता हुआ । सत्ताधारी की भाँति पंथों के अगुवा भी ताल ठोंक कर जन-जन के बीच लकीर खींचते हुए। लहू-लुहान शाकुनपाँखी की भाँति सहा खीझा आम जन । बहेलिए छुट्टा घूमते हुए लक्ष्य साधने में मग्न । 'मा निषाद ' का उद्घोष भी प्रभावहीन । जन आक्रोश सार्थक दिशा की तलाश में। आशा और निराशा के बीच जूझते युवाजन ।
पंछी की भाँति उड़ता मनुष्य पड़ोसियों से समरस न हो पाने के लिए अभिशप्त । सत्ता, शक्ति और वैभव के लिए कैसे कैसे नृत्य? पर समरसता, सदभावना की भी एक अन्तर्धारा अविरल बहती जन मानस को सींचती चलती। यही तो हर युग की कथा है। |
उपोद्घात यह इक्कीसवीं शती का प्रारंभ है। पूर्व और पश्चिम की विकास यात्रा में नव उदारीकरण की लहलहाती फसल के बीच इंच इंच घिसटती मानवता । उद्यमिता के नए प्रारूपों के बीच व्यष्टि की बंधक होती हनक । बाज़ार ...Read Moreहुए, ग्राहकों की जेबें टटोलते, भीड़ के बीच आदमी का अकेलापन । समाज जिसे बहुध्रुवीय, बहुलतावादी होने का मुगालता था एकरूपता की मार से कराहता हुआ । धर्म और नस्ल के नए नए प्रयोग हित अनहित के प्रश्नों को निबटाते हुए। सत्ता के लिए इनका सटीक उपयोग मानवमन के बीच भयानक द्वन्द्वका सृजन करता हुआ । सत्ताधारी की भाँति पंथों
3. फिर वही सान्ध्य भाषा प्रातराश एवं विश्राम के बाद संयुक्ता ने पुनः कारु से अपनी बात स्पष्ट करने के लिए कहा।" मैंने इस शरीर को नष्ट करने का मन बना लिया था, रानी जू। आपके स्नेह ने ही ...Read Moreजीवन दान दिया है। मुझे पुनर्जन्म मिला है, रानी जू ।' 'मेरा स्नेह भी किसी के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है यह आज जाना। पर यह तो बता कि तू अपना शरीर क्यों नष्ट करना चाहती थी? इतना सुन्दर कान्तिमय शरीर क्या नष्ट करने के लिए बना है?""ग्लानिवश, रानी जू ।''फिर वही सान्ध्य भाषा। मैं कहती हूँ, तू स्पष्ट कह
4. कान्यकुब्ज महाराज जयचन्द्र का अधिकांश समय यज्ञ की तैयारियों की समीक्षा कर आवश्यक निर्देश देने में ही बीत जाता । हरकारे दौड़ लगाते । सेवक हाथ बाँधे खड़े मिलते। राजपरिवार के लोग सेवा भाव में अधिक विनम्र हो ...Read Moreथे। यवन, तुर्क, तातार सैनिकों के लिए यह कुतूहल पूर्ण आयोजन था। सुरक्षा आदि के लिए जहाँ उन्हें लगाया जाता पूरी निष्ठा से अपना कार्य करते । सिर पर कफन बाँधकर सैनिक नमक अदा करने के लिए प्रस्तुत रहते । विरोधियों का नमक जानबूझ कर लोग न खाते पर इक्का दुक्का विश्वासघात की भी घटनाएँ घट ही जातीं। सामान्य जन
5. तेरी आँखें संयुक्ता पाठ का अध्ययन करने के साथ ही सामयिक घटनाओं पर चर्चा छेड़ देती, ‘आर्ये, सुनती हूँ शाकम्भरी नरेश ने तुरुष्क सुल्तान शहाबुद्दीन गोरी पर विजय पाई ?"'उचित ही सुना तुमने ।' आर्या कह उठीं। 'पर ...Read Moreसब कैसे हो गया? आपके श्रीमुख से सुनना चाहती हूँ।''तू शाकम्भरी नरेश में कुछ अधिक रुचि ले रही है।' 'नरेश में नहीं, मैं उस घटना से रोमांचित हूँ इसलिए ।''सभी रोमांचित हो उठते हैं उस विवरण को सुनकर मैं तुझे बता रही हूँ। पर मेरी टिप्पणी व्यर्थ नहीं है। तेरी आँखें'....., कहते हुए आर्या हँस पड़ीं। संयुक्ता के मुख मंडल
7. शाकुनपाँखी नहीं हूँ मैं 'महाराज की दृष्टि बचाकर कार्य करना कितना दुष्कर है?' महिषी शुभा टहलती हुई सोच रही हैं। अलिन्द के सामने पाटल पुष्प एक दूसरे को धकिया रहे हैं । 'फूलों की तरह सूचनाओं में गन्ध ...Read Moreहै क्या? सूचनाओं के लिए गुप्तचर न जाने किन वेषों एवं कठिनाइयों के बीच कार्य करते हैं?' वे एक पुष्प तोड़ती रह गईं। महिषी का सौन्दर्य चर्चा में रहता ही था, अब संयुक्ता की चर्चा अपनी पेंगें बढ़ा रही है । गली- वीथिकाओं में लोग माँ-बेटी के सौन्दर्य की गर्मागरम किंवदन्तियाँ परोसते । अकलुष सौन्दर्य की अबूझ पहेलियाँ कही जातीं